Fentency
जुए की लत--1
मनीष ने जब से होश संभाला था वो जुआ खेलने में लग गया था ..उसके गाँव के दोस्तों ने उसकी जवानी के शुरू के साल जुआ सिखाने और खिलाने में ही बर्बाद कर दिए , उसका मन किसी और काम में लगता ही नहीं था ..उसके पिता के पास एक आलिशान कोठी और बहुत जमीन थी . और उसकी देखभाल और जुताई के लिए उन्होंने दुसरे लोग रखे हुए थे क्योंकि उनका खुद का बेटा तो हमेशा गलत संगत में ही रहता था और उसके जिम्मे कोई भी काम छोड़ना घाटे का सौदा था ..
मनीष के पिता की उम्र हो चुकी थी ..वो हमेशा चिंता में रहते थे की उनके बाद इतनी जमीन की देखभाल मनीष कैसे करेगा ..तभी एक दिन जैसे ऊपर वाला उनपर मेहरबान हो गया ..उनके खेत की जमीन गाँव की मेन सड़क के पास थी और वहां पर एक हाईवे प्रोजेक्ट शुरू होने की वजह से सरकार ने उनकी जमीन मुंह मांगे दाम पर खरीद ली ..तकरीबन आठ करोड़ रूपए मिले उन्हें मुवावजे के रूप में ..जो उनकी पुश्तों के लिए बहुत थे ..
मनीष के पिताजी शहर जाकर बस गए और ट्रेक्टर पार्ट्स की फेक्ट्री दाल दी और आलिशान बंगले में शान से रहने लगे .
उन्होंने एक अच्छे से घर में मनीष की शादी भी कर दी .
लड़की का नाम था दिव्या ..
जैसा नाम था वैसा ही उसका व्यक्तित्व ..जो उसे एक बार देख ले पल्कें झपकाना भूल जाए ..जैसी वो साऊथ की एक हिरोइन है तापसी पन्नू ..ठीक वैसी ही थी वो भी . साथ ही पड़ी - लिखी , समझदार भी.
शादी के बाद मनीष ने एक - दो हफ्ते तो दिव्या की अच्छे से चुदाई की ..पर जब उसने रात-२ भर घर से गायब रहना शुरू कर दिया उसे जल्दी ही पता चल गया था की उसका पति निकम्मा है ,वो तो बस सरकार से मिले रूपए थे जो उसके पिताजी एक बिज़नस चला रहे थे और उसे ये पता चलते भी देर नहीं लगी की उसे जुए की लत है ..अपने पिता से मिलने वाले पैसों को वो जुए में उड़ा देता था .
दिव्या ने जो सपने संजोय थे अपनी शादी और अपने पति के लिए वो सब चकनाचूर हो गए थे . वो चाहती थी की उसे एक प्यार करने वाला पति मिले, जो उसकी और उसके शरीर की हर इच्छा पूरी करे, पर ऐसा होता दिख नहीं रहा था ..
और अब दो हफ्ते की चुदाई के बाद उसकी चूत को जैसे लंड खाने की भूख सी लग गयी थी ..वैसे ये सच भी है, एक बार जब चुदाई शुरू हो जाती है तो चूत कसमसाती रहती है ..पर दिव्या के नसीब में मनीष की बेरुखी लिखी थी .
दिवाली आने वाली थी , ये समय ऐसा होता है जब हर जुवारी के मन में दिवाली से ज्यादा जुए की ललक होती है ..यूँ तो ऐसे लोग पूरा साल भी जुआ खेलते है, पर दिवाली तो जैसे इनके लिए कोई ओलिंपिक खेलो के आयोजन जैसा होता है, रात दिन अय्याशी चलती है ..और यही हाल मनीष का भी था , दिवाली को अभी 15 दिन बाकी थे जब वो पूरा दिन और रात घर नहीं लोटा, दिव्या ने झिझकते -२ अपने ससुर से बात की , और उन्होंने दिव्या को यकीन दिलाया की जल्दी ही इसका कोई उपाय निकालेंगे ..
अगले दिन जब मनीष जुए में हार कर लुटा-पिटा सा वापिस आया तो उसके पिता ने उसकी खूब खिंचाई की और उसके जिम्मे एक काम सौंप दिया .
उन्होंने उसे कहा की गाँव जाए अपने पुश्तेनी घर की साफ़ सफाई और पुताई करवा दे ..और दिवाली तक वहीँ रहे ..और दिव्या को भी साथ ले जाए ताकि वो भी उनका गाँव देख सके .
मनीष के लिए तो ये जैसे सोने पर सुहागा हो गया ..शहर में रहते हुए उसका लक साथ नहीं दे रहा था और पिछले कुछ दिनों से वो लगातार हार भी रहा था , और उसपर उधार भी काफी चढ़ चूका था , इसलिए वो खुद ही सोच रहा था कुछ दिनों के लिए कहीं गायब हो जाए ताकि उधार मांगने वालो से कुछ समय के लिए छुटकारा मिल सके ..और साथ ही उसे अपने गाँव के दोस्तों से मिलने की भी ख़ुशी थी , जिनके साथ वो बचपन से जुआ खेलता आया था ..और उनके साथ खेलते हुए वो ज्यादातर जीता ही था , इसलिए उसे ये विश्वास था की वो जीते हुए पैसो से अपना उधार भी उतार देगा ..
मकान की मरम्मत और सफाई के लिए उसने पिताजी से पांच लाख रूपए लिए और दिव्या को अपनी स्कोडा कार में लेकर वो गाँव की तरफ चल दिया ..
शहर से उनके गाँव का रास्ता करीब 6 घंटे का था ..और रास्ते में पहाड़ियां और जंगल भी थे और हलकी बारिश ने मौसम को रोमांटिक भी बना दिया था ..दिव्या बहुत खुश थी , आज पहली बार वो इस तरह से अपने पति के साथ अकेले कहीं जा रही थी ..और वो भी पुरे 15 दिनों के लिए ..
उसने जींस की शर्ट और पेंट पहनी हुई थी . जिसमे वो काफी सेक्सी लग रही थी .
मनीष ने उसे प्यार से देखा तो दिव्या बोली : "ऐसे क्यों देख रहे हो ...इरादा क्या है ..''
ये बात उसने जान बूझकर बोली थी ..क्योंकि इरादे तो उसके बेईमान हो रहे थे, इतने सेक्सी मौसम में ..
मनीष : "अभी तक तो नेक ही थे ..पर अब खतरनाक हो रहे हैं ..''
दिव्या : "आन हांन… ..दिख रहा है ...सब ..कितने खतरनाक हो रहे हैं ..''
उसकी तेज निगाहों ने मनीष की पेंट में बन रहे टेंट की तरफ इशारा किया ..
सड़क बिलकुल सुनसान थी ..हलकी बूंदा बंदी हो रही थी ..मनीष ने अपनी कार सड़क से उतार कर जंगल में डाल दी ..और घने पेड़ों के बीचो बीच पहुंचकर कार रोक दी .
आज उसका मन भी वाइल्ड तरीके से चुदाई करने का था .
और दिव्या की तो ये एक फेंतासी थी ..खुले आसमान के नीचे नंगे होकर चुदाई करवाना ..और आज उसका ये सपना सच होता दिख रहा था ..इसलिए जैसे ही मनीष ने कार रोकी, वो उछलकर उसकी गोद में चढ़ गयी और बुरी तरह से उसके होंठों को चूसने लगी .
आनन् फानन में ही दिव्या की शर्ट और ब्रा निकाल फेंकी मनीष ने और उसके स्वर्ण कलश जैसे मुम्मों पर अपने दांतों की तेज धार से टेटू बनाने लगा ..
उसके गोरे जिस्म पर दांतों के लाल निशान चमकने लगे ..और वो जोर-२ से सिस्कारियां लेकर मनीष के सर को अपनी छाती पर दबाने लगी ..
''उम्म्म्म्म्म्म्म येस्स्स्स ....काटो .....खा जाओ .....मुझे ....ये ब्रैस्ट ...तुम्हारे लिए ही हैं ...खाओ ..इन्हें ..काटो ....और तेज ....उम्म्म्म .....अह्ह्ह्ह्ह ......नाआअन्न्न्न ......यहाँ ....नहीं ........''
आवेश में आकर मनीष ने उसके निप्पल को अपने दांतों के बीच फंसा कर इतनी जोर से बाहर की तरफ खींचा जैसे वो उन्हें छाती से निकाल ही लेना चाहता हो ..दिव्या दर्द से बिलबिला उठी ..
''ऐसे भी कोई करता है क्या ..जानवर बन जाते हो तुम तो कभी - २ ....'' उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे ..निप्पल सूजकर कुप्पा हो गया था .
मनीष कुछ कहने ही वाला था की पीछे से पुलिस सायरन की आवाज सुनाई दी और उनकी कार के पीछे एक जीप आकर रुक गयी ..और पलक झपकते ही उसमे से एक इंस्पेक्टर निकल कर उनकी खिड़की के बाहर खड़ा था ..
दोनों ने मन ही मन सोचा की ये कौनसी मुसीबत आ गयी है अब ..सारा मजा खराब कर के रख दिया ..
दिव्या को अपनी छातियाँ छुपाने का भी मौका नहीं मिल पाया था जिसकी वजह से बाहर खड़े इन्स्पेक्टर की आँखे बाहर निकलने जैसी हो गयी थी ..उसने शायद इतनी गोरी और भरी हुई लड़की आज तक नहीं देखि थी ..
उसने खींसे निपोरते हुए मनीष से कहा : "चलो जी ...निकलो बाहर ...''
दिव्या ने जल्दी से साईड में पड़ी हुई शर्ट को उठाया और उससे अपनी छाती ढक ली ..ब्रा और शर्ट को प्रोपर तरीके से पहनने का समय नहीं था ..
मनीष ने गाडी का शीशा नीचे किया और इन्स्पेक्टर से बोला : "क्या बात है सर ...हम पति-पत्नी है .बस जाते-२ रुक गए थे ..''
इन्स्पेक्टर की आवाज में अचानक कठोरता आ गयी : "साले ...चुतिया समझे है के मन्ने ...निकल बाहर ...''
मनीष ने बहस करनी उचित नहीं समझी और बाहर आ गया ..जीप में से निकल कर एक हवालदार भी वहां पहुँच गया ..
इन्स्पेक्टर : "और अपनी छमिया को भी बोल बाहर निकले ..''
मनीष : "सर ...मैंने कहा न वो मेरी पत्नी है ...''
इन्स्पेक्टर : ''पत्नी है तो घर में बैठ कर चूस न इसके मुम्मे ...साले जंगल में मंगल क्यों कर रहा है ..सब समझता हु मैं तुम शहर वालों को ..दुसरे की बीबी के साथ मस्ती करने का अच्छा धंधा चल रहा है आजकल ..गाडी में बिठाकर शहर से बाहर ले आओ ..और ऐसे जंगल में आकर चोदो ..और शाम तक वापिस ..कोई देखेगा भी नहीं, कोई खर्चा भी नहीं ..और मस्ती की मस्ती ...''
मनीष कुछ बोलने ही वाला था की दिव्या बाहर निकल आई, वो गुस्से में थी : "इन्स्पेक्टर साब, मैं इनकी पत्नी हु ..आप कैसी बातें कर रहे हैं ..हमारी अभी कुछ महीने पहले ही शादी हुई है ..हम लोग तो बस आगे इनके गाँव जा रहे थे ..''
वो गुस्से में बाहर तो निकल आई थी पर शर्ट पहनना भूल गयी थी ..वो उसने अभी तक अपने हाथों से पकड़ कर अपने आगे लगायी हुई थी .
इन्स्पेक्टर बड़े गौर से उसके चारों तरफ घूमता हुआ बोला : "अच्छा ...चलो मान लेता हु ..की तुम इसकी पत्नी हो ..कोई सुबूत है तुम्हारे पास ...''
ये सुनकर दोनों एक दुसरे को देखने लगे ...अब इस बात का क्या सबूत दिखाए उसे ..दिव्या के पास एक वोटर कार्ड तो था पर उसमे उसका सरनेम शादी से पहले वाला था ..जिसे देखकर इन्स्पेक्टर कभी भरोसा नहीं करता ...
आखिर मनीष ने कहा : "आप चाहते क्या है ...जल्दी बताइए ..हमें आगे भी जाना है ..'
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मनीष ने जब से होश संभाला था वो जुआ खेलने में लग गया था ..उसके गाँव के दोस्तों ने उसकी जवानी के शुरू के साल जुआ सिखाने और खिलाने में ही बर्बाद कर दिए , उसका मन किसी और काम में लगता ही नहीं था ..उसके पिता के पास एक आलिशान कोठी और बहुत जमीन थी . और उसकी देखभाल और जुताई के लिए उन्होंने दुसरे लोग रखे हुए थे क्योंकि उनका खुद का बेटा तो हमेशा गलत संगत में ही रहता था और उसके जिम्मे कोई भी काम छोड़ना घाटे का सौदा था ..
मनीष के पिता की उम्र हो चुकी थी ..वो हमेशा चिंता में रहते थे की उनके बाद इतनी जमीन की देखभाल मनीष कैसे करेगा ..तभी एक दिन जैसे ऊपर वाला उनपर मेहरबान हो गया ..उनके खेत की जमीन गाँव की मेन सड़क के पास थी और वहां पर एक हाईवे प्रोजेक्ट शुरू होने की वजह से सरकार ने उनकी जमीन मुंह मांगे दाम पर खरीद ली ..तकरीबन आठ करोड़ रूपए मिले उन्हें मुवावजे के रूप में ..जो उनकी पुश्तों के लिए बहुत थे ..
मनीष के पिताजी शहर जाकर बस गए और ट्रेक्टर पार्ट्स की फेक्ट्री दाल दी और आलिशान बंगले में शान से रहने लगे .
उन्होंने एक अच्छे से घर में मनीष की शादी भी कर दी .
लड़की का नाम था दिव्या ..
जैसा नाम था वैसा ही उसका व्यक्तित्व ..जो उसे एक बार देख ले पल्कें झपकाना भूल जाए ..जैसी वो साऊथ की एक हिरोइन है तापसी पन्नू ..ठीक वैसी ही थी वो भी . साथ ही पड़ी - लिखी , समझदार भी.
शादी के बाद मनीष ने एक - दो हफ्ते तो दिव्या की अच्छे से चुदाई की ..पर जब उसने रात-२ भर घर से गायब रहना शुरू कर दिया उसे जल्दी ही पता चल गया था की उसका पति निकम्मा है ,वो तो बस सरकार से मिले रूपए थे जो उसके पिताजी एक बिज़नस चला रहे थे और उसे ये पता चलते भी देर नहीं लगी की उसे जुए की लत है ..अपने पिता से मिलने वाले पैसों को वो जुए में उड़ा देता था .
दिव्या ने जो सपने संजोय थे अपनी शादी और अपने पति के लिए वो सब चकनाचूर हो गए थे . वो चाहती थी की उसे एक प्यार करने वाला पति मिले, जो उसकी और उसके शरीर की हर इच्छा पूरी करे, पर ऐसा होता दिख नहीं रहा था ..
और अब दो हफ्ते की चुदाई के बाद उसकी चूत को जैसे लंड खाने की भूख सी लग गयी थी ..वैसे ये सच भी है, एक बार जब चुदाई शुरू हो जाती है तो चूत कसमसाती रहती है ..पर दिव्या के नसीब में मनीष की बेरुखी लिखी थी .
दिवाली आने वाली थी , ये समय ऐसा होता है जब हर जुवारी के मन में दिवाली से ज्यादा जुए की ललक होती है ..यूँ तो ऐसे लोग पूरा साल भी जुआ खेलते है, पर दिवाली तो जैसे इनके लिए कोई ओलिंपिक खेलो के आयोजन जैसा होता है, रात दिन अय्याशी चलती है ..और यही हाल मनीष का भी था , दिवाली को अभी 15 दिन बाकी थे जब वो पूरा दिन और रात घर नहीं लोटा, दिव्या ने झिझकते -२ अपने ससुर से बात की , और उन्होंने दिव्या को यकीन दिलाया की जल्दी ही इसका कोई उपाय निकालेंगे ..
अगले दिन जब मनीष जुए में हार कर लुटा-पिटा सा वापिस आया तो उसके पिता ने उसकी खूब खिंचाई की और उसके जिम्मे एक काम सौंप दिया .
उन्होंने उसे कहा की गाँव जाए अपने पुश्तेनी घर की साफ़ सफाई और पुताई करवा दे ..और दिवाली तक वहीँ रहे ..और दिव्या को भी साथ ले जाए ताकि वो भी उनका गाँव देख सके .
मनीष के लिए तो ये जैसे सोने पर सुहागा हो गया ..शहर में रहते हुए उसका लक साथ नहीं दे रहा था और पिछले कुछ दिनों से वो लगातार हार भी रहा था , और उसपर उधार भी काफी चढ़ चूका था , इसलिए वो खुद ही सोच रहा था कुछ दिनों के लिए कहीं गायब हो जाए ताकि उधार मांगने वालो से कुछ समय के लिए छुटकारा मिल सके ..और साथ ही उसे अपने गाँव के दोस्तों से मिलने की भी ख़ुशी थी , जिनके साथ वो बचपन से जुआ खेलता आया था ..और उनके साथ खेलते हुए वो ज्यादातर जीता ही था , इसलिए उसे ये विश्वास था की वो जीते हुए पैसो से अपना उधार भी उतार देगा ..
मकान की मरम्मत और सफाई के लिए उसने पिताजी से पांच लाख रूपए लिए और दिव्या को अपनी स्कोडा कार में लेकर वो गाँव की तरफ चल दिया ..
शहर से उनके गाँव का रास्ता करीब 6 घंटे का था ..और रास्ते में पहाड़ियां और जंगल भी थे और हलकी बारिश ने मौसम को रोमांटिक भी बना दिया था ..दिव्या बहुत खुश थी , आज पहली बार वो इस तरह से अपने पति के साथ अकेले कहीं जा रही थी ..और वो भी पुरे 15 दिनों के लिए ..
उसने जींस की शर्ट और पेंट पहनी हुई थी . जिसमे वो काफी सेक्सी लग रही थी .
मनीष ने उसे प्यार से देखा तो दिव्या बोली : "ऐसे क्यों देख रहे हो ...इरादा क्या है ..''
ये बात उसने जान बूझकर बोली थी ..क्योंकि इरादे तो उसके बेईमान हो रहे थे, इतने सेक्सी मौसम में ..
मनीष : "अभी तक तो नेक ही थे ..पर अब खतरनाक हो रहे हैं ..''
दिव्या : "आन हांन… ..दिख रहा है ...सब ..कितने खतरनाक हो रहे हैं ..''
उसकी तेज निगाहों ने मनीष की पेंट में बन रहे टेंट की तरफ इशारा किया ..
सड़क बिलकुल सुनसान थी ..हलकी बूंदा बंदी हो रही थी ..मनीष ने अपनी कार सड़क से उतार कर जंगल में डाल दी ..और घने पेड़ों के बीचो बीच पहुंचकर कार रोक दी .
आज उसका मन भी वाइल्ड तरीके से चुदाई करने का था .
और दिव्या की तो ये एक फेंतासी थी ..खुले आसमान के नीचे नंगे होकर चुदाई करवाना ..और आज उसका ये सपना सच होता दिख रहा था ..इसलिए जैसे ही मनीष ने कार रोकी, वो उछलकर उसकी गोद में चढ़ गयी और बुरी तरह से उसके होंठों को चूसने लगी .
आनन् फानन में ही दिव्या की शर्ट और ब्रा निकाल फेंकी मनीष ने और उसके स्वर्ण कलश जैसे मुम्मों पर अपने दांतों की तेज धार से टेटू बनाने लगा ..
उसके गोरे जिस्म पर दांतों के लाल निशान चमकने लगे ..और वो जोर-२ से सिस्कारियां लेकर मनीष के सर को अपनी छाती पर दबाने लगी ..
''उम्म्म्म्म्म्म्म येस्स्स्स ....काटो .....खा जाओ .....मुझे ....ये ब्रैस्ट ...तुम्हारे लिए ही हैं ...खाओ ..इन्हें ..काटो ....और तेज ....उम्म्म्म .....अह्ह्ह्ह्ह ......नाआअन्न्न्न ......यहाँ ....नहीं ........''
आवेश में आकर मनीष ने उसके निप्पल को अपने दांतों के बीच फंसा कर इतनी जोर से बाहर की तरफ खींचा जैसे वो उन्हें छाती से निकाल ही लेना चाहता हो ..दिव्या दर्द से बिलबिला उठी ..
''ऐसे भी कोई करता है क्या ..जानवर बन जाते हो तुम तो कभी - २ ....'' उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे ..निप्पल सूजकर कुप्पा हो गया था .
मनीष कुछ कहने ही वाला था की पीछे से पुलिस सायरन की आवाज सुनाई दी और उनकी कार के पीछे एक जीप आकर रुक गयी ..और पलक झपकते ही उसमे से एक इंस्पेक्टर निकल कर उनकी खिड़की के बाहर खड़ा था ..
दोनों ने मन ही मन सोचा की ये कौनसी मुसीबत आ गयी है अब ..सारा मजा खराब कर के रख दिया ..
दिव्या को अपनी छातियाँ छुपाने का भी मौका नहीं मिल पाया था जिसकी वजह से बाहर खड़े इन्स्पेक्टर की आँखे बाहर निकलने जैसी हो गयी थी ..उसने शायद इतनी गोरी और भरी हुई लड़की आज तक नहीं देखि थी ..
उसने खींसे निपोरते हुए मनीष से कहा : "चलो जी ...निकलो बाहर ...''
दिव्या ने जल्दी से साईड में पड़ी हुई शर्ट को उठाया और उससे अपनी छाती ढक ली ..ब्रा और शर्ट को प्रोपर तरीके से पहनने का समय नहीं था ..
मनीष ने गाडी का शीशा नीचे किया और इन्स्पेक्टर से बोला : "क्या बात है सर ...हम पति-पत्नी है .बस जाते-२ रुक गए थे ..''
इन्स्पेक्टर की आवाज में अचानक कठोरता आ गयी : "साले ...चुतिया समझे है के मन्ने ...निकल बाहर ...''
मनीष ने बहस करनी उचित नहीं समझी और बाहर आ गया ..जीप में से निकल कर एक हवालदार भी वहां पहुँच गया ..
इन्स्पेक्टर : "और अपनी छमिया को भी बोल बाहर निकले ..''
मनीष : "सर ...मैंने कहा न वो मेरी पत्नी है ...''
इन्स्पेक्टर : ''पत्नी है तो घर में बैठ कर चूस न इसके मुम्मे ...साले जंगल में मंगल क्यों कर रहा है ..सब समझता हु मैं तुम शहर वालों को ..दुसरे की बीबी के साथ मस्ती करने का अच्छा धंधा चल रहा है आजकल ..गाडी में बिठाकर शहर से बाहर ले आओ ..और ऐसे जंगल में आकर चोदो ..और शाम तक वापिस ..कोई देखेगा भी नहीं, कोई खर्चा भी नहीं ..और मस्ती की मस्ती ...''
मनीष कुछ बोलने ही वाला था की दिव्या बाहर निकल आई, वो गुस्से में थी : "इन्स्पेक्टर साब, मैं इनकी पत्नी हु ..आप कैसी बातें कर रहे हैं ..हमारी अभी कुछ महीने पहले ही शादी हुई है ..हम लोग तो बस आगे इनके गाँव जा रहे थे ..''
वो गुस्से में बाहर तो निकल आई थी पर शर्ट पहनना भूल गयी थी ..वो उसने अभी तक अपने हाथों से पकड़ कर अपने आगे लगायी हुई थी .
इन्स्पेक्टर बड़े गौर से उसके चारों तरफ घूमता हुआ बोला : "अच्छा ...चलो मान लेता हु ..की तुम इसकी पत्नी हो ..कोई सुबूत है तुम्हारे पास ...''
ये सुनकर दोनों एक दुसरे को देखने लगे ...अब इस बात का क्या सबूत दिखाए उसे ..दिव्या के पास एक वोटर कार्ड तो था पर उसमे उसका सरनेम शादी से पहले वाला था ..जिसे देखकर इन्स्पेक्टर कभी भरोसा नहीं करता ...
आखिर मनीष ने कहा : "आप चाहते क्या है ...जल्दी बताइए ..हमें आगे भी जाना है ..'
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