Tuesday, February 10, 2015

Fentency लिसेबियन कहानी-फ्रेंड्स

Fentency

 लिसेबियन कहानी-फ्रेंड्स



हेल्लो दोस्तों मैं यानि राज शर्मा आपके लिए एक और नई लिसेबियन कहानी लेकर हाजिर हूँ कई दोस्तों के आग्रह पर ये कहानी आपके सामने पेश कर रहा हूँ आशा है आप लोगों को बहूत पसंद आएगी ये कहानी मेरे एक दोस्त ने भेजी है अब आप कहानी मेरे उसी दोस्त की जबानी सुनेगे तो ही ठीक रहेगा
दोस्तों मेरा नाम शकील है मैं जयपुर मैं अकेला रहकर अपनी पढ़ाई करता हूँ मेरी राज शर्मा के ब्लॉग हिन्दिसेक्सिस्तोरिब्लोग्स्पोत.
कॉम पर सभी कहानियाँ पड़ता हूँ मैंने सोचा मैं भी अपनी कहानी आप लोगों को सुना दूँ जब मैं अपने घर से छुट्टियाँ बिताकर जयपुर लोट आया तो उसके करीब हफ़्ते भर बाद मेरे घर से लैटर आया जिसमें लिखा था कि वहाँ के मोहल्ले के एक भैया अपनी जॉब के इंटरव्यु के लिये आ रहे हैं और मेरे रूम पर २-३ दिन रुकेंगे! राशिद भैया मुझे बहुत पसंद भी थे इसलिये मैं खुश हो गया! वो मुझसे ७ साल बडे थे और काफ़ी सुंदर और हैंडसम थे! रँग गोरा और कद लम्बा था, चेहरा सैक्सी, बदन गठीला और मस्क्युलर… टाइट कपडों में बडे लुभावने लगते थे! वो डिस्ट्रिक्ट लेवल के बॉलर थे और काफ़ी नॉर्मल से अग्रेसिव मर्द थे! मैने कभी उनके साथ कुछ ट्राई तो नहीं किया था मगर बस वो उनमें से थे जिनको मैं सिर्फ़ देख कर ही नज़रें गर्म कर लेता था! मैं लास्ट उनसे उनकी शादी के वक़्त चार साल पहले मिला था, उसके तुरन्त बाद पता चला कि उनको एक लडका भी हो गया और अब तो शायद उनको दो लडके थे और उनकी बीवी फ़िर प्रैगनेंट थी! वाह क्या मर्द था, साला शादी के बाद चूत का भरपूर इस्तेमाल कर रहा था! वैसे उसकी कसमसाती हुई मज़बूत जवानी से इससे कम की उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिये थी!
वो लैटर पढते ही मैं खुश हो गया, उस दिन क्लास में भी बहुत दिल लगा और क्लास के लडके भी बहुत ज़्यादा अच्छे लगे… स्पेशिअली मर्दाना और अक्खड विनोद सिशोदिया, जो एक बडा हरामी जाट लडका था और कभी कभी ही क्लास में दिखता था! साले की भरपूर जवानी उससे संभाले नहीं संभलती थी! उस दिन वो बेइज़ कलर की टाइट सी पैंट में मेरे ही आगे बैठा अपने बगल वाले लडके से गन्दी गन्दी बातें कर रहा था! अचानक टीचर ने उसको खडा किया तो मेरी नज़र उसकी मज़बूत गाँड पर पडी! अचानक उठने के कारण उसकी गाँड पर पैंट की कुछ सलवटें थी, उसके गोल गोल चूतड गदराये और भरे हुये थे! उनके बीच उसकी पैंट की सिलाई सीधी उसके छेद के पास से घुसती हुई उसके आँडूओं के नीचे की तरफ़ जा रही थी! उसने एक हाथ से अपनी बैक पॉकेट सहलायी! उसका हाथ भी मस्क्युलर और बडा था! एक एक उँगली गदरायी हुई थी! जब वो सवाल का जवाब नहीं दे पाया तो टीचर ने उसको खडे रहने के लिये कहा! अब मेरा ध्यान क्लास में कहाँ लगता क्योंकि मुझसे कुछ ही दूर पर विनोद की जवानी खुल के मेरे सामने जो थी! मैने उस दिन उसकी गाँड और पिछली जाँघ की जवानी और कशिश को खूब जी भर के निहारा! फ़ाइनली लैक्चर के बाद सब बाहर आये तो विनोद टीचर को गन्दी गन्दी गालियाँ देता रहा! उस दिन वो मेरे साथ ही कैन्टीन में चाय पीने के लिये बैठ गया, साथ में कुछ और लडके भी आ गये मगर मैं सिर्फ़ विनोद की जवानी ही निहारता रहा क्योंकि वो कभी कभी ही मिलता था!
यार, ये बहन का लौडा, सर मेरी गाँड मारता रहता है…’ विनोद बोला तो कुणाल ने उसका साथ दिया!
‘हाँ, लगता है… उसको ‘तेरी’ पसंद आ गयी है…’ बाकी लडके हँसे!
‘साला मूड घूम गया ना तो किसी दिन पलट के उसकी गाँड में लौडा दे दूँगा…’ सब फ़िर हँसे!
‘हाँ, साला जब देखो, गाँड मारता रहता है…’ उसके मुह से वैसी बातें बडी सैक्सी लग रहीं थी, साथ में वो कभी कभी अपने आँडूए और लँड भी अड्जस्ट करता जा रहा था! बिल्कुल स्ट्रेट, मादक और अग्रेसिव जाट था! मैं बस मन मसोस कर उसको ही देखता रहा, और कभी कभी कुणाल को… जो था तो हरामी मगर उसमें मासूमियत और चिकनापन भी था! कुणाल विनोद के एरीये में ही कहीं रहता था इसलिये दोनो कुछ फ़्रैंक थे!
‘साले ने ज़्यादा परेशान किया तो इसकी बेटी की चूत में लौडा दे दूँगा…’
‘इसकी बेटी कहाँ मिलेगी?’ मैने पूछा!
‘अरे यहीं आगे स्कूल में पढती है… साली बडा कन्टाप माल है, स्कर्ट कमर मटका के जाती है…’ मेरा मन और मचल गया! मैं ये सोचने लगा कि अगर विनोद जैसे गबरू मर्द ने अपने शेर जैसे लौडे से सर की नाज़ुक सी बेटी को चोदा तो उसका क्या हाल होगा! मुझे तो विनोद की गाँड उठती और गिरती हुई दिखने लगी!
कुणाल ने अपना एक हाथ विनोद की जाँघ पर रखा और बोला ‘अबे, मैं चलता हूँ…’
‘ठीक है मादरचोद, मगर ये जाँघ क्यों सहला रहा है साले… लौडा पकडेगा क्या?’
‘अबे हट भोसडी के… अभी इतने बुरे दिन नहीं आये हैं…’ सब फ़िर हँसने लगे!
मैं उनकी बातों से सिर्फ़ गर्म होता रहा, फ़िर जब लँड खडा हो गया तो सोचा, पिशाब कर लूँ तो शायद लँड थोडा बैठ जाये! मैं कैन्टीन के पीछे की तरफ़ ओपन एअर टॉयलेट के भी पीछे मूतने के लिये चल पडा! वहाँ मैं इसलिये जाता था कि वहाँ सूनसान में कोई होता नहीं था इसलिये मैं अपने लँड को आराम से खोल के उसकी ठनक कम कर सकता था! एक बार तो मैने वहाँ खडे खडे मुठ भी मारी थी मगर उसके बाद हिम्मत नहीं पडी थी! मैने वहाँ पहुँच कर अपनी पैंट से लौडा बाहर निकाला, जो उस समय पूरा मस्त ठनक के खडा था और मूतने के पहले विनोद की जवानी याद करके अपना लँड हल्के हल्के मसलने लगा! बिल्कुल ऐसा लगा कि विनोद मेरे सामने नँगा हो रहा है! मेरे लँड में उसके नाम की गुदगुदी हो रही थी! इतना मज़ा आया कि मेरी तो आँख एक दो बार बन्द सी होने लगी! अभी मज़ा मिलना ही शुरु हुआ ही था कि अचानक कुछ आहट हुई और एक और लडका उधर की तरफ़ आता दिखा!
मैं उसको जानता था, उसका नाम धर्मेन्द्र था और वो इलाहबाद का रहने वाला था जो मेरे साथ ही कोर्स करने वहाँ से आया था! धर्मेन्द्र मुझे देख के मुस्कुराया मगर कुछ पल में उसकी नज़र मेरे लँड पर पडी तो मैने देखा कि उसने कुछ ज़्यादा इंट्रेस्ट लेकर मेरे लँड को देखा! वैसे धर्मेन्द्र उस टाइप का लगता तो नहीं था, काफ़ी हट्‍टा कट्‍टा साँवला सा गदराया हुआ स्ट्रेट लौंडा लगता था जो नयी नयी जवानी में शायद किसी चूत की सील तोडने के सपने देखता होगा मगर शायद मेरे खडे लँड को देख के उसको कुछ अटपटा लगा! उसकी आँखों में एक झिलमिल सा नशा सा दिखा! उसके होंठ हल्की सी प्यास से थर्राये और फ़िर वो मुस्कुराते हुये मेरे कुछ ही दूर पर खडा होकर अपनी ज़िप खोल के जब मूतने लगा तो मुझ से भी ना रहा गया और मेरी नज़र भी उसके लँड पर पडी जो काफ़ी बडा और मोटा था!
उसने अपना लँड कुछ इस स्टाइल से पकडा हुआ था कि मुझे साफ़ दिख रहा था और जब उसने अपना लँड छुपाने की कोशिश नहीं की तो मैने भी उससे अपना लँड नहीं छुपाया! उसका लँड भी खडा सा होने लगा और कुछ देर में भरपूर खडा हो गया! हम एक दूसरे से कुछ बोले नहीं, बस चुपचाप प्यासी सी नज़रों से एक दूसरे का लँड देखते रहे! मस्ती इतनी छा गयी कि मूतने के बाद भी लँड अंदर करने का दिल नहीं कर रहा था! धर्मेन्द्र भी अपना लँड हाथ में लिये मुझे आराम से दिखा रहा था! तभी किसी और की आहट आयी तो हम दोनो ने ही अपने अपने लँड अपनी ज़िप में घुसा के बन्द किये और वहाँ से वापस हो लिये! जब मैं विनोद की तरफ़ जा रहा था तो धर्मेन्द्र मुझे गहरी नज़रों से देखता हुआ वहाँ से गुज़रा! उसकी आँखें मुझे कुछ इशारा कर रहीं थी! बस किसी तरह उसके साथ सैटिंग करनी थी, लगता था धर्मेन्द्र का काम तो हो गया था! एकदम अन-एक्स्पेक्टेड मगर सॉलिड लौंडा!
विनोद अब अकेला था, बाकी जा चुके थे!
‘आजा बैठ ना… क्यों, तू जा नहीं रहा है क्या?’
‘जाना तो है यार…’
‘किस तरफ़ रहता है?’ उसने पूछा तो मैने अपना एरीआ बताया!
‘मुझे उसी तरफ़ जाना है, चल तुझे बाइक पर छोड दूँ…’ उसने जब ऑफ़र दिया तो मैं तैयार हो गया! उसके पास बुलेट थी जो उसकी देसी जवानी को सूट कर रही थी, उसने किक मार के स्टार्ट की और जब टाँगें उठा के उस पर बैठा तो अचानक उसकी पैंट बहुत ज़्यादा टाइट हो गयी और टी-शर्ट भी पीछे से ऐसी उठी कि उसकी अँडरवीअर की इलास्टिक और कमर दिखने लगी! मैं जल्दी से उसके पीछे बैठ गया! मेरी जाँघ एक दो बार उसकी कमर से टच हुई और एक दो बार मैने बातों बातों में उसके कंधे और एक दो बार उसकी जाँघ पर भी हाथ रखा! ये पहला मौका था, जब मुझे वो सब करने को मिल रहा था!
उसने मेरी गली पर असद के ढाबे के सामने ही बाइक रोक दी तो मैने उसको चाय पीने के लिये रोक लिया! वो मेरे रूम पर आ गया!
‘तू अकेला रहता है?’
‘हाँ…’
‘तब तो बढिया है… कभी अपने रूम की चाबी दे दियो यार…’
‘क्यों क्या करेगा?’ मैने मुस्कुरा के पूछा!
‘रंडी लाऊँगा…’
‘अच्छा यार, ले लेना चाबी…’
‘अबे कभी दारू वारू का प्रोग्राम बना ना… यहाँ तो बढिया सैटिंग है…’
‘हाँ यार, कभी भी बना ले…’ वो भी एक्साइटेड हो गया!
‘वाह यार, मज़ा आ जायेगा…’ उस दिन हम थोडा फ़्रैंक हुये!
‘चल तुझे किसी दिन अपना एरीआ दिखा दूँ… देख ले, जाटों का मोहल्ला कैसा होता है…’
‘ठीक है यार, कभी भी बुला लेना… चल पडूँगा…’
अब तो मुझे विनोद और भी सैक्सी लगने लगा था! मेरे मन में तो कीडा घूमने लगा! अभी ढाबे से एक लडका चाय ले आया! वो नया सा था, मैने उसको पहले नहीं देखा था! कमसिन सा, गुलाबी, गोरा, नाज़ुक सा लौंडा था!
‘क्यों, तू नया है क्या?’
‘जी भैयाजी…’
‘क्या नाम है?’
‘विशम्भर…’
‘कहाँ का रहने वाला है?’
‘बीकानेर का…’
‘ला बे, इधर रख दे चाय…’ विनोद उससे बोला फ़िर जब वो चला गया तो वो अचानक बोला ‘साला बडा चिकना सा था…’
‘क्या मतलब यार… कौन चिकना था?’ मेरे मन में तो उसकी बात से उमँग जग उठी!
‘यही ढाबे वाला… साले के होंठ और कमर देखे थे लौंडिया की तरह थे…’
‘अबे तू ये सब क्यों देख रहा था?’
‘साले, जवान हूँ… देखने में क्या जाता है… हा हा हा हा…’ फ़िर उसने बात पलट दी!
मुझे अँधेरे में उम्मीद की एक किरण दिखी! अब मुझे लगा उससे दोस्ती बढाने में फ़ायदा है! उससे जाते जाते मैने उसके घर जाने का प्रॉमिस किया और उससे भी अपने रूम में आते रहने के लिये कहा! उसके जाने के बाद विशम्भर ग्लास लेने आया तो मैने उसको तबियत से ऊपर से नीचे तक निहारा! वो एक टैरिकॉट की पुरानी सी व्हाइट पैंट पहने था और साथ में एक फ़ुल नैक का स्वेटर!
‘क्यों, कब से आया है?’
‘मैं यहाँ तो परसों से ही आया हूँ… पहले मालिक के घर पर काम करता था…’
‘अच्छा, बढिया है… यहाँ आ जाया कर… बैठ के बातें करेंगे…’
‘जी भैयाजी’ वो सच में बिल्कुल मिश्री की डली की तरह मीठा और काजू की तरह मसालेदार लौंडा था! मैने उसकी नज़र के सामने ही उसको निहारा और अपने होंठों पर ज़बान फ़ेरी!
‘रात में खाना ले आना…’
‘कितने बजे?’
‘कितने बजे सोता है तू?’
‘जी आजकल तो १२ बजे…’
‘ठीक है… उसके पहले जब टाइम हो, ले आना…’
जब मैने विशम्भर को भेज के दरवाज़ा बन्द कर रहा था तो सामने से एक बडा मादक लौंडा आता दिखा! वो कुछ नये से अन्दाज़ में इधर उधर देख रहा था और उसके कंधे पर एक बैग टंगा था! यही कोई १७-१८ साल का चकाचक पीस था जो एक सुंदर सा मल्टी कलर्ड स्वेटर और ब्राउन कार्गो पहने था! मस्त सा देसी चिकना था जिसके चेहरे पर अभी बाल भी नहीं आये थे और आँखों मदमस्त भूरी थीं! उसने मुझसे गौरव के बारे में पूछा, जो मेरे रूम के ऊपर वाले रूम में सैकँड फ़्लोर पर रहता था! वो लडका चला गया मगर मैने उतनी सी देर में उसके जिस्म के हर कटाव को देख-पढ लिया!
अभी मैं दरवाज़ा बन्द करके लौटा ही था कि फ़िर नॉक हुआ! खोला तो पाया, वही लडका था!
‘गौरव तो शायद है नहीं, क्या मैं कुछ देर यहाँ बैठ जाऊँ?’ वो जब कमरे में आकर मेरी पलँग पर बैठा तो मैने पाया कि वो उससे कहीं ज़्यादा खूबसूरत था, जितना मुझे पहली नज़र में लगा था! मैने उसको जी भर के निहारा! काफ़ी देर होने पर भी गौरव नहीं आया!
‘चिन्ता मत करो, यहीं सो जाना…’ मैने उसको आश्‍वासन दिया!
‘ये रह कहाँ गया?’
‘पता नहीं, मुझे तो कभी कभी मिलता है…’ उस नये लडके का नाम निशिकांत शुक्ला था और वो उन्‍नाव से इंजीनीरिंग डिप्लोमा के फ़ॉर्म्स लेने आया था मगर उसको ये नहीं मालूम था कि गौरव तो तीन दिन के लिये अपने कॉलेज के दोस्तों के साथ शिमला गया हुआ था! उसकी मौजूदगी में विशम्भर का आना भी बेकार था सो मैं उसके साथ ढाबे पर चला गया! वहाँ असद मिला तो मैने उससे हाथ मिलाया!
‘कहाँ हो यार, तुम तो दिखे ही नहीं…’
‘बस ऐसे ही काम में लगा हूँ…’ ना उसकी बातों से और ना मेरी बातों से हमारे बीच बने उस नये सम्बन्ध की झलक दिखी!
मैने और निशिकांत ने साथ में खाना खाया! वो खाते हुये भी सुंदर लग रहा था! हमारी टेबल पर विशम्भर खाना ला रहा था! मैने धीरे धीरे निशी से सैक्सी बातें शुरु कर दी थीं और वो भी खुलने लगा था जिससे मुझे उसकी हरामी गहरायी का पता चलने लगा था! लौंडा शातिर था, तभी सामने से एक लडकी जीन्स पहन के निकली तो वो बोला!
‘देखो साली की गाँड देखो… साली के छेद में सुपाडा भिडा देंगे तो साँस रुक जायेगी!’
‘हाँ यार, बढिया माल है…’
‘हाँ साली गाँड उठा उठा के चूत देगी… रात भर में ही साली को लोड कर देंगे…’
वो खूब मस्ती से सैक्सी बातें कर रहा था! फ़िर जब हम रूम पर आये तो हमने सिगरेट पी!
‘यार लगता है, आज तुमको यहीं सोना पडेगा…’
‘अब क्या करें यार… तुम्हें दिक्‍कत तो नहीं होगी?’
‘नहीं साथ में सो जायेंगे…’ मेरे ये कहने पर वो चँचलता से मुस्कुराया!
‘ध्यान से सोना पडेगा…’
‘जाडे में सही रहता है…’
‘हाँ, मगर गर्मी चढती है तो डेंजर हो जाता है…’
‘तो क्या हुआ?’
‘अभी तो कुछ नहीं हुआ, मगर वॉर्निंग दे रहा हूँ…’
‘बेटा डरायेगा तो सोयेगा कहाँ? बाहर सडक पर?’ मैने हँसते हुए कहा!
‘हाँ यार… सोना भी है… मजबूरी है..’
तेज़ ठँड थी! उसने बाथरूम में जाकर कपडे चेंज किये और ठिठुरते हुये शॉर्ट्स और टी-शर्ट पहन के आया और रज़ाई में घुस गया!
‘यार, गाँड फ़ाडू सर्दी है आज…’ मैने बाथरूम में चेंज करने गया और देखा कि उसकी कार्गो दरवाज़े के पीछे खूंटी पर टंगी है! उसके अंदर उसकी चड्‍डी थी, ब्लैक फ़्रैंची… मुझसे रहा ना गया और मैने उसकी चड्‍डी हाथ में लेकर उसमें मुह घुसा के उसकी जवानी की खुश्बू सूंघी और मस्त हो गया! लौंडों की चड्‍डियाँ सूंघना मेरा पुराना शौक़ है! शायद उसका लँड खडा भी हुआ था क्योंकि उसकी चड्‍डी पर एक दो हल्के सफ़ेद धब्बे भी थे! मैने उनको ज़बान से चाटा और फ़िर अपनी शॉर्ट्स और टी-शर्ट पहन के बाहर आ गया और सर्दी का ड्रामा करते हुए जब रज़ाई में घुसा जो उसकी जवानी की गर्मी से पहले ही गर्म हो चुकी थी! कुछ देर में हम दोनो ही गर्म हो गये और हमने रूम की लाइट ऑफ़ कर दी मगर फ़िर भी बाहर से काफ़ी लाइट आ रही थी!
कुछ देर तो हम सीधे लेटे रहे, फ़िर जब एक दूसरे की तरफ़ करवट ली तो एक दूसरे की साँसें एक दूसरे के चेहरे को छूने लगीं! उसकी साँस में मस्त खुश्बू थी, देसी जवानी की! वो मुझे बेक़ाबू कर रहा था! हमारे पैर भी आपस में टच कर रहे थे! निशिकांत का जिस्म गदराया और गर्म था! अभी मैं सम्भल भी नहीं पाया था कि उसने एक करवट ली और अपनी एक जाँघ मेरी कमर पर चढा के अपना एक हाथ मेरे पेट के अक्रॉस रख दिया! मुझे उस शाम पहली बार उसकी ताक़त का आभास हुआ! वो मेरे ऊपर अपना वज़न दिये हुए था! मैने उसको छेडा नहीं और उसकी उस पकड का मज़ा लेता रहा! मैं चित्त लेता था और वो करवट से! उसकी जाँघ मेरे लँड से कुछ ही दूर थी, मेरा लँड खडा होने की कगार पर था! मैं भी चुपचाप लेटा सोने का नाटक करता रहा! उस करवट में उसका मुह भी मेरी गर्दन पर साइड से बहुत नज़दीक आ गया था जिस से उसकी गर्म साँस मेरी गरदन से टकरा रही थी!
कुछ देर बाद निशिकांत ने अपना पैर मेरे ऊपर कुछ और चढाया! अब उसकी जाँघ सीधे मेरे लँड पर आ गयी और अब मैं लँड के ठनकने को नहीं रोक पाया! मैने सोचा सोने का ड्रामा करता रहता हूँ, अगर वो उठ के मेरे लँड को खडा पायेगा तो खुद ही पैर हटा लेगा! मगर मुझे तो अब नींद आ ही नहीं रही थी! अभी मैं कुछ समझ ही पाता कि अचानक निशी का पैर हिला और मेरे लँड पर उसकी जाँघ हल्के हल्के रगडी! मैने अभी सोचा वो नींद में है! मेरा लँड अब हुल्लाड मार रहा था! इसी बीच उसका हाथ मेरे पेट से नीचे की तरफ़ सरका! उसकी जाँघ हल्के से मेरे लँड से अलग हुई और देखते देखते निशिकांत की हथेली मेरे खडे हुये लँड के ऊपर रगडने लगी! जब उसने अगले कुछ पल में मेरे लँड को अपनी मुठ्‍ठी में पकड के हल्का सा दबाया तो मेरी समझ में आया कि वो एक्चुअली जागा हुआ है! क्योंकि तब मुझे अपनी कमर पर उसके लँड की गर्मी और सख्ती का भी आभास हुआ! उसने अब अपने लँड को हल्के हल्के धक्‍कों से मेरी कमर पर रगडना शुरू कर दिया! मैने इस बार अपना हाथ नीचे किया और पहली बार उसके लँड की सख्ती को अपनी हथेली की उलटी तरफ़ महसूस किया और देखते देखते मैने उसके लँड को थाम लिया! उसका लँड जवानी के जोश में हुल्लाड मार रहा था! ज़्यादा मोटा नहीं था मगर सख्त और लम्बा था! मैने कुछ उँगलियों से उसको पकड के नापा और उसके सुपाडे को अपनी उँगली और अँगूठे से दबाया! कुछ देर एक दूसरे का लँड सहलाने के बाद बिना कुछ कहे हम एक दूसरे की तरफ़ पलटे और एक दूसरे से चिपक के भिड गये!
अब माहौल गर्म था! हमने कुछ बात नहीं की मगर मैने सीधा अपने गालों से उसके चिकने गालों को सहलाया, और फ़िर जब मैने अपने होंठ उसके होंठ पर रख कर उनको सहलाया तो उसने मुह खोल दिया और हम एक दूसरे के होंठों को चूम कर चूसने लगे और हमारी ज़बान एक दूसरे से गुँथने लगीं! वो लपक लपक के मेरे होंठ चुस रहा था और भूखे शेर की तरह अपने मुह को मेरे मुह पर दबा रहा था! जब उसने अपना हाथ मेरी गाँड पर रख कर मेरे छेद के पास अपनी उँगलियाँ दबायी तो मैने अपना एक पैर उसके ऊपर चढा के अपनी गाँड उसके लिये सही से खोल दी!
मैने उसके लँड को उसकी शॉर्ट्स के निचले हिस्से से बाहर करके उसको थाम के दबाना शुरु कर दिया! उसने मेरी शॉर्ट्स थोडा नीचे खिसका दी और मेरी गाँड को अपने हाथों से नोचने लगा और मेरे छेद को अपनी उँगलियों से कुरेदने लगा! मेरा छेद तो फ़ौरन खुलने लगा! अब मैं नीचे हुआ और अपना सर उसकी जाँघों के बीच रख दिया! उसने मेरे सर को एक बार कस के जकड लिया! वहाँ उसके पसीने और बदन की मादक खुश्बू थी! मैने उसकी जाँघ पर किस किया और फ़िर ऊपर होकर सीधा उसके सुपाडे को मुह में ले लिया! उसका सुपाडा अपने आप खुल गया और वो मेरे मुह को चोदने लगा! इस बीच मैने उसकी शॉर्ट्स सरका के उतार दी और फ़िर खुद भी नँगा हो गया! फ़िर वो मेरी छाती पर चढ गया और मुझसे अपना लँड चुसवाने लगा! मैने वैसा करने में उसकी गाँड की दोनो फ़ाँको को पकड के दबाना शुरु कर दिया! फ़िर वो पलट के बैठ गया, अब उसकी गाँड मेरे मुह की तरफ़ थी! उसने उसी पोज़िशन में अपना लँड अड्जस्ट करके मेरे मुह में डाला और मेरे ऊपर झुक गया! कुछ देर में मुझे अपने सुपाडे पर जब उसके होंठ महसूस हुए तो मेरी गाँड भी उठने लगी और मैं उसके गर्म मुह का मज़ा लेने लगा! उसने अपने हाथों को मेरे चूतड के नीचे फ़ँसा के मेरी गाँड दबाना शुरू कर दी! फ़िर उसने मुझे पलट दिया और जब पहली बार मेरी गाँड को किस किया तो मैं मचल गया और मेरी गाँड बेतहाशा कुलबुला गयी!
उसने मेरी गाँड को फ़ैला रखा था और फ़िर उसने आराम से मेरी गाँड की फ़ाँकों के बीच की दरार में अपना मुह घुसा दिया और साथ में एक उँगली को मेरे छेद पर दबाने लगा! अब वो कभी मेरे छेद को किस करता कभी उसमें उँगली करता! उसकी उँगली धीरे धीरे मेरे छेद में घुसने लगी!
‘तेल है?’ उसने पहली बार कुछ कहा!
‘हाँ सामने टेबल से ले ले…’ उसने बस एक पैर नीचे उतार के टेबल से चमेली के तेल की बॉटल उठा ली! फ़िर तो उसकी उँगली सटासट मेरे छेद में घुसने लगी!
‘चढ जाऊँ ऊपर?’ वो कुछ देर बाद फ़िर बोला!
‘हाँ चढ जा ना…’ मैने कहा! उसने अपने लँड पर तेल लगाया और जब मैने उसको देखा तो उसका चिकना और गोरा शरीर दमक रहा था! उसकी छाती के और बाज़ुओं के कटाव साफ़ दिख रहे थे! फ़िर उसका सुपाडा सीधा मेरे छेद पर आकर टिका तो मैने कसमसा कर सिसकारी भरते हुए अपने छेद और गाँड को भींच लिया! उसने अपने लँड को हाथ में लेकर मेरी दरार पर एक दो बार दबा दबा के पूरा रगडा! वो कमर से शुरु होकर सीधा मेरे आँडूओं की जड तक अपना लँड रगडता! मेरी गाँड अपने आप ही मस्त होकर उचक जाती और जाँघें फ़ैल जाती! उसने रुक कर मेरी जाँघ का पिछला हिस्सा, चूतड और कमर रगड के दबाये!
‘अआहहहह… नि…शी… अआहहह… सी.. उउउहहह…’ मैं सिर्फ़ सिसकारी भरता!
उसने फ़िर अपने उलटे हाथ से अपने लँड को पकड के मेरे छेद पर लगाया और दूसरे हाथ की एक उँगली और अँगूठे से मेरे छेद को फ़ैलाया और जब दबाव दिया तो पहले से ही मस्त हो चुकी मेरी गाँड कुलबुला गयी और उसका सुपाडा मेरे छेद में समा गया! इस बार उसने भी मस्ती से भर के सिसकारी भरी!
‘अआहहह… सु…उहहह… सु..हहह…’ और अपने लँड पर ज़ोर बढा कर उसको धीरे धीरे करके तब तक दबाता रहा जब तक वो पूरा का पूरा मेरी गाँड के अंदर नहीं घुस गया! फ़िर उसने अपने दोनो हाथों से मेरे कंधे पकड लिये और अपने गालों को पीछे से मेरे गालों के बगल में लाकर चिपकाता रहा और हल्के हल्के धक्‍के देकर मेरी गाँड चोदना शुरु कर दी! उसके हर धक्‍के में अच्छी देसी ताक़त थी! मेरी गाँड तुरन्त भरपूर ठरक में आ गयी! मैं भी उससे गाँड उठा उठा के चुदवाने लगा! उससे धक्‍कों में इतनी ताक़त थी कि कुछ देर में कमरे में चुदायी की चपाचप चप चपाचप गूँजने लगी और साथ में हम दोनो की सिसकारियाँ…
वो जब थक जाता तो वैसे ही गाँड में लँड डाले डाले ही मेरे ऊपर पस्त होकर लेट जाता! वैसे ही लेटने में उसने कहा!
‘मज़ा आ रहा है ना?’
‘हाँ यार बहुत…’
‘देख, कैसे किस्मत से मिल गये…’
‘हाँ वो तो है…’
‘ओए यार, किसी से ये सब बताना नहीं… पता चले कि तू गौरव से कह दे… साला पूरे में फ़ैला देगा… ये सब मैं बस चुपचाप करता हूँ…’
‘कहूँगा क्यों यार… मैं भी चुपचाप करता हूँ और वैसे भी गौरव से ज़्यादा दोस्ती नहीं है…’
सुस्ताने के बाद उसने फ़िर मेरी गाँड मारना शुरु कर दिया!
‘साली सारी थकान मिट गयी… थकान मिटाने का बेस्ट तरीका है…’
‘हाँ, पूरी एक्सरसाइज़ हो जाती है…’
‘चल राजा, थोडी गाँड ऊपर उठा… कुतिया की तरह…’ मैने उसके ये कहने पर अपने घुटने मोड के गाँड पूरी ऊपर उठा दी! उसने फ़िर अपने एक हाथ से चप चप एक दो बार मेरी गाँड पर अपनी हथेली मारी!
‘वैसे तेरी चिकनी है…’
‘थैंक्स यार…’ उसके बाद वो मेरी गाँड के पीछे घुटनो के बल बैठा और फ़िर लँड मेरी गाँड के अंदर बाहर करने लगा! उस रात उसने काफ़ी देर चोद चोद के मेरी गाँड को मस्त कर दिया! फ़िर वैसे ही चिपक के मेरे साथ नँगा सो गया! जब सुबह मेरी आँख खुली तो तो वो बाथरूम में नहा रहा था! उस सुबह हमने पिछली रात की कोई बात नहीं की, बस एक दो बार हसरत भरी नज़रों से एक दूसरे को देखा!
उस दिन हम साथ ही निकले! मैने उसको बस पकडवा दी और लौटने का टाइम फ़िक्स कर लिया और खुद अपनी क्लासेज़ के लिये चला गया! उस दिन कॉलेज के गेट पर घुसते ही धर्मेन्द्र मिल गया! उस दिन उसने जब मुस्कुरा के मुझसे हाथ मिलाया तो उसकी पकड और उसकी नज़रों में जानी पहचानी ठरक थी! इन्फ़ैक्ट वो अब मुझे भी बहुत ज़्यादा सैक्सी लग रहा था! उस दिन से धर्मेन्द्र और मैं भी ठरक के कारण क्लोज़ आने लगे थे! उसको देखते ही मेरा मन तो कर रहा था कि उसको नँगा करके उसके सामने नँगा हो जाऊँ मगर कॉलेज में बना के रखनी पडती है! बातों बातों में पता चला कि धर्मेन्द्र को उस दिन ११ बजे स्पोर्ट्स प्रैक्टिस के लिये जाना था! वो कॉलेज की वॉलीबॉल टीम में खेलता था! मैने फ़िर उसके मज़बूत हाथ देखे जो वॉलीबॉल खेल कर मस्त गदरा गये थे! बीच बीच में मुझे निशिकांत के साथ गुज़ारी हुई रात भी याद आती रही!

















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