Sunday, March 8, 2015

Fentency मर्ज बढता ही गया--2

Fentency

 मर्ज बढता ही गया--2
गतांक से आगे...........................
सुखराम उसके लाल लाल टमाटर जैसे गालों को अपने दांतों से काट रहा था
इन्टने में रश्मि की उतेजना और बढ़ गई वो अपने नाखुनो से सुखराम के सीने
को खरोचें मार रही थी । सुखराम इस खेल का खिलाडी था वो सहर में कई बार
रंडीखानो\ की सैर कर चूका था । अब सुखराम रहमी के पिछवाड़े खड़ा हो गया और
रश्मि की बगल से अपने हाथ daal कर रश्मि के स्तनों को मसलने लगा । रश्मि
की स्वांसों की रफ़्तार तेज होती चली गई । सुखराम अपने उँगलियों के पोरों
से रश्मि की चुचियों को मसल रहा था उसने उनको इनती जोर से मसाला की रश्मि
के स्तन लाल हो गए । उसके स्तनों में दर्द होने लग गया वो सुखराम से अपने
आप को छुड़ाने की कोसिस करने लगी परन्तु वो तो उसके चंगुल में ऐसे फंसी की
उसकी सारे कोसिसे नाकाम हो गई थी ।
सुखराम का सीना रश्मि की कमर से और लंड उसकी गांड से चिपका हुआ था । अपनी
गांड से सुखराम के लंड का आकर का अनुमान लगा के रश्मि का दिल जोर जोर से
धधकने लगा ।उसको लगा सायद आज उसकी खेर नहीं । सुखराम अपने लंड का दबाव
रश्मि की गांड पे दे रहा था । सहर में इतनी रंडिय चोद चोद चूका सुखराम को
आज तक ऐसी गांड मारने को नहीं मिली । सुखराम ने अपना कुरता उतार दिया अब
उसका नंगा सीना रश्मि की नंगी कमर से ऐसे चिपक गया मानो किसी लोहे से
चुम्बक चिपक गई हो । सुखराम ने एक हाथ रश्मि की गांड की गोलाइयो पे फैर
कर देखा इतनी सख्त और चिकनी गांड आज उसने पहली बार देखि थी । सुखराम ने
अपने पायजामे का नाडा खोल दिया और उसका ८ इंच का लंड फनफनाता हुआ बाहर आ
गया इन्द्र की बजाय उसके लंड की मोटाई ज्यादा थी । सुखराम अभी भी रश्मि
के स्तनों को daba रहा था साथ हे उसकी गर्दन और गालों पे चुम्बन जड़ता जा
रहा था निचे से उसका लंड रश्मि की गांड में घुसने का प्रयास कर रहा था
उसका लंड बार बार रश्मि की गांड के छेद से रगड़ खा रहा rha लगातार रगड़न
से सुखराम के लंड से रस की बुँदे टपकने लगी । अब उससे और नहीं रहा जा रहा
था उसने रश्मि को उसी दशा में पलग पे सुला दिया और उसकी कमर को बीच से
ऊपर उठा दिया रश्मि को कुतिया की पोजिसन में लेने के बाद सुखराम ने देखा
की उसकी गांड का छेद एक दम गुलाबी था उसने अपनी एक ऊँगली उसकी गांड के
छेद पे फेरी रश्मि को मानो करंट लग गया हो वो आगे की और खिसकने लगी
परन्तु सुखराम ने उसको कास कर पकड़ लिया और एक हाथ से अपने लंड का सुपाडा
रश्मि की गांड के छेद पे टिका दिया । रश्मि मिन्नत करने लगी की सुखराम
पेचे से मत कर में मर जाउंगी फिर कभी कर लेना आज तो आगे से ही कर ले । पर
सुखराम के सर पे तो मानो भुत सवार था उसको रश्मि की कोई बात सुने नहीं दे
रही थी या सायद वो उसको उन्सुना कर रहा था ।
अपने एक हाथ से मुसल जैसे लंड को पकड़ कर उसने अपना लंड रश्मि की गांड में
सरकाना सुरु किया । सुपाडा थोडा हे अन्दर गया होगा की रश्मि जोर से
चिल्लाने लगी उसकी आँखों से आंसू निकल रहे थे वो रोने लग गई पर सुखराम ने
इसकी कोई परवाह नहीं की वो तो आज रश्मि के बदन का पूरा रस लेना चाहता था
। अब उसने एक धक्का और लगाया उसका लंड आधा अन्दर चला गया रश्मि एक दम
बदहवास हो गई उसका सर चक्कर खाने लगा कुछ देर रुक कर सुखराम ने अपने लंड
को अन्दर बहार करना सुरु किया । धीरे धीरे रश्मि का दर्द कुछ कम होने लगा
अब उसको भी थोडा मजा आने लगा था परन्तु सुखराम का लंड तो अभी आधा हे अंदर
गया था आधा तो बाहर ही था थोड़ी देर की चुदाई करने के बाद सुखराम ने एक
जोरदार झटका दिया और उसका लंड ७ इंच तक रश्मि की गांड में चला गया ।
सुखराम के लंड पे थोडा खून लग गया । रश्मि की गांड इतनी टाईट थी की
सुखराम के लंड की चमड़ी भी छील गई थी । उसको भी दर्द होने लगा था परन्तु
सुखराम ने इसकी और कोई ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लगा रहा जब दर्द
थोडा कम हुआ तो सुखराम ने अपने झटको को बढ़ाना सुरु किया थोड़ी ही देर में
दर्द की जगह मजे ने ले ली । अब तो रश्मि को भी इसका भरपूर मजा आने लगा ।
वो भी अपनी गांड उछाल उछाल कर सुखराम का साथ देने लगी । २० २५ मिनट की
चुदाई के बाद सुखराम रश्मि की गांड में ही ढेर हो गया । आज रश्मि को लगा
जैसे वो स्वर्ग की सैर कर आई हो । सान्त हो के रश्मि पलग पे उलटी हे लेट
गई और सुखराम उसके ऊपर ही पड़ा रहा उसका लंड अभी भी रश्मि की गांड में ही
था वो अब सिकुड़ गया था । और अपने आप रश्मि की गांड से बाहर आ गया था ।

शाम को रश्मि की माँ काम पर से लौटी तो रश्मि की देखते ही उसको लगा रश्मि
के व्यवहार में थोडा बदलाव था । रश्मि की चाल में भी एक लडखडात थी । उसकी
माँ को सारा मामला समझते देर न लगी पर वो बोली कुछ नहीं । रात को जब
रश्मि और उसकी माँ छत पे सो रहे थे तो रश्मि को अपनी पुरे दिन की घटनाएं
याद आने लगी दिन भर का वाकया उसकी आँखों के सामने एक फिल्म की तरह चल रहा
था रह रह कर उसको अपने काम क्रीडा के याद आ रही थी ।
दिन पर दिन बीत रहे थे ये सिलसिला यू ही चलता रहा । रोज इन्द्र आता और
रश्मि के साथ इस खेल को खेलता और जब तक सुखराम गाव में रहा वो भी रश्मि
के साथ अपनी आग को शांत कर लेता । अब तो रश्मि का जिस्म एक कली की जगह
फूल बन गया था । उसकी चोली दिन दिन छोटी होती जा रही थी और अंगिया भी
उसके स्तनों को पूरी तरह ढकने में असफल हो रही थी । उसके तन में गदराई और
ज्यादा बढ़ गई थी । रश्मि की माँ ने सोचा क्यू न अब इस लड़की का विवाह कर
देना चाहिए इस से पहले की और देर हो किसी भी परिवार में इसको ब्याह दे तो
theek होगा वर्ना एक तो गरीबी और ऊपर से इस छोरी की जवानी हमको इस गाव
में रहने न देगी ।
५ साल बाद रश्मि का बाप वापस गाव लौटा अब तक रश्मि २१ साल की हो चुकी थी
। रश्मि की माँ ने उसके बाप को साड़ी बात बता दी उसने कहा रश्मि अब बड़ी
हो गई हे गाव में कही अपनी बदनामी न हो जाए इस से पहले इस छोरी का ब्याह
कर देना चाहिए । रश्मि के बाप ने भी बात मान ली उसे भी लगा की अब ज्यादा
देर करना ठीक ना होगा इसलिए उसने तुरंत ही पास ही के कस्बे में रहने वाले
एक परिवार में रश्मि के रिश्ते की बात चलाइ । लड़का उम्र में रश्मि से ७
साल बड़ा था पर अपने परिवार का इकलोता वारिस । किसी आचे दिन उन दोनों का
विवाह कर दिया गया । पर रश्मि के दिमाग से इन्द्र अभी भी निकल नहीं पा
रहा था अपने से बड़ी उम्र के लड़के से ब्याह कर उसका मन बेचैन हो गया था
वो तो अपने हम उम्र के साथ ही विवाह करना चाहती थी पर गरीबी जब घर के
रास्ते हे आती हे तो साड़ी इछाये खिड़की से बाहर चली जाती हे । मजबूर हो
के उसको ये विवाह करना पड़ा । वो इस चीज का विरोध भी नहीं कर सकी अपने
सपनो को अपने मन में दफना के वो अपने ससुराल चली गई ।
आज रश्मि की सुहागरात है । कमरा फूलो से सजा है । सेज पे बैठी रश्मि अपने
पति का इन्तजार कर रही है । उसके मन में किसी तरह का कोई डर नहीं है जैसा
की एक नई नवेली दुल्हन को अपनी सुहागरात को होता है । क्यू की उसको पता
है की सुहागरात को क्या क्या होता है वो तो बस चुप चाप सेज पे बैठी हुई
है और आने वाले पलों की प्रतीक्षा कर रही है की कब उसके साजन आये और उसकी
भावनाओं को दबा दे । काफी समय बाद करीब आधी रात को उसके पति ने कमरे में
प्रवेश किया । उसका पारी अपनी उम्र के हिसाब से काफी छोटा देखता था और वो
था भी खुबसूरत । रश्मि उसको देखते ही उसकी उम्र को भूल गई और उसकी
खूबसूरती में खो गई । उसने सोचा की वो कितनी भग्य साली है जो उसको इतना
अच्छा और खुबसूरत पति मिला अब उसके मन से इन्द्र के ख्याल बहार निकल गए
थे वो अपने साजन के रूप में खो गई थी ।

सुदेश रश्मि के पास आया । पर रश्मि के मन में कोई घबराहट नहीं थी क्यू की
जिस चीज की अक नै दुल्हन को डर होता हे वो डर तो रश्मि का पहले ही गायब
हो चूका था ।
दुदेश रश्मि के पास बेठ गया उसने रश्मि के कंधे पे अपना हाथ रखा रश्मि ने
कोई हरकत नहीं की अपने दोनों हाथो से रश्मि के दोनों कंधो की पकड़ कर
सुदेश ने रश्मि की अपनी तरफ किया । बिना किसी हिचक के रश्मि उसकी तरफ हो
गई । सुदेश ने रश्मि का घूँघट उठाया उसके रूप लावण्या को देख कर वो भी
मंत्र मुग्ध हो गया । वह एक एक करके रश्मि के गहनों को खोल कर अलग रख रहा
था । jab सुदेश ने सारे गहने उतार दिए तो वो सोचने लगा की वो आज की रात
किस तरह से अपने अरमानो को पूरा करेगा खेर इन्ही खयालो में वो बहता रहा ।
उसने रश्मि की चुनरी को उतार दिया । संग मरमर सी तरासी हुई इस मूर्ति को
देख कर सुदेश और ज्यादा सब्र नहीं कर सका और उसने तुरंत रश्मि को गले लगा
लिया । रश्मि के तन की गर्माहट से मानो उसका सरीर जल न जाए उसने अपने
कपड़ो को उतार फेंका । कभी वो रश्मि के गालो पे चुम्बन लेता तो कभी वो
उसके होठो पे । पर रश्मि को लगा सायद सुदेश में वो कस्माहत नहीं हे जो
इन्द्र और सुखराम में थी । सुदेश लगातार उसको चूम रहा था इस क्रिया की
प्रतिक्रिया भी रश्मि कर रही थी पर बिना किसी ज्यादा उतेजना के मानो वो
सिर्फ सुहागरात की ओपचारिकता को पूरा करना चाहती हो । सुदेश ने रश्मि की
चोली के हूक खोलना सुरु किया थोड़ी ही देर में सुदेश ने रश्मि के स्तनों
को चोली के पाश से मुक्त करा दिया उसकी कठोर गोलाइयों को देख कर सुदेश का
तन कांप रहा था । अब उसने अपने हाथों को रश्मि की बाहों में दाल कर उसकी
ब्रा के हूक को खोला जैसे हे उसने हूक खोला रश्मि के कठोर स्तन एक दम से
बहार आ गए । गोरे गोरे और गुलाबी निप्पल मानो किसी सांचे में ढले स्तनों
को देख कर सुदेश के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया उसने एक हाथ उसके स्तन
से छुआ तो लगा उसको एक झटका सा लग गया हो वो धेरे से उसको सहलाने लगा और
अपनी उँगलियों से उसके निप्पलों के साथ खेल रहा था । अब रश्मि को भी थोडा
थोडा मजा आ रहा था सुदेश के कोमल हाथो का स्पर्श पा के वो भी धन्य हो गई
थी । सुदेश का एक हाथ अभी भी रश्मि की निप्पलो को मासं रहा था और दूसरा
रश्मि की कटावदार कमर पे था । अब सुदेश ने अपने मुह को रश्मि की गोलाइयों
के पास लाया मानो वो उनका रश पीना चाहता हो उसके होठ कांप रहे थे जैसे ही
सुदेश ने रश्मि के निप्पल को मुह में लिया उसके बदन में एक कंपकंपी दौड़
गई । वो पागलो की तरह रश्मि के निप्पलों को चूस रहा था । रश्मि भी बदहवास
सी हो गई थी । इसी बीच रश्मि भी अपना एक हाथ सुदेश के लिंग के पास ले गई
और उसको मसलने लगी । उसका मांसल लिंग जयादा कठोर ना था फिर भी रश्मि उसको
लगातार मसले जा रही थी । धीरे से राशनी ने अपना हाथ सुदेश की अन्दर्वेअर
में डाल दिया और सुके लंड को पकड़ लिया वो उसके लंड को झटके दिए जा रही थी
अब सुदेश की कम्कम्पी कम हो गई थी और एक मजा सा उसके दिमाग में छाने लगा
। उसने रश्मि के हाथो को ऊपर से हे पकड़ लिया और रोक दिया मानो वो झड़ने
वाला हो । उसने रश्मि के हाथ को बाहर निकाल दिया और उसको खड़ा कर दिया ।
रश्मि को इस हालत में देख कर सुदेश के मन में जल्दबाजी आ गई उसने तुरंत
रश्मि के घाघरे का नाडा खेंच लिया । रश्मि का घाघरा झट से जमीन पे गिर
गया । सुदेश ने उसकी पेंटी भी खोल दी । एक दम चिकनी छुट को देख कर सुदेश
एक शरीर में एक बार फिर से कंपकंपी आ गई उसकी चूत पे एक भी बाल नहीं था
उसने अपने हाथ से उसको छु कर देखा उसको लगा जैसे वो उसको बिना चोदे हे झड
जाएगा ।
क्रमशः........................
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