Sunday, February 8, 2015

Fentency खानदानी औरतें-3

Fentency

  खानदानी औरतें-3

 नतियागली जाते हुए मैंने जान बूझ कर कार आहिस्ता ड्राइव की और हम शाम 4 बजे के क़रीब नतियागली पुहँचे. फूफी शहनाज़ को मैंने बताया के लेट हो जाने की वजह से मजबूरन हमें रात यहाँ रुकना पड़े गा. उन्होने कोई ऐतराज़ नही किया. शायद घर के शोर शराबे से दूर वो भी एंजाय कर रही थीं .

नतियागली में होटेल कम हैं और गर्मियों में वहाँ बहुत ज़ियादा रश होता है. जिस होटेल में मैंने कमरा बुक करवया था वो एक अलग थलग सी जगह पर वक़ीया था और उस के कमरे एक दूसरे से थोड़े फासली पर थे. मै होटेल के अंदर गया और फिर बाहर आ कर दोनो फुफियों को बताया के सिर्फ़ एक ही कमरा मिला है हमें गुज़ारा करना पड़े गा. फूफी खादीजा ने कहा कोई बात नही ज़मीन पर मॅट्रेसस डलवा लें गे. फिर हम चारों कमरे में आ गए.


कमरे में आ कर फूफी शहनाज़ ने कहा के वो तो अपने साथ रात को सोने के कपड़े नही लाईन क्योंके उनका ख़याल था के हम आज ही वापस चले जायेंगे. फूफी खादीजा चूँके हमारे प्रोग्राम से वाक़िफ़ थीं इस लिये अपने साथ कपड़ों के दो तीन जोड़े ले कर आई थीं . उन्होने फूफी शहनाज़ से कहा के वो लाहोर से आईं तो एरपोर्ट से घर आते हुए उनका एक बैग गाड़ी ही में पडा रह गया था उस में कपड़े हैं. मै उनका बैग कमरे में ले आया और उन्होने अपना एक जोड़ा फूफी शहनाज़ को दे दिया. उन दोनो ने कपड़े बदल लिये. में और ज़ाहिद अलबता कुछ भी ले कर नही आए थे.

हम बहुत देर तक अपनी दोनो फुफियों से बातें करते रहे. रात को बातें करते करते अचानक ज़ाहिद ने कहा:
"में भी कपड़े नही लाया अब सोते वक़्त किया पहनूं गा."
"कोई बात नही ज़ाहिद चादर लपेट कर सो जाना यहाँ बाहर का तो कोई नही है." मैंने कहा.
"ज़ाहिद बेटा रात ही तो गुज़ारनी है सब घर वाले ही हैं यहाँ." फूफी शहनाज़ हंस कर बोलीं.

ज़ाहिद बाथरूम गया और बेड की चादर कमर के गिर्द लपेट कर आ गया. ज़ाहिद बचपन से ही बहुत ज़ियादा मोटा था और अब भी उस का यही हाल था. उस का पेट काफ़ी बाहर निकला हुआ था और अपने लंबे क़द की वजह से वो पूरा जिन नज़र आता था. वो ऊपर से नंगा था और चादर में से उस के बैठे हुए लंड का उभार नज़र आ रहा था जिस से अंदाज़ा लगाया जा सकता था के उस का लंड बहुत मोटा और लंबा है. मैंने भी यही किया और होटेल की चादरों में से एक चादर कमर पर बाँध ली.

ज़ाहिद आ कर सीधा फूफी खादीजा के साथ बेड पर बैठ गया. मै समझ गया के वो पहले फूफी खादीजा की चूत मारना चाहता है. फूफी खादीजा के चेहरे पर हल्की सी परैशानी की झलक थी. शायद वो भी जानती थीं के अब खेल शुरू होने वाला था और ज़ाहिद उनकी चूत लेने को तय्यार था.

अब हमें किसी तरह फूफी शहनाज़ को अपने साथ शामिल करना था. बातों के दोरान ज़ाहिद ने बड़ी बे-तकल्लूफ़ी से फूफी खादीजा की रान पर अपना हाथ रख दिया. फूफी खादीजा की मोटी रान पर उस का हाथ आया तो मैंने उस की तरफ देखा. उस का लंड अब खड़ा हो गया था और चादर के ऊपर 6/7 इंच की कोई मोटी सी डंडा-नुमा चीज़ नज़र आने लगी थी. फूफी खादीजा ने उस का लंड देखा लेकिन अपने आप को क़ाबू में रखा और कुछ नही बोलीं.

कुछ ही देर में फूफी शहनाज़ की नज़र ज़ाहिद के अकड़े हुए लंड पर पड़ गई. पहले तो वो हैरान रह गईं और उनके मुँह से एक लफ्ज़ भी नही निकला. फिर उन्होने फूफी खादीजा की तरफ देखा जो खामोश बैठी थीं और ज़ाहिद का हाथ अपनी रान से हटाने की कोई कोशिश नही कर रही थीं .
"ज़ाहिद ये किया हरकत है तुम अपनी फुफियों के सामने नंगे हो रहे हो तुम्हे हया करनी चाहिये." बिल-आख़िर फूफी शहनाज़ से ना रहा गया.
में जल्दी से उठ कर उस सोफे पर जा बैठा जहाँ फूफी शहनाज़ बैठी हुई थीं और कहा:
"फूफी शहनाज़ आप बहुत सी बातें नही जानतीं. हम आज यहाँ एक ख़ास मक़सद से आये हैं. उस मक़सद को जानने से पहले ज़रूरी है आप को कुछ और बातों का भी ईलम हो. एक तो ये के में फूफी खादीजा को कई महीनों से चोद रहा हूँ और दूसरे ये के ज़ाहिद चाची फ़हमीदा की चूत मार चुका है."
फूफी शहनाज़ को अपने कानो पर यक़ीन नही आया. उनका मुँह हैरत से खुला का खुला रह गया.
"ये किया बकवास कर रहा है बाजी खादीजा. हमारे सामने किस क़िसम की गंदी बातें कर रहा है." उन्होने फूफी खादीजा की तरफ देख कर कहा.
"शहनाज़ चुप रहो इन को शादी से पहले वाले तुम्हारे मसले का पता चल गया है और ये हमारी इज़्ज़त खराब कर के ही छोड़ें गे." फूफी खादीजा ने जवाब दिया.

हैरान होने की अब ज़ाहिद की बारी थी. मुझे तो पता था लेकिन ज़ाहिद के फरिश्तों को भी फूफी शहनाज़ के किसी मसले का ईलम नही था और फूफी खादीजा महज़ उन्हे डरा कर रास्ते पर लाने के लिये ऐसा कह रही थीं . ये समझना मुश्किल नही था के फूफी शहनाज़ के शादी से पहले किसी से ता’अलुक़ात रहे हूँ गे जिन का ईलम फूफी खादीजा को था और वो इस बात को इस्तेमाल कर के उनका मुँह बंद करना चाहती थीं .
“हाँ फूफी शहनाज़ हम सब जानते हैं और अगर आप की वो हरकत किसी को मालूम हो गई तो जो होगा वो आप सोच सकती हैं." मैंने फूफी खादीजा की तरफ मानी-खैीज़ अंदाज़ में देखते हुए अंधैरे में तीर चलाया.

फूफी शहनाज़ बिल्कुल खामोश हो गईं और मुझ से नज़रें चुराने लगीं. वो रोने वाली हो रही थीं . मुझे शक हुआ के शायद फूफी शहनाज़ उस आदमी से चुदवाती रही हूँ गी. तब ही तो इतना परेशां हो गई थीं . उनकी हालत देख कर फूफी खादीजा हल्का सा मुस्कुरा दीं और में सोचने लगा के सग़ी बहनें भी हसद की वजह से एक दूसरे को नीचा दिखाने से बाज़ नही रह सकतीं. फूफी खादीजा एक और वजह से भी फूफी शहनाज़ को हम से चूत मरवाते हुए देखना चाहती थीं और वो ये के चूँके वो खुद अपने भतीजों को फुद्दी दे रही थीं जो बहुत बुरा काम था इस लिये अब वो फूफी शहनाज़ को इस में शामिल कर के अपने आप को अख़लक़ी तौर पर कम तर साबित नही करना चाहती थीं के सिर्फ़ वो ही ऐसा बुरा काम कर रही हैं. वैसे कमाल की बात थी. कुछ अरसे पहले तक फूफी खादीजा मुझे चूत देने से इनकार कर रही थीं और आज अपनी तासकीं के लिये फूफी शहनाज़ को भी चूत मरवाते हुए देखना चाहती थीं .

"फिर अब मुझे किया करना है." कुछ देर बाद फूफी शहनाज़ बड़ी परैशानी से बोलीं. उन्हे समझ आ गई थी के उन्हे हम दोनो को या कम-आज़-कम किसी एक को चूत देने पड़े गी.
"तुम्हे इन की खाहिश पूरी करने ही पड़े गी शहनाज़ यानी इन से चुदवाना पड़े गा और कोई रास्ता नही है. मजबूरी में बहुत कुछ करना पड़ता है. तुम से पहले मेरे साथ भी यही हुआ है." फूफी खादीजा ने झूठ बोला. मैंने उन्हे चोदने के लिए ब्लॅकमेल नही किया था. फूफी शहनाज़ को उनके मुँह से ये अल्फ़ाज़ सुन कर यक़ीनन अजीब लगा होगा.
“बाजी खादीजा आप कैसी बातें कर रही हैं. हम भाई जान को फोन क्यों ना करें?" उनका इशारा डैड की तरफ था. वो अपने गुस्से और हैरत पर क़ाबू पाने की कोशिश कर रही थीं .
"शहनाज़ अक़ल से काम लो. मै ठीक कह रही हूँ. ये बात बाहर निकली तो कहीं की नही रहो गी." फूफी खादीजा ने उन्हे समझाते हुए कहा.
"लेकिन बाजी खादीजा ये तो हमारे बेटों जैसे हैं में इन के साथ ये काम कैसे कर लूं." फूफी शहनाज़ ने बड़ी पीटी हुई रिवायती दलील दी.
"शहनाज़ ये कहाँ से बच्चे हैं ये तो हमें चोदना चाहते हैं. एक तो हम मजबूर हैं दूसरे अगर सच पूछो तो तुम और में कौन सा अपने खाविंदओं से खुश हैं. वो अब हमारी जिस्मानी ज़रूरियात पूरी नही कर सकते. तुम खुद मुझे बता चुकी हो के तुम्हारा खाविंद ज़हूर कितने हफ्तों बाद तुम्हारे पास आता है और वो भी किस बे-दिली के साथ. जो हम कर रहे हैं गलत है मगर ये अपने ही बच्चे हैं कम-आज़-कम बात बाहर तो नही निकलेंगे ना." फूफी खादीजा ने एक दफ़ा फिर उन्हे समझाया.
"लेकिन बाजी खादीजा हम एक दूसरे के सामने कैसे नंगी हूँ गी?" फूफी शहनाज़ ने अपने बड़े बड़े बाहर निकले हुए मम्मों पर दुपट्टा फैलाते हुए कहा.
"छोड़ शहनाज़ ये पुरानी बातें. देख ज़माना कहाँ जा रहा है. हम अगर कुँवें के मैंडक बन कर रहें गे तो किसी का कोई नुक़सान नही सिरफ़ हमारा ही है. हमें कोई मसला नही हो गा बस यहाँ की बात यहीं तक ही रहनी चाहिये. ये दोनो किसी को नही बता सकते. चल थोड़ी देर के लिये सब कुछ भूल जा." फूफी खादीजा बोलीं.

अभी वो ये कह ही रही थीं के मैंने फूफी शहनाज़ का गोरा मुँह चूमा और उनकी क़मीज़ दामन से पकड़ कर उससे उतारने लगा. उनकी क़मीज़ मम्मों तक ऊपर उठ गई और गोरा पेट नज़र आने लगा. उन्होने हाथ से क़मीज़ नीचे की मगर जब मैंने उससे दोबारा पकड़ा तो फूफी शहनाज़ ने फूफी खादीजा की तरफ देखते हुए अपने दोनो हाथ ऊपर उठा दिये और मैंने उनकी क़मीज़ जो उनके मोटे मम्मों पर कसी हुई थी उतार कर उनका ऊपरी बदन नंगा कर दिया.

उनके मम्मे इतने बड़े थे के क़मीज़ खैंच कर उतारते वक़्त साइड से उस की सिलाई थोड़ी सी खुल गई. नीचे उन्होने सफ़ेद रंग का भारी सा ब्रा पहना हुआ था जिस के बीच में एक छोटी सी गुलाबी बो बनी हुई थी. फूफी खादीजा के मम्मों की तरह फूफी शहनाज़ के मम्मे भी आधे से ज़ियादा ब्रा से बाहर ही थे. मै फूफी शहनाज़ के नंगे बदन को देख रहा था के मेरी नज़र फूफी खादीजा पर पड़ी. वो बड़ी अजीब नज़रों से मुझे देख रही थीं . मैंने हाथ बढ़ा कर नाफ़ के क़रीब फूफी शहनाज़ के पेट के नरम गोश्त को पकड़ लिया. फिर मैंने उनके मम्मों पर हाथ फेरा तो उनके मुँह से ऐसी आवाज़ निकली जैसे मम्मे पकड़ने से उन्हे तक़लीफ़ हुई हो.



 फूफी शहनाज़ के मम्मे जो अभी तक ब्रा में चुप्पे हुए थे देख कर ज़ाहिद ने फूफी खादीजा की गर्दन में हाथ डाल कर उनको गले से लगा लिया और उनका मुँह चूमने लगा. फूफी खादीजा भी फॉरन उस का साथ देने लगीं और उनका चेहरा सुर्ख हो गया. मुझ से चुदवा कर फूफी खादीजा को चूत देने की शायद आदत भी हो गई थी और मज़ा भी आता था और अब जब उन्हे ज़ाहिद का लंड लेने का मोक़ा मिल रहा था तो वो बहुत जल्दी गरम हो गई थीं .

ज़ाहिद फूफी खादीजा के होंठ चूमते हुए बड़ी बे-दरदी से क़मीज़ के ऊपर से ही उनके मम्मों को ज़ोर ज़ोर से दबा रहा था. वो सी सी की आवाजें निकालने लगीं. फिर उस ने फूफी खादीजा की क़मीज़ उतार दी और उनके ब्रा को खोल कर उनके मोटे मोटे नंगे मम्मों को हाथों में ले कर मसलने लगा. फूफी खादीजा के मुँह से मुसलसल सिसकियाँ निकल रही थीं . उनके भारी और नाज़ुक मम्मे मसले जाने से लाल हो गए थे.

“ज़ाहिद फूफी खादीजा चूत देते हुए बहुत गालियाँ देती हैं. तुम इन्हे चोदते हुए इस के लिये तय्यार रहना.” मैंने कहा. फूफी खादीजा तो कुछ नही बोलीं लेकिन ज़ाहिद और फूफी शहनाज़ दोनो ही मेरी बात सुन कर हैरान हुए.

ज़ाहिद इस के बाद खड़ा हुआ और अपने जिसम के गिर्द लिपटी हुई चादर उतार दी. फूफी खादीजा ने खुद ही नाड़ा खोल कर अपनी शलवार उतार दी. ज़ाहिद का बहुत ही मोटा और लंबा लंड फूफी खादीजा के मुँह के सामने आ गया था. उन्होने बगैर कुछ कहे उस का लंड हाथ में ले लिया और पहले उस के टोपे पर ज़बान फेरी और फिर उससे चूसने लगीं. मैंने उन्हे ये करते देखा तो मेरा खून खोल गया. फूफी खादीजा ने मेरी तरफ देखा और जल्दी से अपनी नज़रें ज़ाहिद के लंड पर मर्कूज़ कर दीं.

मैंने भी फूफी शहनाज़ को खड़ा किया और उनका ब्रा हुक खोले बगैर ही मम्मों के ऊपर से खैंच कर उतार दिया. ब्रा उनके गले में आ गया जो उन्होने खुद उतार दिया. उनके वज़नी मम्मे अचानक ही ब्रा से निकल कर बाहर आ गए जो हू-ब-हू फूफी खादीजा की तरह ही थे. फूफी शहनाज़ के मम्मों की गोलाई, उभार और साइज़ तक़रीबन फूफी खादीजा के मम्मों जैसा ही था. फिर मैंने उनकी शलवार का नाड़ा खोल कर शलवार भी उतार दी और वो बिल्कुल नंगी हो गईं. उनकी चूत पर काले घने बाल नज़र आ राय थे. मैंने अपनी चादर हटा दी और उन्हे अपने साथ चिपटा लिया. उनका नरम गरम बदन बहुत मज़ा दे रहा था. मैंने अपना खड़ा हुआ लंड नीचे कर के फूफी शहनाज़ की नंगी चूत का साथ लगा दिया और उनके लिपस्टिक से लाल होंठ चूसने लगा.

फूफी शहनाज़ मेरा साथ नही दे रही थीं जिस पर मैंने उनकी चूत पर अपना हाथ रखा और उससे आहिस्ता आहिस्ता सहलाने लगा. फूफी शहनाज़ ने अपनी मोटी रानें और चूतर पीछे किये और मेरे हाथ को अपनी चूत से हटाने की कोशिश की. मैंने अपना लंड उनके हाथ में दिया और पीछे से उनके चूतरों को पकड़ कर उनके होठों को चूसता रहा. जब में उनके होंठ चूस रहा था तो वो तेज़ तेज़ साँस ले रही थीं और अपने होठों को मुझ से छुड़ाने की कोशिश कर रही थीं . मैंने ये देख कर पीछे से उनके सर को सख्ती से पकर लिया और इसी तरह उनके होठों को चूमता और चूसता रहा.

फिर मैंने उनके मुँह में अपना मुँह डाला और उनकी ज़बान चूसने लगा. शायद इस से पहले क़िस्सी ने फूफी शहनाज़ को चोदते हुए उनकी ज़बान नही चूसी थी. वो बार बार अपनी ज़बान पीछे खैंच लेतीं जो मेरे मुँह से निकल जाती थी. मैंने उनको कहा के अपनी ज़बान मेरे मुँह में आगे कर के डाले रक्खें ताके में उससे चूस सकूँ. उनके मोटे मम्मे मेरे सीने से लगे हुए थे और मेरा लंड उनके नरम हाथ में था.

कुछ देर फूफी शहनाज़ की ज़बान चूसने के बाद मैंने सोफे पर बैठ कर उन्हे अपनी गोद में बिठा लिया और उनके मम्मे बारी बारी अपने मुँह में डाल कर चूसने लगा. फूफी शहनाज़ चूँके बड़ी चौड़ी चकली औरत थीं और उनके चूतड़ मोटे और गोश्त से भरे हुए थे इस लिये जब वो मेरी गोद में बैठीं तो मेरा लंड उनके चूतड़ों के पीछे की तरफ़ नही पुहँचा बल्के आगे उनकी चूत के साथ लगा रहा. मेरे लंड का टोपा उनकी गरम चूत की गर्मी महसूस कर रहा था. अपने मम्मे चुस्वाते हुए वो खुद भी अब काफ़ी गरम हो चुकी थीं और उनके मुँह से मुसलसल आवाजें निकल रही थीं .

मैंने सर उठा कर देखा तो ज़ाहिद ने बिल्कुल नंगी फूफी खादीजा को बेड पर लिटाया हुआ था और खुद उनके ऊपर लेट कर उनके मम्मों के मोटे निप्पल चूस रहा था. फूफी खादीजा के मोटे और भारी मम्मे उस के मुँह से ज़ोर से बाहर निकल कर उछलते हुए नीचे आते और वो फिर उन्हे हाथ से पकड़ कर मुँह में ले लेता और उन्हे चूसना शुरू कर देता. फूफी खादीजा ज़ाहिद के नीचे लेतीं कसमसा रही थीं और उनकी दांयें वाली मोटी मज़बूत रान और सफ़ेद घुटना नज़र आ रहे थे.

फिर ज़ाहिद उठा और उस ने फूफी खादीजा को उल्टा कर दिया. अब वो अपना लंड उनकी मोटी और चौड़ी गांड़ के ऊपर रख कर रगड़ने लगा. ज़ाहिद बहुत वज़नी था और फूफी खादीजा के ऊपर चढ़ के उस ने अपना सारा वज़न उनके बदन पर डाल रखा था. उस का बड़ा सा लंड उनके मोटे लेकिन नरम चूतरों को बुरी तरह रगड़ रहा था और वो दोनो हाथ अपनी थोड़ी के नीचे रख कर अपने आप को चीखने से रोक रही थीं . फूफी खादीजा के मम्मे उनके बदन और बेड के दरमियन फँसे हुए थे मगर अब भी उनके बड़े बड़े उभार साफ़ नज़र आ रहे थे.

मेरे ज़हन में एक ख़याल आया और मैंने फूफी शहनाज़ को अपनी गोद से उतार कर बेड पर फूफी खादीजा के बराबर लिटा दिया और ज़ाहिद की तरह उनके ऊपर लेट कर उनके मम्मे चूसने लगा. अब हम दोनो कज़िन्स अपनी फुफियों के ऊपर लेते उनके मम्मे चूस रहे थे.
"अब फुद्दी ना चाटें ?" मैंने ज़ाहिद से पूछा.

“हाँ हाँ यार क्यों नही. लेकिन फुफियों के पास जो माल है उससे फुद्दी ना कहो. ये दो मोटे मोटे फुद्दे हैं.” वो बे-शर्मी से बोला. फूफी खादीजा और फूफी शहनाज़ ने एक दूसरे की तरफ देखा लेकिन कुछ कहा नही. दोनो के चेहरे लाल थे मगर फूफी शहनाज़ का हाल ज़ियादा खराब था. ये तजर्बा उनके लिये नया था और फिर वो अपनी बड़ी बहन के सामने चूत दे रही थीं इस लिये पूरी तरह रिलॅक्स्ड नही थीं . मगर मुझे अंदाज़ा हो गया था के उन्होने भी अब मज़ा लेना शुरू कर दिया है.

मैंने फूफी शहनाज़ की चूत पर ज़बान फैरनी शुरू कर दी और ज़ाहिद फूफी खादीजा की चूत चाटने लगा. फूफी खादीजा की चूत तो में काफ़ी अरसे से चाट रहा था लेकिन फूफी शहनाज़ की आज पहली दफ़ा थी. जब में उनकी चूत चाट रहा था तो वो अपनी टाँगों के मसल्स को बार बार खैंच रही थीं और मुँह से ऊऊऊओ ओह आआआः आआआआः की आवाजें निकाल रही थीं . मैंने उन्हे और गरम करने के लिये उनकी रानों को अंदर की तरफ से चूमना शुरू कर दिया. ज़ाहिद भी इसी तरह फूफी खादीजा की फुद्दी चाट रहा था और एक हाथ से उनके मम्मों को पकड़ कर मसल रहा था.











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