Sunday, February 8, 2015

Fentency माँ की अगन --4

Fentency

 माँ की अगन --4

 घडी मे ११-५५ बज चुके थे सुरज की कीरने अपनी तपीश बरसाने लगी थी । विजय सरला को अपनी गोद मे
बीठाये उसके रसिले होटों का रसपान कर रहा था। सरला के लाख मना करने पर भी विजय सरला को अपने
बाजूओं मे जखडे उसके लाल रसिले होटों से निकलती खुशबू वाले पान की मीठास चख रहा था। सरला भी
अपनी शहद सी मीठी लार विजय के मुंह मे छोड रही थी वो साडी उपर कीये पैर फैलाये उसके तन्नाये लंड पे
बैठी थी निचे विजय का लंड सरला के चुत के छेद को चुम रहा था । कामवासना से रोमांचित सरला की चुत लंड
के सुपडे को चुत से रीस रहे पाणी से गीला कर रही थी । सरला की दोनो चुंचिया चोली मे पसिने से तरबतर
विजय की नंगी छाती से चिपकी हुई थी । दोनो के हवस का बांध कीसी भी समय तुट सकता था पर शायद
समय को कुछ और मंजूर था । तभी दोनो के बीच की दूरी बढाने विजय का फोन बज पडा फोन की बेल जोर-
जोर से बजने लगी । और विजय की बाहें खुल गई और अपने होंट विजय के होंटों से छुडाते सरला रसोई मे दौड
पडी ।
विजय- हलो कौन ।
हरीया- अरे विजय बेटा, हम हरीया काका बोल रहा हूं जिले के असपताल से।
हरीया जिले के अस्पताल मे झाडू-पोछा लगाने का काम करता था जिसकी पहचान विजय से विजय के बापू को
अस्पताल मे दाखिल कराने के बाद हूई थी।
विजय- हा हा हरीया काका बोलीये।
हरीया- अरे बीटवा तेरे बापू की तबीयत सूबह से बहोत बीगड गई है तुझे तुरंत डाक्टर साहब ने असपताल
बुलाया है।
विजय- क्या बात कर रहे हो काका ठीक है, ठीक है मै तुरंत निकलता हूं।
विजय हडबडाते कपडे पहनने लगता है ।
विजय को गडबडी मे देख सरला बडी घबरा जाती है , और पुछती है।
सरला- क क क्या हूआ विजय कीसका फोन था।
विजय- मां बापू की हालत बहोत बीगड गई है में अस्पताल जा रहा हूं ।
सरला को तो जैसे झटका लगता है । उसकी कुछ दीनों की खुशी अचानक उससे दूर हो जाती है सरला माथे पर
हाथ लगाए सदमे में वही बैठ जाती है । विजय घर से निकलता है और जैसे-तैसे जिले के अस्पताल पोहोचता
है।
उसे वार्ड के बाहर हरीया झाडू लगाते दीखता है।
विजय- हरीया काका क्या हूआ बापू को
हरीया- बेटा सुबह से तबीयत खराब है, तेरे बापू की ।
विजय उसके बापू के खटीये के पास आता है वो देखता है उसके बापू के आधे बदन को लकवा मार चुका था वहा
डॉक्टर बैठ के चेकअप कर रहा था।
विजय- डॉक्टर साब
डॉक्टर- विजय जरा बाहर आयेंगे
डॉक्टर विजय को लेकर बाहर कॉरीडोर मे आता है
डॉक्टर- विजयजी देखिये आपके लिये एक बुरी खबर है। मुझे नही लगता आपके पिताजी अब और दीन देख
पायेंगें ।
विजय को जो खबर सुनने की आशंका थी वही हुआ । पर उसे इस बात पर क्या प्रतिक्रीया देना चाहीये इस
दुवीधा मे वो था।
विजय- ड डॉक्टर साब पर क्या सच मे कोई गुंजाईश नही है बापू के ईस हाल से बाहर निकलने की ।
डॉक्टर ने खिडकी से विजय के बापू के ओर ईशारा कीया ।
डॉक्टर- विजयजी आप आपके पिताजी को आज जीस हालत मे देख रहे है, उसे हम मेडीकल भाषा मे क्रीटीकल
कंडीशन कहते है। आप चाहें तो कीसी और अस्पताल मे ईनका ईलाज करवा सकते है । पर मेरी राय माने तो
ईन्हे आप आखरी दीनों मे अपने साथ आपके घर ले जाईये ।
तभी एक वार्डबॉय भागता डॉक्टर के पास आता है।
वार्डबॉय- डॉक्टर जल्दी चलीये वो वार्ड-बी मे पेशंट नं ९ की हालत बेहत नाजूक है।
डॉक्टर तुरंत वहां से चल पडता है । विजय मायूसी मे वही खडा रहकर सोच मे पड जाता है।
 विजय के पास हरीया आता है।
हरीया- क्या कहां डाकटर ने विजय बेटा।
विजय- अब कुछ नही हो सकता काका । बापू के अब कुछ दीन बचे हैं ।
हरीया- अब क्या करे बेटा सब नसीब का खेल है ।
कुछ देर बाद विजयने उसके बापू का डीस्चार्ज लेकर अस्पताल की वैन से घर ले आया।
सरला घर मे बडे सदमे में बैठी थी गांव के कुछ लोग अस्पताल की वैन देखते दौडते चले आये उन्होने विजय
को विजय के बापू को घर लाने मे मदत की । लोग घर के बाहर खडे हुए एक दुसरे से विजय के बापू के हालत
के बारे मे बाते करने लगे सरला विजय के बापू की हालत देख फूट-फूट के रोने लगी । कुछ देर बाद लोग वहां से
चले गये।
सरला अभी भी रो रही थी । विजय सरला के पास बैठे उसे चुप करने की कोशीश करने लगा पर वो रोती रही
विजय ने उसे कुछ देर बाद वहां से उठाकर रसोई के पास ले गया । सरला विजय के कंधे पर सर रखे रोती रही
उसने रोते हुए पुछा।
सरला- क्या तेरे बापू को विजय , डाकटर ने क्या कहां बताना वो ठीक तो हो जाएंगे ना ।
विजय- मां तु चिंता मत कर मैं हू ना ।
सरला- बता ना तेरे बापू कब ठीक होंगे।
विजय ने सरला को बाहों मे भर लिया
विजय- मां बापू अब ज्यादा दीन जी नही पायेंगे
सरला फीर रोने लगी ।
सरला- ये सब मेरे वजह से हुआ है, मैने तेरे साथ पाप कीया उसिकी सजा मुझे मिल रही है।
विजय- तु कैसी बहकी-बहकी बातें कर रही है मां एसा कुछ नही है बापू तो कब के बीमार थे ।
सरला चुप रही।
सरला उठ कर अपने पती के पास गई और वही बैठी रही कुछ खाए ना पिये शाम तक रोती रही विजय के बापू के आधे
बदन मे लखवा मार गया था तो वो पुरे बिस्तर पर लेटे रहते।
रात होने लगी विजय उसके बापू की हालत देखे पूरा उदास हो चुका था वो बचपन की अपने पीता के साथ गुजारी
हर बातें याद करने लगा वो यादों मे खो गया उसके बंद आखों से कुछ आंसू झलके उसने आंखे खोली तो पास मे
बैठी सरला का पल्लू जमिन पर गीरा पडा था और उसके मोटे-मोटे टरबूज पसिने से भीगे चमक रहे थे उसके
आंसू मुह से बहते हुए उसके चोली मे चुचिंयो के बीच खाई मे कीसी झरने की तरह बहते जा रहे थे। सरला
सुधबुध खोये अपने पती की देखभाल कर रही थी। पर उसके पीछे देख रहा उसका बेटा विजय की उदासी पल मे
गायब हो गई और हवस जाग चुकी थी। विजय सरला के पास गया और उसने सिधा अपने दोनो हाथ उसकी
मांसल चुचियों पे रखे और वो उसे उठाने लगा सरला की चुचिंया पुरी दब गई पर उसे इसका कुछ अंदाजा नही
था।
विजय- चल मां, चल कुछ खाले चल।
सरला- नही छोड मुझे
विजय उसे रसोई ले आया सरला वहां कोने मे बैठ गई
विजय ने सरला के लिए थाली परोसी और सरला को अपनी जांघ पर बीठाया और उसे अपने हाथों से खाना
खिलाने लगा सरला चुपचाप कुछ खाना खाने लगी।
विजय- अरे मेरी रानी कुछ खाएगी नही तो कैसे चलेगा ।
सरला ने बडी देर बाद चुप्पी तोडी
सरला- तुने कुछ खाया की नही
विजय- मेरी जान वहां रोती उदास भुकी रहेगी तो क्या मुझे मजा आएगा । आज जबतक तु मुझे नही खिलाएगी
में भुका ही रहूंगा। सरला की आंखे पनिया गई उसने भी विजय को खिलाना शूरू कीया।
खाना खाने के बाद विजय ने सरला को गोद मे उठाया और कमरे मे ले गया और उसे चुमना शूरू कीया रो –रो
कर सरला की आंखे सुज चुक थी बाल बीखरे थे वो विजय का विरोध करने की हालत मे नही थी।
विजय को भी इस बात का अहसास हुआ तो वो भी उसे बीस्तर पर लेटी छोड वहां से हट गया ।
कुछ देर बाद वो उसके पास सोने चला आया ।








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