Tuesday, April 8, 2014

Fentency कहानी रिश्तों की--2



Fentency

  कहानी रिश्तों की--2
 जब सहला नीचे गयी थी तो फरीद नहाने के लिए बाथरूम में
गया ही था. जब ये दोनों ऊपर पहॉंछे तो सहला ने लैला को
बाहिर
ही खरा किया और अंदर गयी. फरीद अभी बाहर नहीं आया था.
वो बाथरूम में चली गयी.

"फरीद, आज मैं तुम्हें बर्तडे का तोहफा दूँगी, पर तुम्हें
आँखे बंद रखनी परेंगी," फरीद को सहला की आदतों का पता
था. चुपचाप उसकी बात मान ली. सहला ने उसकी आँखों पर पट्टी
बाँधी, उसका हाथ पकड़ कर उसे बेड पर लाईए और लिटा दिया.
फिर उसका लौरा मुँह में लेकर तन्ना दिया. पेश्तर इसके की उसका
पानी निकलता, "चुपचाप परे रहो" कह कर बाहर गयी और लैला
को ले आई. अब टॅल्क लैला ने मन पक्का कर लिया था और एग्ज़ाइटेड
थी. अंदर आ कर जब उसने देखा के अब्बू की आँखों पर पट्टी है,
तब तो रही सही रिज़र्वेशन भी ख़तम हो गयी.

होठों पर उंगली रखे सहला ने इशारा किया की फरीद के लंड पर
बैठ जाओ. लैला ने देखा फरीद का लंड तन्नाया हुवा, आसमान
की
तरफ सिर उठाए, खून से भरा, लाल, लाल सुपारा नब्ज़ की
तरह
तड़प रहा था.

आव देखा ना ताव और वो चढ़ कर जम गयी. पेश्तर इसके की
फरीद
पूच्छे या कुच्छ कहे, सहला ने कहा, "फर्रू जान, यह तो तोहफा
है, और केक पर आइसिंग की तरह मैं तुम्हारे मुँह पर अपनी चूत
फिट
कर रही हूँ".

सहला लैला की तरफ मुँह कर के फरीद के मुँह पर ऐसे जम गयी की
बरबस उसकी जीभ सहला की चूत में घुस गयी. सहला ने आगे झुक
कर लैला का एक मुम्मा अपने मुँह में लिया और जीभ की नोक से उसकी
चूची को छेड़ने लगी.

"उः, . . . ह . . . ह" लैला के मुँह से निकला. सहला की निगाह ने
कहा "चुप रहो".

आरिफ़ का लंड चूस रहा था. लैला ने मज़े में अपना सिर पीछे
किया, उसकी छ्चातियाँ सहला की तरफ और आगे हो गयीं. लैला की
फुददी में ऐसे जान आ गयी थी जैसे हाथ लौरे से खेलता है,
उसे सहलाता है. फरीद बोलने की कोशिश कर रहा था पर सहला की
चूत उस पर जमी हुई थी.

"लो फरीद मैं उठ जाती हूँ". सहला उसके मुँह से उठ कर बगल में
बैठ गयी.

"सहला जान क्या तोहफा दिया हा . . . ई . . त . . . म . . .
न. . .ए,
इसकी सी . . . ह . . . ओ . . . ओ . . . ओ . . . त . . . तो ह . . . आ . .
. आ . . . आ . . . आ त की तरह मेरे लॉर को न . . . ई . . .
सी . . .
ह . . . र रही है. उ . . . फ . . . फ . . . फ . . . फ . . . आ . . .
इसे तो लैला की माँ मेरा लंड निचोर . . . आ . . . आ . . .आ का. . .
र . . . र . . . र . . . र . . . ती थी."

"यह लो, फरीद, देखो, तुम्हें माँ की बेटी ही चोद रही है".

यह कहते हुए सहला ने उसकी आँखों की पट्टी उतार दी. उसी वक़्त,
सहला की बात सुनने के बाद फरीद ने एक ताक़तवर धक्का अपने ऊपर
जमी चूत में देकर अंदर तक अपना लंड घुसा दिया. साथ ही
उसकी
आँख की पट्टी खुली और उसने देखा एक जवान, कसा हुवा धड़ उसके
लंड पर है, सिर पीछे, छ्चातियाँ आगे, नुकीली चूचियाँ,
भरी हुई, दोनों दूध थोरे बाहर की तरफ देखते हुए जैसे दो
सेंट्री एक दूसरे से रूठ कर ताने हों. पतली कमर, कभी ऊपर
नीचे और कभी गोल घूमती हुई जैसे मक्खन निकालने के लिए
हांड़ी
गोल घूम रही हो!

पालक झपकते बाप बेटी को पहचान भी गया!

"तेरी माँ की चूत फ़ारू, सहला, . . . "

"पहले अपनी बेटी की चूत का मज़ा तो ले, ले. मेरी माँ के लिए तो
कुच्छ छ्होरेगी ही नहीं . . . "

पर झटक कर बेटी को अपने लंड पर से उठा देने के बदले उसने
दोनों
हाथों से उसकी कमर पकरी और उसे और ज़ोर, ज़ोर से घुमाने और
ऊपर
नीचे करने लगा.

"सहला, देख मैं अच्च्छा चोद्ति हूँ या तू, यह कोई कॉंपिटेशन
नहीं है, पर मेरा ख़याल है बेटी और सहेली मिल कर बीवी की कमी
पूरी करते रहेंगे"

"आबे, बेटी चोद बाप, ले अब सहला के नीचे लेट."

लैला उठी और इतनी जल्दी सहला ने उसकी जगह ले ली कि शायद कुच्छ
लम्हों के लिए ही लंड ने खुली हवा ली हो.

लैला अपने बाप के मुँह पर बैठने के बदले उसकी बॉडी के दोनों तरफ
टांगे कर के सहला के सामने खरी हो गयी.

"ले मेरे बाप की चूत, नीचे कमरे में तू अच्छि तरह चूस
नहीं सकी थी मेरी फुददी, अब पूरा मज़ा ले." और उसने अपनी खुली,
गीली, फरक्ति हुई छूट सहला के मुँह पर फिट कर दी.

"तुम दोनों मुझे चोदोगि या मुझे भी मौका दोगि की मैं चोदू?"

"क्यों, औरत के नीचे लेटने मैं शर्म आती है क्या, या कमर
में
इतना दम नहीं है की एक औरत क़ा बोझा उठा सके?", लैला ने
कहा.

सहला को मज़ा आ रहा था बाप बेटी की चुदाई में और उनकी बातों
में.

मौका देख कर बोली, "फरीद, बेटी चोद, तेरा लंड बेटी की चूत
में
है या किसी और की चूत में, क्या यह पता चलता है?"

"लैला की माँ भी एक बार बोली थी के उसे पता नहीं चल सकता कि
उसकी चूत में जो लंड है वो उसके खाविंद का है या किसी और
क़ा"

"तो क्या अम्मी ने दूसरे लॉर भी चोदे थे? किस का, या किन के?"

मेरी लौरे की यार, लैला मैनें खुद अपने दोस्त और भाई को बुला कर
ऐसे ही टिकरी-चुदाई
की थी जैसे आज कर रहे हैं"

लैला इतनी फराक गयी अपनी माँ की बात के की सहला को धक्का दे
कर
फिर से बाप को ललकारा:

"मैं अब नीचे लेटटी हूँ मेरी माँ के खाविंद और तू ऊपर छरह
जा, देखना चोदून्गि मैं ही. मैं भी अपनी माँ की चूत से निकली
हूँ, बीज चाहे किसका हो"

अब लैला नीचे थी, फरीद उसके ऊपर छरहा और सहला ने अपनी चूत
फरीद के मुँह पर लगा दी. वो बहोत देर से अपने को रोके हुए थी.
थोरा और मज़ा आया और उसने फरीद के मुँह में अपनी धार छ्होर
दी. फरीद ने हटने की कोशिश की पर वो तय्यार थी. उसने कस कर
उसके
सिर को पीछे से अपनी चूत पर जमाए रक्खा.

"ले मेरी सुनहरी धार पी, अंदर तक धूल जाएगा".

जब लैला की समझ में आया कि क्या हुआ है, वो ज़ोर से चिल्लाई:

"मैं नीचे से माँ के खाविंद का लौरा अपनी सुनहरी धार से धो
देती हूँ, सहला. आज तेरे फरीद के दोनों औज़ार धूल गये"

और उसने भी अपनी धार छ्होर दी



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