Fentency
जीजा साली का रिश्ता
मैं यानि मुग्धा, कविता और ऋतू पक्की सहेलियां हैं. हम तीनो की कोई बात आपस में किसी से छुपी नही रहती थी. हम तीनो में सबसे सुंदर मैं ही हूँ. पर कविता और ऋतू भी दिखने में सुंदर ही कहलाती हैं. कविता की शादी हुए २ साल हो चुके हैं. उसका एक बेबी बॉय भी है. कविता का पति एक तराशे हुए बदन का मालिक है. वो भी हमसे बहुत हिलमिल गया है. अक्सर ही हम लोग एक दूसरे के यहाँ पार्टी रखते हैं और साथ साथ हँसी मजाक करते हैं.
मेरी इच्छा भी अब होने लगी कि मैं भी अंकित के और करीब आऊँ. मुझे वो अच्छा भी लगता है.
मैंने अपनी और देखा. मेरा जिस्म भी सेक्सी है. मेरे स्तनों का उभार भी सुंदर है. गोलाई लिए सीधे ताने हुए, किसी को भी आकर्षित कर सकते हैं. मेरी कमर पतली है. मेरे चूतड थोड़े से भारी हैं. दोनों चूतडों की फांकें गोल और कसी हुयी हैं. चलते समय मेरी चूतडों की दोनों गोलाईयां ऊपर नीचे लहराती हैं. अंकित मुझे चोरी चोरी तिरछी निगाहों से देखते रहते थे. मैं उन के करीब रहने की कोशिश करने लगी. मैं कविता के यहाँ अधिक जाने लगी. अब अंकित भी मेरे से सेक्सी मजाक करने लगा था.
"हाय अंकित … कविता कहाँ है .."
"किचेन में है …अभी आ जायेगी बैठो .."
अंकित सफ़ेद पजामे और बनियान में था. मुझे देखते ही पता चल गया कि उसने अन्दर अंडरवियर नहीं पहना है. उसके सोये हुए लंड तक का आकार ऊपर से ही नजर आ रहा था.
मैंने जान बूझ के सोफे पर ऐसे झुक के बैठी कि उसे मेरे बूब्स आसानी से दिख जायें. उसने भी मेरे बूब्स को देखने का लालच नहीं छोड़ा. मैंने उसे देखते हुए पकड़ लिया. मैं मुस्कराई. वो शरमा गया …
"जीजू क्या देख रहे थे ….."
"कुछ नहीं …. बस .."
"शरारती हो ….है ना .."
अंकित का लण्ड अब धीरे धीरे खड़ा होने लगा था, मुझे देख कर वो उत्तेजित होने लगा था।
"कौन शरारत कर रहा है …" कविता कमरे में आते हुए बोली
"जीजू … मजाक अच्छी मजाक करते हैं .." मैंने बात बदल दी
" लो चाय हाजिर है …"
"कविता ….. जीजू से कहो ना कभी कभी तो हम पर भी लाइन मार लिया करें .."
"अरे तुम ही लाइन मार लो ना …..जीजू तो तुम्हारे ही है ना …"
"क्यों जीजू ……. क्या इरादा है …"
"अंकित …बताओ भी तो …"
"अंकित…बता भी दो …"
"अरे मौका तो मिलने दो ..... फिर इसका चुम्मा भी लूँगा …और ..और .."
"और क्या क्या करोगे …अब थोडी शर्म करो ...तुम्हारी बीवी पास खड़ी है ...."
"बीवी की पूरी परमिशन है ....... मुग्धा ये कह रहा है तो चुपके से दे ही देना .."
कविता मेरे पास आयी और मेरे कान में धीरे से कहा - "जरा ध्यान दो ...तुम्हारे जीजू का खड़ा हो रहा है .."
मेरी नजर तो पहले ही उसके लंड पर थी. ये सुनकर मैं शरमा गयी. मैं धीरे से बोली -
"धत् ......"
"क्या हुआ. .हमें भी तो बताओ ......."
उसकी बात सुनकर हम सभी हसने लगे. पर जीजू का मजाक मुझे अच्छा लगा …..
आज रात को ऋतू की शादी की होटल में पार्टी थी. हम सभी एक कार में होटल आ गए थे. वहां ऋतू को उसकी सहेलियों ने घेर रखा था. कविता ऋतू को सजाने सँवारने लगी. तभी कविता बोली –"तुम दोनों यहाँ क्या करोगे, नीचे हॉल में पार्टी एन्जॉय करो .."
मुझे तो मौका मिल गया. मैंने आज पार्टी के लिए खास सेक्सी ड्रेस पहनी थी. ये ड्रेस उसे बहुत पसंद थी. ब्रा इस तरह से कसी थी कि मेरे बूब्स बाहर उभरे हुए नज़र आ रहे थे. टाइट जींस और टॉप पहना था. ताकि अंकित मेरे हुस्न का मजा ले सके. उसे आज पटाना भी था. कविता से मुझे हरी झंडी मिल ही चुकी थी.
हम दोनो नीचे हाल में आ गए। थोड़ी देर वहां कुछ खाया पिया और बातें करते रहे। मैं बार बार उसका हाथ पकड़ लेती थी। वो हाथ छुड़ाता भी नहीं था। फ़्लोर पर कुछ जोड़े डांस कर रहे थे।
अंकित बोला- "चलो मुग्धा ! डांस करते हैं…"
"हां … चलो… ना…"
हम दोनो डांस फ़्लोर पर आ गए। मैंने उसकी कमर में हाथ डाला तो वो सिहर गया।
" जीजू…शरमा रहे हो… मेरी कमर में भी हाथ डालो…"
उसने मेरी कमर में हाथ डाल दिया और हम थिरकने लगे। मैं जान बूझ कर अपने बूब्स उसके सामने उछाल रही थी। उसकी नज़रें मेरे बूब्स से हट नहीं रही थी। मुझे लगा कि मेरा जादू चल गया। मैंने उससे टकराना शुरू कर दिया। कभी बूब्स टकरा देती तो कभी उससे चिपक जाती। अब अंकित भी समझने लग गया था। वो भी मुझसे कुछ ज्यादा ही चिपकने लग गया था, इतना कि उसके मोटे लण्ड की चुभन मैं कभी अपने चूतड़ों पर महसूस करती तो कभी अपनी चूत के पास। मैं तो यही चाहती थी कि अंकित मुझसे और खुल जाए। कुछ ही देर में हम थक गए। डांस छोड़ कर हम गार्डन की तरफ़ चले गए। अंकित गार्डन में आकर हरी घास पर लेट गया। उसका लण्ड उभर कर दिखने लगा।
मैं भी उसके पास ही बैठ गई। मैंने उसका सर अपनी जांघों पर रख लिया और प्यार से उसके बालों में अपनी उंग्लियों से सहलाने लगी। वो एकटक मुझे निहार रहा था। मैंने कहा-"क्या देख रहे हो जीजू…मुझे कभी देखा नहीं क्या?"
"हां.. पर ऐसी मुग्धा नहीं ....." वो मुस्कुरा उठा।
"..नहीं जीजू ....... तुम आज कुछ अलग लग रहे हो..."
" तुम कितनी सुन्दर लग रही हो आज.."
"हाय जीजू ...ऐसे मत बोलो ना.."
"सच कह रहा हूं .... तुम्हारा बदन भी आज सेक्सी लग रहा है... मुझसे अब सहा नहीं जा रहा है.."
"जीजू ....... हाय रे .... फ़िर से कहो.." मैं खुशी से बेहाल हुई जा रही थी।
वो मेरी आंखों में झांकने लगा। मैने भी अपने नयन उस से लड़ा दिये। आंखों ही आंखों में हम दोनो डूबने लगे। मैं भी अनजाने में उसके ऊपर झुकती चली गयी. हमारे होंट जाने कब एक दूसरे से चिपक गए. मेरी साँसे गहरी हो चली थी. अंकित मेरे होटों को चूस रहा था. मैं भी अपनी जीभ उसके मुंह में डाल चुकी थी. मेरा हाथ अपने आप ही उसके पेट पर से होता हुआ उसके लंड से टकरा गया. मैंने पेंट के बाहर से ही उसे पकड़ लिया. वो सिहर उठा. उसका लंड उत्तेजित हो कर मोटा और लंबा हो गया. बहुत ही कड़क होकर बाहर जोर लगा रहा था. उसका हाथ मेरी चुन्ची पर पहुँच गया था. एक हाथ से उसने मेरी चुन्ची दबा दी. मैं आनंद से निहाल हो गयी. ज्यादा खुशी इस बात की थी कि अब अंकित मुझे जरूर ही चोद कर रहेगा.
मैंने कहा -"हाय जीजू ....मेरी चुन्ची और मसल दो ...मजा आ रहा है ..." कहते हुए मैंने उसकी पेंट की जिप खोल दी और लंड को पकड़ कर सहलाने और हौले हौले उसे मसलने लगी.
उसके मुंह से सिसकारी निकल पड़ी. बोला -"थोड़ा जोर से पकड़ कर ऊपर नीचे करो ......."
"जीजू ...... कितना मोटा लंड है .... हाय जीजू मुझे कब चोदोगे ......"
"आज ही रात को ..... कविता से पूछ कर ..."
"वो हाँ कह देगी ? ......" मैंने अनजान बनते हुए पूछा. अंकित मुझे देख कर मुस्कराया पर बोला कुछ नहीं.
"अब बस करो नहीं तो मेरा रस निकल जाएगा ......."
"नहीं राजा ..... थोड़ा और मसलने दो ना ...तुम भी चुंचियां दबाव ना .... खींचो ना ....." मैं जोश में बोले जा रही थी.
पर अंकित उठ कर बैठ गया. मैं भी अपने कपड़े ठीक करने लगी.
हम दोनों को समय का पता ही नहीं चला. हॉल में आए तो महफिल रंग में थी. ऋतू और उसका हसबंड सामने वाली सिंहासन पर बैठे थे. कविता हमें देखते हुए मुस्कराई. मैं और अंकित भी मुस्करा दिए.
"रात बहुत हो गयी है ... अब चलना चाहिये......." कविता बोली. ऋतू ने भी जाने को कह दिया.
हम चारों यानि अंकित , मैं , कविता और बेबी बाहर आकर कार में बैठ गए. अंकित गाड़ी चला रहा था. कविता ने पूछा -"पार्टी एन्जॉय की या नहीं .."
"हाँ ...पार्टी अच्छी थी ...."
"क्या अच्छा था .. बताओ तो ..."
"जीजू...वो ही अच्छे लगे ..."
"तो बाजी हाथ में आयी या नहीं ...या मैं कुछ करूँ "
"तुम ही कुछ कर दो ना ....मेरी तो चुदवाने कि बहुत इच्छा हो रही है "
" हाँ मेरी भोली रानी .... आपके चेहरे से सब पता चल रहा है .... कि मेरी मुग्धा को किस चीज़ की जरूरत है .." और हंस पड़ी.
"पर तुम्हारी सहमति तो चाहिए ना ..."
"चलो आज घर चल के देखते हैं ...आज मन भर लेना ..." कविता ने भी अब साफ़ कह दिया.
अंकित का घर आ चुका था. मेरा घर अभी दूर था. और कविता ने रुकने को पहले ही कह दिया था.
हम सभी कमरे में गए. और बेबी को बेड पर सुला दिया. हमने अपने कपड़े बदले. मैंने भी कविता का एक ढीला सा पजामा पहन लिया. अंकित भी पजामा पहन कर आ गया. पजामे में से उसका उत्तेजित लंड की उठान साफ़ दिख रही थी.
कविता ने भी भांप लिया कि मैं क्या देख रही हूँ. वो मुझे देख कर मुस्करा दी. कविता अपनी बेबी के साथ लेट गयी फिर अंकित भी लेट गया. मैं किनारे पर अंकित के साथ लेट गयी. कमरे में धीमी बत्ती जल रही थी. मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था. मुझे पता था आज मेरी चुदाई हो ही जायेगी।
मैंने हिम्मत करके अंकित के पेट पर हाथ रख दिया. उसने मेरी तरफ़ देखा. मैंने हाथ बढा कर उसका लंड पकड़ लिया. वो अन्दर कुछ नहीं पहना था. उसके लंड की मोटाई से मैं सिहर उठी. मैं उसका लंड दबाने लगी. लंड और टन्ना ने लगा. मैंने पजामे के अन्दर हाथ डाल दिया और उसके लंड के ऊपर की चमड़ी को ऊपर चढा दी. उसके मुंह से सिसकारी निकल पड़ी. उसने मेरे बूब पकड़ लिए और धीरे धीरे सहलाने लगा .मेरे टॉप को ऊँचा करके मेरी चूचियां दबाने लगा. मेरे मुंह से आह निकल गयी।
मैंने उसका लंड पकड़े पकड़े ही उसकी तरफ़ पीठ कर ली. अंकित मेरी पीठ से चिपक गया. उसने मेरा पजामा नीचे उतार दिया. मेरी गांड की दरारों में उसका नंगा लंड टकरा गया. मेरे जिस्म में सनसनी फैलने लगी. फिर उसने लंड को और चूतडों में गडा दिया. मेरी चूतड की फांकों को चीरता हुआ उसका लंड मेरी गांड के छेद से टकरा गया. मेरी चूतडों के बीच उसका मोटा लंड फंसा हुआ बहुत आनंद दे रहा था. मुझे उसका पूरा साइज़ और नंगा स्पर्श अच्छा लग रहा था. उसके हाथ मेरी टॉप में घुस पड़े और चुन्ची मसलने लगे. उसके लंड ने जोर मारा तो मेरी गांड की छेद मे थोड़ा सा घुस गया. मैंने अपनी टांग थोड़ी ऊँची कर ली. फिर तो लंड की सुपारी फक से गांड में घुस गयी. मेरे मुंह से आह निकल गयी. उसने अपना लंड थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर दूसरे ही झटके में लंड अन्दर घुसता चला गया .. मैंने अपना मुंह भींच लिया कि कहीं आवाज ना निकल जाए. उसने धीरे धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए. मेरी चूत में उसने उंगली घुसा दी. पर मुझे लगा कि उंगली मर्द की नहीं है. मैंने देखा तो वो कविता थी.
वो मुझे देख कर प्यार से मुस्कराई ."मजा आ रहा है ना ...."
" हाय .... कविता. ... मैं मर जाऊंगी .... मुझे मत देखो ना .."
"अरे शर्म मत कर ..चुदाने के लिए तो तू तड़प रही थी ना ...तेरे जीजू का लंड है ... खाए जा ...और मस्त हो चुदाए जा ..."
उसने मेरी गांड से अपना लंड निकाल लिया और अब वो बिस्तर के बीच में लेट गया. उसका लंड सीधा और लंबा तना हुआ खड़ा था.
कविता बोली - "इस चाकू पर बैठ जा ... और अपनी फांकों में इसे घुसने दे और आज तू चोद डाल अपने जीजू को ..."
"थंक यू. .." कह कर मैं उछल कर उसके लंड पर बैठ गयी ... मैंने निशाना लगाया और चूत का छेद खड़े लंड पर रख दिया. मेरी चूत पानी से भीग गयी थी ...सारा चिकना रस इधर उधर फ़ैल गया था. लंड ने मेरी चूत को चूमा और चूत ने उसका वैलकम किया. वो फच की आवाज करता हुआ अन्दर जाने लगा साथ ही मेरा बैलेंस भी बिगड़ गया और मैं लंड पर पूरा धच से बैठ गयी।
मेरे मुंह से चीख निकल पड़ी, "हाय ..जीजू ...मर गयी .."
कविता बोली - "हाँ .... मेरी रानी ...अब लंड का पता चला है ..."
"बहुत मोटा है ..राम. ..जड़ से टकरा गया है .."
अंकित अब नीचे से चूतडों को हिला हिला कर चोद रहा था. इतने में कविता ने मेरी गांड में उंगली घुसा दी. और घुमाने लगी. मैंने तो अब ऊपर से कमर हिला हिला कर अंकित को चोद रही थी .सारा कमरा फच ..फच ...की आवाज से गूंज उठा.
"हाय मेरी रानी ....दे धक्के ....कविता मेरी गांड में उंगली घुसा दे रे .." वो आनंद से सिसकारी भरने लगा.
"हाँ ..मेरे राजा ...ये लो ..." कहते हुए कविता ने अपनी दूसरे हाथ की उंगली अंकित की गांड में घुसा दी. मैं मस्ती में झूम रही थी.
" हाय ..जीजू ...चोद दे रे .... लगा दे ..रे .....और जोर से ....फाड़ दे यार ...... स ई से ऐ ....मर गयी .....हाय .....चोद दे ......जीजू .... मेरी चुन्ची मसल डाल ...खींच ...और खींच ....ऊऊओए ई ई .... रे ..... क्या कर हो ...राजा .... लगा ना ...जोर से ...."
मेरी हालत चरम सीमा पर पहुँच रही थी . मैं होश खोती जा रही थी.
अचानक उसने मुझे करवट बदल कर अपने नीचे दबा लिया. और मेरे ऊपर चढ़ गया. उसने लंड को दबा कर चूत में घुसा दिया. और उसके धक्के तेज होते गए. ऊधर कविता ने फिर से अपनी उंगली हमारी गांड में घुसेड़ दी और अन्दर गोल गोल घुमाने लगी. मुझे दोनों तरफ़ से डबल मजा आने लगा. पर अब मुझे लग रहा था ...कि मैं झड़ने वाली हूँ. उसके लंड की तेजी को और उंगली को सह नहीं पा रही थी.
"जीजू ...मैं मर गयी .... हाय रे ...चोद ...और चोद ...हाय निकल दे पानी ..... चोद दे रे. ...हाय यी ययय ......मैं मरी ....सी सी ओ ऊ ओए एई मैं मरी ...मैं गयी ऐ .....अरे निकाला ..निकल अ ....अरे ...अरे .... हाय रे ...."
कहते हुए मैंने अपना पानी निकाल दिया. कविता ने मेरी गांड से उंगली निकाल दी. अचानक अंकित के लंड का दबाव मेरी चूत पर बढ़ने लगा .. और फिर वो कराह उठा ..."हाय मेरी रानी ...मैं गया ....मेरा निकलने वाला है ...... हँ ...हँ ...... ओ ऊ ओह ह्ह्ह ह्ह्ह हह. ओ ऊ ह ह ह हह ह्ह्ह ...कविता ......निकला .....निकल अ .......आ आह हह आया आह्ह ..."
उसके लंड ने अपना रस उगलना चालू कर दिया. पर कविता तो इंतज़ार में थी उसने पीछे से हाथ डाल कर मेरी चूत से लंड खींच लिया और टांगो के बीच घुस कर लण्ड अपने मुंह में ले लिया. अंकित ये जानता था कि ये रस तो कविता का ही है. इसलिए उसने अपनी टांगे ऊँची कर के अपना पूरा लण्ड उसके मुंह में दे दिया. कविता पूरा रस गट गट करके पी गयी और अब लण्ड को चाट कर साफ़ कर रही थी. मैं निढाल सी बिस्तर पर पड़ी थी.
"मजा आया मेरी रानी " कविता बोली
"जीजू ने तो बस कमाल ही कर दिया ..इतनी जोर से चोद दिया कि पूछो मत .... पर माल मेरे लिए तो छोड़ा होता ....." कविता हंसने लगी.
"जीजा साली का रिश्ता ऐसा ही मजेदार होता है ...क्यूँ अंकित है ना ...."
" तुम तो लकी हो जो जीजू से रोज़ चुदवा लेती हो ..... मेरी तरफ़ तो देखो ना ..... चूत में ज़ंग लग जाता है .." मै हंसती हुयी बोली.
"अच्छा तो हरी झंडी ..बस "
"क्या .... हरी झंडी ..."
'ये तुम्हारा जीजू ...और ये तुम ...खूब चुदवाओ जीजू से ...... और मस्त हो जाओ "
अंकित और मैं एक दूसरे को मुस्करा कर देख रहे थे. आँखों आँखों में इशारे हो गए थे. हम सब उठे और अपने कपड़े ठीक किए. और सोने की तय्यारी करने लगे.
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जीजा साली का रिश्ता
मैं यानि मुग्धा, कविता और ऋतू पक्की सहेलियां हैं. हम तीनो की कोई बात आपस में किसी से छुपी नही रहती थी. हम तीनो में सबसे सुंदर मैं ही हूँ. पर कविता और ऋतू भी दिखने में सुंदर ही कहलाती हैं. कविता की शादी हुए २ साल हो चुके हैं. उसका एक बेबी बॉय भी है. कविता का पति एक तराशे हुए बदन का मालिक है. वो भी हमसे बहुत हिलमिल गया है. अक्सर ही हम लोग एक दूसरे के यहाँ पार्टी रखते हैं और साथ साथ हँसी मजाक करते हैं.
मेरी इच्छा भी अब होने लगी कि मैं भी अंकित के और करीब आऊँ. मुझे वो अच्छा भी लगता है.
मैंने अपनी और देखा. मेरा जिस्म भी सेक्सी है. मेरे स्तनों का उभार भी सुंदर है. गोलाई लिए सीधे ताने हुए, किसी को भी आकर्षित कर सकते हैं. मेरी कमर पतली है. मेरे चूतड थोड़े से भारी हैं. दोनों चूतडों की फांकें गोल और कसी हुयी हैं. चलते समय मेरी चूतडों की दोनों गोलाईयां ऊपर नीचे लहराती हैं. अंकित मुझे चोरी चोरी तिरछी निगाहों से देखते रहते थे. मैं उन के करीब रहने की कोशिश करने लगी. मैं कविता के यहाँ अधिक जाने लगी. अब अंकित भी मेरे से सेक्सी मजाक करने लगा था.
"हाय अंकित … कविता कहाँ है .."
"किचेन में है …अभी आ जायेगी बैठो .."
अंकित सफ़ेद पजामे और बनियान में था. मुझे देखते ही पता चल गया कि उसने अन्दर अंडरवियर नहीं पहना है. उसके सोये हुए लंड तक का आकार ऊपर से ही नजर आ रहा था.
मैंने जान बूझ के सोफे पर ऐसे झुक के बैठी कि उसे मेरे बूब्स आसानी से दिख जायें. उसने भी मेरे बूब्स को देखने का लालच नहीं छोड़ा. मैंने उसे देखते हुए पकड़ लिया. मैं मुस्कराई. वो शरमा गया …
"जीजू क्या देख रहे थे ….."
"कुछ नहीं …. बस .."
"शरारती हो ….है ना .."
अंकित का लण्ड अब धीरे धीरे खड़ा होने लगा था, मुझे देख कर वो उत्तेजित होने लगा था।
"कौन शरारत कर रहा है …" कविता कमरे में आते हुए बोली
"जीजू … मजाक अच्छी मजाक करते हैं .." मैंने बात बदल दी
" लो चाय हाजिर है …"
"कविता ….. जीजू से कहो ना कभी कभी तो हम पर भी लाइन मार लिया करें .."
"अरे तुम ही लाइन मार लो ना …..जीजू तो तुम्हारे ही है ना …"
"क्यों जीजू ……. क्या इरादा है …"
"अंकित …बताओ भी तो …"
"अंकित…बता भी दो …"
"अरे मौका तो मिलने दो ..... फिर इसका चुम्मा भी लूँगा …और ..और .."
"और क्या क्या करोगे …अब थोडी शर्म करो ...तुम्हारी बीवी पास खड़ी है ...."
"बीवी की पूरी परमिशन है ....... मुग्धा ये कह रहा है तो चुपके से दे ही देना .."
कविता मेरे पास आयी और मेरे कान में धीरे से कहा - "जरा ध्यान दो ...तुम्हारे जीजू का खड़ा हो रहा है .."
मेरी नजर तो पहले ही उसके लंड पर थी. ये सुनकर मैं शरमा गयी. मैं धीरे से बोली -
"धत् ......"
"क्या हुआ. .हमें भी तो बताओ ......."
उसकी बात सुनकर हम सभी हसने लगे. पर जीजू का मजाक मुझे अच्छा लगा …..
आज रात को ऋतू की शादी की होटल में पार्टी थी. हम सभी एक कार में होटल आ गए थे. वहां ऋतू को उसकी सहेलियों ने घेर रखा था. कविता ऋतू को सजाने सँवारने लगी. तभी कविता बोली –"तुम दोनों यहाँ क्या करोगे, नीचे हॉल में पार्टी एन्जॉय करो .."
मुझे तो मौका मिल गया. मैंने आज पार्टी के लिए खास सेक्सी ड्रेस पहनी थी. ये ड्रेस उसे बहुत पसंद थी. ब्रा इस तरह से कसी थी कि मेरे बूब्स बाहर उभरे हुए नज़र आ रहे थे. टाइट जींस और टॉप पहना था. ताकि अंकित मेरे हुस्न का मजा ले सके. उसे आज पटाना भी था. कविता से मुझे हरी झंडी मिल ही चुकी थी.
हम दोनो नीचे हाल में आ गए। थोड़ी देर वहां कुछ खाया पिया और बातें करते रहे। मैं बार बार उसका हाथ पकड़ लेती थी। वो हाथ छुड़ाता भी नहीं था। फ़्लोर पर कुछ जोड़े डांस कर रहे थे।
अंकित बोला- "चलो मुग्धा ! डांस करते हैं…"
"हां … चलो… ना…"
हम दोनो डांस फ़्लोर पर आ गए। मैंने उसकी कमर में हाथ डाला तो वो सिहर गया।
" जीजू…शरमा रहे हो… मेरी कमर में भी हाथ डालो…"
उसने मेरी कमर में हाथ डाल दिया और हम थिरकने लगे। मैं जान बूझ कर अपने बूब्स उसके सामने उछाल रही थी। उसकी नज़रें मेरे बूब्स से हट नहीं रही थी। मुझे लगा कि मेरा जादू चल गया। मैंने उससे टकराना शुरू कर दिया। कभी बूब्स टकरा देती तो कभी उससे चिपक जाती। अब अंकित भी समझने लग गया था। वो भी मुझसे कुछ ज्यादा ही चिपकने लग गया था, इतना कि उसके मोटे लण्ड की चुभन मैं कभी अपने चूतड़ों पर महसूस करती तो कभी अपनी चूत के पास। मैं तो यही चाहती थी कि अंकित मुझसे और खुल जाए। कुछ ही देर में हम थक गए। डांस छोड़ कर हम गार्डन की तरफ़ चले गए। अंकित गार्डन में आकर हरी घास पर लेट गया। उसका लण्ड उभर कर दिखने लगा।
मैं भी उसके पास ही बैठ गई। मैंने उसका सर अपनी जांघों पर रख लिया और प्यार से उसके बालों में अपनी उंग्लियों से सहलाने लगी। वो एकटक मुझे निहार रहा था। मैंने कहा-"क्या देख रहे हो जीजू…मुझे कभी देखा नहीं क्या?"
"हां.. पर ऐसी मुग्धा नहीं ....." वो मुस्कुरा उठा।
"..नहीं जीजू ....... तुम आज कुछ अलग लग रहे हो..."
" तुम कितनी सुन्दर लग रही हो आज.."
"हाय जीजू ...ऐसे मत बोलो ना.."
"सच कह रहा हूं .... तुम्हारा बदन भी आज सेक्सी लग रहा है... मुझसे अब सहा नहीं जा रहा है.."
"जीजू ....... हाय रे .... फ़िर से कहो.." मैं खुशी से बेहाल हुई जा रही थी।
वो मेरी आंखों में झांकने लगा। मैने भी अपने नयन उस से लड़ा दिये। आंखों ही आंखों में हम दोनो डूबने लगे। मैं भी अनजाने में उसके ऊपर झुकती चली गयी. हमारे होंट जाने कब एक दूसरे से चिपक गए. मेरी साँसे गहरी हो चली थी. अंकित मेरे होटों को चूस रहा था. मैं भी अपनी जीभ उसके मुंह में डाल चुकी थी. मेरा हाथ अपने आप ही उसके पेट पर से होता हुआ उसके लंड से टकरा गया. मैंने पेंट के बाहर से ही उसे पकड़ लिया. वो सिहर उठा. उसका लंड उत्तेजित हो कर मोटा और लंबा हो गया. बहुत ही कड़क होकर बाहर जोर लगा रहा था. उसका हाथ मेरी चुन्ची पर पहुँच गया था. एक हाथ से उसने मेरी चुन्ची दबा दी. मैं आनंद से निहाल हो गयी. ज्यादा खुशी इस बात की थी कि अब अंकित मुझे जरूर ही चोद कर रहेगा.
मैंने कहा -"हाय जीजू ....मेरी चुन्ची और मसल दो ...मजा आ रहा है ..." कहते हुए मैंने उसकी पेंट की जिप खोल दी और लंड को पकड़ कर सहलाने और हौले हौले उसे मसलने लगी.
उसके मुंह से सिसकारी निकल पड़ी. बोला -"थोड़ा जोर से पकड़ कर ऊपर नीचे करो ......."
"जीजू ...... कितना मोटा लंड है .... हाय जीजू मुझे कब चोदोगे ......"
"आज ही रात को ..... कविता से पूछ कर ..."
"वो हाँ कह देगी ? ......" मैंने अनजान बनते हुए पूछा. अंकित मुझे देख कर मुस्कराया पर बोला कुछ नहीं.
"अब बस करो नहीं तो मेरा रस निकल जाएगा ......."
"नहीं राजा ..... थोड़ा और मसलने दो ना ...तुम भी चुंचियां दबाव ना .... खींचो ना ....." मैं जोश में बोले जा रही थी.
पर अंकित उठ कर बैठ गया. मैं भी अपने कपड़े ठीक करने लगी.
हम दोनों को समय का पता ही नहीं चला. हॉल में आए तो महफिल रंग में थी. ऋतू और उसका हसबंड सामने वाली सिंहासन पर बैठे थे. कविता हमें देखते हुए मुस्कराई. मैं और अंकित भी मुस्करा दिए.
"रात बहुत हो गयी है ... अब चलना चाहिये......." कविता बोली. ऋतू ने भी जाने को कह दिया.
हम चारों यानि अंकित , मैं , कविता और बेबी बाहर आकर कार में बैठ गए. अंकित गाड़ी चला रहा था. कविता ने पूछा -"पार्टी एन्जॉय की या नहीं .."
"हाँ ...पार्टी अच्छी थी ...."
"क्या अच्छा था .. बताओ तो ..."
"जीजू...वो ही अच्छे लगे ..."
"तो बाजी हाथ में आयी या नहीं ...या मैं कुछ करूँ "
"तुम ही कुछ कर दो ना ....मेरी तो चुदवाने कि बहुत इच्छा हो रही है "
" हाँ मेरी भोली रानी .... आपके चेहरे से सब पता चल रहा है .... कि मेरी मुग्धा को किस चीज़ की जरूरत है .." और हंस पड़ी.
"पर तुम्हारी सहमति तो चाहिए ना ..."
"चलो आज घर चल के देखते हैं ...आज मन भर लेना ..." कविता ने भी अब साफ़ कह दिया.
अंकित का घर आ चुका था. मेरा घर अभी दूर था. और कविता ने रुकने को पहले ही कह दिया था.
हम सभी कमरे में गए. और बेबी को बेड पर सुला दिया. हमने अपने कपड़े बदले. मैंने भी कविता का एक ढीला सा पजामा पहन लिया. अंकित भी पजामा पहन कर आ गया. पजामे में से उसका उत्तेजित लंड की उठान साफ़ दिख रही थी.
कविता ने भी भांप लिया कि मैं क्या देख रही हूँ. वो मुझे देख कर मुस्करा दी. कविता अपनी बेबी के साथ लेट गयी फिर अंकित भी लेट गया. मैं किनारे पर अंकित के साथ लेट गयी. कमरे में धीमी बत्ती जल रही थी. मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था. मुझे पता था आज मेरी चुदाई हो ही जायेगी।
मैंने हिम्मत करके अंकित के पेट पर हाथ रख दिया. उसने मेरी तरफ़ देखा. मैंने हाथ बढा कर उसका लंड पकड़ लिया. वो अन्दर कुछ नहीं पहना था. उसके लंड की मोटाई से मैं सिहर उठी. मैं उसका लंड दबाने लगी. लंड और टन्ना ने लगा. मैंने पजामे के अन्दर हाथ डाल दिया और उसके लंड के ऊपर की चमड़ी को ऊपर चढा दी. उसके मुंह से सिसकारी निकल पड़ी. उसने मेरे बूब पकड़ लिए और धीरे धीरे सहलाने लगा .मेरे टॉप को ऊँचा करके मेरी चूचियां दबाने लगा. मेरे मुंह से आह निकल गयी।
मैंने उसका लंड पकड़े पकड़े ही उसकी तरफ़ पीठ कर ली. अंकित मेरी पीठ से चिपक गया. उसने मेरा पजामा नीचे उतार दिया. मेरी गांड की दरारों में उसका नंगा लंड टकरा गया. मेरे जिस्म में सनसनी फैलने लगी. फिर उसने लंड को और चूतडों में गडा दिया. मेरी चूतड की फांकों को चीरता हुआ उसका लंड मेरी गांड के छेद से टकरा गया. मेरी चूतडों के बीच उसका मोटा लंड फंसा हुआ बहुत आनंद दे रहा था. मुझे उसका पूरा साइज़ और नंगा स्पर्श अच्छा लग रहा था. उसके हाथ मेरी टॉप में घुस पड़े और चुन्ची मसलने लगे. उसके लंड ने जोर मारा तो मेरी गांड की छेद मे थोड़ा सा घुस गया. मैंने अपनी टांग थोड़ी ऊँची कर ली. फिर तो लंड की सुपारी फक से गांड में घुस गयी. मेरे मुंह से आह निकल गयी. उसने अपना लंड थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर दूसरे ही झटके में लंड अन्दर घुसता चला गया .. मैंने अपना मुंह भींच लिया कि कहीं आवाज ना निकल जाए. उसने धीरे धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए. मेरी चूत में उसने उंगली घुसा दी. पर मुझे लगा कि उंगली मर्द की नहीं है. मैंने देखा तो वो कविता थी.
वो मुझे देख कर प्यार से मुस्कराई ."मजा आ रहा है ना ...."
" हाय .... कविता. ... मैं मर जाऊंगी .... मुझे मत देखो ना .."
"अरे शर्म मत कर ..चुदाने के लिए तो तू तड़प रही थी ना ...तेरे जीजू का लंड है ... खाए जा ...और मस्त हो चुदाए जा ..."
उसने मेरी गांड से अपना लंड निकाल लिया और अब वो बिस्तर के बीच में लेट गया. उसका लंड सीधा और लंबा तना हुआ खड़ा था.
कविता बोली - "इस चाकू पर बैठ जा ... और अपनी फांकों में इसे घुसने दे और आज तू चोद डाल अपने जीजू को ..."
"थंक यू. .." कह कर मैं उछल कर उसके लंड पर बैठ गयी ... मैंने निशाना लगाया और चूत का छेद खड़े लंड पर रख दिया. मेरी चूत पानी से भीग गयी थी ...सारा चिकना रस इधर उधर फ़ैल गया था. लंड ने मेरी चूत को चूमा और चूत ने उसका वैलकम किया. वो फच की आवाज करता हुआ अन्दर जाने लगा साथ ही मेरा बैलेंस भी बिगड़ गया और मैं लंड पर पूरा धच से बैठ गयी।
मेरे मुंह से चीख निकल पड़ी, "हाय ..जीजू ...मर गयी .."
कविता बोली - "हाँ .... मेरी रानी ...अब लंड का पता चला है ..."
"बहुत मोटा है ..राम. ..जड़ से टकरा गया है .."
अंकित अब नीचे से चूतडों को हिला हिला कर चोद रहा था. इतने में कविता ने मेरी गांड में उंगली घुसा दी. और घुमाने लगी. मैंने तो अब ऊपर से कमर हिला हिला कर अंकित को चोद रही थी .सारा कमरा फच ..फच ...की आवाज से गूंज उठा.
"हाय मेरी रानी ....दे धक्के ....कविता मेरी गांड में उंगली घुसा दे रे .." वो आनंद से सिसकारी भरने लगा.
"हाँ ..मेरे राजा ...ये लो ..." कहते हुए कविता ने अपनी दूसरे हाथ की उंगली अंकित की गांड में घुसा दी. मैं मस्ती में झूम रही थी.
" हाय ..जीजू ...चोद दे रे .... लगा दे ..रे .....और जोर से ....फाड़ दे यार ...... स ई से ऐ ....मर गयी .....हाय .....चोद दे ......जीजू .... मेरी चुन्ची मसल डाल ...खींच ...और खींच ....ऊऊओए ई ई .... रे ..... क्या कर हो ...राजा .... लगा ना ...जोर से ...."
मेरी हालत चरम सीमा पर पहुँच रही थी . मैं होश खोती जा रही थी.
अचानक उसने मुझे करवट बदल कर अपने नीचे दबा लिया. और मेरे ऊपर चढ़ गया. उसने लंड को दबा कर चूत में घुसा दिया. और उसके धक्के तेज होते गए. ऊधर कविता ने फिर से अपनी उंगली हमारी गांड में घुसेड़ दी और अन्दर गोल गोल घुमाने लगी. मुझे दोनों तरफ़ से डबल मजा आने लगा. पर अब मुझे लग रहा था ...कि मैं झड़ने वाली हूँ. उसके लंड की तेजी को और उंगली को सह नहीं पा रही थी.
"जीजू ...मैं मर गयी .... हाय रे ...चोद ...और चोद ...हाय निकल दे पानी ..... चोद दे रे. ...हाय यी ययय ......मैं मरी ....सी सी ओ ऊ ओए एई मैं मरी ...मैं गयी ऐ .....अरे निकाला ..निकल अ ....अरे ...अरे .... हाय रे ...."
कहते हुए मैंने अपना पानी निकाल दिया. कविता ने मेरी गांड से उंगली निकाल दी. अचानक अंकित के लंड का दबाव मेरी चूत पर बढ़ने लगा .. और फिर वो कराह उठा ..."हाय मेरी रानी ...मैं गया ....मेरा निकलने वाला है ...... हँ ...हँ ...... ओ ऊ ओह ह्ह्ह ह्ह्ह हह. ओ ऊ ह ह ह हह ह्ह्ह ...कविता ......निकला .....निकल अ .......आ आह हह आया आह्ह ..."
उसके लंड ने अपना रस उगलना चालू कर दिया. पर कविता तो इंतज़ार में थी उसने पीछे से हाथ डाल कर मेरी चूत से लंड खींच लिया और टांगो के बीच घुस कर लण्ड अपने मुंह में ले लिया. अंकित ये जानता था कि ये रस तो कविता का ही है. इसलिए उसने अपनी टांगे ऊँची कर के अपना पूरा लण्ड उसके मुंह में दे दिया. कविता पूरा रस गट गट करके पी गयी और अब लण्ड को चाट कर साफ़ कर रही थी. मैं निढाल सी बिस्तर पर पड़ी थी.
"मजा आया मेरी रानी " कविता बोली
"जीजू ने तो बस कमाल ही कर दिया ..इतनी जोर से चोद दिया कि पूछो मत .... पर माल मेरे लिए तो छोड़ा होता ....." कविता हंसने लगी.
"जीजा साली का रिश्ता ऐसा ही मजेदार होता है ...क्यूँ अंकित है ना ...."
" तुम तो लकी हो जो जीजू से रोज़ चुदवा लेती हो ..... मेरी तरफ़ तो देखो ना ..... चूत में ज़ंग लग जाता है .." मै हंसती हुयी बोली.
"अच्छा तो हरी झंडी ..बस "
"क्या .... हरी झंडी ..."
'ये तुम्हारा जीजू ...और ये तुम ...खूब चुदवाओ जीजू से ...... और मस्त हो जाओ "
अंकित और मैं एक दूसरे को मुस्करा कर देख रहे थे. आँखों आँखों में इशारे हो गए थे. हम सब उठे और अपने कपड़े ठीक किए. और सोने की तय्यारी करने लगे.
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