Saturday, April 12, 2014

Fentency मेरे बॉस

Fentency


मेरे बॉस

प्रेषक : रोमा
  सभी पाठकों को मेरा नमस्कार। मैं रोमा हूं इससे पहले आपके पास
अपनी कहानियां लेकर आ चुकी हूं। जैसा कि आपको पता हैं मैं पढाई कर रही
हूं, और इन दिनों मैं पढाई के साथ एक पार्ट टाइम जॉब भी कर रही हूं मेरी

जॉब की टाइमिंग शाम 5 से 8 की होती हैं, और यहां मुझे ज्यादा काम भी नही
करना होता है। यहां मैं कम्पनी के अकाउंट को चेक करके डेली की आय व्यय को
अकाउंट में उतारती हूं। यहां मेरे एक बॉस है जो मुझे बेहद पसंद करते है।
मुझे यहां काम में लगने से लेकर अब तक वे सभी कामों में मेरी काफी मदद
करते हैं, और काम से मेरी छुट्टी होने के बाद वे अक्सर मुझे अपने पास
बुला लेते, और मुझसे मेरे घर के बारे में बात करने लगते। छुट्टी के बाद
घर पहुंचने की जल्दी रहने के बावजूद उनका बास होना, और मुझे हर काम में
सहयोग देने की वजह से मैं उनके पास रूककर बात करने के उनके आग्रह को टाल
नहीं पाती। काम के बाद उनके पास रूकने का सिलसिला अब धीरे-धीरे करके और बढने लगा।
लिहाजा आफिस से मेरे छूटने का समय 8 बजे का था, जो अब बढते हुए 10 बजे तक
हो गया था। देर से घर पहुंचने पर एक दिन मेरी मां ने डांट लगाई, व कल से
काम पर न जाने का फरमान सुनाया। तब मैने मां से कही कि आज बास से बात
करके आपको बताती हूं। दूसरे दिन मैं जल्दी ही अपने आफिस पहुंची आज मैने
सलवार सूट न पहनकर स्कर्ट और शार्ट पहनी थी , और यहां अपने काम में न
लगकर सीधा बास के चेंबर में पहुंची। मुझे देखते ही बॉस ने चेंबर में बैठे
दूसरे लोगों का काम जल्दी से पूरा किया, जिनका काम नहीं हुआ उन्हे बाहर
बैठने को कहकर बास ने मुझसे कहा हां रोमा बोलो क्या बात हैं। मैं बॉस के
पास गई और बोली बॉस मुझे यहां से छूटने और घर पहुंचने में रोज रात के 10
बज रहे हैं। इससे मेरे घर वाले काफी नाराज हो रहे हैं और उन्होने मुझसे
यह सर्विस छोडने कहा हैं। सो आज मैने अपना रेजिगनेशन लेटर लिखा हैं और यह
आपको देकर अब भारी मन से यह सर्विस छोड रही हूं।
  यह सुनते ही मेरे बॉस  जिनका नाम वीरेन्द्र मेहता हैं, एकदम चौंक गए और
अपने सामने बिछी कुर्सी पर मुझे बैठने कहा। मैं कुर्सी पर बैठी। वह बोले
इस बारे में तुम्हे क्या कहना हैं ? मैं बोली कुछ बोल नहीं पा रही हूं
इसलिए तो अपना इस्तीफा दी हूं सर। मैने घर वालों से भी कहा हैं कि अभी
कुछ दिन की ही बात हैं फिर ठीक टाइम हो जाएगा, पर मेरी बात भी नहीं मानी
गई। मेरी बात सुनते ही वीरेन्द्र खुशी से उछल पडे और बोले या?तुम भी
इसमें मेरा साथ दोगी ना। मैं बोली बिल्कुल सर। अब वो बोले तुम मुझे सर ना
कहकर सीधे मेरे नाम से बुलाया करो। मैं लिहाज वश बोली जी सर। फिर सर… यह
बोलकर वीरेन्द्र अपनी चेयर से उठकर मेरे पास पहुंच गए। उन्हे आता देख
लिहाजवश मैं भी खडी हुई, पर उन्होने मुझे बैठाए रखने के लिए मेरे कंधे पर
अपना हाथ रखकर कंधा दबाया, इससे मैं पूरी न बैठकर थोडा झुक गई। वीरेन्द्र
बोले अपनी दूसरी बात होती रहेगी,पर पहले तुम सर्विस पर रोज आती रहो इसके
बारे में सोचना हैं, यह बोलकर वीरेन्द्र ने मेरे कंधे से अपना हाथ निचे
कर मेरे बूब्स पर रख दिया। उनका हाथ मेरे बूब्स पर लगते ही मेरे शरीर में
झुरझुरी सी उठी।
 वीरेन्द्र ने अपना हाथ मेरे बूब्स से हटाए और मेरे बाजू में रखी
कान्फेंस चेयर को मेरे और पास खिंचकर उस पर बैठ गए। मैं उन्हे अपने इतने
करीब बैठे देखकर घबरा रही थी। मेरे चेहरे का रंग भी उडा हुआ था। वे मेरी
यह हालत देख कर बोले क्या हुआ रोमा, तुम आज मेरे साथ बैठकर कैसा रिएक्ट
कर रही हो, तुम्हारी तबियत तो ठीक हैं ना। मैं बोली जी सर आप यहां मेरे
इतने पास बैठे हैं ना इस कारण मैं घबरा गई हूं। वीरेन्द्र ने कहा इसके
अलावा तो और कोई बात नहीं हैं ना। मैं बोली नहीं। तुम मेरे साथ बैठने से
इतना घबरा रही हो जैसे मैं तुम्हारे उपर ही चढ गया हूं। देखो रोमा मेरा
तुमसे अलग ही लगाव हैं, इसलिए तुम्हे बता रहा हूं कि काम्पीटिशन के इस
दौर में तुम्हे बहुत फारवर्ड होना पडेगा। एसे किसी के साथ बैठने से
झिझकीं या हाथ लगने से कांप उठोगी तो आगे कैसे बढोगी। मैं बोली जी…।
वीरेन्द्र ने कहा तुम्हे अब तो मेरे साथ बैठने से कोई परेशानी तो नहीं हो
रही है ना? मैं थोडा नर्वस फील कर रही थी, सो अपने हाथ से शर्ट की उपरी
बटन पर घुमाने लगी। वीरेन्द्र बोले बी फ्रेंक बेबी, डोन्ट नर्वस डाउन। यह
कहते हुए वे बोले अच्छा चलो अब अपन कुछ खुल के बातें करें,जिससे तुम्हारी
झिझक मिटे।
 मैने हां में गर्दन हिलाई। वे बोले पहले तुम सैक्स कर चुकी हो या नहीं।
मैं अब तक तीन बार अपनी चूत में लौडा ले चुकी थी, इसलिए अभी इस प्रश्न पर
चुप थी। वीरेन्द्र बोले देखो एकदम सही-सही बोलो। मैं बोली जी हां मैं
सैक्स कर चुकी हूं। वीरेन्द्र पूछे कितनी बार? और किससे? मैं बताई एक बार
एक लडके से। वीरेन्द्र बोले गुड यानि सैक्स को तुमने भी अपने फ्यूचर का
सवाल न बनाकर शरीर की जरूरत के हिसाब से यूस किया ना। मैं अपनी गर्दन
निचे किए बैठी थी। उन्होने मेरे हाथ को पकडा, और बेहद संजीदगी के साथ
बोले क्या मुझे भी तुम्हारे साथ सैक्स करने का मौका मिल सकता हैं? अब मैं
नारी सुलभ शरम का भाव दिखाते हुए अपना सिर झुकाए बैठी रही। वीरेन्द्र के
हाथ मेरे बूब्स के निप्प्ल को सहला रहे थे। बॉस के साथ चुदाई के ख्याल ने
ही मुझे रोमांचित कर दिया था। मैने स्कर्ट शार्ट पहनी थी। वीरेन्द्र का
एक हाथ मेरे निप्प्ल पर थे, दूसरे हाथ से उन्होने मेरे दोनो पैरों को अलग
किया, और मेरी चूत की ओर हाथ बढाया। मुझे अच्छा तो लग रहा था, पर कोई आ न
जाए इस डर से मैने पिछे घूमकर मेन डोर की ओर देखा तो वीरेन्द्र बोले अभी
बस हाथ लगा रहा हूं असली प्यार बाकी हैं। सो मैं पैर फैला दी ताकि वो
मेरी चूत को छू लें।
  उसने हाथ बढाकर मेरे स्कर्ट के अन्दर से मेरी पैन्टी के उपर से चूत को
सहलाया, फिर पैन्टी को किनारे से हटाकर मेरी चूत की दोनो फाकों पर हाथ
घुमने लगे।अभी दो दिन पहले ही मैने अपने झांटों को हेयर रिमुवर से साफ
किया था।सो चूत एकदम क्लीन तो नही, पर साफ थी। अब मुझे अपनी चूत में लौडा
लेने की इच्छा तेजी से सिर उठाने लगी। सो मेरा हाथ खुद ब खुद वीरेन्द्र
की पैन्ट की ओर बढा और पैन्ट के उपर से ही उनके लौडे को टटोलने लगा। उनका
लंड भी तनकर फुफकारने लगा। तभी अचानक उनका इंटरकाम बजने लगा। उन्होने
जल्दी से मेरी चूत से हाथ हटाकर रिसीवर उठाया और रिशेप्स्निस्ट की बात
सुनकर कहा कि ठीक हैं पांच मिनट में भेज दो। अब वह इधर की कुर्सी ठीक
करके अपनी चेयर पर आए और बोले कि रोमा आज तुम घर से ड्यूटी के लिए अपने
टाइम पर पहुंचो, मैं भी छुट्टी लेता हूं। सिविल लाइन में मेरा एक घर अभी
खाली पडा हैं अपन उसमें ही चलते हैं।
 मैं उठकर एक नजर खुद पर फिराई ड्रेस ठीक की, और बाहर की ओर चल पडी। घर
आकर मैने मां से झूठ कहा कि आज बास नहीं मिले सो आज ड्यूटी जाना पडेगा,
कल से कुछ और देखूंगी। मेरी बात से मां संतुष्ट हुई। तीन बजे ही
वीरेन्द्र का फोन मेरे मोबाइल पर आया कि शाम को तुम आफिस न आकर सिविल
लाइन पहुंचो, हम वहां की कैन्टीन में मिलेंगे। आज आफिस का लास्ट दिन हैं
यह बोलकर मैने घर से स्कूटी ली और निकली। सिविल लाइन मेरे घर से पास पडता
हैं वहां की कैन्टीन में वीरेन्द्र मिले, और मुझे साथ लेकर अपने घर
पहुंचे। यह घर अभी खाली था, पर वहां किसी के रहने के पूरे इंतजाम थे।
वीरेन्द्र बोले रोमा इस घर में हम दोनो अकेले हैं और जब दो लोग ही हैं तो
फिर कपडे की क्या जरूरत हैं ना। यह बोलकर वे पास आए और मुझे अपनी बाहों
में ले लिए। मैं तो इस मौके का इंतजार कर ही रही थी। वीरेन्द्र ने मेरा
चेहरा उठाया और होठ पर अपने होंठ लगा दिए। पहले मेरे होंठो को अच्छे से
चूसने के बाद अब अपनी जीभ से मेरी जीभ और फिर मुंह के अंदर घुमाए। साथ ही
उन्होने मेरे स्कर्ट की चेन व हुक खोलकर उसे उतारे और मेरी शर्ट की एक-एक
कर सारी बटन खोल दिए। अब मैं ब्रा व पैन्टी में थी। मुझे भी उनके किस
लेने की स्टाइल अच्छी लग रही थी सो मैं उन्हे पूरा सहयोग दे रही थी।
उन्होने मेरे ब्रा का हुक खोला व ब्रा उतारकर वहीं निचे डाल दिया।
उन्होने होठ से निचे मेरी ठोडी को चूमा फिर उनका मुंह मेरे निप्पल पर आ
गया। एक निप्पल को मुंह में रखकर दूसरे स्तन पर उन्होने हल्का सा दबाव
बढाया, और हाथ को चारों ओर घूमाते हुए निप्पल को प्रेस करने लगे।
 पहले एक तरफ के निप्पल को चूसने के बाद फिर दूसरे निप्पल को मुंह में
रखा। इसके बाद उन्होने दोनो निप्पल के बीच से चूसकर वे निचे सरके। वे
मेरे पेट में पैन्टी के उपर जीभ मारते हुए पैन्टी के दोनो किनारे को पकड
कर उसे निचे किए। अब मैं नंगी हो चुकी थी। एक पैर उठाकर मैने पैन्टी को
अलग की, व उन्हे मेरी चूत का स्वाद मिल सके इसलिए टांग को फैलाकर एडी
उठाकर खडी हो गई। वीरेन्द्र की जीभ मेरी चूत को उपर फिर निचे उसके होल
में अंदर कर कर रहे थे। मैं भी पूरी तरह से गर्म हो गई थी,और चूत से पानी
भी निकल रहा था,जिसे वे टेस्ट लेकर साफ किए जा रहे थे। मेरी चूत को अब
लंड की सख्त जरूरत महसूस हो रही थी। उत्तेजना में मैने वीरेन्द्र के सिर
के बाल पकड रखी थी। उत्तेजना में इन्हे खिंचती भी जा रही थी। कुछ ही देर
में वीरेन्द्र ने उठते हुए कहा अब बेड पर चलते हैं। यह बोलकर वे अंदर
बढे। मैं भी वहां बिखरे अपने कपडों को समेटकर भीतर बेडरूम में गई। फिर
वहीं किनारे में रखी कुर्सी पर पूरे कपडे रखी। भीतर वीरेन्द्र अपने शर्ट
व पैन्ट उतारकर बनियाइन- अंडरवियर में थे।
 मैने उनसे कहा यहां नंगे रहने का नियम सिर्फ मेरे लिए ही हैं क्या, आप
कपडे नहीं उतारेंगे ? अब तक वीरेन्द्र मेरे पास आकर फिर चूमना शुरू कर
दिया। मेरी चूत की डिमांड बढने लगी, सो मैने उनके अंडरवियर को हटाकर तंबू
बना रहे लौडे को पकडी। तब तक वीरेन्द्र ने अपनी अंडरवियर को भी निचे कर
दिया। अब मैं उनका लंड देखी। यह लंड जादा मोटा तो नहीं था, पर मजबूत दिख
रहा था। इनका सुपाडा गुलाबी रंग का था, मानो किसी गोरे आदमी ने गुलाबी
कलर की टोपी पहनी हो। वीरेन्द्र ने पूछा कैसा लगा। मैं बोली बहुत अच्छा।
वीरेन्द्र बोला तो इसे प्यार नहीं करोगी? मैं उनके लंड पर हाथ रखकर पिछे
आई, और पलंग पर बैठकर उनके लंड को पहले चूमी, फिर मुंह के अंदर डाल ली।
थोडी देर चूसने के बाद मैने लंड बाहर की और पलंग पर आकर लेट गई।
वीरेन्द्र समझ गए थे कि मैं गर्म हो गई हूं। सो मेरे लेटते ही वे मेरी
चूत को चाटने लगे। होल में जीभ डालकर अंदर बाहर करने से मुझे लगा कि एसा
ही चला तो मै जल्द ही झड जाउंगी। सो मैने उन्हे बोला कि जल्दी चोदो ना।
चूत चाटते हुए वीरेन्द्र उपर आए और मेरे होठों को पकडे। अब उन्होने अपने
लौडे को चूत के होल में लगाया और हल्का सा झटका देकर अंदर किया। दर्द से
मैं कराही। फिर उन्होने हल्का सा रूक कर तगडा झटका मारा, और मेरी चूत में
अपना पूरा लंड घुसेड दिया। दर्द के कारण मैं थोडी देर रूकी, पर अब मुझे
अच्छा लग रहा था। सो मैने भी निचे से झटके लगाना शुरू कर दी। चुदाई का यह
दौर जल्दी ही पूरा हो गया। पर मानना पडेगा वीरेन्द्र को जिन्होने मुझे
ज्यादा इधर उधर होने देने के बदले फिर से नए दौर का खेल शुरू कर दिया।
दूसरी ट्रीप के बाद ही मुझे चैन मिला। मेरे भीतर की ज्वाला ठंडी होने के
बाद मैने वीरेन्द्र से कहा तो मेरा इस्तीफा स्वीकार हो जाएगा ना सर, तो
वे बोले हफ्ते में एक दिन हम एसे मिल लिया करेंगे बस। आफिस में रोज देर
भी नहीं होगी, और कल ही तुम्हारे प्रमोशन का लेटर भी तुम्हे मिल जाएगा।
पर हफ्ते में एक दिन मुझसे यूं ही मिला करोगी यह वादा करो। प्रमोशन की
बात सुनकर मैं खुश हो गई। यानि अब मुझे बढी हुई सेलरी के साथ बास का लंड
भी हर हफ्ते मिलेगा… वाह वाह। मैं बास से चिपक गई, ताकि उनका मूड बने और
हम फिर से एक बार चुदाई कर सकें।
तो ये थी दोस्तों मेरी कहानी उमीद करती हु की आप लोगो
को पसंद आई होगी आप लोगो को केसी लगी बताइएग जरुर
रोमा









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