Wednesday, April 22, 2015

Fentency ससुर जी ने पत्नी बनाया-1

Fentency

ससुर जी ने पत्नी बनाया-1

दोस्तो यह  है एक ससुर (मेरे ससुर ) की जिस ने अपने निक्कम्मे बेटे की शादी इस लिए करवाई के वह अपनी बहु को अपनी पत्नी बना कर रख सके

आज मेरे ससुर ने मुझे वह सब दिया है जो एक पति अपनी अपनी पत्नी को देता है, एक आराम दायक घर, अच्छा पैसा, गहने, कपडे, होटलों मैं खाना पीना और एक मोटे लंड से मस्त मस्त चुदाई और मैं ने भी उनके बिस्तर को गरम करने के इलावा उन के साथ एक नव-विवाहिता की तरह मून मनाया और उन के बीज को अपने पेट मैं पाल कर उन का तीसरा बेटा पैदा किया , हाँ उन को अपनी कोरी चूत नहीं दे सकी क्यूँ के अपनी सील मैं शादी से बहुत पहले ही तुड़वा चुकी थी
 
मेरी जवानी  आते ही मुझे तो चुदाई की इच्छा इतनी होने लगी के मैं आस पास के सब लड़कों से चुदने की सोचने लगी थी सब से पहला नंबर लगा मेरी मौसी के बेटे संजय.  संजय खूब गोरा चिट्टा हमेशा हंसी मजाक मैं लगे  वाला लड़का था, हम दोनों मैं खूब पटती थी

सर्दी की एक रात मैं और संजय चिपक कर सो रहे थे, संजय के लंड मैं तनाव आ चूका था और मैं उस तनाव को अपनी गांड पर महसूस कर रही थी ! मेरा बदन गरम होता जा रहा था और चूत पनिया रही थी संजय ने शुरूआत मेरी चूचयों दबाने से की  और धीरे धीरे हरकतें बढ़ती गयी जल्दी ही उस के हाथ मेरी पेंटी के अंदर जा कर मेरी पर भी चूत पर आ गए  मगर था तो वह भी अनाड़ी  ही पहले तो मेरी ब्रा ही नहीं खोल पा रहा था आखिर मुझे ही अपनी ब्रा के हुक खोल देने पड़े फिर जब मैं पूरी तरह साथ देने के बाद भी अपने लोडे को मेरी छूट मैं नहीं घुसा पा रहा था तब मैं ने उस को अपने हाथ से पकड़ कर अपने अंदर किया और आखिर मैं मुझे लड़की से औरत तो बना दिया मगर दो तीन झटके दे कर माल गिरा दिया . संजय को उस के बाद भी दो तीन बार कोशिश करने के बाद ही ढंग से चुदाई करना आया और मुझे चुदाई का वह मजा मिल सका जिस की हर औरत को तमन्ना रहती


संजय के साथ मैं चुदाई करती हूँ इस बात का पता हमारे ड्राईवर राजू को चल गया और उस ने मुझे ब्लैकमेल कर के अपने साथ चुदने के लिए मजबूर  मगर राजू मस्त चोदु था, उस का लंड खूब मोटा था और जम के चुदाई करता था ! इस लिए अब मुझे संजय के साथ उतना मजा नहीं आता था और मैं ज्यादा से ज्यादा राजू से चुदने की कोशिश मैं रहती थी

ज्यादा चुदाई से मुझे कई नुक्सान झेलने पड़े, मैं पढाई मैं पीछे रहने लगी और एक साल फ़ैल ही हो गयी, फिर एक बार मेरे महीने के दिन चढ़ गए और टेस्ट करवाने से पता चला के मेरे पेट मैं बच्चा है वैसे मुझे पता नहीं था के यह संजय या राजू किस का है मगर मैं ने बड़ी चतुराई से उस का दोष संजय पर डाला और संजय ने पेट गिराने का सारा खर्च किया इस के बाद संजय मुझ से दूर होता गया और मैं पूरी तरह राजू की थी


फिर एक दिन मम्मी और डैडी को भी पता चल गया ! उस के बाद तो डैडी ने जल्दी से जल्दी मेरी शादी करवाने की ठान ली, मगर मेरी बात जहां भी चलती राजू को पता नहीं कैसे पता चल जता और वह बात बिगड़वा देता
इसी बीच मेरे ससुर अपने छोटे बेटे का रिश्ता ले कर हमारे घर आये डैडी तो मेरा रिश्ता जल्दी करना ही चाहते थे इस लिए उन्होंने कुछ भी देखा नहीं के लड़का क्या करता है, इन लोगों के पास खूब ज़मीन जायदाद तो थी ही सो शादी के लिए हाँ हो गयी, (शादी के बाद मुझे पता लगा के राजू ने वहाँ भी मेरे चरित्र की बात पहुंचा दी थी और मेरे ससुर ने उस को अपने मकसद के लिए और अच्छी बात मानते हुए अनदेखा कर दिया था )
खैर मैं शादी हो कर ससुराल आ गयी, सुहाग रात के दिन ही मुझ पर बिजली गिरी , मेरे पति ने बता दिया के वह तो गांड मरवाने मैं ही मजा आता है

आप लोग समझ सकते हैं के मेरी  जैसी औरत के लिए यह बात क्या मायने रखती है के उस को अब चुदाई ही नसीब नहीं होगी मुझे  से राजू की याद आने  कुछ दिन मैं मैं ने देखा के मेरे ससुर जी मेरे ऊपर कुछ ख़ास मेहरबान रहते हैं और मेरी हर छोटी बड़ी जरूरत का ध्यान रखते हैं और पूरा करते हैं मैं सोचने लगी कहीं यह मेरे शरीर का आकर्षण तो नहीं ?

फिर एक दिन मैं ने बाथरूम के दोनों दरवाजों को ध्यान से देखा तो पाया कि उस मैं दो तीन जगह छेद हैं और ऐसे छेड़ जो किसी ने बनाये हुए हो अगले दिन मैं नहाते समाया उन पर ध्यान दिया और पाया के कोई उन पर आया है, उस समाया घर मैं मेरे ससुर और पति को छोड़ कर जकोई नहीं था मामला साफ़ था के मेरे ससुर इन छेदों ने मुझे नंगा देखते हैं क्यूँ के मेरे गांडू  पति को तो मुझ मैं कोई आकर्षन था ही नहीं


अगले एक दो दिन मैं मैं ने देखा के ससुर जी न सिर्फ़ मेरे नहाते मैं बल्कि मुझे मूतते हुए, हगते हुए भी देखते हैं. नहा कर जब मैं निकलती थी तो मैं देखती थी के ससुर जी बिस्तर पर उलटे लेते हैं और शायद उस के बाद मूठ मारते थे क्यूँ के उन के बिस्तर पर मुझे गीला निशाँ मिलता था

फिर मेरी माहवारी के दिन आये और ससुर जी मुझे नैपकिन बदलते भी देख लेते थे, फिर तो मैं ने तय कर लिया के अब मुझे इस बूढ़े से चुदना ही है

माहवारी ख़तम हुयी तो मेरी चुदने की इच्छा और बढ़ गयी और मैं उस दिन सर धो कर नहाई थी मैं ने बाथरूम मैं पड़े ससुर जी के राजोर और शेविंग ब्रश और क्रीम उठा कर अपनी चूत  के बाल साफ़ किये, ऐसा करते वक़्त मैं ने अपनी टाँगे फैला कर छूट के मुंह को दरवाजे के उस छेड़ के सामने रखा था जिस मैं से मेरे ससुर अपनी बहु के नंगे शरीर को देख रहे थे,  मैं ने जान बूझ कर अपने शरीर को ऐसे रखा के ससुर जी मुझे ज्यादा से ज्यादा देख सकें,


उस दिन मैं ने बाथरूम से निकल कर ससुर जी के बिस्तर के पास आयी और उन को छड़ते हुए बोला "पिता जी इस को सही जगह गिराया कीजिये"

ससुर जी हैरान थे और "बोले बहु मेरे पास वह जगह अब नहीं रही "

मैं ने तुरंत जवाब दिया "अरे रोज़ उस जगह को बाथरूम मैं देखते हैं और कहते हैं आप के पास वह नहीं है ?

ससुर जी की आँखें फट गयी और मुंह खुला रह गया "क्या बहु क्यूँ सता रही हो "

अरे पिता जी सताई हुयी तो मैं हूँ, रोज़ मुझे नंगी देख कर गरम कर देते हो और खुद हाथ से ठन्डे कर लेते हो पर मैं क्या करून ?

"ओह बहु यह बात है तो चलो ! " ससुर जी के मुंह से निकल गया

मैं ने कहा "जाना कहाँ है पिता जी घर मैं हम दोनों ही तो हैं"


इतना सुनना था कि ससुर जी ने मुझे खींच कर अपने बिस्तर मैं ले लिए और मेरे शरीर से खेलने लगे
पापाजी कस के मेरी चूचियों को मल रहे  थे और अपना हाथ मेरी चूत पर रख दिया। वह कभी उसके अंदर उंगली करने लगे और कभी मेरी चूत के दाने को रगड़ देते थे  लगे। इस सब से मैं इतनी मस्त हो गयी के उन के शारीर को चूमे जा रही थी और मस्ती मैं भरी हुयी अपने नाखून उन की पीठ मैं गढ़ाए जा रही थी


फिर उन्होंने अपना पजामा उतार दिया और अपना फनफनाता हुआ लंड  बाहर किया  उफ़ क्या लंड था उन का उस को देख कर किसी भी औरत की छूट मैं आग लग जाये


"वाह क्या हथियार है पिता जी, मम्मी जी ने तो बहुत मजे लिए होंगे इस से "मैं बोली

"अरे नहीं बहु उस को तो इस से दर्द होता था इस लिए बहुत ज्यादा चुदाई नहीं करती थी , तू बता तुझे कैसा पसंद है और कितना बड़ा तक ले लेगी मजे से ? राजू का कैसा था ?

"ओह्ह ससुर जी मेरे बारे मैं सब पता था तो मुझे शादी कर के क्यूँ लाये ?"

"मुझे जैसी बहु चाहिए थी उस के लिए तो यह अच्छी क्वालिफिकेशन थी कि बहु सेक्स मैं अनुभवी हो और वह तुम थी सच बता न बहु राजू का कैसा था ? "

पिता जी भगवान् की कसम आज तक ऐसा मस्त लोडा नहीं देखा ,

और कितने लंड देखे हैं तू ने ?

"पिता जी यह चौथा है मगर अंदर जाने वाला यह तीसरा होगा"

"अरे ऐसा कौन था जो मेरी रानी को लंड दिखा कर चोदा नहीं "

"पिता जी वह तो आप के सपुत्र और मेरे पति हैं न ?"

"आह वह निकम्मा, गांडू कहीं का , चलो उस को छोडो और अब मेरी हो जाओ
"हाँ पिता जी अब तो मैं इस लंड के मालिक की हूँ , इस को तो हमेशा अपना बना कर रखूँगी मैं तो"

मगर अपने पहले मिलन की याद मैं कोई निशानी तो दीजिये जिस से यह दिन याद गार बन जाए
"ओह हाँ बहु अभी लो" ससुर जी यह कह कर नंगे ही उठे और अपनी अलमारी खोल कर उस मैं से एक भारी सी सोने की तगड़ी निकाल लाये मैं बिस्तर पर नंगी ही लेती थी, उन्होंने मेरी कमर को उठा कर वह तगड़ी मेरी कमर के चारों तरफ लपेट दी

उन की इस हरकत से मैं निहाल हो गयी और समझ गयी के इस बूढ़े के साथ मुझे जीवन का हर सुख मिल सकता है और मैं ने टाँगे फैला दी, जिस से मेरी सफा चट चूत अपने गुलाबी होंठों से रस गिरती हुयी ससुर जी के सामने आ गयी
ससुर जी ने ज़रा भी देरी नहीं की और कूद कर अपनी जीभ पूरी बहार निकाली और लगे चाटने

बस मैं तो सातवें आसमान पर पहुँच गई, अब तो मूसल चंद से रगड़ाई के झटकों का इंतज़ार था। मेरी तेज तेज चुसाई से पापाजी के लण्ड महाराज का अत्यंत स्वादिष्ट प्रथम रस (प्री-कम) मेरे मुहँ में आना शुरू हो गया था, यह महसूस कर के पापाजी बोले- कैसा लग रहा इसका स्वाद?

मैं बोली- बहुत स्वादिष्ट है, कुछ मीठा और कुछ नमकीन।

वह बोले- क्या मेरा सारा रस तुम मुफ़्त में पी जाओगी और एवज मुझे कुछ नहीं दोगी? उठो और बेड के ऊपर आकर लेटो ताकि मैं भी तुम्हरी महारानी का रस पी सकूँ।

"अच्छा पापाजी !" मैंने कहा और झट से बेड पर आ कर लेट गई।

फिर तो पापाजी 69 की अवस्था में लेट कर मेरी टाँगे चौड़ी कर के मेरी चूत रानी को चूसने लगे और मैं उनके लण्ड राजा को। पापाजी कभी चूत में अपनी जीभ डालते तो कभी उसके अन्दरूनी होंठ चूसते लेकिन जब वह छोले पर जीभ चलाते तो मेरी चूत के अंदर अजीब सी गुदगदी होती और मुझे लगता कि मैं स्वर्ग में पहुँच गई हूँ।

हम दोनों की इस चुसाई से उत्तेजित होकर हमारे दोनों के मुहँ से उंहह्ह.... उंहह्ह्ह्... और आह.. आह्ह्ह... की आवाजें निकलने लगी थीं।

मेरा तो यह हाल था कि मेरी चूत का पानी भी निकलने लगा था, जिसे पापाजी बड़े मजे से पी रहे थे और डकार भी नहीं ले रहे थे।

अचानक पापाजी ने मेरे छोले पर कस कर जीभ फ़ेरी और मेरी चूत एकदम से सिकुड़ी और का रस फव्वारा पापाजी के मुँह पर छोड़ दिया।

उनका हालत देखने का थी, उनका पूरा चेहरा मेरी चूत रानी की इस शरारत से भीग गया था। वह एकदम उठ खड़े हुए और कहने लगे- लगता है इस शरारती रानी को कुछ तो सबक सिखाना ही पड़ेगा, कोई सजा देनी पड़ेगी।

मैं इससे पहले उनका महाराज मुँह से निकालती, उन्होंने एक छोटी सी पिचकारी मेरे मुहँ में छोड़ दी। मैं इसके लिए तैयार नहीं थी इसलिए कुछ रस तो मेरे गले से नीचे उतर गया लेकिन बाकी का सारा रस मेरे पूरे चेहरे तथा मेरी गर्दन पर फ़ैल गया। फिर वह अलग हट गये।

मैंने उठ कर अपने आप को और पापाजी को पौंछा और पापाजी की ओर आँखें फाड़ कर देखने लगी।

पापाजी हँसते हुए बोले- मिल गई न तुझे शरारत की सजा। चिंता मत कर, अभी तो इससे भी बड़ी सजा इस रानी को देनी है।

मैंने अनजान बनते हुए पूछा- पापाजी और कैसी बड़ी सजा देंगे?

तो उन्होंने अपनी बलिष्ठ बाजुओं से उठा कर मुझे मेरे कमरे में ले जाकर बेड पर पटक दिया और मेरे चूतड़ों के नीचे एक तकिया रख दिया। तब मैंने देखा कि रस छूटने के बाद भी पापाजी का लण्ड महाराज अभी भी लोहे की छड़ की तरह अकड़ा हुआ है और वह अगली चढ़ाई के लिए तैयार है। उन्होंने मेरी टांगे चौड़ी करके चूत महारानी को देखने लगे और बोले- यह तो बहुत नाज़ुक सी लग रही है। क्या यह इस महाराज को झेल पायेगी?

मैं तुरंत बोल पड़ी- पापाजी आप कोशिश तो करिये। आगे जो होगा, देखा जाएगा"।

तब वह मेरी टांगों के बीच में आकर बैठ गए और अपने महाराज को मेरी महारानी के छोले पर रगड़ने लगे।

इससे मेरी हालत बहुत खराब होने लगी, मैंने कहा- पापाजी, अब और मत चिढ़ाओ और इसे जो सजा देनी है वह जल्दी से दे दीजिए।

तब पापाजी बोले- चिंता मत कर ज़रा सजा के लिए इसे तैयार तो कर लूँ !

इसके बाद उन्होंने अपना लण्ड महाराज, जो इस समय अपने पूरे उफान पर था और पूरे आकार का हो चुका था, मेरी चूत के मुँह के पास रख दिया और हलके से धक्के मार कर उसे चूत के अंदर घुसेड़ने लगे। मेरी चूत तो उस समय लण्ड की इतनी भूखी थी कि उसका मुँह अपनेआप खुलने लगा और देखते ही देखते उसने पापाजी के महाराज के सुपारे को निगलना शुरू कर दिया। पापाजी महारानी की यह हिमाकत देख कर बहुत हैरान हुए और जोश में आ कर एक जोर का धक्का दे मारा।

फिर क्या था महरानी की तो चूं बोल गई और मेरे मुहँ से एक जोर की चीख आईईईईए... निकल गई।

पापाजी एकदम मेरे ऊपर झुक गए और मेरे समान्य होने तक वैसे ही रुके रहे। वह मेरी चूचियों को दबाते रहे तथा मुझे जोर से चूमते रहे।

जब मैं कुछ ठीक हुई तब मैंने उनसे पूछा- कितना गया?

तो वे बोले- अभी तो आधी सजा मिली है। बाकी आधी सजा के लिए तैयार हो तो बताओ।

जब मैंने हामी भर दी तब उन्होंने कस कर एक और धक्का मारा और अपना पूरा महाराज मेरी महारानी के बाग में पहुँचा दिया।

मैं एक बार दर्द के मारे फिर "आईईईईए... आईईईईए.... कर के चिल्ला उठी। मुझे लगा कि मेरी चूत फट गई है और इसीलिए इतना दर्द हो रहा है।

मेरी चूत की सील टूटने पर भी इतनी दर्द नहीं हुई थी जितनी कि अब हो रही थी। पापाजी मेरी तकलीफ को समझते हुए रुक गए थे और अपना दाहिना हाथ मेरी चूत के ऊपर रखा और थोड़ा दबाया और मेरे ऊपर लेट गए। बाएं हाथ से मेरी चूची को मसलते हुए पूछा- अब कैसा लग रहा है? अगर तुम कहती हो तो मैं निकाल लेता हूँ नहीं तो जब कहोगी तभी आगे सजा दूंगा।

और इसके बाद अपने होंटों को मेरे होंटों पर रख कर उन्हें चूसने एवं चूसाने लगे।

हम करीब पांच मिनट ऐसे ही पड़े रहे और मैं अपनी किस्मत को इतना लंबा मोटा और सख्त लण्ड से चुदाई के लिए सहराने लगी। मेरी चुदने की तमन्ना कितनी अच्छी तरह पूरी हो रही है इससे मैं बहुत खुश थी।

जब मुझे लगा कि मैं आगे के झटके सह लूंगी तब मैंने पापाजी से कहा- मैं आपकी देने वाली बाकी कि सजा अब काटने को तैयार हूँ। चलिए शुरू हो जाइये।

मेरा इतना कहना था कि पापाजी ने अपनी गाड़ी स्टार्ट करी और धक्के लगाने लगे। पहले फर्स्ट गियर लगाया, फिर सेकंड गियर और इसके बाद थर्ड गियर में चलने लगे और मुझसे पूछने लगे- क्यों कोई तकलीफ तो नहीं हो रही?

मैंने कहा- नहीं, मुझे तो अभी मज़े आने शुरू ही हुए है। आप अभी इसी स्पीड से मेरी चुदाई करते रहें। जब स्पीड बढ़ानी होगी मैं बता दूँगी।

अगले दस मिनट हम दोनों इसी तरह चुदाई करते रहे और जब मैंने महसूस किया कि स्पीड बढ़ाने का समय आ गया है, तब मैंने भी अपने जिस्म को पापाजी की स्पीड के हिसाब से हिलाना शुरू कर दिया और बोली- पापाजी, अब अपनी गाड़ी को चौथे गियर में डालिए।

फिर क्या था पापाजी ने थोड़ी स्पीड और बढ़ा दी और हमारी चुदाई के आनन्द को चार गुना कर दिया। मैं अब उछल उछल कर चुद रही थी और पापाजी झटके पर झटके मार कर चुदाई करे जा रहे थे।

हम दोनों के मुँह से उंहह्ह्ह.... उंहह्ह्ह... और आहह्ह्ह... आह्हह्ह्ह... की तेज तेज आवाजें निकलने लगी थीं। इस डर से कि आवाजें बाहर न सुनाई दे हम दोनों ने अपने होंट अपने दातों के नीचे दबा रखे थे।

अब मेरी चूत में खलबली मचने लगी थी और वह भिंच कर पापाजी के लण्ड को जकड़ने लगी थी। इतने में चूत के अंदर खिंचाव होना शुरू हो गया और उसकी चूत में से पानी भी रिसना शुरू हो गया। मैं दो बार तो छुट भी गई थी और अब तीसरा खिंचाव आने वाला था।

अब मुझसे और नहीं सहा जा रहा था इसलिए मैंने पापाजी से कहा- अब जल्दी से टॉप गियर लगा दीजिए।

मेरे कहने पर उन्होंने फुल स्पीड कर दी और मेरी चूत में वह इस जिंदगी के सबसे तेज झटके लगाने लगे। उनका लण्ड महाराज मेरे चूत की गहराइयों को पार कर मेरी बच्चेदानी के अंदर घुस गया था।

अब मेरे से नहीं रहा गया, मैं चिल्ला उठी- पापाजी, और तेज, और तेज, आह.. आह.. मैं गईईईए.. गईईईए.. गईईईए.. गईईई..।

मेरा जिस्म अकड़ गया और चूत लण्ड से चिपक गई। इसी समय पापाजी की भी हुंकार सुनाई पड़ी और उनका लण्ड मेरी चूत में फड़फड़ाया। एक ज़बरदस्त पिचकारी छूटी और मैं तो उस समय के आनन्द में पापाजी के रस की नदी में बह गई। इसके बाद पापाजी मेरे ही ऊपर लेट गए और हम दोनों को मालूम ही नहीं रहा के हम इस तरह कितनी देर ऐसे ही पड़े रहे।

फिर हम उठे और अपने आप को एक दूसरे से अलग किया और हम दोनों के रसों का चूत-शेक निकल के मेरी जांघों से नीचे की ओर बहने लगा।

मैं बाथरूम की ओर भागी और पापाजी मेरे पीछे वहीं आ गए। मेरी जांघों पर बहते हुए चूत-शेक को देख कर मुस्करा रहे थे। तभी मेरी नज़र पापाजी के लण्ड पर पड़ी और मैंने देखा की उनका लण्ड बाथरूम की रोशनी में ऐसे चमक रहा था जैसे उस पर चांदी का वर्क चढ़ा दिया था।

असल में चूत से निकालने पर उसके ऊपर चूतशेक का लेप हो गया था और वह चमक रहा था। मेरे से रहा नहीं गया और मैंने उस अपने मुँह में लिया और चूसने लगी।

मैंने जब लण्ड को चाट के साफ कर दिया तो पापाजी ने पूछा- स्वाद कैसा है?

मैंने जवाब दिया- मलाई जैसा है।

तब पापाजी ने अपनी दो उंगलियों मेरी चूत में डाल कर बाहर निकालीं और उसमें लगे चूतशेक को चाटने लगे, फिर बोले- हाँ, तुम ठीक कह रही हो, यह तो मलाई ही है, मेरी और तुम्हारी। आज तो यह बह गई पर अगली बार इसे इकठा करके खाएँगे।

फिर हम दोनों एक दूसरे को धोने और साफ़ करने लगे।

जब दोनों तरफ की थैलियाँ खाली कर दी तब ही वह अलग हुए और अपने खड़े लण्ड को पकड़ कर मुझे दिखाने लगे।

मैंने कहा- हाँ, मैं जानती हूँ कि आपके महाराज को आराम के लिए गद्देदार और गर्म जगह चाहिए, इसका इंतजाम मैं अभी कर देती हूँ। अब इसके साथ साथ हमें भी आराम करना चाहिए, नहीं तो आपकी कमर का दर्द आपको परेशान कर देगा।

अब यह मज़े तो हम आगे जिंदगी भर लेते रहेंगें।

इसके बाद मैं उठ के पापाजी के ऊपर आ गई और उनके खड़े लण्ड पर जाकर बैठ गई और उनका लण्ड मेरी चूत की गहराइयों की नर्म और मुलायम जगह आराम करने पहुँच गया था।

इस के बाद मैं ने अपने चूतड़ों को ऊपर नीचे करना शुरू किया जिस से ससुर जी का लंड मेरी चूत मैं अंदर बाहर होने होने लगा इस से हम दोनों मस्त हो गए ससुर जी ने तो आकन्हें बंद कर ली और मेरी कमर को कास के पकड़ कर मुझे ऊपर नीचे होने मैं मदद करने लगे

मैं बीच बीच मैं अपने चूतड़ों को गोल गोल घुमा देती जिस से ससुर जी के लंड की  जड़ तक मेरी छूट के होंठों पर  रगड़ खाती थी

ऐसा करने से हम दोनों के मुंह से उह्ह्ह आह्ह्ह सस्स निकल रहा था

जोर से धक्के लगाने के लिए मैंने ससुर जी की बालों से ढकी छाती पर अपने हाथ रखे और पूरा ऊपर नीचे करने लगी

जल्दी ही हम दोनों सेक्स की अंतिम सीमा तक आ गया और चुदाई के धक्के तेज होने लगे
हम दोनों एक ताल मिला कर धक्के लगा रहे थे

फिर मेरे शारीर मैं भूकम्प सा आया और और मैं तरह तरह की आवाजें निकालती हुयी झड़ने लगी
उस के थोड़ी देर बाद ही ससुर जी ने  मेरे चूतड़ कस कर दबाये और अपने माल की पिचकारियाँ मेरी चूत के अंदर छोड़ने लगे, मुझे बस ऐसा लग रहा था के किसीने मेरी बच्चेदानी को गरम पानी से भर दिया है, सच कहती हूँ  उन का इतना सारा माल मेरी चूत की गहराईओं मैं समां गया था के अगर के अगर महीने के शुरू के दिन न होते तो मैं जरूर गर्भवती हो ही जाती






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