Fentency
ट्यूशन पढ़ाई का या---- पार्ट--2
गतान्क से आगे........
"कल जो फिज़िक्स में होमवर्क दिया था वो तुमने किया है?" अनिल फिर से उसके चुचियों को मसल्ने और अपने शख्त लंड पर उसकी कोमल गांद कामज़ा लेने के लिए बहाने खोज रहा था.
"पर कल तो आपने फिज़िक्स में कोई काम नही दिया था" दिव्या अनिल को और सताने के मूड में थी.
"परसो तो दिया था?"
"हां, वो मैने बना लिया है"
"दिखाओ" अब अनिल चिढ़ रहा था. दिव्या ने अपनी कॉपी दिखाई. अनिल ने बिना कॉपी पर देखे ही कहा "ये कैसे बनाई हो, मैने ऐसे थोड़े ही बतायाथा. तुम्हारा पढ़ाई लिखाई में बिल्कुल ध्यान नही लगता. चुप चाप यहाँ झुक कर खड़ी हो जाओ"
"पर सर ये तो आपने लिखा था, मैने इसके बाद वाले से बनाया है" दिव्या ने मुश्कूराते हुए कहा, उसकी आँखों में शरारत भरी थी.
"मुझसे ज़बान लड़ती है. बदतमीज़! जो कहता हूँ चुप चाप करो" अनिल पूरी तरह चिढ़ चुका था. दिव्या भी अनिल की पूरी खिचाई कर चुकी थी. अब उसे भी अनिल का मज़ा लेना था. वो चुप चाप बेड से उतर झुक कर खड़ी हो गयी. अनिल फिर उसकी गांद पर लंड को दबा खड़ा हो गया और कमीज़ केउपर से उसके चुचियों को मसल्ने लगा. जिस चीज़ के लिए अनिल पिछले दो महीनो से तड़प रहा था, वो हाथ में आने के बाद अब अनिल के लिए खुद पर काबू रखना मुश्किल हो रहा था. उसने दिव्या की गांद पर अपने लंड का दबाव और उसकी चुचि पर अपने हाथ का दवाब बढ़ाया. जोश और बढ़ा तो वो दिव्या के कमीज़ के बटन खोलने लगा.
"मा आ गयी तो?" दिव्या ने पूछा
"दरवाज़ा बंद है" अनिल ने अस्वासन देना चाहा
"अगर मा ने पूछा दरवाज़ा क्यूँ बंद है?"
"बोल देना कि हवा पढ़ाई में डिस्टर्ब कर रही थी"
दिव्या के कमीज़ के सारे बटन खुल चुके थे और अनिल के हाथ कमीज़ में घुस कर रसगुल्ले की तरह दिव्या की दोनो चुचियों का रस निचोड़ने लगे. दिव्या के मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी. अनिल का जोश और बढ़ा और उसने दिव्या की गांद पर ज़ोर का झटका दिया. दिव्या फिसल कर बेड पर गिर गयी. अनिल उसके उपर गिरा और उसकी चुचियों को भींचते हुए उसकी गांद पर अपना लंड मसल्ने लगा. वो अपना होश पूरी तरह से खो चुकाथा, उसे कोई परवाह नही थी कि कोई आ जाएगा. उसे तो ये भी ध्यान नही था कि उसने अभी तक पॅंट पहना हुआ है. वो तो बस दिव्या के दोनो संतरों से रस को निचोड़ते हुए कुत्ते की तरह उसकी कोमल गांद पर अपना लोहे जैसा लंड मसले जा रहा था. जब वो आनंद की शिखर पर पहुँचा तो उसे ध्यान आया कि उसका लंड अभी भी पॅंट के अंदर है. उसने जल्दी से पॅंट की ज़िप को खोल कर लंड बाहर निकालना चाहा, पर बहुत देर हो चुकी थी. विशफोट उसकी पॅंट के अंदर ही हुआ. क्या हुआ जो उसने कपड़े के उपर से गांद पर ही लंड मसला था, जिश्म तो लड़की का था. 80% सेक्स मस्तिष्क में होता है. ये एहसास कि वो किसी लड़की के बदन पर है ही उसके आनंद को बढ़ाने के लिए प्रयाप्त था. उसके लंड से प्रेमरस की जो मात्रा आज बही वो पहले कभी नही बही थी. कुच्छ ही देर में उसके अंडरवेर को गीला करती हुई प्रेमरस रिस्ते हुए पॅंट पर आ पहुँचा. उसके लंड के पास एक बड़े क्षेत्र में उसकी पॅंट पर गीलेपन का निशान था और उसके प्रेमरस की खुसबू उसके पॅंट से उड़ते हुए सीधे दिव्या की नाक में जा रही थी. झाड़ जाने के बाद वो होश में आ चुका था, वो दिव्या के उपर से उठ दरवाजे को खोल फिर से अपने कुर्शी पर बैठ चुका था, दिव्या अपनी कमीज़ को ठीक कर सभ्य विद्यार्थी की तरह अपने स्थान पर पूर्ववत विराजमान थी. दिव्या अब भी नशे में थी और अनिल के प्रेमरस की खुसबू उसके नशे को कम नही होने दे रही थी. ये पहली बार था जब उसने ऐसी मदहोश कर देने वाली खुसबू को सूँघा था. उसके मुँह और चूत दोनो में पानी आ रहा था. जब अनिल के जाने का समय आया तो अनिल बड़ी मुस्किल में था. कहीं दिव्या की मम्मी ने उसकी पॅंट पर उस दाग को देख लिया तो मुसीबत हो जाएगी. वो अपने शर्ट को पॅंट से बाहर निकाल कर उससे धक लेने की बात से भी संतुष्ट नही था. हमेशा उसका शर्ट उसके पंत के अंदर होता है. अगर आज बाहर होगा तो दिव्या की मम्मी को संदेह हो जाएगा. उसने दिव्या से कहा "दिव्या तुम पहले निकलो और देखो तुम्हारी मम्मी नीचे ड्रॉयिंग रूम में तो नही है?" दिव्या ने अनिल को चिढ़ाते हुए काफ़ी माशूमियत से पूचछा "क्यूँ?". अनिल ने पॅंट की तरफ इशारा करते हुए कहा "इस पोज़िशन में उनके सामने कैसे जाउ?" दिव्या अपनी आँखों में शरारत भरे दबी आवाज़ में हँसने लगी. दिव्या की मा किचन में थी. दिव्या नीचे उतर अनिल को इशारे से नीचे आने को कहा. नीचे उतर अनिल जैसे ही दरवाजे तक पहुँचा पीछे से दिव्या की मा किचन से निकल कर बोली "सर जी, पढ़ाई ख़तम हो गयी?"
अनिल की तो जैसे जान ही निकल गयी. उसने बिना पीछे मुड़े हुए कहा - "जी आंटी जी"
"अब कैसी पढ़ाई कर रही है. कुच्छ सुधार हुआ है या अभी भी उसे मंन नही लगता. मैं तो कभी इसे पढ़ते देखती ही नही हूँ. दिन भर टीवी के सामने बैठी रहती है" जितना अनिल को वहाँ से भागने की जल्दी थी उतनी ही आंटी जी को बात करने का मंन था.
"पहले से तो इंप्रूव हुई है. कुच्छ दिनो में लाइन पर आ जाएगी" अनिल ने बात ख़त्म करने के अंदाज़ में कहा.
"नाश्ता करके जाइए" दिव्या की मा ने दूसरा पाश फेंका.
"नही आंटी जी, फिर कभी. कल कॉलेज में असाइनमेंट जमा करना है. बहुत काम बांकी है. मुझे हॉस्टिल जल्दी पहुँच काम करना है"
"ठीक है. प्रणाम"
"प्रणाम आंटी" बिना पीछे घूमे ही इतना कह कर वो वहाँ से ऐसे भागा जैसे पीछे कोई कुत्ता दौड़ रहा हो. अनिल के निकल जाने के बाद सीढ़ी के पास साँस रोके खड़ी दिव्या के जान में जान आई.
अगले दिन की सज़ा में अनिल कुच्छ और आगे बढ़ा. बेड पर हाथ रख झुक कर खड़ी दिव्या की सलवार का नाडा उसने खीच कर खोल दिया. उसकी सलवार खुल कर नीचे गिर गयी. "दरवाज़ा खुला है" दिव्या ने कहा. "रहने दो, तुम्हारी मम्मी चाइ देने के बाद कभी उपर नही आती" अनिल उसकी चिकनी गांद को सहला रहा था. कुच्छ ही देर में दिव्या की पॅंटी भी नीचे सरक चुकी थी और अनिल की उंगली उसकी गीली चूत के आस पास भ्रमण कर रही थी. पहली बार अपनी नंगी चूत पर किसी का स्पर्श पा दिव्या बहुत उत्तेजित थी. उसकी चूत से लार की धारा और उसके मुँह से सिसकारियाँ फूट रही थी. अनिल ने अपनी पॅंट की ज़िप खोल अपने खड़े लंड को बाहर निकाला और उसकी गीली चूत के दरवाजे पर रगड़ने लगा. आज पहली बार अनिल के लंड ने चूत और दिव्या के चूत ने लंड का स्पर्श किया था. दोनो इस स्पर्श और उससे कहीं अधिक इस विचार से कि लंड चूत के अंदर घुसने वाला है, अत्यधिक उत्तेजित थे. तभी सीढ़ियों पर कदमो की आहट सुनाई दी. दिव्या अपनी सलवार समेत झट से बेड पर जा बैठी. अनिल भी तुरंत कुर्शी पर बैठ गया. दिव्या झुक कर कॉपी पर कुच्छ कुच्छ लिखने लगी. ये सारी घटना इतनी जल्दी हुई कि ना तो दिव्या को ठीक से अपनी सलवार ही समेटने का वक़्त मिला और ना ही अनिल को अपने हथियार को पॅंट के अंदर करने का. दिव्या पीछे से पूरी तरह नंगी थी. पूरी सलवार को सामने की तरफ समेट कर उसने अपनी कमीज़ से धक रखा था और कुच्छ इस तरह से झुकी हुई थी कि सामने से पता ना चले. पर उसकी जान अटकी हुई थी. अगर मा पीछे गयी तो क्या होगा. अनिल ने एक किताब को अपनी गोद में रख उससे अपने लंड को धक रखा था.
"दिव्या बेटी. बक्से की चाभी किधर रखी है? मुझे मिल नही रही"
"वहीं टीवी वाले टेबल पर पड़ी होगी!"
"नहीं है वहाँ, मैने सब जगह ढूँढ लिया. बहुत ज़रूरी है. कुच्छ देर के लिए नीचे चल के खोज दे"
दिव्या और अनिल दोनो की जान निकल गयी. दिव्या के माथे पर पसीना आने लगा. "देखो ना वहीं कहीं पड़ी होगी, पढ़ाई छ्चोड़ कर कैसे आउ?"
दिव्या की मा ने अनिल की तरफ देखते हुए कहा "सर जी, थोड़ी देर के लिए जाने दीजिए. बहुत ज़रूरी है." अनिल के मुँह से तो आवाज़ ही नही निकल रही थी. उसे तो लगा कि आज सारा भांडा फूट जाएगा.
"ठीक है, तुम नीचे जाओ. मैं इस सवाल को ख़तम करके आती हूँ" दिव्या ने स्थिति को संभाल लिया.
"जल्दी आ" मा नीचे चली गयी.
दोनो ने राहत की साँस ली. दिव्या ने उठ कर अपनी सलवार को ठीक किया और अनिल ने कद्दू से मिर्च हो चुके लंड को पॅंट के अंदर किया.
दिव्या के वापस आने पर अनिल ने उसे फिर से सज़ा देनी चाही, पर वो नही मानी. "मा आ जाएगी"
अगले दिन अनिल के काफ़ी ज़ोर देने पर दिव्या सज़ा के लिए तैयार तो हुई पर उसने शर्त लगा दी कि कपड़े मत उतरिएगा. अनिल को कपड़ो के उपर से ही दिव्या की चुचि गांद और चूत को मसल कर संतोष करना पड़ता था. अपने पुराने अनुभव के कारण वो पॅंट के अंदर लंड झार नही सकता था और दिव्या उसे लंड बाहर निकालने नही देती थी. अगले कुच्छ दिनो तक अनिल को बस उपरी मज़ा मिला. गहराई में उतरने की उसकी लालसा बस लालसा बन कर ही रही. पर जो भी मिल रहा था बहुत था. वो तो अपने कॉलेज के एग्ज़ॅमिनेशन के समय भी दिव्या को ट्यूशन पढ़ाने आता, उसे सज़ा देने आता. अब पढ़ाई में पढ़ाई से अधिक महत्वपुर्णा पनिशमेंट हो गया था. कहते हैं ना 'स्पेर दा रोड, स्पायिल दा चाइल्ड'. अनिल अपने रोड को बिल्कुल स्पेर नही करता था. दिव्या को हर ग़लती पर पनिशमेंट में रोड मिलता तो सही पर अवॉर्ड में. ट्यूशन का सत्तर फीसदी समय दिव्या केपनिशमेंट में जाता. दिव्या का गणित सुधरा या नही ये तो उपर वाला जाने, पर उसकी चुचि का आकार ज़रूर सुधर गया था.
आज दिव्या घर में अकेली थी. उसके मा और बाबूजी दोनो गाओं गये थे. दिव्या ने पढ़ाई का बहाना कर मना कर दिया था. वास्तव में उसे बहुत ज़िद करनी पड़ी थी. उसकी मा तो गुस्सा हो गयी थी पर बाबूजी पढ़ाई के प्रति दिव्या के समर्पण से खुस थे. अनिल के आने पर दिव्या ने कहा "आज नीचे ही पढ़ा दीजिए"
"क्यूँ?"
"घर में कोई नही है. उपर गये और कोई घर में घुस आया तो?"
दिव्या के घर में अकेली होने के बात से ही अनिल का लंड तमतमा गया. उसका पॅंट फूलने लगा.
"दरवाजा बंद करके उपर चलो"
"कहीं कोई आया तो पता कैसे चलेगा?"
"आने दो, पढ़ाई में कोई डिस्टर्बेन्स नही होनी चाहिए. तुम्हारा ध्यान पढ़ाई में बिल्कुल नही रहता. तुम्हे पढ़ाई से अधिक लोगों की फिक्र है"
दिव्या को अनिल के इरादे की भनक लगने लगी थी. उसके निपल भी तन गये, धड़कने और साँसे तेज़ हो गयी और चूत में हलचल होने लगी. उसने दरवाजे को बंद किया और उपर चढ़ने लगी. अनिल उसके पीछे पीछे पॅंट के अंदर अपने लंड को अड्जस्ट करता हुआ चढ़ने लगा. उपर कुर्शी पर बैठते ही अनिल ने कहा
"कल का होमवर्क बनाई हो"
दिव्या ने बनाया ही कब था जो आज बनाती. "इतना पनिशमेंट के बाद भी तुम सुधरी नही हो. मुझे तुम्हारा पनिशमेंट बढ़ाना पड़ेगा. चलो अपना कमीज़ उतारो"
"क्या!"
"जो कहता हूँ चुप चाप करो, बिना इसके तुम नही सुधरने वाली हो" वो दिव्या की कमीज़ को पकड़ उपर उठाने लगा.
"कोई आ जाएगा"
तो दोस्तो दिव्या का ट्यूशन पढ़ाई का या च ुदाई का तरक्की पर है आगे क्या हुआ जानने के लिए इस कहानी का अंतिम भाग ज़रूर पढ़े आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः......
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ट्यूशन पढ़ाई का या---- पार्ट--2
गतान्क से आगे........
"कल जो फिज़िक्स में होमवर्क दिया था वो तुमने किया है?" अनिल फिर से उसके चुचियों को मसल्ने और अपने शख्त लंड पर उसकी कोमल गांद कामज़ा लेने के लिए बहाने खोज रहा था.
"पर कल तो आपने फिज़िक्स में कोई काम नही दिया था" दिव्या अनिल को और सताने के मूड में थी.
"परसो तो दिया था?"
"हां, वो मैने बना लिया है"
"दिखाओ" अब अनिल चिढ़ रहा था. दिव्या ने अपनी कॉपी दिखाई. अनिल ने बिना कॉपी पर देखे ही कहा "ये कैसे बनाई हो, मैने ऐसे थोड़े ही बतायाथा. तुम्हारा पढ़ाई लिखाई में बिल्कुल ध्यान नही लगता. चुप चाप यहाँ झुक कर खड़ी हो जाओ"
"पर सर ये तो आपने लिखा था, मैने इसके बाद वाले से बनाया है" दिव्या ने मुश्कूराते हुए कहा, उसकी आँखों में शरारत भरी थी.
"मुझसे ज़बान लड़ती है. बदतमीज़! जो कहता हूँ चुप चाप करो" अनिल पूरी तरह चिढ़ चुका था. दिव्या भी अनिल की पूरी खिचाई कर चुकी थी. अब उसे भी अनिल का मज़ा लेना था. वो चुप चाप बेड से उतर झुक कर खड़ी हो गयी. अनिल फिर उसकी गांद पर लंड को दबा खड़ा हो गया और कमीज़ केउपर से उसके चुचियों को मसल्ने लगा. जिस चीज़ के लिए अनिल पिछले दो महीनो से तड़प रहा था, वो हाथ में आने के बाद अब अनिल के लिए खुद पर काबू रखना मुश्किल हो रहा था. उसने दिव्या की गांद पर अपने लंड का दबाव और उसकी चुचि पर अपने हाथ का दवाब बढ़ाया. जोश और बढ़ा तो वो दिव्या के कमीज़ के बटन खोलने लगा.
"मा आ गयी तो?" दिव्या ने पूछा
"दरवाज़ा बंद है" अनिल ने अस्वासन देना चाहा
"अगर मा ने पूछा दरवाज़ा क्यूँ बंद है?"
"बोल देना कि हवा पढ़ाई में डिस्टर्ब कर रही थी"
दिव्या के कमीज़ के सारे बटन खुल चुके थे और अनिल के हाथ कमीज़ में घुस कर रसगुल्ले की तरह दिव्या की दोनो चुचियों का रस निचोड़ने लगे. दिव्या के मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी. अनिल का जोश और बढ़ा और उसने दिव्या की गांद पर ज़ोर का झटका दिया. दिव्या फिसल कर बेड पर गिर गयी. अनिल उसके उपर गिरा और उसकी चुचियों को भींचते हुए उसकी गांद पर अपना लंड मसल्ने लगा. वो अपना होश पूरी तरह से खो चुकाथा, उसे कोई परवाह नही थी कि कोई आ जाएगा. उसे तो ये भी ध्यान नही था कि उसने अभी तक पॅंट पहना हुआ है. वो तो बस दिव्या के दोनो संतरों से रस को निचोड़ते हुए कुत्ते की तरह उसकी कोमल गांद पर अपना लोहे जैसा लंड मसले जा रहा था. जब वो आनंद की शिखर पर पहुँचा तो उसे ध्यान आया कि उसका लंड अभी भी पॅंट के अंदर है. उसने जल्दी से पॅंट की ज़िप को खोल कर लंड बाहर निकालना चाहा, पर बहुत देर हो चुकी थी. विशफोट उसकी पॅंट के अंदर ही हुआ. क्या हुआ जो उसने कपड़े के उपर से गांद पर ही लंड मसला था, जिश्म तो लड़की का था. 80% सेक्स मस्तिष्क में होता है. ये एहसास कि वो किसी लड़की के बदन पर है ही उसके आनंद को बढ़ाने के लिए प्रयाप्त था. उसके लंड से प्रेमरस की जो मात्रा आज बही वो पहले कभी नही बही थी. कुच्छ ही देर में उसके अंडरवेर को गीला करती हुई प्रेमरस रिस्ते हुए पॅंट पर आ पहुँचा. उसके लंड के पास एक बड़े क्षेत्र में उसकी पॅंट पर गीलेपन का निशान था और उसके प्रेमरस की खुसबू उसके पॅंट से उड़ते हुए सीधे दिव्या की नाक में जा रही थी. झाड़ जाने के बाद वो होश में आ चुका था, वो दिव्या के उपर से उठ दरवाजे को खोल फिर से अपने कुर्शी पर बैठ चुका था, दिव्या अपनी कमीज़ को ठीक कर सभ्य विद्यार्थी की तरह अपने स्थान पर पूर्ववत विराजमान थी. दिव्या अब भी नशे में थी और अनिल के प्रेमरस की खुसबू उसके नशे को कम नही होने दे रही थी. ये पहली बार था जब उसने ऐसी मदहोश कर देने वाली खुसबू को सूँघा था. उसके मुँह और चूत दोनो में पानी आ रहा था. जब अनिल के जाने का समय आया तो अनिल बड़ी मुस्किल में था. कहीं दिव्या की मम्मी ने उसकी पॅंट पर उस दाग को देख लिया तो मुसीबत हो जाएगी. वो अपने शर्ट को पॅंट से बाहर निकाल कर उससे धक लेने की बात से भी संतुष्ट नही था. हमेशा उसका शर्ट उसके पंत के अंदर होता है. अगर आज बाहर होगा तो दिव्या की मम्मी को संदेह हो जाएगा. उसने दिव्या से कहा "दिव्या तुम पहले निकलो और देखो तुम्हारी मम्मी नीचे ड्रॉयिंग रूम में तो नही है?" दिव्या ने अनिल को चिढ़ाते हुए काफ़ी माशूमियत से पूचछा "क्यूँ?". अनिल ने पॅंट की तरफ इशारा करते हुए कहा "इस पोज़िशन में उनके सामने कैसे जाउ?" दिव्या अपनी आँखों में शरारत भरे दबी आवाज़ में हँसने लगी. दिव्या की मा किचन में थी. दिव्या नीचे उतर अनिल को इशारे से नीचे आने को कहा. नीचे उतर अनिल जैसे ही दरवाजे तक पहुँचा पीछे से दिव्या की मा किचन से निकल कर बोली "सर जी, पढ़ाई ख़तम हो गयी?"
अनिल की तो जैसे जान ही निकल गयी. उसने बिना पीछे मुड़े हुए कहा - "जी आंटी जी"
"अब कैसी पढ़ाई कर रही है. कुच्छ सुधार हुआ है या अभी भी उसे मंन नही लगता. मैं तो कभी इसे पढ़ते देखती ही नही हूँ. दिन भर टीवी के सामने बैठी रहती है" जितना अनिल को वहाँ से भागने की जल्दी थी उतनी ही आंटी जी को बात करने का मंन था.
"पहले से तो इंप्रूव हुई है. कुच्छ दिनो में लाइन पर आ जाएगी" अनिल ने बात ख़त्म करने के अंदाज़ में कहा.
"नाश्ता करके जाइए" दिव्या की मा ने दूसरा पाश फेंका.
"नही आंटी जी, फिर कभी. कल कॉलेज में असाइनमेंट जमा करना है. बहुत काम बांकी है. मुझे हॉस्टिल जल्दी पहुँच काम करना है"
"ठीक है. प्रणाम"
"प्रणाम आंटी" बिना पीछे घूमे ही इतना कह कर वो वहाँ से ऐसे भागा जैसे पीछे कोई कुत्ता दौड़ रहा हो. अनिल के निकल जाने के बाद सीढ़ी के पास साँस रोके खड़ी दिव्या के जान में जान आई.
अगले दिन की सज़ा में अनिल कुच्छ और आगे बढ़ा. बेड पर हाथ रख झुक कर खड़ी दिव्या की सलवार का नाडा उसने खीच कर खोल दिया. उसकी सलवार खुल कर नीचे गिर गयी. "दरवाज़ा खुला है" दिव्या ने कहा. "रहने दो, तुम्हारी मम्मी चाइ देने के बाद कभी उपर नही आती" अनिल उसकी चिकनी गांद को सहला रहा था. कुच्छ ही देर में दिव्या की पॅंटी भी नीचे सरक चुकी थी और अनिल की उंगली उसकी गीली चूत के आस पास भ्रमण कर रही थी. पहली बार अपनी नंगी चूत पर किसी का स्पर्श पा दिव्या बहुत उत्तेजित थी. उसकी चूत से लार की धारा और उसके मुँह से सिसकारियाँ फूट रही थी. अनिल ने अपनी पॅंट की ज़िप खोल अपने खड़े लंड को बाहर निकाला और उसकी गीली चूत के दरवाजे पर रगड़ने लगा. आज पहली बार अनिल के लंड ने चूत और दिव्या के चूत ने लंड का स्पर्श किया था. दोनो इस स्पर्श और उससे कहीं अधिक इस विचार से कि लंड चूत के अंदर घुसने वाला है, अत्यधिक उत्तेजित थे. तभी सीढ़ियों पर कदमो की आहट सुनाई दी. दिव्या अपनी सलवार समेत झट से बेड पर जा बैठी. अनिल भी तुरंत कुर्शी पर बैठ गया. दिव्या झुक कर कॉपी पर कुच्छ कुच्छ लिखने लगी. ये सारी घटना इतनी जल्दी हुई कि ना तो दिव्या को ठीक से अपनी सलवार ही समेटने का वक़्त मिला और ना ही अनिल को अपने हथियार को पॅंट के अंदर करने का. दिव्या पीछे से पूरी तरह नंगी थी. पूरी सलवार को सामने की तरफ समेट कर उसने अपनी कमीज़ से धक रखा था और कुच्छ इस तरह से झुकी हुई थी कि सामने से पता ना चले. पर उसकी जान अटकी हुई थी. अगर मा पीछे गयी तो क्या होगा. अनिल ने एक किताब को अपनी गोद में रख उससे अपने लंड को धक रखा था.
"दिव्या बेटी. बक्से की चाभी किधर रखी है? मुझे मिल नही रही"
"वहीं टीवी वाले टेबल पर पड़ी होगी!"
"नहीं है वहाँ, मैने सब जगह ढूँढ लिया. बहुत ज़रूरी है. कुच्छ देर के लिए नीचे चल के खोज दे"
दिव्या और अनिल दोनो की जान निकल गयी. दिव्या के माथे पर पसीना आने लगा. "देखो ना वहीं कहीं पड़ी होगी, पढ़ाई छ्चोड़ कर कैसे आउ?"
दिव्या की मा ने अनिल की तरफ देखते हुए कहा "सर जी, थोड़ी देर के लिए जाने दीजिए. बहुत ज़रूरी है." अनिल के मुँह से तो आवाज़ ही नही निकल रही थी. उसे तो लगा कि आज सारा भांडा फूट जाएगा.
"ठीक है, तुम नीचे जाओ. मैं इस सवाल को ख़तम करके आती हूँ" दिव्या ने स्थिति को संभाल लिया.
"जल्दी आ" मा नीचे चली गयी.
दोनो ने राहत की साँस ली. दिव्या ने उठ कर अपनी सलवार को ठीक किया और अनिल ने कद्दू से मिर्च हो चुके लंड को पॅंट के अंदर किया.
दिव्या के वापस आने पर अनिल ने उसे फिर से सज़ा देनी चाही, पर वो नही मानी. "मा आ जाएगी"
अगले दिन अनिल के काफ़ी ज़ोर देने पर दिव्या सज़ा के लिए तैयार तो हुई पर उसने शर्त लगा दी कि कपड़े मत उतरिएगा. अनिल को कपड़ो के उपर से ही दिव्या की चुचि गांद और चूत को मसल कर संतोष करना पड़ता था. अपने पुराने अनुभव के कारण वो पॅंट के अंदर लंड झार नही सकता था और दिव्या उसे लंड बाहर निकालने नही देती थी. अगले कुच्छ दिनो तक अनिल को बस उपरी मज़ा मिला. गहराई में उतरने की उसकी लालसा बस लालसा बन कर ही रही. पर जो भी मिल रहा था बहुत था. वो तो अपने कॉलेज के एग्ज़ॅमिनेशन के समय भी दिव्या को ट्यूशन पढ़ाने आता, उसे सज़ा देने आता. अब पढ़ाई में पढ़ाई से अधिक महत्वपुर्णा पनिशमेंट हो गया था. कहते हैं ना 'स्पेर दा रोड, स्पायिल दा चाइल्ड'. अनिल अपने रोड को बिल्कुल स्पेर नही करता था. दिव्या को हर ग़लती पर पनिशमेंट में रोड मिलता तो सही पर अवॉर्ड में. ट्यूशन का सत्तर फीसदी समय दिव्या केपनिशमेंट में जाता. दिव्या का गणित सुधरा या नही ये तो उपर वाला जाने, पर उसकी चुचि का आकार ज़रूर सुधर गया था.
आज दिव्या घर में अकेली थी. उसके मा और बाबूजी दोनो गाओं गये थे. दिव्या ने पढ़ाई का बहाना कर मना कर दिया था. वास्तव में उसे बहुत ज़िद करनी पड़ी थी. उसकी मा तो गुस्सा हो गयी थी पर बाबूजी पढ़ाई के प्रति दिव्या के समर्पण से खुस थे. अनिल के आने पर दिव्या ने कहा "आज नीचे ही पढ़ा दीजिए"
"क्यूँ?"
"घर में कोई नही है. उपर गये और कोई घर में घुस आया तो?"
दिव्या के घर में अकेली होने के बात से ही अनिल का लंड तमतमा गया. उसका पॅंट फूलने लगा.
"दरवाजा बंद करके उपर चलो"
"कहीं कोई आया तो पता कैसे चलेगा?"
"आने दो, पढ़ाई में कोई डिस्टर्बेन्स नही होनी चाहिए. तुम्हारा ध्यान पढ़ाई में बिल्कुल नही रहता. तुम्हे पढ़ाई से अधिक लोगों की फिक्र है"
दिव्या को अनिल के इरादे की भनक लगने लगी थी. उसके निपल भी तन गये, धड़कने और साँसे तेज़ हो गयी और चूत में हलचल होने लगी. उसने दरवाजे को बंद किया और उपर चढ़ने लगी. अनिल उसके पीछे पीछे पॅंट के अंदर अपने लंड को अड्जस्ट करता हुआ चढ़ने लगा. उपर कुर्शी पर बैठते ही अनिल ने कहा
"कल का होमवर्क बनाई हो"
दिव्या ने बनाया ही कब था जो आज बनाती. "इतना पनिशमेंट के बाद भी तुम सुधरी नही हो. मुझे तुम्हारा पनिशमेंट बढ़ाना पड़ेगा. चलो अपना कमीज़ उतारो"
"क्या!"
"जो कहता हूँ चुप चाप करो, बिना इसके तुम नही सुधरने वाली हो" वो दिव्या की कमीज़ को पकड़ उपर उठाने लगा.
"कोई आ जाएगा"
तो दोस्तो दिव्या का ट्यूशन पढ़ाई का या च
क्रमशः......
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