Tuesday, February 10, 2015

Fentency रूचि की कहानी --1

Fentency


  रूचि की कहानी --1
मेरा नाम रूचि है. में  25 साल की शादीशुदा औरत हून. बदन
काफ़ी कसा हुआ है. सॉफ रंग, लंबे बॉल, कुल मिला कर किसी भी
आदमी के लिए सुंदरता की मूरत जैसी हून. मेरी शादी को 3 साल
हो गये. मेरे पाती आजकल मुंबई के एक फॅक्टरी मे मार्केटिंग
एग्ज़िक्युटिव का काम करते हैं. मई भी उस कंपनी मे सेल्स प्रमोटर
का काम करती हून. सेल्स प्रमोटर का काम होता है अपने कस्टमर्स
मगर इस बारे मे मेरे पति को नहीं मालूम है. मेरा काम किसी बड़े
कस्टमर को लुभाना होता है. जिसके लिए मुझे उसके पहलू मे रातें
गुजारनी पड़ती हैं. मेरे पति अनिल काम के सिलसिले मे अक्सर घर से
बाहर रहना पड़ता है. इसलिए मेरे इस काम के बारे मे उन्हे पता
नहीं चलता. इस काम के लिए मेरे पति देव की पगर औरों से ज़्यादा
मिलती है. वी सोचते हैं की शायद राजेश इतना पैसा उन्हें अपनी
दोस्ती की खातिर देता है. मगर असल बात ये है की उसे रुपया मेरी
मेहनत की खातिर मिलता है. बात शुरू से समझती हून.


मेरी शादी अनिल से हुई थी. तब अनिल पुणे मे एक प्राइवेट फर्म मे
काम करता था. शायद मेरी किस्मात खराब थी, जो मेरी शादी के दो
महीने बाद ही अनिल के फॅक्टरी मे हर्ताल हो गाई. एक बार जो
लॉकाउट हुआ तो फिर दोबारा खुला ही नहीं. काफ़ी ढूँढने पर भी
कहीं नौकरी नहीं मिली. हमारे पास जमा पैसे धीरे धीरे ख़तम
होने लगे. मैने पास के एक स्कूल मे पढ़ना शुरू कर दिया. मगर
तंगी तो सॉफ नज़र आने लगी. हुमें कहीं से भी किसीकि कोई मदद
नहीं मिल रही थी. परिवार वालों ने भी कुच्छ ही दीनो मे अपना
अपना मुँह मोड़ लिया. अनिल रोज नौकरी के लिए इधर उधर भटकते
रहते थे.


एक दिन अचानक मुंबई से प्प नंबर पर फोन आया. अनिल ने वापस
आकर खुश होते हुए कहा.


"डार्लिंग मेरे एक दोस्त राजेश का फोन था. तुम उस स्सी नहीं मिली हो
हू मुंबई मे रहता है. बहुत पैसे वाला है. एक एलेक्ट्रॉनिक्स के
समान बनाने की फॅक्टरी है उसकी. वो किसी काम से पुणे आ रहा है.
हमारी शादी मे नहीं आ पाया था. इसलिए हम से मिलने आएगा. हम
दोनो यहाँ साथ पढ़े थे."


"यहीं रहेगा" मैने अपने चारों ओर नज़र डालते हुए पूचछा.
"नाहीं रहेगा तो हॉतले मे मगर तुम से मिलने आएगा. उसे एक दिन
खाने पर बुला लेंगे. उसकी ढंग से खातिर करना. वो चाहे तो मुझे
अपनी कंपनी मे ही कहीं नौकरी दे सकता है. फिर हुमारे बुरे दिन
ख़तम हो जाएँगे."


मुझे बाहों मे लेकर चुऊँटे हुए कहा. फिर मुझे च्छेदने के अंदाज
से बोले,


" राजेश बहुत रंगीला किस्म का आदमी है. शादी से पहले बहुत सी
लादकियाँ मारती थी उसपर. मगर उसकी शादी ज़्यादा दिन नहीं
चली. »
रेणु भाभी बहुत ही खूबसूरत महिला थी मगर उन्हे शादी के
कुच्छ साल बाद ही कॅन्सर हो गया था और कुच्छ ही दीनो मे राजेश को
अकेला छ्चोड़ कर चली गयी. तब से राजेश ने शादी नहीं की.
राजेश से मिलॉगी तो देखोगी कितना हॅंडसम है मेरा दोस्त काफ़ी
लड़कियाँ उस से शादी करने को आज भी तैयार हो जाएँ मगर वो
कहता है की मई रेणु की जगह किसी को नहीं दे सकता और रही
औरतों की बात तो बिना किसी बंधन मे बँधे भी काफ़ी लड़कियाँ मिल
जाती हैं मुझे. देखना तुम्हें भी अपने मो जाल मे ना बादन्ह ले. »
मैने उनकी बात को हँसी मे उड़ा दिया. मगर तन्हाई मे उसके बारे मे
सोचने लगी. उस स्सी मिलने की काफ़ी इच्च्छा हो रही थी की देखूं
कैसा आदमी है जिस पर लरकियाँ इस कदर मारती हैं »


मई रोज सुबह घरका काम जल्दी निपटा कर स्कूल निकल जाती थी.
राजेश उसके बाद कम ढूँढने और फाक्टोरीय के चक्कर लगाने निकल
पड़ते थे जो शाम तक ही लौट ते थे. मई वापस आकर कपड़े बदल कर
वापस घर के कामों मे जुट जाती थी. शनि वार को उस दिन कुच्छ
जल्दी आगेई. फिर कपड़े बदल कर घर के कामों मे जुट गयी. काम
ख़त्म करने के बाद नहाने की बड़ी इच्च्छा हुई. गर्मी थी इसलिए
पसीने से तार बतर हो गयी थी. मई बातरूम मे नहाने लगी तभी
डोर बेल बाज उठा. आज लगता है अनिल जल्दी लौट आया है. सोच कर
मई नहाना जारी रखा. मगर घंटी बजती ही रही. मई परेशान
होकर जैसे तैसे नहाना ख़तम करके बदन पर पेटिकोट डालकर
दरवाजे तक गयी. पेटिकोट से मेरे निपल्स से लेकर उपरी जांघों
तक का हिस्सा सिर्फ़ ढाका हुआ था. पुर बदन से पानी तपाक रहा
था. बदन गीला होने के कारण पेटिकोट भी कुच्छ गीला होकर
स्तनों एवं जांघों पर चिपक गया था. नौकरी च्छुतने के बाद से
हमारे घर पर कोई ता भी नही था इसलिए मई तोड़ा लापरवाह भी
रहती थी अपने पहनावे पर.


"आती हून आती हून " कह कर मैने एक झटके से दरवाजा खोला. बाहर
एक बहुत ही हॅंडसम आदमी खड़ा था. उसके होंठों पर मुझे इस हालत
मे देख कर उसके चेहरे पर खिली मुस्कान लुप्त हो गये और मुझे
ऊपर से नीचे तक निहारने लगा. मई भी एक अपरिचित को सामने
देख कर भोचक्की रह गयी थी. समझ मे ही नही आ रहा था क्या
करूँ. वो ही पाहले संहला,


"नमस्कार भाभिजी मई राजेश आपके पति का दोस्त."


"नमस्ते आइए अंदर आई. सॉरी मई नहा रही थी. मई अभी आती
हून चेंज करके." कहा कर उसके जवाब का इंतेजार किए बिना ही मई
दौरती हुई बेडरूम मे चली गयी. उसस्की आँखें मेरे बदन पर
चिपकी हुई थी.


मई कपड़े पहन कर आई. मई उनके सामने काफ़ी संकोच कर रही थी.
मगर उसकी मजेदार बातों से मेरी झिझक ख़त्म होती गयी.अनिल जब आया तब मई उसकी कीसाई बात पर खूब हंस रही थी.
« तो तुम्हारी आपस मे मुलाकात मेरे आने से पहले ही हो गयी ? « अनिल
ने मुझसे पूचछा. मगर मेरे जवाब देने से पहले ही राजेश ने मेरी
तरफ शरारती नज़रों से देखते हुए कहा « मुलाकात ? भाई हुमारी
मुलाकात तो बड़ी ही ज़ोर दार तरीके से हुई. »


मई उसकी बात सुनकर शर्म से नज़रें झुका ली. राजेश तो कुच्छ
समझ ही नहीं पाया.


दोनो पुराने दोस्त बातों मे मशगूल हो गये. फिर दोनो मे शराब का
दौर भी चला. अनिल तो बहुत ही कूम पीटा था. जेब पर्मिट ही नहीं
करती थी. मगर राजेश तो डेली ड्रिंक करता था.
बातों बातों में उसे पता लग गया की अनिल के पास कोई नौकरी नहीं
है.


« यार मुझे तो बताया होता मई कुच्छ इंतेज़ां कर देता. अब तुम ही
देखो मेरे पास इतना पैसा है मगर अपना बोलने वाला कोई नहीं. अगर
अपने दोस्त के लिए कुच्छ कर सका तो इस से बड़ी खुशी और क्या होगी. »
अनिल के चेहरे पर एक फीकी मुस्कान आई.


« मई एक शर्त पर तुम्हें नौकरी दे सकता हू. तुम लोगों को मेरे
साथ रहना पड़ेगा. मेरे मकान का एक पोर्षन खाली है. वाहा तुम
लोग रह लेना घर मे कुच्छ चहल पहल रहेगी. मंजूर है ? »
हुँने हामी भर डी.


« तो फिर जितनी जल्दी हो सके तुम मुंबई चले आओ. मई कल निकल
रहा हून. मेरा काम ख़त्म हो गया है. चाहो तो मेरे साथ ही निकल
पदो. »


« एक दो दिन का तो समय दो समेटने के लिए » अनिल ने कहा.


« तहीक है »


कुच्छ दिनों बाद हम अपना सार समान समेत कर मुंबई के लिए निकल
पड़े. समान था ही क्या.


मुंबई मे राजेश का मकान बहुत लंबा चौड़ा था. उसके एक पोर्षन मे
हुमें रहने को दे दिया. दो कमरे थे हुमारे पास. दो आदमियों के लिए
इससे ज़्यादा और क्या चाहिए.


अनिल काम पर जाने लगा. राजेशने हमारी हालत का जयजा लेते हुए
अनिल को आधी तनख़्वाह अड्वान्स दे दी थी. हमारी हालत सुधारने लगी.
राजेश अकेला ही रहता था. एक नौकर था मुरली 40 साल का,वो पास ही
बने सेरवेंट'स क्वॉर्टर मे रहता था. और ड्राइवर अशोक जो मेरी ही उम्र
का नवजवान था. वो सुबह 8 बजे टाटा था और शाम नौ बजे घर
चला जाता था. मैने महसूस किया था की उसकी नज़रें मुझे,ख़ासकर मेरी च्चातियों को घूरती रहती हैं.


राजेश रोज सुबह 9 बजे अपने फॅक्टरी निकल जाता था और शाम 6 बजे
घर लौटता था. बीच में 1 से 3 बजे तक खाने और विश्राम करने
आता था. रोज शाम को 7 बजे से वो दो टीन पेग लेता था. अनिल ने
मुझसे कहा की तुम कुच्छ अच्छा बनाया करो तो उसे भी दे आया करो.
नौकर के हाथ का खाते खाते बोर हो गया होगा. सो रोज उसके ड्रिंक्स
के समय कुच्छ ना कुच्छ स्नॅक्स लेकर उसके पास जाती थी. वो मुझे
पास बैठा लेता था और तरह तरह की बातें होती थी. तब हमारे
सिवा वहाँ और कोई भी नही होता था. लेकिन रोज उनके पेग शुरू करने
से पहले ही मई वापस आ जाती थी.. अनिल अगर सहर मे होता तो आते
आते 9 बाज जाते थे.


धीरे धीरे हम दोनो एक दूसरे से खुलने लगे. बातों बातों मे
रोमॅंटिक बातें भी होने लगी. एक दिन मैने उनके लिए कलेजी फ्राइ की
और वहाँ पहुँची. उसने शायद आज कुच्छ जल्दी ही शुरू कर दिया
था. मैने प्लेट सामने किया तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया. उसकी
आँखों मे लाल डोरे टायर रहे थे.


« कहाँ भाग रही हो. »उसने कहा »अनिल तो है ही नहीं . इतनी जल्दी
जाकर क्या करोगी? बैठो ना कुच्छ देर. » सोफे मे ही एक ओर सरक गया
और मुझे अपने से सता कर बिता लिया. « भाई कबाब का इंतेज़ाम कर
ही दिया तो शराब के साथ तुम जैसी खूबसूरत एक साकी मिल जाए
तो नशा दुगना हो जाता है. » मैने अपना हाथ उसके हाथों से
छुड़ाया.


बहुत कहने पर माने उसका अगला पेग बना कर उसके हाथ मे दिया. वो
मेरी च्चातियों को घूर रहा था. मई उसकी नज़रों के कारण असहज
महसूस कर रही थी.


« भाभी आपका फिगर बड़ा सेक्सी है. » मैने श्रम से अपनी नज़रें
झकाली.


« कभी अपने चाँद से योवां का हमे भी दर्शन करा दिया करो.
हमारा भी जीवन सफल हो जाए » उसने मुझे बाहों मे भरने की
कोशिश की. मई उठ खड़ी होगआई.


« राजेश जी आप अभी नशें मे हैं मई अभी चलती हून आपसे बाद
मे मिलूँगी » कहकर मई व्हन से चली आई. उस समय तो मुझे उन
पर गुस्सा आ गया था मगर धीरे धीरे गुस्से ने एक अजीब सी सिहरन
का रूप ले लिया. शादी के बाद से ही हमारी सेक्षुयल लाइफ रूटे पीटते
चल रही थी. पहले तो नौकरी का टेन्षन और नौकरी मिली भी तो अब
महीने मे 15-20 दिन तो उनके बिना बिस्तर पर करवटें बदल नि पदती
हैं. आज भी रात को बिस्तर पर लेते लेते राजेश के बारे मे ही सोच
रही थी. पुर बदन मे अजीब सी सिहरन होने लगी. जी करने लगा
कोई मेरे सारे बदन को मसल कर रख दे. आज मुझे राजेश के बारेमे सोचते हुए अपनी योनि मे उंगली डालनी पड़ी. धीरे धीरे उंगलियों
को अंदर बाहर करने लगी. और कुच्छ देर बाद मई खल्लास हो गयी.
मेरे मुहन से आआआआहह ऊऊऊऊओह
जैसी आवाज़ें निकालने लगी. मैने घबरा कर अपना एक हाथ मुँह पर
रख दिया जिससे कोई सुन ना ले.











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