Sunday, January 25, 2015

Fentency जीजा साली का रिश्ता

Fentency

 जीजा साली का रिश्ता
मैं यानि मुग्धा, कविता और ऋतू पक्की सहेलियां हैं. हम तीनो की कोई बात आपस में किसी से छुपी नही रहती थी. हम तीनो में सबसे सुंदर मैं ही हूँ. पर कविता और ऋतू भी दिखने में सुंदर ही कहलाती हैं. कविता की शादी हुए २ साल हो चुके हैं. उसका एक बेबी बॉय भी है. कविता का पति एक तराशे हुए बदन का मालिक है. वो भी हमसे बहुत हिलमिल गया है. अक्सर ही हम लोग एक दूसरे के यहाँ पार्टी रखते हैं और साथ साथ हँसी मजाक करते हैं.
मेरी इच्छा भी अब होने लगी कि मैं भी अंकित के और करीब आऊँ. मुझे वो अच्छा भी लगता है.
मैंने अपनी और देखा. मेरा जिस्म भी सेक्सी है. मेरे स्तनों का उभार भी सुंदर है. गोलाई लिए सीधे ताने हुए, किसी को भी आकर्षित कर सकते हैं. मेरी कमर पतली है. मेरे चूतड थोड़े से भारी हैं. दोनों चूतडों की फांकें गोल और कसी हुयी हैं. चलते समय मेरी चूतडों की दोनों गोलाईयां ऊपर नीचे लहराती हैं. अंकित मुझे चोरी चोरी तिरछी निगाहों से देखते रहते थे. मैं उन के करीब रहने की कोशिश करने लगी. मैं कविता के यहाँ अधिक जाने लगी. अब अंकित भी मेरे से सेक्सी मजाक करने लगा था.
"हाय अंकित … कविता कहाँ है .."
"किचेन में है …अभी आ जायेगी बैठो .."
अंकित सफ़ेद पजामे और बनियान में था. मुझे देखते ही पता चल गया कि उसने अन्दर अंडरवियर नहीं पहना है. उसके सोये हुए लंड तक का आकार ऊपर से ही नजर आ रहा था.
मैंने जान बूझ के सोफे पर ऐसे झुक के बैठी कि उसे मेरे बूब्स आसानी से दिख जायें. उसने भी मेरे बूब्स को देखने का लालच नहीं छोड़ा. मैंने उसे देखते हुए पकड़ लिया. मैं मुस्कराई. वो शरमा गया …
"जीजू क्या देख रहे थे ….."
"कुछ नहीं …. बस .."
"शरारती हो ….है ना .."
अंकित का लण्ड अब धीरे धीरे खड़ा होने लगा था, मुझे देख कर वो उत्तेजित होने लगा था।
"कौन शरारत कर रहा है …" कविता कमरे में आते हुए बोली
"जीजू … मजाक अच्छी मजाक करते हैं .." मैंने बात बदल दी
" लो चाय हाजिर है …"
"कविता ….. जीजू से कहो ना कभी कभी तो हम पर भी लाइन मार लिया करें .."
"अरे तुम ही लाइन मार लो ना …..जीजू तो तुम्हारे ही है ना …"
"क्यों जीजू ……. क्या इरादा है …"
"अंकित …बताओ भी तो …"
"अंकित…बता भी दो …"
"अरे मौका तो मिलने दो ..... फिर इसका चुम्मा भी लूँगा …और ..और .."
"और क्या क्या करोगे …अब थोडी शर्म करो ...तुम्हारी बीवी पास खड़ी है ...."
"बीवी की पूरी परमिशन है ....... मुग्धा ये कह रहा है तो चुपके से दे ही देना .."
कविता मेरे पास आयी और मेरे कान में धीरे से कहा - "जरा ध्यान दो ...तुम्हारे जीजू का खड़ा हो रहा है .."
मेरी नजर तो पहले ही उसके लंड पर थी. ये सुनकर मैं शरमा गयी. मैं धीरे से बोली -
"धत् ......"
"क्या हुआ. .हमें भी तो बताओ ......."
उसकी बात सुनकर हम सभी हसने लगे. पर जीजू का मजाक मुझे अच्छा लगा …..
आज रात को ऋतू की शादी की होटल में पार्टी थी. हम सभी एक कार में होटल आ गए थे. वहां ऋतू को उसकी सहेलियों ने घेर रखा था. कविता ऋतू को सजाने सँवारने लगी. तभी कविता बोली –"तुम दोनों यहाँ क्या करोगे, नीचे हॉल में पार्टी एन्जॉय करो .."
मुझे तो मौका मिल गया. मैंने आज पार्टी के लिए खास सेक्सी ड्रेस पहनी थी. ये ड्रेस उसे बहुत पसंद थी. ब्रा इस तरह से कसी थी कि मेरे बूब्स बाहर उभरे हुए नज़र आ रहे थे. टाइट जींस और टॉप पहना था. ताकि अंकित मेरे हुस्न का मजा ले सके. उसे आज पटाना भी था. कविता से मुझे हरी झंडी मिल ही चुकी थी.
हम दोनो नीचे हाल में आ गए। थोड़ी देर वहां कुछ खाया पिया और बातें करते रहे। मैं बार बार उसका हाथ पकड़ लेती थी। वो हाथ छुड़ाता भी नहीं था। फ़्लोर पर कुछ जोड़े डांस कर रहे थे।
अंकित बोला- "चलो मुग्धा ! डांस करते हैं…"
"हां … चलो… ना…"
हम दोनो डांस फ़्लोर पर आ गए। मैंने उसकी कमर में हाथ डाला तो वो सिहर गया।
" जीजू…शरमा रहे हो… मेरी कमर में भी हाथ डालो…"
उसने मेरी कमर में हाथ डाल दिया और हम थिरकने लगे। मैं जान बूझ कर अपने बूब्स उसके सामने उछाल रही थी। उसकी नज़रें मेरे बूब्स से हट नहीं रही थी। मुझे लगा कि मेरा जादू चल गया। मैंने उससे टकराना शुरू कर दिया। कभी बूब्स टकरा देती तो कभी उससे चिपक जाती। अब अंकित भी समझने लग गया था। वो भी मुझसे कुछ ज्यादा ही चिपकने लग गया था, इतना कि उसके मोटे लण्ड की चुभन मैं कभी अपने चूतड़ों पर महसूस करती तो कभी अपनी चूत के पास। मैं तो यही चाहती थी कि अंकित मुझसे और खुल जाए। कुछ ही देर में हम थक गए। डांस छोड़ कर हम गार्डन की तरफ़ चले गए। अंकित गार्डन में आकर हरी घास पर लेट गया। उसका लण्ड उभर कर दिखने लगा।
मैं भी उसके पास ही बैठ गई। मैंने उसका सर अपनी जांघों पर रख लिया और प्यार से उसके बालों में अपनी उंग्लियों से सहलाने लगी। वो एकटक मुझे निहार रहा था। मैंने कहा-"क्या देख रहे हो जीजू…मुझे कभी देखा नहीं क्या?"
"हां.. पर ऐसी मुग्धा नहीं ....." वो मुस्कुरा उठा।
"..नहीं जीजू ....... तुम आज कुछ अलग लग रहे हो..."
" तुम कितनी सुन्दर लग रही हो आज.."
"हाय जीजू ...ऐसे मत बोलो ना.."
"सच कह रहा हूं .... तुम्हारा बदन भी आज सेक्सी लग रहा है... मुझसे अब सहा नहीं जा रहा है.."
"जीजू ....... हाय रे .... फ़िर से कहो.." मैं खुशी से बेहाल हुई जा रही थी।
वो मेरी आंखों में झांकने लगा। मैने भी अपने नयन उस से लड़ा दिये। आंखों ही आंखों में हम दोनो डूबने लगे। मैं भी अनजाने में उसके ऊपर झुकती चली गयी. हमारे होंट जाने कब एक दूसरे से चिपक गए. मेरी साँसे गहरी हो चली थी. अंकित मेरे होटों को चूस रहा था. मैं भी अपनी जीभ उसके मुंह में डाल चुकी थी. मेरा हाथ अपने आप ही उसके पेट पर से होता हुआ उसके लंड से टकरा गया. मैंने पेंट के बाहर से ही उसे पकड़ लिया. वो सिहर उठा. उसका लंड उत्तेजित हो कर मोटा और लंबा हो गया. बहुत ही कड़क होकर बाहर जोर लगा रहा था. उसका हाथ मेरी चुन्ची पर पहुँच गया था. एक हाथ से उसने मेरी चुन्ची दबा दी. मैं आनंद से निहाल हो गयी. ज्यादा खुशी इस बात की थी कि अब अंकित मुझे जरूर ही चोद कर रहेगा.
मैंने कहा -"हाय जीजू ....मेरी चुन्ची और मसल दो ...मजा आ रहा है ..." कहते हुए मैंने उसकी पेंट की जिप खोल दी और लंड को पकड़ कर सहलाने और हौले हौले उसे मसलने लगी.
उसके मुंह से सिसकारी निकल पड़ी. बोला -"थोड़ा जोर से पकड़ कर ऊपर नीचे करो ......."
"जीजू ...... कितना मोटा लंड है .... हाय जीजू मुझे कब चोदोगे ......"
"आज ही रात को ..... कविता से पूछ कर ..."
"वो हाँ कह देगी ? ......" मैंने अनजान बनते हुए पूछा. अंकित मुझे देख कर मुस्कराया पर बोला कुछ नहीं.
"अब बस करो नहीं तो मेरा रस निकल जाएगा ......."
"नहीं राजा ..... थोड़ा और मसलने दो ना ...तुम भी चुंचियां दबाव ना .... खींचो ना ....." मैं जोश में बोले जा रही थी.
पर अंकित उठ कर बैठ गया. मैं भी अपने कपड़े ठीक करने लगी.
हम दोनों को समय का पता ही नहीं चला. हॉल में आए तो महफिल रंग में थी. ऋतू और उसका हसबंड सामने वाली सिंहासन पर बैठे थे. कविता हमें देखते हुए मुस्कराई. मैं और अंकित भी मुस्करा दिए.
"रात बहुत हो गयी है ... अब चलना चाहिये......." कविता बोली. ऋतू ने भी जाने को कह दिया.
हम चारों यानि अंकित , मैं , कविता और बेबी बाहर आकर कार में बैठ गए. अंकित गाड़ी चला रहा था. कविता ने पूछा -"पार्टी एन्जॉय की या नहीं .."
"हाँ ...पार्टी अच्छी थी ...."
"क्या अच्छा था .. बताओ तो ..."
"जीजू...वो ही अच्छे लगे ..."
"तो बाजी हाथ में आयी या नहीं ...या मैं कुछ करूँ "
"तुम ही कुछ कर दो ना ....मेरी तो चुदवाने कि बहुत इच्छा हो रही है "
" हाँ मेरी भोली रानी .... आपके चेहरे से सब पता चल रहा है .... कि मेरी मुग्धा को किस चीज़ की जरूरत है .." और हंस पड़ी.
"पर तुम्हारी सहमति तो चाहिए ना ..."
"चलो आज घर चल के देखते हैं ...आज मन भर लेना ..." कविता ने भी अब साफ़ कह दिया.
अंकित का घर आ चुका था. मेरा घर अभी दूर था. और कविता ने रुकने को पहले ही कह दिया था.
हम सभी कमरे में गए. और बेबी को बेड पर सुला दिया. हमने अपने कपड़े बदले. मैंने भी कविता का एक ढीला सा पजामा पहन लिया. अंकित भी पजामा पहन कर आ गया. पजामे में से उसका उत्तेजित लंड की उठान साफ़ दिख रही थी.
कविता ने भी भांप लिया कि मैं क्या देख रही हूँ. वो मुझे देख कर मुस्करा दी. कविता अपनी बेबी के साथ लेट गयी फिर अंकित भी लेट गया. मैं किनारे पर अंकित के साथ लेट गयी. कमरे में धीमी बत्ती जल रही थी. मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था. मुझे पता था आज मेरी चुदाई हो ही जायेगी।
मैंने हिम्मत करके अंकित के पेट पर हाथ रख दिया. उसने मेरी तरफ़ देखा. मैंने हाथ बढा कर उसका लंड पकड़ लिया. वो अन्दर कुछ नहीं पहना था. उसके लंड की मोटाई से मैं सिहर उठी. मैं उसका लंड दबाने लगी. लंड और टन्ना ने लगा. मैंने पजामे के अन्दर हाथ डाल दिया और उसके लंड के ऊपर की चमड़ी को ऊपर चढा दी. उसके मुंह से सिसकारी निकल पड़ी. उसने मेरे बूब पकड़ लिए और धीरे धीरे सहलाने लगा .मेरे टॉप को ऊँचा करके मेरी चूचियां दबाने लगा. मेरे मुंह से आह निकल गयी।
मैंने उसका लंड पकड़े पकड़े ही उसकी तरफ़ पीठ कर ली. अंकित मेरी पीठ से चिपक गया. उसने मेरा पजामा नीचे उतार दिया. मेरी गांड की दरारों में उसका नंगा लंड टकरा गया. मेरे जिस्म में सनसनी फैलने लगी. फिर उसने लंड को और चूतडों में गडा दिया. मेरी चूतड की फांकों को चीरता हुआ उसका लंड मेरी गांड के छेद से टकरा गया. मेरी चूतडों के बीच उसका मोटा लंड फंसा हुआ बहुत आनंद दे रहा था. मुझे उसका पूरा साइज़ और नंगा स्पर्श अच्छा लग रहा था. उसके हाथ मेरी टॉप में घुस पड़े और चुन्ची मसलने लगे. उसके लंड ने जोर मारा तो मेरी गांड की छेद मे थोड़ा सा घुस गया. मैंने अपनी टांग थोड़ी ऊँची कर ली. फिर तो लंड की सुपारी फक से गांड में घुस गयी. मेरे मुंह से आह निकल गयी. उसने अपना लंड थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर दूसरे ही झटके में लंड अन्दर घुसता चला गया .. मैंने अपना मुंह भींच लिया कि कहीं आवाज ना निकल जाए. उसने धीरे धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए. मेरी चूत में उसने उंगली घुसा दी. पर मुझे लगा कि उंगली मर्द की नहीं है. मैंने देखा तो वो कविता थी.
वो मुझे देख कर प्यार से मुस्कराई ."मजा आ रहा है ना ...."
" हाय .... कविता. ... मैं मर जाऊंगी .... मुझे मत देखो ना .."
"अरे शर्म मत कर ..चुदाने के लिए तो तू तड़प रही थी ना ...तेरे जीजू का लंड है ... खाए जा ...और मस्त हो चुदाए जा ..."
उसने मेरी गांड से अपना लंड निकाल लिया और अब वो बिस्तर के बीच में लेट गया. उसका लंड सीधा और लंबा तना हुआ खड़ा था.
कविता बोली - "इस चाकू पर बैठ जा ... और अपनी फांकों में इसे घुसने दे और आज तू चोद डाल अपने जीजू को ..."
"थंक यू. .." कह कर मैं उछल कर उसके लंड पर बैठ गयी ... मैंने निशाना लगाया और चूत का छेद खड़े लंड पर रख दिया. मेरी चूत पानी से भीग गयी थी ...सारा चिकना रस इधर उधर फ़ैल गया था. लंड ने मेरी चूत को चूमा और चूत ने उसका वैलकम किया. वो फच की आवाज करता हुआ अन्दर जाने लगा साथ ही मेरा बैलेंस भी बिगड़ गया और मैं लंड पर पूरा धच से बैठ गयी।
मेरे मुंह से चीख निकल पड़ी, "हाय ..जीजू ...मर गयी .."
कविता बोली - "हाँ .... मेरी रानी ...अब लंड का पता चला है ..."
"बहुत मोटा है ..राम. ..जड़ से टकरा गया है .."
अंकित अब नीचे से चूतडों को हिला हिला कर चोद रहा था. इतने में कविता ने मेरी गांड में उंगली घुसा दी. और घुमाने लगी. मैंने तो अब ऊपर से कमर हिला हिला कर अंकित को चोद रही थी .सारा कमरा फच ..फच ...की आवाज से गूंज उठा.
"हाय मेरी रानी ....दे धक्के ....कविता मेरी गांड में उंगली घुसा दे रे .." वो आनंद से सिसकारी भरने लगा.
"हाँ ..मेरे राजा ...ये लो ..." कहते हुए कविता ने अपनी दूसरे हाथ की उंगली अंकित की गांड में घुसा दी. मैं मस्ती में झूम रही थी.
" हाय ..जीजू ...चोद दे रे .... लगा दे ..रे .....और जोर से ....फाड़ दे यार ...... स ई से ऐ ....मर गयी .....हाय .....चोद दे ......जीजू .... मेरी चुन्ची मसल डाल ...खींच ...और खींच ....ऊऊओए ई ई .... रे ..... क्या कर हो ...राजा .... लगा ना ...जोर से ...."
मेरी हालत चरम सीमा पर पहुँच रही थी . मैं होश खोती जा रही थी.
अचानक उसने मुझे करवट बदल कर अपने नीचे दबा लिया. और मेरे ऊपर चढ़ गया. उसने लंड को दबा कर चूत में घुसा दिया. और उसके धक्के तेज होते गए. ऊधर कविता ने फिर से अपनी उंगली हमारी गांड में घुसेड़ दी और अन्दर गोल गोल घुमाने लगी. मुझे दोनों तरफ़ से डबल मजा आने लगा. पर अब मुझे लग रहा था ...कि मैं झड़ने वाली हूँ. उसके लंड की तेजी को और उंगली को सह नहीं पा रही थी.
"जीजू ...मैं मर गयी .... हाय रे ...चोद ...और चोद ...हाय निकल दे पानी ..... चोद दे रे. ...हाय यी ययय ......मैं मरी ....सी सी ओ ऊ ओए एई मैं मरी ...मैं गयी ऐ .....अरे निकाला ..निकल अ ....अरे ...अरे .... हाय रे ...."
कहते हुए मैंने अपना पानी निकाल दिया. कविता ने मेरी गांड से उंगली निकाल दी. अचानक अंकित के लंड का दबाव मेरी चूत पर बढ़ने लगा .. और फिर वो कराह उठा ..."हाय मेरी रानी ...मैं गया ....मेरा निकलने वाला है ...... हँ ...हँ ...... ओ ऊ ओह ह्ह्ह ह्ह्ह हह. ओ ऊ ह ह ह हह ह्ह्ह ...कविता ......निकला .....निकल अ .......आ आह हह आया आह्ह ..."
उसके लंड ने अपना रस उगलना चालू कर दिया. पर कविता तो इंतज़ार में थी उसने पीछे से हाथ डाल कर मेरी चूत से लंड खींच लिया और टांगो के बीच घुस कर लण्ड अपने मुंह में ले लिया. अंकित ये जानता था कि ये रस तो कविता का ही है. इसलिए उसने अपनी टांगे ऊँची कर के अपना पूरा लण्ड उसके मुंह में दे दिया. कविता पूरा रस गट गट करके पी गयी और अब लण्ड को चाट कर साफ़ कर रही थी. मैं निढाल सी बिस्तर पर पड़ी थी.
"मजा आया मेरी रानी " कविता बोली
"जीजू ने तो बस कमाल ही कर दिया ..इतनी जोर से चोद दिया कि पूछो मत .... पर माल मेरे लिए तो छोड़ा होता ....." कविता हंसने लगी.
"जीजा साली का रिश्ता ऐसा ही मजेदार होता है ...क्यूँ अंकित है ना ...."
" तुम तो लकी हो जो जीजू से रोज़ चुदवा लेती हो ..... मेरी तरफ़ तो देखो ना ..... चूत में ज़ंग लग जाता है .." मै हंसती हुयी बोली.
"अच्छा तो हरी झंडी ..बस "
"क्या .... हरी झंडी ..."
'ये तुम्हारा जीजू ...और ये तुम ...खूब चुदवाओ जीजू से ...... और मस्त हो जाओ "
अंकित और मैं एक दूसरे को मुस्करा कर देख रहे थे. आँखों आँखों में इशारे हो गए थे. हम सब उठे और अपने कपड़े ठीक किए. और सोने की तय्यारी करने लगे.











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Fentency पत्नी की सहेली

Fentency


पत्नी की सहेली


मै एक शादी शुदा इंसान हूँ और मेरी पत्नी का नाम सरला है | हमारी शादी को लगभग पांच साल हो चुके है | और मै अपनी शादी शुदा जिंदगी मे काफी खुश हु | मेरी पत्नी मेरी हर जरुरत का काफी ध्यान रखती है; वो मेरी पत्नी नहीं सबसे अच्छी दोस्त है | लेकिन, जब सेक्स का सवाल आता है तो मेरे पास केवल पछतावा है, क्योकि मेरी पत्नी की सेक्स और संभोग की इच्छा बहुत ही कम है और वो मुझे बिस्तर पर पूरी तरह से संतुस्थ नहीं कर पाती है |
एक दिन उसे पता चला उसकी एक स्कूल फ्रेंड ऋतू की पति एक साल पहले गुजर गये है और उसे उसके ससराल वालो की वजह से उनका घर चोदना पड़ा | उसके ससुराल वाले अच्छे लोग नहीं थे और वो उसपर काफी जुल्म करते थे और उन्होंने उसके साथ नाजायज संभंद भी बनाने की कोशिश भी की | जब पानी सर के ऊपर से चला गया, तो उसने मेरी पत्नी सरला के साथ फ़ोन पर बात की | फ़ोन बात करते हुए, ऋतू फ़ोन पर ही रोने लगी और अपने बुरे हालातो के बारे मे बताने लगी |  सरला ने मुझे ऋतू के बारे बताया और उसको अपने घर पर रुकवाने के लिए पूछा | मुझे ऋतू को बुलाने मे कोई आपत्ति नहीं थी | कुछ दिनों बाद, ऋतू हमारे घर पर आने वाली थी और मुझे उसे स्टेशन पर लेने जाना था | लेकिन, मेरे ससुर जी की अचानक तबियत ख़राब होने की वजह हे मेरी पत्नी को अपने मायके जाना पड़ा | मैने उसे बोला, कि तुम आराम से जायो, ऋतू को मै लेने चला जाता हु, और मै उसका पूरा ख्याल रखूँगा |
जब, मैने ऋतू को स्टेशन पर देखा, तो मेरा दिल जोरो से धड़क उठा, इस बार ऋतू बहुत ही कातिल लग रही थी और अब तो वो बिलकुल अकेले थी | उसके बारे मै ख्याल आते ही, पता नहीं क्यों, मेरे लंड ने झटके मारने शुरू कर दिया | स्टेशन पर होने की वजह से मुझे अजीब लगने लगा और मैने अपने आप को कण्ट्रोल किया और ऋतू को लेने चला गया | ऋतू मुझे शुरू से ही खुशमिजाज़ लगती थी और उसने मेरे साथ गाड़ी मे बैठते ही गप्पे मारने शुरू कर दिये और बातो ही बातो मे घर आ गया | ऋतू के साथ पता नहीं कैसे १ हफ्ता निकल गया | मुझे उन दिनों कुछ ज्यादा काम था, तो मै ऋतू पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाया और वो अकेले रहने लगी | १ हफ्ते बाद, मेरी पत्नी का फ़ोन आया, कि उसके पिता की तबियत ज्यादा ख़राब है, उसे कुछ और दिन के लिए वहा रहना पड़ेगा | मैने सरला को आश्वस्त किया, कि यहाँ सब ठीक है और वो हमारी चिंता ना करे |
शनिवार को मै घर जल्दी आज्ञा और मैने ऋतू से बात करनी शुरू कर दी | मुझे लगा, कि ऋतू घर मे बोर होती होगी, तो मैने उसे तैयार होने को बोला और माल घुमाने ले गया | हम दोनों ने माल मे काफी मस्ती की और ऋतू का मूड काफी हद तक अच्छा होने लगा था | हम दोनों पैदल ही घर आने लगे, हम दोनों सड़क के किनारे चल रहे थे और वो मुझे अपने ससुराल के जुल्मो के बारे मे बात रही थी | बात करते-करते उसके आँखों मे आंसू आ गये, तो मैने उसका हाथ अपने हाथो मे ले लिया | ऋतू ने एक दम अपना हाथ छुड़ा लिया और हम दोनों एक दुसरे से बिना बात करे चलने लगे और घर वापस आ गये | घर लौटने पर हम दोनों ही थक चुके थे | ऋतू हम दोनों के खाना बनाने के लिए रसोई मे चली गयी और हम दोनों खाना खाकर टीवी देखने लगे | हम दोनों को ही कुछ समझ नहीं आ रहा था और कमरे मे चुप्पी का सन्नाटा था | अचानक से ऋतू उठी और बोली, मै काफी थक चुकी हु और अपने कमरे मै सोने जा रही हु और वो मेरे पास आयी और उसने अपने होठो को मेरे होठो पर रख दिया और हम दोनों ने एक दुसरे के होठो को चुसना शुरू कर दिया | ये बहुत ही गरम किस था | फिर, उसने मेरे होठो को छोड़ा और मुस्कुराती हुई अपने कमरे मै चली गयी | मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था | मै सोफे पर जड़ की तरह चिपक गया था | फिर, मै बिना कुछ सोचे-समझे, ऋतू के जादू मे बंधा हुआ उसके पीछे रूम मे चला गया | ऋतू एक नाइटी पहनी खड़ी थी | मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था, कि क्या करना चाहिए क्या नहि, मै चुपचाप खड़ा था | फिर उसने सामने से कहा, अब क्या बाहर ही खड़े रहगे, अब अंदर भी आ जाओ  |  वो अंदर आकर कमरे के बीच मे खड़ी हो गयी | मै भी उसके पास गया और अपने शरीर को उसके शरीर से चिपका लिया | हम दोनों के होठ आपस मे जुड़ चुके थे और हम दोनों की गरम साँसे आपस मे मिलकर माहौल को गरम बना रही थी |
मै उसे किस करते-करते उसके मुह के अन्दर अपना जुबान डाल चूका था और हम दोनों एक दुसरे के जीभ के साथ खेलना शुरू कर चुके थे | हम एक इतना ज्यादा उत्तेजित हो चुके थे की मैने उसकी नाइटी उतार दी और उसने मेरा पजामा उतार डाला| अब हम दोनों बिलकुल नंगे खड़े थे और एक दुसरे की तरफ देख रहे थे | उसी की नज़रे मुझे पुकार रही थी उसे चोदने के लिये | मैने उसे अपने दोनों हाथो मे उठा लिया और बिस्तर पर फेक दिया और उसकी पुरे जिस्म से खेलने लगा | मैने उसका एक चुचा अपने मुह मे ले लिया और मस्ती मे चूसने लगा | उसने अपने हाथ मेरे बालो मे गुसा दिये और जोर से खीचने लगी और जोर से चोदने के लिए बोलने लगी |  मै उसकी एक चूची को अपने मुह मे ले रखा था और दुसरे चुचे को अपने हाथो से दबा रहा था | ऋतू बहुत ही ज्यादा उत्तेजित थी और उसका शरीर मस्त मे काँप रहा था |  वो मेरे सर के बाल पकड़ के ऊपर की तरफ ला रही थी, किस करने के लिये | कुछ देर किस करने के बाद, वो मेरे जिस्म को चाटते हुए नीचे आने लगी और मेरे लंड तक चली गयी और मेरे लंड को चूसने लगी |
अब मैने उसको खीचकर ऊपर कर लिया और उसको मस्ती मे चूमने लगा आआअ…..ऊऊओ…..उसके बाद मुझसे रहा नहीं जा रहा था और मैने अपना मुह उसकी चूत मे घुसा दिया और मस्ती मे उसकी चूत को चाटने लगा आआआआ……ईईईईइ……ऊऊऊऊऊऊऊओ .. मै अपनी जीभ उसकी चुत के अन्दर डाल चुका  था और ऋतू कमुत्तेजना से छटपटा रही थी आआआआअ…….ऊऊऊ…..ह्ह्ह्हह्ह्ह्ह….
| वो अपने पैर और भी फैला चुकी थी और मैने अपनी ऊँगली से उसकी चूत रगड़ना शुरू कर दिया था | उसकी कामुक आवाज़ मुझे मस्ती मे भर रही थी | हम दोनों अब और नहीं सह सकते थे और मैने ऋतू को बिस्तर पर लिटा दिया था और उसके ऊपर चढ़ गया और अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ने लगा, ऋतू की सिसकिया निकालनी शुरू हो गयी और वो मस्ती मे कसमसा रही थी आआआआ…ऊऊऊओ…अह्ह्ह्हह्ह….फिर, मैने अपना लंड ऋतू की चूत पर घुसा दिया और जोर-जोर से धक्के मारने लगा | ऋतू की चीख निकल गयी और उसने अपने पैरो को पकड़ लिया और मेरा लंड उसके पैरो के बीच मे अटक गया | मेरे मुह से चीखे निकल रही थी और …..आआ……आआ….ऊऊओ….ऋतू हंस रही थी और मेरे लंड के साथ अपने पैरो से खेल रही थी |
कुछ देर बाद, उसने अपने दोनों पैर को ढीला किया, और मैने एक बार से लंड को जोर से चलाना श्रुर कर दिया | ऋतू की गांड मस्ती मे हिल रही थी और सारा कमरा हमारी कामुक आवाजो से गूंज रहा था | तभी, मेरा फ़ोन बज उठा | देखा तो सरला का फ़ोन आ रहा था | मुझे ऋतू को बिस्तर पर तड़पता हुआ छोड़ना पड़ा | उस समय हमारी प्यास अधूरी रह गयी…








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Fentency हां तो आगे चले।

Fentency

  हां तो आगे चले।


मेरी भाभी की उम्र 21 साल की थी, और मैं 18 साल का था। भाभी ने बीए फ़ाईनल की परीक्षा दी थी और मुझे रिजल्ट लेने भाभी के साथ उज्जैन जाना था। उज्जैन में ही कुछ ऐसा हुआ कि मैं और भाभी बहुत ही खुल गए।

मैं और मेरी भाभी रतलाम से सवेरे रवाना हो कर उज्जैन आ चुके थे। स्टेशन पर उतरते ही सामने एक होटल में रूम बुक करा लिया। कमरा अच्छा था। डबलबेड टेबल बाथरूम सभी कुछ साफ़सुथरा था। मैंने और भाभी ने स्नान किया और यूनिवरसिटी रवाना हो गये। वहां से हमने भाभी का रिजल्ट कार्ड लिया। दिन भर उज्जैन के पवित्र स्थलों के दर्शन किये और होटल वापस आ गये। शाम को हमारे पास कोई काम नहीं था।

अचानक भाभी बोली- चलो पास में पिक्चर हॉल है …चलते हैं, थोड़ा समय पास हो जायेगा।

हम दोनों हॉल में पहुँच गये। कोई अंग्रेजी फ़िल्म थी।

पर वह फ़िल्म बहुत सेक्सी निकली। बहुत से सीन चुदाई के थे उसमें ! थोड़ी थोड़ी देर में नंगे और चुदाई के सीन आ जाते थे। पर ये सीन ऐसे थे कि अंधेरे में फ़िल्माये गये थे, पर ये सीन इस तरह फ़िल्माये गये थे कि लण्ड और चूत के अलावा सब दिख रहा था।

जब सीन आते तो भाभी मुझे तिरछी नजर से देखने लगती। भाभी की कम उम्र थी, और उस पर इन दृष्यों का सीधा असर हो रहा था और उसकी जवानी का उबाल बेलगाम था। थोड़ी थोड़ी देर में वो मुझे छूने लगी फिर मुझ पर उसका असर देखती। मैं भी कम उम्र का ही था…

भाभी गरम होती जा रही थी। भाभी ने जब मेरी तरफ़ से कोई ऑब्जेक्शन नहीं पाया तो तो वो आगे बढ़ी और मेरे हाथ पर अपना हाथ धीरे से रख दिया। मैंने भाभी की तरफ़ देखा तो उसकी बड़ी बड़ी गोल आंखे मुझे ही देख रही थी। हम दोनों की नजरें मिली और हम आंखों ही आंखों में देखते हुए एक दूसरे में खोने लगे। उसका हाथ मेरे हाथ को दबाने लगा। मैं एक बार तो सिहर उठा। मैंने भी अब उत्तर में उसका हाथ दबा लिया।

मेरा लण्ड भी अब उठने लगा था, पर भाभी बहुत ही गरम हो चुकी थी। उसने मेरी जांघ पर हाथ रख दिया और लण्ड की तरफ़ बढ़ने लगी और अपनी आंख से इशारा किया…

मेरा दिल धड़क उठा। उसने अचानक ही मेरे लण्ड पर हाथ रख दिया और अंगुलियों से उसे दबा दिया।

“हाय रे !” मेरे मुख से सिसकारी निकल पड़ी।

“क्या हुआ?” उसने और जोर से दबाते हुए कहा।

सेक्सी सीन परदे पर आ जा रहे थे।

“मजा आया ना !” भाभी ने फ़ुसफ़ुसाते हुए पूछा।

मैंने भी हाथ उसकी पीठ पर से सरकाते हुए उसके बोबे थाम लिये और हौले हौले से सहलाने लगा। उसके भरे हुए मांसल बोबे और निपल उत्तेजना से कड़े हो कर तन गये थे।

“तुम्हें भी मजा आया भाभी?”

“हां रे…बहुत मजा आ रहा है।” फिर मेरी ओर देख कर बोली- “अभी और मजा आयेगा, देख !” उसने मेरे लण्ड को जोर से दबा दिया।

“भाभी, हाय रे… !”

“खूब मजा आ रहा है ना ऐसे, तेरा लण्ड तो मस्त है रे !” एकाएक भाभी ने देसी भाषा का प्रयोग किया और उनका स्वर सेक्सी हो उठा।

“भाभी, चलो होटल चलते हैं, यहाँ कुछ ठीक नहीं है।” मैं अब भड़क उठा था।

“नहीं विजय, अभी बोबे और मसलो ना… !” उसकी फ़ुसफ़ुसाहट से लगा कि उसे बहुत ही मजा आ रहा था। पर मैं खड़ा हो गया, मुझे देख कर वो भी खड़ी हो गई। हम बाहर निकल आये और होटल आ गये। रास्ते भर भाभी कुछ नहीं बोली।

हम कमरे में आ गये और कपड़े बदल कर मैंने पजामा और बनियान पहन ली और भाभी भी मात्र पेटीकोट और ब्लाऊज पहन कर आ गई। मेरी एक दम से कुछ करने की हिम्मत नहीं हुई। पर भाभी तो वासना में झुलस रही थी। चुदने के इरादे से बोली,”विजय तुम्हे लौड़ी घोड़ी खेलना आता है?” उसने पूछा।

“नहीं तो, तुम्हें आता है?”

‘अरे हां, बहुत मजा आता है, खेलोगे?”

“कैसे खेलते है, कुछ बताओ !”

” देखो मैं तुम्हारी आंखो पर रुमाल बांध देती हूँ, फिर मैं जो कहूं तुम्हें मेरा वो अंग छूना है, अगर कोई दूसरा अंग छू लिया तो आऊट और सजा में तुम्हें घोड़ी बनाना होगा और तुम्हारी गाण्ड में अंगुली डालूंगी। अगर सही छुआ तो तुम्हारा लण्ड चूत में डालूंगी…तुम भी यही करना।”

मुझे सनसनी आने लगी। ये तो बढ़िया खेल है। मुझे तो दोनों तरफ़ से फ़ायदा है, वो हारी तो भी घोड़ी बनेगी और जीती तो चुदेगी। हां पर हारने पर मुझे घोड़ी बनना पड़ेगी। पर खेल मजेदार लगा, था चुदाई का सेक्सी खेल। भाभी तो हर हाल में चुदने को तैयार थी। ये तो जवानी का तकाजा था। भाभी बेशरम हो चली थी। उसने अपने कपड़े मेरे सामने ही उतार दिये। भाभी को नंगा देख कर मेरा लण्ड खड़ा हो गया।

भाभी ने मेरा खड़ा लण्ड देख लिया। और बोली,”अपना पाजामा तो उतारो…और अपने लण्ड को तो आज़ाद करो, देखो कैसा जोर मार रहा है।”

मैं शरमा गया, पर वो नहीं शरमाई। मैंने कपड़े उतार दिये। मेरा लण्ड बाहर निकल कर फ़ुफ़कारने लगा।

मेरा लण्ड सहलाते हुए बोली,”अब बस नीचे वालों का ही काम है… चलो खेले, देखो खेलते हुए भटक मत जाना, कंट्रोल रखना !”

भाभी ने अब मेरी आँखों पर रूमाल बांध दिया …और कहा,”मेरे हाथ पकड़ो !”

मैं उसे ढूंढने लगा… भाभी तेज थी … मेरी तरफ़ गाण्ड करके बैठ गई। मैंने हाथ बढ़ाया और एक जगह अंगुली रखी…

“रख दी अंगुली।” मुझे लगा कि यह हाथ नहीं है…मैंने दूसरी जगह अंगुली रखी तो नाखून लगे।

“यही है।” और पट्टी खोल दी वो पांव की अंगुली थी। पर भाभी को नंगा देख कर मैं बेहाल होने लगा।

“अब बनो घोड़ी” मैं घोड़ी बन गया। भाभी ने अपनी एक अंगुली मेरी गाण्ड में घुसा दी और अन्दर बाहर करने लगी।

“मजा आया देवर जी।” भाभी का ये सब करना अच्छा लग रहा था।

“भाभी, ठीक है कर लो, मेरा नम्बर भी आयेगा !”

‘देवर जी, गाण्ड तो बड़ी मस्त है तुम्हारी” भाभी ने मेरी गाण्ड की तारीफ़ की।

मेरी गाण्ड को उसने थपथपाया और अपनी पूरी अंगुली घुसेड़ कर धीरे धीरे बाहर निकाल ली। अब मेरा नम्बर था।

मैंने भाभी की आंख में रूमाल बांध दिया और कहा,”मेरी छाती पर हाथ रखो !”

उसने बिना कुछ सोचे समझे जो सामने आया, पकड़ लिया। देखा तो मेरे पेट पर हाथ था।

“भाभी, घोड़ी बनो।” भाभी के तन की आग बढ़ती जा रही थी। वो तुरंत घोड़ी बन गई। मैंने उसकी गाण्ड सहलाई और अपना तना हुआ लण्ड गाण्ड के छेद में लगा कर अन्दर घुसा दिया।

“हाय, ये क्या, तुम्हें अंगुली घुसानी है…लण्ड नहीं।” पर तब तक लण्ड जड़ तक पहुंच चुका था। भाभी ने तुरन्त पलट कर लण्ड निकाल दिया। मेरा गीला लण्ड कड़कता हुआ बाहर आ गया। मैंने अब अपनी अंगुली भाभी की गाण्ड में घुसा दी।

“अब धीरे धीरे अन्दर बाहर करो” मैं उसकी गाण्ड में अंगुली करता रहा। वह सिसकी भरती रही।

“भाभी, प्लीज, यह लौड़ी घोड़ी रहने दो ना, मेरे लण्ड का तो कुछ ख्याल करो !”

“खेल के जो नियम है उसे तो मानना पड़ेगा ना, चलो अब मेरी बारी है, अपनी आंखे बन्द करो !” मैंने आंखे बन्द कर ली।

“मेरी चूंचियां पकड़ो…” इस बार मुझे थोड़ा सा दिख रहा था। मैंने सीधे ही भाभी की चूंचिया दबा दी

“नहीं ये तो बेईमानी है…” वो कहती रही।

“नियम तो नियम है” और मैंने उसे धक्का दे कर बिस्तर पर लेटा दिया और उस पर चढ़ गया। उबलता हुआ लण्ड मैंने उसकी चूत पर रख दिया। और अन्दर पेल दिया। भाभी पिघल उठी, उसने भी मदद करते हुये अपनी चूत उछाल दी और दोनों ही सिसकारी भरते हुए एक दूसरे से चिपक गये। लण्ड चूत में घुसता चला गया। भाभी ने अपने होंठ भींच लिये और जैसे उसे जन्नत मिल गई हो।

“देवर जी, इस खेल में चुदाई से पहले जितना तड़पोगे उतना ही मजा चुदाई में आता है, इसीलिये लौड़ी घोड़ी खेल खेलते है, और चुदाई के लिये तड़पते रहते रहते हैं।”

“हां भाभी, मेरा तो खेल खेल में माल ही निकलने वाला था।”

“तेरे भैया का तो कितनी ही बार निकल जाता था।”

उसकी वासना तेजी पर थी। वो जोर जोर से उछल कर लण्ड ले रही थी। मैं उसकी नरम चूत को जम के धक्के मार रहा था। जवान चूत थी, पानी भी बहुत छोड़ रही थी, जड़ तक लौड़ा ले रही थी। उसकी मांसल चूंचिया छोटी मगर बेहद कड़ी थी। मसलने में बड़ा आनन्द आ रहा था। कुछ ही देर में मेरा वीर्य निकल पड़ा। उसकी चूत भी अन्दर से लहरा रही थी, वो भी झड़ चुकी थी।

हम दोनों ने कुछ देर आराम किया फिर भाभी ने कहा,”देवर जी, हां तो आगे चले।”

“चलो खेलते हैं !” मैंने भी झट हां कर दी।

“यह दूसरा दौर है। पहले खेल में तुम जीते थे, अब मैं तो घोड़ी बनी रहूंगी… तुम मेरे शरीर के किसी भी अंग को चाट सकते हो, अपनी लौड़ी को, यानी लण्ड को किसी भी छेद में घुसा कर मजा ले सकते हो, चलो आंखें बंद करो !”

भाभी ने मेरी आंखे फिर रूमाल से बंद कर दी। अब वो बिस्तर पर झुक कर फिर से घोड़ी बन गई। मैंने जैसे ही अपना मुँह आगे बढ़ाया तो गाण्ड का स्पर्श हुआ। मैंने अपनी जीभ निकाली और जीभ उसके चूतड़ों पर फ़ेरने लगा। भाभी ने निशाना बांधा और गाण्ड का छेद सामने कर दिया। मेरी जीभ ने छेद पह्चान लिया और चाटने लगा और उसके छेद में भी जीभ डालने लगा।

जैसे ही जीभ बाहर निकाली मुझे बालों का स्पर्श लगा, मेरी जीभ अब उसकी चूत चाट रही थी।

मेरा लण्ड तन्ना रहा था। किसी भी छेद में घुस कर एक बार और अपना वीर्य निकालना चाह रहा था। मैंने अब रूमाल हटा लिया और उसे निहारा। उसके गोल गोल गोरे गोरे चूतड़ सामने उभरे हुए थे। भाभी मस्ती में अपनी आंखें बंद किये हुए थी। मैंने जल्दी से अपना लण्ड उसकी गाण्ड में घुसेड़ दिया।

भाभी बोल उठी,”देवर जी, लौड़ी घोड़ी… हाय रे…लौड़ी घोड़ी…गाण्ड चोद दो…हाय !”

भाभी ने मस्ती में गाण्ड ढीली छोड़ दी…और लण्ड गाण्ड की गहराइयों में उतरता चला गया। मुझे तेज मीठी मीठी सी लण्ड में मस्ती लगी। टाईट गाण्ड थी। पर उसे दर्द हो रहा था, फिर भी मजा ले रही थी। कुछ ही देर में उसने कराहते हुए कह ही दिया,” देवर जी, चूत की मस्ती दो ना…मेरा जी तो चूत चुदाने कर रहा है…देखो पानी भी छोड़ रही है !”

मैंने उसकी बात समझी कि ये तो सिर्फ़ मर्दो का सुख है…औरत का सुख तो चूत में है। मैंने लण्ड निकाला और … लौड़ी घोड़ी … कहा और चूत में लण्ड घुसा डाला। अब उसे असली मजा आया। और घोड़ी बने बने ही चूत चुदवाने लगी। इस पोजिशन में लण्ड पूरा अन्दर जा रहा था। मेरे पेड़ू तक चूत से चिपक कर चोद रहा था।

चुदाई तेज हो उठी। भाभी अपने मुँह से सिसकारियोँ के साथ मां बहन, भोसड़ी, कुत्ते जैसे गालियाँ निकालने लगी। मुझे लगा कि अब वो चरमसीमा पर आकर झड़ने वाली है। और मेरा अनुमान सही निकला…

हम दोनों ही एक साथ झड़ने लगे। चूत में दोनों माल भरने लगा और माल आपस में एक हो गया। मैंने उसकी चूत से गिरते हुए माल को हाथ में लिया और चखा…फ़ीका फ़ीका सा, लसलसा सा, मुझे मजा नहीं आया। पर भाभी ने देखा तो मेरा हाथ पूरा चाट गई और चूत से माल हाथ में ले लेकर चाटने लगी।

“खबरदार, जो मेरे माल को हाथ लगाया … लौड़ी घोड़ी में सारा माल मेरा होता है।

अब तीसरा दौर… आप घोड़ी बनेगे और मैं आपकी लौड़ी यानी लण्ड नीचे से चूस चूस कर तुम्हारा शहद निकालूंगी, तुम घोड़ी की पोजिशन में चाहे मेरी चूत चाटो या कुछ भी करो।”

पर दो चुदाई करने के बाद मैं थक गया था। मैंने जैसे कुछ सुना ही नहीं और पलंग पर लेट गया। वो मुझे झकझोरती रही पर मेरी आंखे नींद में डूबती चली गई। सवेरे जब उठे तो भाभी मेरे से चिपकी हुई नंगी ही सो रही थी।

मुझे भाभी ने लौड़ी घोड़ी का खेल अच्छी तरह से सिखा दिया। कोई भी, चाहे लड़का हो या लड़की यह खेल फ़्री में खेल सकता है। मजे की गारण्टी है।













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Fentency गावं की गोरी, मस्त छोरी

Fentency 

 गावं की गोरी, मस्त छोरी

मेरा नाम कमलेश है और मै राजस्थान के एक बहुत छोटे से गावं की रहने वाली हू | हमारे यहाँ छोटे-छोटे कच्चे-पक्के घर होते है और जमींन के नाम पर पथ्थरो के पहाड़ और रेगिस्तान है | हम किसान है और किसानी के नाम पर पथ्थरो के पहाड़ और रेगिस्तान मे कुछ कांटे और बबूल उगाते है | मेरी उम्र १४ साल है, लेकिन हमारी तरफ औरत और आदमी की कद-काठी बहुत अच्छी होती है, तो मै २२-२३ साल की जवान छोरी लगती हु | गावं के बहुत से लोंडे मुझे याद करके मुठ मारते है | लेकिन, मै सिर्फ अपने काम से काम रखती हू | मेरे घर मे अच्छा बड़ा आँगन है और एक कोठरी है | मै और मेरा छोटा भाई आँगन मे सोते है और माँ, बापू कोठरी मे | एक दिन, काफी तूफ़ान आ रहा था और बाहर सोना थोडा मुश्किल था, तो माँ ने हम दोनों को कोठरी मे बुला लिया और एक कोने मे हम सो गये | मेरा बापू शराबी था और शराब पीके काफी हंगामा करता था, फिर माँ उसपर जान देती थी | मैने अक्सर महसूस किया था, कि बापू माँ के चूचो पर या कमर पर चुटकी काट लेता था, तो वो हलके से मुस्कुरा देती थी | रात को सोते समय कोठरी मे हलकी से रौशनी के लिए एक दीपक जलता था, उसकी रोशनी ज्यादा तो नहीं, लेकिन देखने के लिए काफी थी |

खाना खाने के बाद हम सब सो गये | आधी रात को अचानक से मुझे किसी के बात करने की आवाज़ सुनायी दी | मैने लेटे-लेटे ही देखने के कोशिश की, तो देखा, माँ-बापू हलके-हलके बात कर रहे है और बापू ने माँ को अपने उपर ले रखा है | आवाज़ तो काफी हलकी थी, तो सुनाई तो कुछ नहीं दिया, लेकिन मै सब कुछ देख सकती थी | माँ बापू के उपर थी और मुह से मुह मिलकर कुछ कर रहे थे | तब तक मुझे कुछ मालूम नहीं था | जब मुझे सेक्स के बारे मे पता चला तो सब समझ आ गया | माँ बापू के उपर थे और वो एक दुसरे के होठो को चूस रहे थे | माँ हलके-हलके सिसकिया भर रही थी | बापू ने माँ को जोर से पकड़ा हुआ था और कमर पर कुछ कर रहे थे | फिर माँ ने हमारी तरह देखा और हमें सोता देखकर खड़ी होकर अपनी साड़ी उतारने लगी | जब माँ पूरी नंगी हो गयी, तो देखा माँ कितनी सुंदर थी | माँ के चुचे बड़े-बड़े और कसे हुए थे और मस्त शरीर था | उसके आगे मुझे कुछ समझ नयी आया | क्योकि माँ को इस तरह देख कर, मेरे चूचो ने खड़ा होना शुरू कर दिया था |

बापू अभी भी लेटे थे | माँ ने उनकी टांगो से कुछ हटाया और उस पर बैठ गयी | माँ के बैठते ही, माँ की हलकी से चीख निकल गयी | फिर माँ सिसकिया लेटे हुए आपने आप को ऊपर नीचे करने लगी और बापू भी हिलने लगे | थोड़े देर मे माँ एक झटके के साथ बापू के ऊपर पर गिर गयी और उन दोनों ने एक दुसरे को कसकर पकड़ लिया | मै ये सारा कुछ देख रही थी, मुझे कुछ ज्यादा समझ तो नहीं आया, लेकिन मेरे चुचे खड़े थे और चूत से पानी निकल रहा था | अगले दिन जब मै नहाने गयी, तो पूरी नंगी हो कर, अपने आप को माँ से मिलाने लगी | चुचे मेरे भी बड़े थे लेकिन, माँ के ज्यादा बड़े थे और उनका बदन ज्यादा गठीला और सुंदर था | मै रोज़ काम पर अकेले ही जाते थी और अकेले ही खेत पर काम करती थी | वहाः पर कोई आता जाता नहीं था, बस कभी-कभी पुलिस वाले और कभी कोई गोरा साहब और गोरी मेम, घूमते हुए आ जाते थे | जब मै सुबह काम के लिए निकली थी, तो मुझे पता भी नहीं था, कि आज खेत पर कुछ होने वाला है | कड़ी दुपहर के वक़्त, मै काम करके एक पेड़ के नीचे आराम कर रही थी | पेड़ पर ज्यादा पत्तिया नहीं थी , तो धुप से थोडा ही बचाव हो रहा था और मैने लेटने के लिए थोड़ी सुखी घास डाली थी |

इतने मे एक गोरा वहा आया और उसने पानी के लिए पूछा, मेरे पास पानी था, तो उसको पीने के लिए दे दिया | वो पानी पीकर घास पर बैठ गया और उस जगह के बारे मे पूछने लगा | उसने एक बनियान और एक ढीला सा निकर पहना था, लेकिन उसका शरीर मजबूत था | मे उसकी तरफ घुर रही थी | वो मेरी नज़रो को समझ गया और मेरे ऊपर अपना हाथ चलाने लगा | पहले तो, मे पीछे हट गयी, लेकिन जब उसने मुझे एक हाथ से पकड़ लिया तो मे सरक के उसके पास आ गयी | उसने अब दोनों हाथ मेरे शरीर पर चलाने शुरू कर दिये | मुझे भी कुछ कुछ होने लगा था | फिर गोरे ने अपने हाथ मेरी सलवार के अंदर डाल दिये और मेरे चूचो को जोर-जोर से दबाने लगा | मेरे मुझे से सिस्स्किया निकलनी शुरू हो गयी | गोरे ने मेरा कुरता उतर दिया और मुझे लिटा दिया और ऊपर आ कर मेरे होठो को चूमने लगा | वो बार- बार बोल रहा था | सेक्सी इंडियन, सेक्सी इंडियन | मुझे इंग्लिश नहीं आती थी, तो कुछ समझ नहीं आया | लेकिन जब वो मेरे होठो को चूस रहा था तो बड़ा मज़ा आ रहा था | फिर, उसने एक हाथ से मेरी सलवार खोली और उसके अंदर हाथ डाल दिया और मेरी चूत को कस कर पकड़कर दबा दिया |

फिर, गोरे ने मेरी सलवार उतार कर मुझे नंगा कर दिया और खुद भी नंगा हो गया | उसका पूरा शरीर सफ़ेद था और सन के तरह गोरा था और सोने के तरह धुप मे चमक रहा था | टांगो के बीच उसके कुछ लटका हुआ था, जो मेरे पास नहीं था | उसी ने मुझे चूत और लंड का फर्क बताया | उसका लंड मेरी गठीला बदन देखा कर खड़ा हो गया था और बार-बार झटके मार रहा था | अब गोरे ने मुझे घास पर लिटा दिया और मेरे ऊपर आकर मेरे चुचे चूसने लगा | उसके होट मेरे निप्पल को चूस रहे थे और उसका लंड मेरी चूत पर टकरा रहा था | गोरे ने थोडा जल्दी करते हुए, अपना लंड मेरी चूत पर रखा और अंदर के तरफ ठोखा | मेरी चूत छोटे और कसी थी, क्योकि पहली बार चुद रही थी, तो गोरा लंड फिसलकर साइड मे चले गया | गोरे ने थोडा सा थूक अपने हाथ मे लिया और मेरी चूत और अपने लंड को मलकर गीला किया | अब गोरे ने फिर से निशाना लगाया | अबकी बार, लंड थोडा सा अंदर घुस गया और मेरी चीख निकल गयी | मुझे ऐसा लगा, कि मेरे अंदर गरम-गरम सरिया डाल दिया हो | गोरा तो ख़ुशी मे पागल हो गया और एक और जोर का धक्का उसने मारा और उसका लंड मेरी चूत को फाड़ता हुआ पूरा अंदर घुस गया | एक खून की पिचकारी मेरी चूत से बाहर आयी और मेरे सारी कमर मे दर्द होने लगा | मेरी चूत मे चीस होने लगी थी, लेकिन गोरा तो पागल था, पूरा जोर से धक्के पे धक्के मार रहा था और बोल रहा था “सेक्सी इंडियन”, सेक्सी इंडियन” |

२-३ मिनट बाद मेरा थोडा सा दर्द कम हुआ और मुझे मज़ा आने लगा और मै भी उसके साथ अपनी कमर हिलाहिला कर उछलने लगी | मुझे मज़ा आने लगा था | हर धक्के के साथ, मै जोर से सिसकिया ले रही थी | अचानक से, मुझे अपने अंदर से कुछ बाहर आता हुआ महसूस हुआ और मै उसको निकालने के लिए जोर-जोर से हिलने लगी और जोर के झटके के साथ कुछ सफ़ेद सा रस बाहर आ गया | गोरा अभी भी लगा हुआ था और वेट, वेट चिला रहा था | फिर उसने जोर से अपना लंड मेरी चूत से बाहर निकला, तो इसे लगा के शरीर मे कुछ फसा था, वो एक दम बाहर आ गया | मै निढाल होकर लाती रही और गोरा हाथ से मुठ मरता रहा | जेसे, उसने जोर से हिलना शुरू किया, उसके लंड से बहुत सारा सफ़ेद रस मेरे शरीर पे आ गिरा और ऐसा लगा, की किसी ने गर्म कोयला मेरे शरीर पर रख दिया हो | उसने अपना पूरा लंड मेरे शरीर पर झाड दिया और कपडे पहन के दूसरी तरफ लेट गया | जब मुझे थोडा आराम मिल गया, तो मैने उठकर अपना शरीर साफ़ किया और कपडे पहन कर काम करने चली गयी | कुछ भी हो, मेरे लिए वो गोरा कामदेव का अवतार था, जिसने मुझे पहली बार चोदा |












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