Tuesday, April 8, 2014

Fentency गाओं की सेर पार्ट--1

Fentency

 गाओं की सेर पार्ट--1 

उस वक़्त मेरी उमर करीब 18 साल की थी… हमारे डॅडी के एक करीबी दोस्त हैं… उनकी फॅमिली मे शादी थी. वो शादी उनके गाओं मे होनी थी.. उन्होने हम सबको चलने के लिए इन्वाइट किया. 

पापा को तो जाना है था. मा के जाने का हिसाब न्ही बैठ रहा था. तब पापा के फ़्रेंड ने कहा कि शायरा को ले चलो. हमारा घर भी देख लेगी, गाओं भी देख लेगी.. ये भी देख लेगी कि गाओं मे शादी कैसे होती हे. लास्ट मे ये फ़ैसला हुआ कि अंकल की फॅमिली के साथ मैं और मेरे पापा भी जाएँगे.मेरा सरीर अब भर गया था. अब मैं वो नौ साल वाली लड़की न्ही थी, जिसका सीना एकदन सपाट था. अब तो मेरे बूब भी दिखने लगे थे. जब मैं चलती थी तो मेरे बम्स लेफ्ट राइट हिलते थे जो मुझे और भी सेक्सी बना देते थे. हमारा वहाँ 10 दिन का प्रोग्राम था. 

10 डेज़ के हिसाब से मैने अपने कपड़े पॅक किए.. सलवार सूट, स्कर्ट & टॉप, जीन्स & टॉप और जैसा मुझे प्रोग्राम बताया गया, हल्दी, लेडी संगीत, तिलक, शादी… हर रोज कुछ ना कुछ प्रोग्राम था. मेने 2 पैयर लहंगा चुनरी भी रख ली..जाने वाले दिन हम निकले और स्टेशन जा कर ट्रेन पकड़ी… रात भर का सफ़र था.. मैं, मेरे पापा, अंकल आंटी और उनका एक बच्चा जो 4 साल का था, टोटल 5 लोग शादी मे जा रहे थे. एसी कोच मे रात का सफ़र आराम से कट गया. सवेरे स्टेशन पर कार आ गयी और हम गाओं की तरफ चल दिए. 

अंकल मुझे रोड के किनारे खेत के बारे मे बताने लगे.. ये सरसो का खेत हे.. ये वीट का. एट्सेटरा एट्सेटरा करीब 2 अवर्स के रन के बाद अंकल ने बताया कि उनका घर आने वाला हे.. फिर एक बड़ा सा दरवाज़ा आया, कार उसमे घुसी. बहुत बड़ा एरिया था वो.कई तरह के ट्रीस थे.. गार्डेन था.. एक दम जंगल जैसा लग रहा था.. फिर हम एक मकान पर पहुचे. मकान क्या था, वो एक हवेली थी.. पुरानी टाइप की, बहुत बड़ी हवेली.. हम कार से उतरे,, हवेली मे गये… बहुत बड़ा हाल, बड़े बड़े कमरे. बड़े बड़े फनूस. एकदम शांति.. कही कोई आवाज़ नही.. कोई हल्के से भी बोलता तो आवाज़ सुनाई दे जाती.. 

ग्राउंड फ्लोर था और 1स्ट्रीट फ्लोर.. हम 1स्ट्रीट फ्लोर पर ले जाए गये. क्या बड़े बड़े रूम थे.. ऐसा तो सिर्फ़ फ़िल्मो मे या टीवी सीरियल मे देखा था.. इतने बड़े कमरे की अगर वो सहर मे हो तो वाहा उसी कमरे मे शादी हो जाए. मुझे अपने नाना जी के गाओं की याद आ गयी. अब जब याद आ गयी तो वो सब भी याद आने लगा कि मेने वाहा कैसे मस्ती की थी. मेने खुदा से दुआ कि हे खुदा, कुछ ऐसा जुगाड़ बना जो नाना जी के यहा हुआ था.. फिर सोचा कि अगर कुछ जुगाड़ हो भी गया तो कोन सी जगह ज़्यादा ठीक रहेगी मस्ती के लिए. 

सोचा चलो घूम के देखते हैं.. इतने मे आंटी ने कहा कि नहा लो, फिर नाश्ता करना है.. पापा अंकल जेंट्स लोग का जहाँ इंतज़ाम था वहाँ चले गये.. मैं आंटी के साथ रह गयी. शायद कुछ और लोग आने वाले थे वाहा. मैं नहाने चली गयी. 

जब मैं नहा के कमरे मे आई तो कुछ गेस्ट और आ गये थे. वाहा मेरी उमर की एक लड़की और दिखाई दी.. आंटी ने बताया कि वो उसकी कज़िन सिस्टर थी. उसका नाम प्रिया था और वो अक्सर गाओं मे आती हे और कई कई दिन रह के जाती है. उसका अपना घर हवेली के पास ही था. 

एक उमर की होने की वजह से मेरी और प्रिया की दोस्ती हो गयी और हम सहेलिया बन गयी. हमने साथ नाश्ता किया. नाश्ते के बाद हम रूम मे आ गयी,, प्रिया बताने लगी कि यहाँ पर क्या क्या है . उसने मुझे पूरा एरिया घुमाने का इरादा जताया. 

मे राज़ी हो गयी और हम दोनो हवेली से बाहर निकले. वाहा चारो तरफ बड़े बड़े ट्रीस थे… एक आम का बगीचा था. एक अस्तबल था जहाँ कई काउस..कई भैंस, 2 डॉग्स और एक हॉर्स भी था.. वो जनवरो को च्छू च्छू के सहलाने लगी.. मुझे बोर लगने लगा. 

मैं अस्तबल से बाहर निकली.. अस्तबल के पीछे पानी का एक बड़ा सा कुवा था, सिमेंटेड.. उसमे पानी था .. साथ मे पानी की मशीन थी. वाहा से चॅनेल बना हुआ था जिससे वो पानी जनवरो तक पहुच जाए. मैं उसी को फॉलो करते करते पीछे वाली खिड़की तक पहुचि. 

अचानक मेरी नज़र प्रिया पर पड़ी. वहाँ मेने जो देखा वो पहले कभी न्ही देखा. प्रिया घोड़े के पास बैठी थी उकड़ू होकर. उसका हाथ घोड़े को सहला रहा था. मेने सॉफ देखा घोड़े का लिंग बड़ा होते हुए. जब वो बड़ा होने लगा तो प्रिया ने उसको पकड़ लिया और सहलाने लगी.. 

वो और बड़ा होते चला गया.. करीब 2 फुट का.. और खूब मोटा. वो उसको दोनो हाथो से सहलाने लगी. 5 मिनिट ये सब देखती रही, फिर मैं मूडी और वापस अस्तबल की तरफ आने लगी. जब मैं वहाँ भीतर पहुचि तो प्रिया काउ के गले को सहला रही थी. 

उसने मुझे चोर नज़रो से देखा. मेने कोई रिक्षन न्ही दिया. फिर हम गाय को भूसा वगेरा डाल के अस्तबल से निकले.. निकलते समय प्रिया ने घोड़े को देखा.. मेने भी देखा.. उसका लिंग सिकुड़ने लगा था. मैं बाहर की तरफ देखने लगी जैसे कुछ देखा ना हो. हम दोनो बाहर आ गयी. दिन मे हमने खाना खाया. फिर रूम मे आ गयी. हम दोनो आपस मे बात करने लगी. 

मे- काफ़ी बड़ा एरिया है ना? 
प्रिया- हां. मैं तो अक्सर यहा आती हू. 
मे- अक्सर क्यू? 
प्रिया- मुझे बहुत अच्छा लगता है. और मुझे जनवरो से लगाव है. 
मे- वो भला क्यू? 
प्रिया- मे तो जब भी आती हू, मेरा बहुत समय उन्ही के साथ गुज़रता है. 
मे- अच्छा,, पर मेने खिड़की से देखा था तुमको घोड़े को सहलाते हुए. 

प्रिया- ओह नो,, वो तो बस ऐसे ही…. 
मे- कोई बात न्ही, पर एक बात है, घोड़े को सहलाने से कुछ हो रहा था, वो मेने देखा. 
प्रिया – क्या देखा. 
मे- वो घोड़े की एक चीज़ बड़ी हो रही थी, बाद मे तुमने अपने दोनो हाथो से उसको सहलाया था. 
प्रिया- ओह, तुमने देख लिया?… प्ल्ज़ किसी को बताना मत. 

मे- ओक न्ही बताउन्गि,, बस मुझे भी एक बार दिखा देना. 
प्रिया- ओके, वेसे तुमने कभी देखा न्ही किसी का? 
मे- सच बताउ,, अब तुम किसी को मत बताना. मेने आदमियो का देखा है. 
प्रिया- वाउ, कैसा होता है? 
मे- घोड़े जैसा न्ही होता, पर सबका अलग अलग साइज़ होता है. 
प्रिया- इसका मतलब तूने कई सारे देखे हैं? 
मे- हां कई सारे देखे मेने. 
प्रिया- कभी च्छुआ? 
मे- हां च्छुवा. 

प्रिया- और? 
मे- मेने उसको पकड़ा अपने हाथो से? 
प्रिया- और? 
मे- किसी को बोलेगी तो न्ही? 
प्रिया- नही, हम फ्रेंड हैं, ये बात हम दोनो के बीच रहेगी. 
मे- तो सुन, मेने लड़को के लिंग, जिसको वो लंड बोलते हैं, अपने हाथो से पकड़े हैं. उनको लिया भी है. 

प्रिया- वाउ शायरा, यू आर लकी गर्ल, कैसा लगता है? 
मे- बहुत मज़ा आता है. 
प्रिया- उसमे से सफेद जूस भी निकलता है? 
मे- तुझे कैसे मालूम? 
प्रिया- बता ना प्ल्ज़. 
मे- हां निकलता है, अब बोल तुझे कैसे मालूम. 

प्रिया- वो जब घोड़े का सहलाती हू ना तब उसमे से सफेद जूस निकलता हे, बहुर सारा. 
मे- अच्छा 
प्रिया – हां, फिर जब हाथ उसमे सन जाते हैं तो कपड़े उतार कर वही नहा लेती हूँ. 
मे- अच्छा, अब मुझे कब दिखाएगी? 
प्रिया- आज शाम को देख लो. 
मे- ओके, कितने बजे? 
प्रिया- 4 बजे करीब चाय पीने क बाद चलना. 
मे- ओके. 

4 बजे चाय पीने के बाद हम दोनो वाहा अस्तबल की तरफ चल दी. हम दोनो ने स्कर्ट और टॉप पहना हुआ था. मेने कहा कि अपनी ड्रेस उतार दो, अगर वो खराब हो गयी तो मुस्किल होगी. वो समझ गयी. उसने अपने सारे कपड़े खोल के साइड मे रखे और घोड़े को सहलाने लगी. 

जब घोड़े का लिंग बड़ा हो गया तो मुझे भी उसने बुलाया. फिर हम दोनो ने अपने हाथो से उसके लिंग को खूब मसला. थोड़ी देर बाद उसका जूस निकल गया. बाप रे, इतना सारा जूस.. इतना जूस तो नाना के गाओं मे मेरी 4 दिन की चुदाई मे भी नही मिला होगा मुझे. 

फिर हम दोनो ने एक दूसरे को पानी से नहलाया. हम दोनो ने एक दूसरे के बूब दबाए.. मेने उसकी चूत मे उंगली डाली, उसने भी मेरी मे डाली.. पानी से बाहर निकल के एक दूसरे की चूत चॅटी. हम दोनो को मज़ा आया. 

मे- प्रिया, तुझे किसी ने चोदा है? 
प्रिया- हां, क्लास के 2 लड़को ने और मेरे मास्टर जी ने. 
मे- लड़को का लंड कैसा था? 
प्रिया- वो तीन इंच का था, पतला सा. पर मास्टर जी का उनसे बड़ा था. 
मे- मास्टर जी ने क्यू चोदा? 
प्रिया- एक दिन जब लड़के मुझे बाथरूम मे चोद रहे थे, तब मास्टर जी ने देख लिया. 
मे- पूरी बात बता ना. 
प्रिया- सुन, वो तो मुझे बाद मे मालूम हुआ कि मास्टर ने देख लिया. 

एक दिन मास्टर जी ने मुझे घर पर बुलाया . वो मुझे कुछ गाइड बुक देना चाहते थे, मेद्स की. मे वहाँ गयी. मास्टर जी अकेले थे. उन्होने दरवाजा बंद कर दिया. उनकी बीबी घर मे न्ही थी. मुझे पलंग पर बिठा कर वो दूसरे रूम मे गये.. जब वो वापस आए तो उनके एक हाथ मे एक पतली सी किताब थी. और वो गमछा पहने हुए थे. जब वो पलंग पर पालती लगा के बैठे तो उनका गमछा सामने से खुल गया. मैं ठीक उनके सामने थी. मुझे उनका लंड दिख रहा था. मास्टर जी ने पालती चौड़ी कर ली. उनका गमछा कमर तक उपर उठ गया. 

मे- फिर? 

प्रिया- मैं सिर झुका के बैठी रही, पर चोर नज़रो से उनका लंड देख रही थी. मुझाया हुआ था, करीब 4 इंच का होगा. मास्टर जी समझ रहे थे कि मैं उनका लंड देख रही हू. मास्टर जी ने किताब अपने पीछे रख दी. और अपने लंड की नीचे की बॉल को सहलाया. उनका लंड बड़ा होने लगा. 

मैं चोर नज़रो से देखती रही. जब उनका लंड टाइट हो गया तो करीब 6 इंच का हो गया. मे सोचने लगी कि उन लड़को से डबल है मास्टर जी का लंड. मेरे सरीर मे सनसनी होने लगी, पता न्ही मास्टर जी क्या चाहते हैं. मेने मास्टर जी कहा- मास्टर जी किताब दीजिए, मुझे घर जाना हे. 

मास्टर जी ने कहा कि किताब उनके पीछे है आकर ले लो.. उस वक़्त वो अपने लंड की स्किन को आगे पीछे कर रहे थे, जब वो स्किन पीछे जाती थी तो उनके लंड का सूपड़ा पूरा दिखता था,, पिंक कलर का , गोल गोल. मैं उठी और घुटनो के बल चल कर मास्टर की पीछे रखी किताब ले ली. जब मैं मूडी तो मास्टर जे ने मुझे कमर से पकड़ लिया और अपनी गोदी मे बैठा लिया. 

मे घबरा गयी- मास्टर जी, आप क्या कर रहे हैं, मुझे छोड़िए. पर उसने जैसे कुछ सुना नही. उसने मुझे अपनी गोदी मे फ़सा के मेरी स्कर्ट उपर कर दी और पॅंटी के उपर से मेरी चूत पर हाथ रख दिया और सहलाने लगे. 
मेने छ्छूटने की नाकाम कोसिस की. 

इसी बीच मास्टर जी ने कब मेरा हाथ पीछे करके अपने लंड पर रख दिया, मालूम नही पड़ा. मालूम तब पड़ा जब मास्टर जी ने उनके लंड पे मेरा हाथ रख कर, मेरे हाथ पर अपने हाथ रखा और आगे पीछे करने लगे. मैं पलट गयी पर मेरा हाथ उनके लंड से नही च्छुटा. 

मास्टर जी ने कहा कि थोड़ी देर इसको सहला दो फिर चली जाना. मेरे पास और कोई रास्ता न्ही था. मास्टर जी ने अपने टांगे फैला दी और मुझे अपने सामने पेट के बल लेटा दिया और मैं उनका लंड सहलाने लगी. थोड़ी देर बाद मेने कहा कि अब मैं जाउ? 

मास्टर जी ने कहा थोडा रुक और घूम जा. मैं घूमने लगी तो मास्टर जी ने मुझे चित लिटा दिया और स्कर्ट उपर करके मेरी पॅंटी खीच के उतार दी. मेने अपने हाथो से अपनी चूत धक ली. मास्टर ने कहा, तुमने तो मेरा लंड देख लिया छु भी लिया, तुम्हे भी अपनी चूत दिखानी पड़ेगी. 


मरती क्या ना करती. मेने अपने हाथ हटा लिए. मास्टर जी ने मेरी टाँग फैला दी और चूत सहलाने लगे. उंगली भी घुसाइ. थोड़ी देर तक ये सब करने क बाद वो बोले, बेटी अब मेरी गोदी मे बैठ जाओ. मैं उनके पैरो पर जाँघ के उपर बैठ गयी. मेरे दोनो पैर बाहर की तरफ थे. 
क्रमशः........... 

 









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