Sunday, February 8, 2015

Fentency खानदानी औरतें-2

Fentency

  खानदानी औरतें-2

 "कोई प्लान बनाते हैं." मैंने अपनी परैशानी उस से छुपाने की कोशिश करती हुए कहा.
“देख लो अमजद मेरे साथ दो नम्बरी ना करना. मै तुम्हे अकेले अकेले फूफी खादीजा के साथ मज़े नही करने दूँ गा.” उस के लहजे में धमकी पोशीदा थी.
“नही यार ज़ाहिद ऐसी कोई बात नही. तुम अगर फूफी खादीजा की चूत मारो तो भला मुझे किया ऐतराज़ हो सकता है. किया वो तुम्हारी फूफी नही हैं?” खौफ की एक लहर मेरी रीढ़ की हड्डी में दौड़ गई. मेरा अंदाज़ा फॉरन ही सही साबित हो गया था. वो मुझे ब्लॅकमेल करना चाहता था. गुस्से और नफ़रत ने मेरे दिल-ओ-दिमाग को अपनी लपेट में ले लिया. मेरा ज़हन तेज़ी से काम कर रहा था लेकिन मुझे कुछ समझ नही आ रही थी. जब फूफी खादीजा को उस कुत्ते के बच्चे से बचाने का कोई रास्ता नज़र नही आया तो मैंने अपने आप को तस्सली देने के लिये सोचा के फूफी खादीजा ज़ाहिद की भी तो सग़ी फूफी हैं और अगर वो उन्हे चोद लेता तो यक़ीनन मेरे राज़ को कभी फ़ाश नही कर सकता था. अगर वो ऐसा करता तो खुद भी फँसता.

"अमजद तुम ने फूफी खादीजा को तो चोद लिया मगर किया कभी दूसरी फुफियों के बारे में भी सोचा है. फूफी शहनाज़ तो यहीं पिंडी में रहती हैं किया हम उन्हे राज़ी नही कर सकते?" उस ने पूछा.
"यार बात ये है के बाक़ी फुफियों से तो मुझे बहुत डर लगता है. उन्हे चोदने के बारे में तो में सोच भी नही सकता. वो तो सारी ही गुस्से-नाक हैं जान से मार दें गी. फूफी शहनाज़ अलबता ऐसी नही हैं. अगर मुझे उनकी चूत मारने का मोक़ा मिले तो में ज़रूर मारूं गा. वो भी बड़ी खूबसूरत और जानदार हैं." मैंने कहा.
“हाँ यार हमारी फूपियाँ गुस्से वाली तो ज़रूर हैं मगर हैं बड़ा मजेदार माल. फूफी खादीजा ही की तरह लंड पर बिठाने वाले मोटे मोटे फुद्दे हैं उनके. रह गईं फूफी शहनाज़ तो उनकी फुद्दी लेने में भी बड़ा मज़ा आये गा. मै इसी लिये तो पूछ रहा हूँ.” उस ने मुस्कुरा कर कहा.

फूफी शहनाज़ हमारी चार फुफियों में सब से छोटी थीं और पिंडी ही में उनकी शादी हुई थी. उनके दो बच्चे थे और वो भी बड़ी ज़ोरदार औरत थीं . उमर कोई 36 साल थी और बाक़ी सारी फुफियों की तरह वो भी निहायत मोटे मोटे मम्मों और चूतड़ों की मालिक थीं . सग़ी बहन होने की वजह से हमारी बाक़ी तीनो फुफियों से उनकी शकल भी मिलती थी और अगरचे वो उन से कुछ मुख्तलीफ़ भी थीं और कम खूबसूरत भी मगर फिर भी उनका शुमार खुश-शकल औरतों में किया जा सकता था. उनका क़द दूसरी फुफियों के मुक़ाबले में थोड़ा छोटा था मगर बदन उन्ही की तरह दूधिया गोरा, साफ़ शफ्फफ और गोश्त से भरा हुआ था. वो भी अपने बदन के हर सुराख में लंड लेने और चोदे जाने के क़ाबिल थीं .

“लेकिन हम फूफी शहनाज़ को कैसे राज़ी कर सकते हैं?” में बोला.
"फूफी खादीजा इस सिलसिले में हमारी मदद कर सकती हैं क्योंके वो और फूफी शहनाज़ एक दूसरे की राज़दार हैं और हम से फुद्दी मरवाने का राज़ भी अपने तक ही रक्खें गी. फिर फूफी खादीजा को हम से फुद्दी मरवाते देख कर उन्हे भी होसला हो जाए गा." उसने सर हिला कर बड़े पाते की बात कही.
“तुम्हारी बात समझ में तो आती है.” में बोला.
"कियों ना हम दोनो फुफियों को मिल कर चोदें." ज़ाहिद ने कहा. उस की आँखों में चमक सी आ गई थी.
“ये बहुत मुश्किल काम है. वो दोनो कहाँ राज़ी हूँ गी.” मैंने जवाब दिया.
"यार अमजद अगर ऐसा हो जाए तो मेरा वादा है के तुम जब चाहो अम्मी को चोद सकते हो. मै इस मामले में तुम्हारी पूरी मदद करूँ गा. अम्मी इनकार नही कर सकतीं मुझ से जो चुदवा रही हैं." उस ने खुश होते हुए कहा.
फिर हम दोनो ने एक प्लान बना लिया. इस प्लान पर अमल करना मेरी मजबूरी थी क्योंके अगर में फूफी खादीजा से इस सिलसिले में बात करता तो वो बहुत नाराज़ होतीं के मैंने ज़ाहिद को उनके बारे में क्यों बताया.

अगली बार जब फूफी खादीजा पिंडी मेरे घर आईं तो एक दिन ज़ाहिद प्लान के मुताबिक़ मेरे कमरे में आईं उस वक़्त घुस आया जब में फूफी खादीजा की क़मीज़ के ऊपर से उनके मम्मे मसल रहा था और वो हल्का हल्का कराह रही थीं . ज़ाहिद को देख कर उनका रंग अर गया और उन्होने फॉरन मुझ से दूर हट कर अपने उभरे हुए मम्मों पर दुपट्टा डाल लिया. ज़ाहिद ने थोड़ा सा गुस्से में आने की अदाकारी की और कमरे से निकल गया.
"अमजद उससे रोक कर बात करो अगर उस ने अपनी माँ को बता दिया तो मुसीबत आ जायेगी." फूफी खादीजा ने काँपते हुए लहजे में कहा.

में ड्रॉयिंग रूम में आ गया और ज़ाहिद से तेज़ आवाज़ में बात करने लगा.
"में इस बे-शर्मी के बारे में फ़ूपा सलीम और सब को बताऊं गा." उस ने कहा.
में उससे समझने लगा. कुछ देर बाद फूफी खादीजा भी वहाँ आ गईं और ज़ाहिद को मनाने लगीं. वो सख़्त शर्मिंदा नज़र आ रही थीं और उन से ठीक तरह बात भी नही हो पा रही थी.
उस वक़्त मुझे अपने ऊपर शदीद गुस्सा आया के मैंने ज़ाहिद को क्यों ये बता दिया के फूफी खादीजा मुझ से चुदवा रही थीं . मेरी वजह से वो भी अब मुसीबत में फँस गई थीं . लेकिन किया करता में भी तो ज़ाहिद के हाथों ब्लॅकमेल हो रहा था.
"में सिर्फ़ एक शर्त पर मुँह बंद रखूं गा के आप मुझे भी फुद्दी दें. आख़िर में भी तो अमजद की तरह आप का भतीजा हूँ. मुझ में किया कमी है." ज़ाहिद ने फूफी खादीजा से कहा.
उन्होने मेरी तरफ देखा.
"मुझे इसी बात का डर था." वो बोलीं.
"फूफी खादीजा आप दो लंड ले लें किया फ़र्क़ पड़ता है आप को ज़ियादा मज़ा आए गा." ज़ाहिद ने अचानक उनके एक मम्मे को हाथ में पकड़ कर दबाते हुए कहा. फूफी खादीजा फॉरन पीछे हट गईं और अपने मम्मों पर दुपट्टे को ठीक करने लगीं. उस की बात सुन कर वो और ज़ियादा शर्मिंदा नज़र आ रही थीं .


 "एक शर्त और भी है और वो ये के आप फूफी शहनाज़ को भी यहाँ इसी काम के लिये बुलाएं गी." ज़ाहिद ने फिर बात छेड़ी.

फूफी खादीजा की आँखें हैरत से फॅट गईं और चेहरा गुस्से से तमतमा उठा लेकिन मामले की नज़ाकत का एहसास कर के उन्होने अपना गुस्सा दबा लिया.
"में शहनाज़ को ये करने के लिये कैसे कह सकती हूँ. तुम्हारा दिमाग तो खराब नही हो गया." उन्होने कहा.
"अगर फूफी शहनाज़ यहाँ हूँ और आप को फुद्दी मरवाते देखें तो वो भी इस काम पर राज़ी हो जायें गी और जब आप दोनो इस काम में शामिल हूँ गी तो कोई मसला नही होगा." ज़ाहिद ने अब खुल कर बात की.
“वो किया सोचे गी के में उस से किस क़िसम की हरकत करवा रही हूँ. वो कभी भी नही माने गी.” उनका गुस्सा अब कम हो गया था.
“फूफी शहनाज़ ज़रूर मान जायेंगी बस आप इस में हमारी मदद करें.” ज़ाहिद ने जवाब दिया.
“ये तो अजीब मुश्किल है. तुम मेरी और अमजद की बात में शहनाज़ को क्यों घसीट रहे हो?” फूफी खादीजा ने उस की तरफ देखते हुए कहा.
“इसी में सब का फायदा है फूफी खादीजा. आप ने ये काम कर दिया तो सारे मामलात उसी तरह चलते रहें गे जैसे चल रहे हैं.दूसरी सूरत में……..” ज़ाहिद ने धमकी-आमीज़ लहजे में कहा.

फूफी खादीजा सोच में पड़ गईं. मैंने सर के हल्के से इशारे से उन्हे मान जाने को कहा.
"चलो देखते हैं लेकिन बेटे तुम किसी से कोई बात मत करना." उन्होने एक बार फिर ज़ाहिद को ताकीद की.
“इस बात का वादा में तब करूँ गा फूफी खादीजा जब आप मुझे अपनी फुद्दी मारने दें गी.” ज़ाहिद ने दो-टोक लहजे में कहा.

कुछ देर बाद वो चला गया तो फूफी खादीजा ने मुझ से कहा:
"अब किया हो गा ये हरामी ज़ाहिद तो मुझे भी चोदना चाहता है और शहनाज़ को भी. मुझे तो डर है के ये कहीं हमारी बात अपनी कुतिया माँ को ना बता दे. वो तो मुझे बर्बाद कर दे गी."
"फूफी खादीजा आप किया बात कर रही हैं ज़ाहिद तो चाची फ़हमीदा को भी चोद रहा है." मैंने उन्हे ज़ाहिद के राज़ से आगाह कर दिया.
इस दफ़ा फूफी खादीजा के चेहरे पर हैरत के साथ साथ हल्की सी खुशी भी नज़र आई.
“तुम ने अपनी आँखों से ये होते देखा है?” उन्होने पूछा.
“नही फूफी खादीजा लेकिन मुझे ज़ाहिद ने खुद ये बात बताई है. उसे तो इस पर भी कोई ऐतराज़ नही है के में चाची फ़हमीदा को चोद लूं.” मैंने उन्हे बताया.
“ये हमारे खानदान को किया हो गया है? में तो कभी सोच भी नही सकती थी के घर की चार-दीवारी के पीछे लोग कैसे कैसे खेल खेलते हैं.” उन्होने कहा.
“बस कुछ ऐसी ही बात है फूफी खादीजा.” मैंने जवाब दिया.
“लेकिन अमजद तुम ये ना भूलो के मेरी और तुम्हारी बात जब इतने सारे लोगों को पता चल जायेगी तो किया हो गा? ऐसी सूरत में कोई भी राज़ ज़ियादा देर तक राज़ नही रह सकता.” उनका अंदेशा बिल्कुल ठीक था मगर अब किया हो सकता था.
“आप सही कह रही हैं लेकिन जिस जिस को हमारे राज़ का ईलम हो गा वो खुद भी तो यही कुछ कर रहा होगा. वो खुद भी तो बराबर का मुजरिम होगा. अपने आप को महफूज़ रखने के लिये वो हमारे राज़ को भी राज़ रखने पर मजबूर होगा.” मैंने कहा.

"फ़हमीदा बड़ी नायक परवीन बनती है. अमजद एक तो तुम किसी तरह उससे ये बता दो के में अपने बेटे के साथ उस की हरकतों से वाक़िफ़ हूँ और दूसरे कुछ करो ना करो मेरे सामने फ़हमीदा की चूत ज़रूर मारना.” उन्होने रिवायती नंद की तरह चाची फ़हमीदा को नीचा दिखाने का सोचा था. मुझे ये सुन कर खुशी भी हुई क्योंके बात मेरे ही फायदे की थी.
“वादा रहा फूफी खादीजा में पूरी कोशिश करूँ गा.” मैंने उन्हे खुश करने के लिये कहा.
“मुझे नही पता के ये कैसे हो गा लेकिन अगर ये कुत्ता ज़ाहिद मुझे चोदता है तो तुम उस की कंजड़ी माँ फ़हमीदा को ज़रूर चोदना. ये कल का क्छोकरा मेरी चूत ले तो अपनी माँ को भी तो तुम से चूत मरवाते देखे ना." वो फिर गुस्से में आ गई थीं . मैंने उन्हे इतमीनान दिलाया के बिल्कुल ऐसा ही होगा. फूफी खादीजा चाची फ़हमीदा से ता’अलुक़ात खराब होने की वजह से ज़ाहिद को भी सख़्त ना-पसंद करती थीं .

वो फिर किसी सोच में खो गईं.
"तुम भी शहनाज़ को चोदो गे किया?" चंद लम्हो बाद उन्होने अचानक सवाल किया.
"अगर आप की फुद्दी जैसी दो फुदियाँ एक वक़्त में चोदने को मिल जाएं तो और किया चाहिये." मैंने हंस कर जवाब दिया.
“लेकिन किया एक ही वक़्त में मुझे तुम दोनो को चूत देनी पड़े गी?”
“जब ज़ाहिद आप को और फूफी शहनाज़ को चोदेगा तो में देखता तो नही रहूं गा.” मैंने कहा.
“तुम तो डिसचार्ज होने में बहुत टाइम लेते हो और दो औरतों को संभाल लो गे ये खनज़ीर ज़ाहिद कैसे दो दो औरतें को चोदेगा?”
“पता नही फूफी खादीजा वो खलास होने में कितना टाइम लेता है मगर ज़ाहिर है जब आप दोनो उस के सामने हूँ गी तो वो सिरफ़ एक की चूत तो नही मारे गा फूफी शहनाज़ को भी चोदेगा.” मैंने जवाब दिया.
“हाय हाय? मुझे तो ये सोच कर ही घिन आती है के ये कुत्ता गाँडू मेरे अंदर अपना लौड़ा डाले गा.” उन्होने सीने पर हाथ रख लिया.
“में तो फूफी शहनाज़ को इस लिये चोदना चाहता हूँ के वो आप की तरह हैं.” मैंने कहा.
"खैर शहनाज़ बिल्कुल तो मेरी तरह नही है थोड़ी बहुत ही मिलती है. अब जब तुम उससे चोद लो गे तो पता चल जाए गा." उन्होने फूफी शहनाज़ को खुद से कम तर साबित करने की कोशिश की.
“वो मान जायेंगी?” मैंने पूछा.
“शहनाज़ को में संभाल लूं गी. उस का एक राज़ है मेरे पास. बस तुम उस वक़्त यही कहना के तुम भी इस राज़ से वाक़िफ़ हो.” उन्होने मुझे बताया.
मैंने उन से ये नही पूछा के वो किया राज़ था.
"चलें फूफी खादीजा कम ही सही मगर फूफी शहनाज़ हैं तो आप की बहन. उनकी चूत में भी काफ़ी मज़ा होगा.” मैंने कहा. वो मुस्कुरा दीं लेकिन कोई जवाब नही दिया.

घर में ये सब करने में ख़तरा था इस लिये मैंने हमेशा की तरह पिंडी से बाहर जाने का फ़ैसला किया. प्लान ये था के में, ज़ाहिद, फूफी खादीजा और फूफी शहनाज़ पिक्निक के बहाने नतियागली चलें और जो कुछ भी हो वहाँ पर ही हो. हमारा घराना आज़ाद ख़याल और मॉडर्न था इस लिये घर से बाहर जाने में कोई मसला नही था. हम पहले भी कई दफ़ा मिल कर लाहौर और अयूबीया जा चुके थे.

फूफी खादीजा ने फूफी शहनाज़ से फोन पर बात की तो वो अपने दोनो बच्चों को भी साथ ले जाने का कहने लगीं. फूफी खादीजा ने कहा के अमजद वहाँ अपने किसी दोस्त के बाप की फोत्गी पर ताज़ियत करने जा रहा है. ज़ाहिद भी उस के साथ है. मै अकेली यहाँ किया करूँ गी इस लिये इनके साथ ही जा रही हूँ. मैंने सोचा के तुम्हे भी साथ ले लेतीं हूँ. ये दोनो वहाँ चले जायें गे और हम इतनी देर गाड़ी में ही बैठे गे. बच्चे तंग हो जायेंगे. इस लिये उन्हे साथ ले कर जाना मुनासिब नही होगा. फूफी शहनाज़ बड़ी मुश्किल से हमारे साथ अकेले जाने पर राज़ी हुईं.

ये काम होते ही मैंने फोन पर नतियागली के एक महँगे होटेल में डबल बेड वाला कमरा बुक करवा लिया. दो दिन बाद में, ज़ाहिद और हमारी दोनो फूपियाँ कार में बैठ कर तक्शिला के रास्ते नतियागली रवाना हुए.

फूफी खादीजा और फूफी शहनाज़ को एक साथ बैठे देख कर मेरा लंड खड़ा हो गया. फूफी शहनाज़ के मम्मे भी फूफी खादीजा जैसे ही थे यानी खूब मोटे और सूजे हुए. उनकी हल्की नीली क़मीज़ के अंदर से उनका सफ़ेद ब्रा साफ़ नज़र आ रहा था. पता नही बहुत औरतों को ये एहसास क्यों नही होता के उनका ब्रा क़मीज़ में से नज़र आ रहा है. मैंने अंदाज़ा लगाया के फूफी शहनाज़ भी फूफी खादीजा के नंबर का ब्रा इस्तेमाल करती हूँ गी. मुझे पता था के फूफी शहनाज़ की फुद्दी मार कर भी उतना ही मज़ा आए गा जितना फूफी खादीजा और फूफी नीलोफर की फुदियाँ मारते हुए आता था. इन्सेस्ट में तो मेरे लिये वैसे भी बड़ा मज़ा था और आज तो हम बहुत ही अजीब-ओ-ग़रीब तजर्बा करने जा रहे थे. खुशी के आलम में मुझे ज़ाहिद की ब्लॅकमेलिंग भी याद ना रही.







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