Fentency
फूफी और मैं -1
में अपनी एक फूफी को चोदने की ताक में था जो कराची में रहती थीं . उनका नाम नीलोफर था और उनके दो बचे थे. वो मेरी चारों फुफियों में सब से बड़ी थीं और उनकी उमर 43 साल के लग भाग तो ज़रूर हो गी. उमर के इस हिस्से में भी वो बड़ी खूबसूरत, लंबी, गोरी और निहायत सेहतमंद औरत थीं .
ये जिस्मानी ख़सूसियात मेरे ददिहाल की औरतों को विरासत में मिली थीं वरना हमारे हाँ औरतें कोई बहुत ज़ियादा लंबी नही होतीं. मेरे मरहूम दादा और दादी दोनों ही तवील क़ामत थे और इसी लिये उनके तक़रीबन सब ही बच्चे लंबे लंबे थे. फूफी नीलोफर का क़द भी बहुत लंबा था बल्के वो तो खानदान के कई मर्दों से भी लंबी थीं . फूफी शहनाज़ के अलावा मेरी सारी ही फूपियाँ क़द-आवर और लंबी चौड़ी थीं और फूफी नीलोफर भी बहुत सेहतमंद और लंबी औरत थीं . वो अपनी बहनो में फूफी खादीजा और फूफी नादिरा से बहुत ज़ियादा मिलती थीं . लेकिन अपनी बहनो से उनकी शबाहात सिरफ़ चेहरे की साख़्त की हद तक नही थी बल्के उनके बदन भी काफ़ी हद तक एक ही जैसे थे.
फूफी खादीजा मेरी पहली फूफी थीं जिनको में चोदने में कामयाब हुआ था. उन्हे चोदने के बाद अब में ये जान गया था के अपनी सग़ी फूफी को चोदना ना-मुमकिन नही होता. इसी लिये अब में किसी तरह फूफी नीलोफर की चूत भी मारना चाहता था. वो मुझे वैसे भी बहुत पसंद थीं . मेरे ज़हन में उन्हे चोदने के कई मंसूबे थे मगर डरता था के कहीं बात बिगड़ ना जाए क्योंके ऐसी सूरत में मेरी खैर नही थी. फूफी नीलोफर को नाराज़ करने में बहुत बड़ा ख़तरा था और इस की एक ख़ास वजह थी.
फूफी नीलोफर के मम्मे फूफी खादीजा के मम्मों की तरह बहुत मोटे थे और उनके चौड़े सीने पर खूब सजते थे. मैंने फूफी नीलोफर को बगैर ब्रा के एक दो दफ़ा ही देखा था. क़मीज़ के ऊपर से भी ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल नही था के उनके मम्मों के निप्पल गैर मामूली तौर पर लंबे और बड़े थे. सारे बदन की तरह उनके चूतड़ भी बहुत तगड़े और मोटे थे. मज़े की बात ये थी के फूफी खादीजा ही की तरह चलते हुए उनके कसे कसाय गोल और सुडौल चूतड़ एक दूसरे के साथ रगड़ खाते रहते और उनकी गोलाइयाँ आगे पीछे हरकत करती रहतीं. फूफी नीलोफर का बदन बहुत मज़बूत और गदराया हुआ था.
फूफी नीलोफर को चोदने की कोशिश करना मधुमक्खी के छट्टेी में हाथ डालने जैसा था. लेकिन वो हर लिहाज़ से इतनी ज़बरदस्त औरत थीं के उन्हे चोदने की खाहिश को दिल से निकालना भी हिमाक़त ही होती. मै तो वैसे भी फूफी खादीजा को चोद लेने के बाद अपनी सारी फुफियों को अपने लिये एक नैमत समझता था और फूफी नीलोफर की मोटी ताज़ी चूत ना लेने का तो सवाल ही पैदा नही होता था चाहे इस में जितना भी ख़तरा होता. हाँ ये ज़रूर था के मुझे अच्छी तरह सोच समझ कर ही इस सिलसिले में कोई क़दम उठाना था.
में ज़हन लड़ाता रहा के फूफी नीलोफर को चोदने के लिये किया करूँ. किसी भी औरत को अपनी चूत देने पर राज़ी करने के लिये मर्द का उस की शख्सियत के मुख्तलीफ़ पहलो’ओं से वाक़िफ़ होना बहुत ज़रूरी है. मै उनका भतीजा होने की वजह से फूफी नीलोफर को बड़े क़रीब से जानता था. वो मेरे सामने खुली किताब की तरह थीं और मुझे किसी ना किसी हद तक ये आगाही थी के उन्हे अपनी चूत देने पर राज़ी करने के लिये किया करना चाहिये.
फूफी नीलोफर का मिज़ाज अगरचे फूफी खादीजा से मिलता तो था मगर वो कुछ चीज़ों में उन से मुख्तलीफ़ भी थीं . वो एक सख़्त-गीर, तेज़ तबीयत और जल्द गुस्से में आ जाने वाली औरत मशहूर थीं . वो इतनी जल्दी किसी से फ्री नही होती थीं . फिर ये भी था के वो खुद को दुनिया की खूबसूरत तरीन औरत समझती थीं . उन्हे अपने आप से बड़ी मुहब्बत थी और बाक़ी सब औरतों को वो खुद से बहुत कम तर जानती थीं . अपनी तारीफ से उन्हे बहुत खुशी होती थी. ऐसा तो खैर सारी ही औरतों के साथ होता है मगर फूफी नीलोफर तो अपने मुक़ाबले में किसी दूसरी औरत का ज़िकर भी नही सुन सकती थीं . अगर कोई उनके सामने किसी औरत की तारीफ करता तो वो फॉरन उस में हज़ार कीड़े निकालने लगतीं.
इस के अलावा पैसा भी फूफी नीलोफर की बहुत बड़ी कमज़ोरी था और अगरचे वो दौलतमंद थीं मगर पैसे पर फिर भी जान देती थीं . जेवर और कपड़ों की दीवानी थीं और कभी भी अपने आप को ऐसी चीज़ों से दूर नही रख पाती थीं . शॉपिंग करना उनके लिये ज़िंदगी का सब से पसंदीदा काम था. इन्ही कमज़ोरियों का सोच कर और मामी शाहिदा वाले तजरबे की रोशनी में मैंने हिम्मत कर के उनकी फुद्दी मारने का प्लान बना ही लिया. बात बिगड़ भी सकती थी मगर में जानता था के फूफी नीलोफर अगर नाराज़ भी हुईं तो अपनी नाराज़गी मुझ तक ही रक्खेंगी किसी और को कुछ नही बताएं गी क्योंके इस में उनकी भी बड़ी रुसवाई होती. मै खामोशी से अपने प्लान को अमली जामा पहनाने के लिये सही वक़्त का इंतिज़ार करने लगा.
कुछ अरसे बाद मुझे पता चला के फूफी नीलोफर बा-रास्ता लाहोर पिंडी आ रही हैं. मेरे लिये उन पर हाथ डालने का ये बेहतरीन मोक़ा था. मैंने डैड से कहा के मैंने भी लाहोर जाना है में फूफी नीलोफर को वापस आते हुए पिंडी लेता आऊँ गा. उन्होने फूफी नीलोफर से इस सिलसिले में फोन पर बात कर ली. मै चाहता था के मामी शाहिदा की तरह फूफी नीलोफर को भी किसी होटेल में ही चोदने की कोशिश करूँ क्योंके वहाँ पर किसी को पता ना चलता और अगर वो नाराज़ भी होतीं तो उन्हे संभालना और उनके गुस्से को ठंडा करना निसबतन आसान होता.
मैंने उन्हे कराची फोन किया के में लाहोर कार पर आ रहा हूँ और होटेल में ठहरूं गा आप मेरे साथ ही रहें. हम फाइव स्टार होटेल में ठहरे गे और आप को कोई तक़लीफ़ नही हो गी. उन्होने कहा के खादीजा का घर जो है होटेल में रहने की किया ज़रूरत है. मैंने बताया के होटेल में कमरा पहले से बुक है और ऐसी सूरत में वहाँ रहने में किया मुज़ायक़ा है. इस पर वो मान गईं और कहा के ठीक है तुम मुझे एरपोर्ट से ले लाना. मैंने उन से पुछा के किया उन्होने फूफी खादीजा को अपने लाहोर आने के बारे बताया है? उन्होने कहा के नही उससे अभी बताना है. मैंने कहा के जब हम होटेल में ठहर रहे हैं तो आप उन्हे अपने आने का ना बताएं क्योंके वो आप को अपनी तरफ रहने पर मजबूर करें गी. वो कुछ देर खामोश रहीं लेकिन फिर कहा अच्छा ठीक है.
मैंने अवारी होटेल लाहोर में एक रूम बुक करवया और मुकरर दिन लाहोर एरपोर्ट पर उन्हे रिसीव किया. उस दिन फूफी नीलोफर ने पीले कपड़े पहन रखे थे जिन में से उनका गोरा सेहतमंद बदन झाँक रहा था. उन्होने व की शकल में दुपट्टा ले रखा था जिस के नीचे उनके मोटे मोटे सेहतमंद मम्मे छुपाये नही चुप रहे थे. उनके मम्मे इतने बड़े थे के दुपट्टा, क़मीज़ और ब्रा मिल कर भी उन्हे धक नही पा रहे थे और मम्मों के दोनो उभार काफ़ी बाहर निकले हुए थे. फूफी नीलोफर के मम्मे ब्रा में फँसे फाँसये बिल्कुल साकित थे और उन में थोड़ी सी भी हरकत नही हो रही थी. उन्होने यक़ीनन सही साइज़ का और बड़ा टाइट ब्रा पहन रखा था.
उनकी मोटी गांड़ भी हमेशा ही की तरह हिलती और झटके खाती दिखाई दे रही थी. उनके दोनो चूतड़ एक दूसरे के साथ बिल्कुल जुड़े हुए थे और जब वो चलतीं तो उनके चूतड़ों की हरकत एक समा बाँध देती. उनके गोल मज़बूत बाज़ू और कंधों का ऊपरी हिस्से बे-इंतिहा सफ़ेद थे और गर्मी की वजह से गुलाबी हो गए थे.
वो लिबर्टी मार्केट में शॉपिंग करना चाहती थीं और लाहोर आने का उनका बुन्यादि मक़सद यही था. हम ने कोई चार घंटे लिबर्टी मार्केट में शॉपिंग की. मैंने फूफी नीलोफर के लिये बहुत सी चीजें अपनी जेब से भी खरीदीन. उन्होने कई दफ़ा मुझे कहा के में ऐसा ना करूँ मगर में बड़े इसरार और खलाऊस के साथ उनके लिये खरिदारी करता रहा. वो बहुत खुश थीं और ये बात उनके चेहरे से साफ़ ज़ाहिर थी. आम हालात में वो ज़रा सीरीयस ही रहती थीं मगर उस दिन उन्होने काफ़ी बे-तकल्लूफ़ी से मेरे साथ बहुत सारी बातें कीं. फिर हम दोनो अवारी होटेल अपने रूम में आ गए. मैंने बाथरूम जा कर T-शर्ट और शॉर्ट्स पहन लिये.
अगर इंसान खुश हो तो उस का किसी बात पर नाराज़ हो जाने का इंकान ज़रा कम हो जाता है. आज फूफी नीलोफर इतनी सारी चीजें खरीद कर बहुत खुश थीं और मेरे लिये हालात काफ़ी साज़गार नज़र आ रहे थे.
“अमजद तुम ने बिला-वजा इतने पैसे लगा दिये. बहुत सी चीज़ों की तो मुझे ज़रूरत भी नही थी और तुम ने फिर भी खरीद लीं.” उन्होने कहा.
“फूफी नीलोफर कोई बात नही मैंने अगर आप के लिये चंद चीजें खरीद लीं तो किया हो गया.” मैंने जवाब दिया.
“तुम बताओ तो सही तुम्हारे कितने पैसे लगे? में तुम्हे देती हूँ. यहाँ होटेल में भी तुम्हारा बहुत खर्चा होगा.” उन्होने कहा.
“छोड़ें भी फूफी नीलोफर ये आप किया बातें ले बैठीं. मै तो और भी बहुत कुछ खरीदना चाहता था मगर आप ने मुझे रोक दिया.” मैंने जवाबन कहा.
“नही, नही तुम तो छोटे हो में तुम्हारे पैसे नही लगवाना चाहती थी. मुझे तो चाहिये था के तुम्हे कुछ ले कर देती.” वो बोलीं.
“अब बस भी कर दें फूफी नीलोफर ये किन बातों को ले कर बैठ गईं हैं आप.” मैंने थोड़ा बे-तकल्लूफ होते हुए बात बदलने की कोशिश की.
इसी तरह की कुछ और बातों के बाद ह मुझे अंदाज़ा हो गया के फूफी नीलोफर बड़े अच्छे मूड में थीं. मैंने गर्मी के हवाले से उनके ब्रा की तरफ देख कर कहा:
“फूफी नीलोफर एक तो औरतें गर्मी में भी इतने ज़ियादा कपड़े पहनती हैं. ऊपर भी कपड़े और कपड़ों के नीचे उन से भी मोटे कपड़े.”
वो हंस पड़ीं और समझ गईं के मेरा इशारा उनके ब्रा की तरफ है.
“सीने पर भी तो कुछ पहनना पड़ता है इसे हिलता जुलता कैसे छोड़ें.” उन्होने बड़ी बे-तकल्लूफ़ी से कहा.
“घर के अंदर तो सिर्फ़ क़मीज़ काफ़ी है ब्रा की ज़रूरत नही.” मैंने उन्हे टेस्ट करने लिये खुल कर ब्रा का ज़िकर छेड़ा.
“हाँ ब्रा ना हो तो गर्मी में सकूँ रहता है.”
बात ठीक जा रही थी क्योंके फूफी नीलोफर मुझ से ब्रा जैसी प्राइवेट चीज़ के बारे में बात कर रही थीं .
“फूफी नीलोफर ब्रा की क्वालिटी से भी फरक़ पड़ता होगा.” मैंने बात जारी रखी.
“बहुत फ़र्क़ पड़ता है. लोकल ब्रा सीना कचील देते हैं मगर इंपोर्टेड आराम-दे होते हैं और कम गरम भी.” उन्होने गैर-इरादि तौर पर अपना एक हाथ अपने मोटे मोटे मम्मों पर रख दिया.
“शायद मम्मों के साइज़ का भी मसला होता होगा. मोटे मम्मे ज़ियादा तंग करते हूँ गे.”
मैंने अपनी ज़िंदगी में पहली दफ़ा उन से इस तरह और इस ज़बान में बात करने की जुर्रत की थी. मैंने ये जुमला बोल तो दिया मगर मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा.
“हाँ ऐसा ही है.” उन्होने मुख्तसर सा जवाब दिया और उनके होठों पर खेलने वाली मुस्कुराहट अचानक घायब हो गई. अगर उन्हे मेरी बात बुरी लगी भी थी तो उन्होने इस का इज़हार करने से गुरेज़ किया था.
में उनकी दिमागी हालत का अंदाज़ा लगाने की कोशिश करता रहा. इन बातों के दोरान फूफी नीलोफर के चेहरे पर हल्का सा रंग आया मगर वो चुप रहीं. शायद उन्हे अपने मम्मों में मेरी दिलचस्पी से मालूम हो गया था के मेरी नियत किया है. लेकिन में इस बारे में सो फीसद यक़ीन से कुछ नही कह सकता था. उस वक़्त में थोड़ा डरा भी मगर फिर वो फ्रिज़ से पानी लेने उठीं तो मुझे उनके उभरे हुए मम्मे साइड से नज़र आये और कुदरत के उन दो कमलात को देख कर मेरा डर खुद-बा-खुद काफ़ी हद तक कम हो गया. मै सुबह से ही फूफी नीलोफर के मम्मों को देख रहा था मगर अब उनके गैर-मामूली मम्मों का नज़ारा कर के मज़ा आ गया.
“फूफी नीलोफर आप नहा धो लें और प्लीज़ ब्रा उतार दें बहुत गर्मी है.” मैंने फिर बड़ी क़ाबिल-ए-ऐतराज़ बात की.
उन्होने मेरी तरफ देखा.
“ये कमरा सेंट्रली एर कंडीशंड है यहाँ तो बिल्कुल गर्मी नही है.” उन्होने कहा और बाथरूम में चली गईं. वो किसी गहरी सोच में डूबी हुई थीं लेकिन लहजे में गुस्सा बिल्कुल नही था.
मुझे एक ख़याल आया. मैंने बाथरूम के बाहर से उन्हे बताया के में थोड़ी देर के लिये बाहर जा रहा हूँ. फिर कार पर लिबर्टी मार्केट आया, एक बड़े स्टोर से उनके लिये 5 इंपोर्टेड ब्रा खरीदे और वापस भागा. उस वक़्त तक वो कपड़े बदल चुकी थीं मगर ब्रा अब भी पहना हुआ था.
“कहाँ गए थे?” उन्होने सवाल किया.
“आप के लिये इंपोर्टेड ब्रा लाया हूँ. लाहोर की इस गर्मी में आप को इनकी बहुत ज़रूरत है.” मैंने ब्रा उनको देते हुए कहा.
वो ब्रा के बॉक्सस देख कर हैरान तो होन मगर उनका चेहरा जैसे खिल उठा.
“किया ज़रूरत थी में अपने साथ ब्रा ले कर आ’ई हूँ अभी नहा कर बदला है.” उन्होने बॉक्सस को उलट पुलट कर देखते हुए कहा.
“फूफी नीलोफर आप शर्मिंदा ना करें. फुफियों में आप मुझे सब से अच्छी लगती हैं. आज ही तो आप की खिदमत का मोक़ा मिला है.” मैंने थोड़ा सा झूठ बोला क्योंके मुझे सिरफ़ फूफी नीलोफर ही नही बल्के अपनी चारों फूपियाँ बहुत अच्छी लगती थीं .
उनके चेहरे से ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल था के वो किया सोच रही हैं लेकिन बहरहाल ये भी गनीमत थी के उन्होने अभी तक मेरी किसी बात का बुरा नही माना था.
मैरा दिल खुशी से झूम उठा क्योंके इस का मतलब ये था के वो ये जान लेने के बाद भी के में उनकी इतनी आओ भगत सिरफ़ फूफी होने की वजह से नही कर रहा था गुस्से में नही आई थीं . उन जैसी औरत से ये तावॉक़ो नही की जा सकती थी के वो कोई ऐसी बात बर्दाश्त करें जो उन्हे ना-पसंद हो. अगर उन्होने मुझे रोकना होता तो वहीं रोक देतीं. तो किया इस का मतलब ये है के वो मुझे अपनी फुद्दी दे दें गी? काश आज ऐसा हो जाए. मैंने सोचा.
मैंने एक दफ़ा फिर फूफी नीलोफर के चेहरे के ता’असूरात का जाइज़ा लेने की कोशिश की. वो बहुत खुश नज़र आ रही थीं जिस से ज़ाहिर होता था के मेरे नफ्सीयाती हार्बे कामयाब हो रहे थे. मुझे लगा के अपनी मख़सूस जेहनीयत की वजह से फूफी नीलोफर अब मेरे जाल में फँसती जा रही थीं . शायद आज अनहोनी हो ही जाती और में उन्हे चोदने में कामयाब हो जाता.
मैरा खौफ और भी कम हो गया.
“फूफी नीलोफर किया ये ब्रा ठीक साइज़ के हैं.” मैंने पूछा.
“लगता तो है.”
“उमीद है ये ब्रा आप के मम्मों पर फिट हूँ गे.” में आहिस्ता आहिस्ता अपनी हदों से बाहर निकल रहा था और मेरी बातों में नंगा-पन ज़ियादा हो रहा था.
वो मेरी ये बात सुन कर भी कुछ नही बोलीं लेकिन उनके चेहरे पर सोच के गहरे साय ज़रूर नज़र आ रहे थे. ऐसा लगता था जैसे वो अपने ज़हन में कोई गुत्थी सुलझाने की कोशिश कर रही हूँ. यक़ीनन वो ये जान गई थीं के मेरे दिल में उनी फुद्दी मारने की खाहिश है और इस वक़्त वो इसी बारे में सोच रही थीं .
“फूफी नीलोफर आप इन्हे पहन कर देख लें फिट ना हूँ तो में चेंज करवा लाऊं गा.” मैंने कहा.
उन्होने फिर अजीब नज़रों से मेरी तरफ देखा. उनकी आँखों में कुछ था. फिर बगैर कुछ कहे हुए वो बाथरूम में चली गईं. इस बात में शक-ओ-शुबहेय की कोई गूंजा’इश् नही रह गयी थी के फूफी नीलोफर ये जान चुकी थीं के में ना-सिरफ़ उन पर गरम था बल्के उन्हे चोदना भी चाहता था.
थोड़ी देर बाद फूफी नीलोफर बाथरूम से बाहर आईं:
“ये ज़रा छोटे हैं.” वो बोलीं. मेरे लिए हुए ब्रा उनके हाथ में थे.
उन्होने अब ब्रा नही पहना था और उनका दुपट्टा कंधे पर पडा था जो उनके एक मम्मे को ढांपे हुए था. उनका दूसरा और सफ़ेद मम्मा गर्मियों में पहनी जाने वाली पतली सी क़मीज़ के अंदर बिल्कुल वाज़ेह नज़र आ रहा था. उनके मम्मे बहुत मोटे और खड़े खड़े थे. उनके एक मम्मे का बहुत ही मोटा और नोकीला निप्पल भी क़मीज़ से आगे निकला हुआ था.
“आप किस कंपनी का ब्रा पहनती हैं फूफी नीलोफर?” मैंने सवाल किया.
“लिली ऑफ फ्रॅन्स का.” उन्होने कहा.
“आप मुझे अपना बिल्कुल सही साइज़ दें में ये ब्रा चेंज करवा लाता हूँ.” मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा.
“मैरा साइज़ 40 से ऊपर ही है यानी लार्ज.” उन्होने जवाब दिया.
“फूफी नीलोफर इस तरह तो पता नही चलता. इंपोर्टेड ब्रा के साइज़ लार्ज, स्माल या एक्सट्रा- लार्ज नही होते. आप अभी फीते से अपना साइज़ ले कर मुझे बताएं. नाप का फीता होटेल के हाउस कीपिंग से मिल जाए गा.”
उन्होने एक लम्हा सोचने के बाद असबात में सर हिला दिया. वो इतने महँगे ब्रा को हाथ से जाने नही देना चाहती थीं .
मेरे फोन करने पर होटेल का एक मुलाज़िम आम दर्ज़ियों वाला फीता हमारे रूम में ले आया. मैंने फीता फूफी नीलोफर को दिया.
“फूफी नीलोफर ब्रा के लिये नाप दो जगह से लें. एक मम्मों के नीचे कमर का और दूसरे मम्मों के बिल्कुल ऊपर. इन को मिला कर सही साइज़ मिले गा.” मैंने बताया.
“तुम्हे ब्रा का साइज़ लेना किस ने सिखाया है? ये तो बहुत सी औरतों को भी नही पता. खुद मुझे भी पता नही था.” वो मेरी तरफ देख कर बोलीं.
“ये मॉडर्न ज़माना है पता चल ही जाता है.” मैंने कहा.
अब अगला पत्ता फैंकने का वक़्त था.
“फूफी नीलोफर में नाप ले लेता हूँ ये ब्रा बहुत महेंगे हैं फिट ना आए तो किया फायदा.” मैंने धड़कते दिल से कहा.
उनके चेहरे पर फ़िकरमंदी नज़र आने लगी. कुछ देर सोचने के बाद उन्होने कहा:
“तुम नाप ले लो मगर देखो किसी से इस बात का ज़िकर ना करना. ये मुनासिब बात नही है. मै तुम्हारी फूफी हूँ. किसी को पता ना चले के तुम ने मेरे लिये ब्रा खरीदे थे या मेरा नाप लिया था.”
“फूफी नीलोफर में जानता हूँ ऐसी बातों का किसी से ज़िकर नही किया जाता.” मैंने जल्दी से फीता उन से ले लिया.
“आप क़मीज़ उतार दें ताके में नाप ले सकूँ.”
ये सुन कर वो कुछ और घबरा गईं. वो इस बात की तवक़ो नही कर रही थीं ऑरा ब शायद उनकी समझ में आ गया था के नाप लेने के बहाने उन्हे नंगा करना चाहता था.
“अमजद क़मीज़ ऊपर कर के ले लो उतारने की किया ज़रूरत है.”
उन्होने ये कहा ज़रूर मगर उनकी आवाज़ में कोई ऐसी बात थी जिस से में जान गया के अगर मैंने थोड़ा ज़ोर और दिया तो वो अपनी क़मीज़ उतार दें गी.
“इस तरह ब्रा का दरुस्त नंबर नही मिले गा और शायद फिर उन्हे वापस करना मुमकिन ना हो.” मैंने कहा.
उन्होने ये सुन कर आहिस्ता आहिस्ता अपनी क़मीज़ उतारनी शुरू कर दी. जब क़मीज़ उतरी तो चूँके नीचे उन्होने ब्रा नही पहना हुआ था इस लिये उनके तने हुए मोटे मम्मे बिल्कुल नंगे मेरे सामने ज़ाहिर हो गए. अगरचे फूफी नीलोफर ऊपर से नंगी थीं मगर फिर भी घबराईं नही. बस मुझ से आँखें मिलाने से इज्तिनाब किया. लेकिन में ये नही कह सकता था के उन्हे मेरे सामने इस तरह नंगा होने से कोई शरम महसूस हो रही थी. कुछ और ही था जो उन्हे मुझ से आँखें चार करने से रोक रहा था.
मैंने फूफी नीलोफर के नंगे मम्मों को देखा. मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा दिल सीना चीर कर बाहर आ जाए गा. उनके मम्मे बहुत मोटे होने के साथ साथ इंतिहा दूधिया, चमकीले, रेशमी और बे-दाग भी थे. दोनो मम्मों के ऊपर बड़े बड़े निपल्स काफ़ी ज़ियादा बाहर निकले हुए थे. मेरा ये अंदाज़ा भी बिल्कुल दरुस्त साबित हुआ था के उनके मम्मों के निपल्स बहुत लंबे और मोटे थे. आज मैंने अपनी आँखों से उनके निपल्स को देख लिया था. वाक़ई बहुत शानदार मम्मे और बहुत शानदार निपल्स थे फूफी नीलोफर के. उनके निपल्स की नोकें इतनी मोटी थीं के उन्हे चुटकी में आसानी से पकड़ा जा सकता था. ऐसा लगता था जैसे उनके निपल्स किसी ने क़लम से तराश कर सलीक़े से उनके मोटे सफ़ेद मम्मों के ऊपर लगा दिये हूँ. उस वक़्त भी उनके खूबसूरत निपल्स पूरी तरह अकड़े हुए खड़े थे.
मैंने काँपते हाथों से उनकी कमर से फीता घुमाया और उनके मोटे ताज़े मम्मों के सांनी ले आया. फिर मैंने फूफी नीलोफर के मम्मों के नीचे पेट से ऊपर नाप लिया. इस दोरान उनके भारी मम्मों को बिल्कुल नंगा अपने इतने क़रीब देख कर देख कर मेरे दिल में उनके निपल्स को हाथ लगाने और चूसने की शदीद खाहिश पैदा हुई. मै फूफी नीलोफर के मम्मों से अपनी आँखें हटा नही पा रहा था. फूफी नीलोफर ने यक़ीनन ये देख लिया और बे-साख्ता एक क़दम पीछे हट गईं. वो पीछे हटीं तो उनके पेट उनके इर्द गिर्द लिपटे हुए फीते से थोड़ा ऊपर उनके दोनो मम्मे ज़ोर से हिले और मेरे दोनो हाथों की पुष्ट से लगे. मै गड़बड़ा गया और नाप वाला फीता मेरे हाथ से छूट कर नीचे ज़मीन पर गिरा. इस सारे वाक़िये की वजह से फूफी नीलोफर भी अब काफ़ी नर्वस नज़र आ रही थीं . जैसे ही फीता नीचे गिरा वो गैर-इरादि तौर पर उससे उठाने के लिये नीचे झुकीं. नाप लेने के लिये में उनके बहुत क़रीब खड़ा था इस लिये जब वो झुकीं तो उनका एक मम्मा मेरे हाथ के पिछले हिस्से पर लगा. मैंने अपना हाथ सीधा किया तो उनका मम्मा पूरा का पूरा मेरे हाथ में आ गया. उनके मम्मे ला लांस अपने हाथ पर महसूस करते ही मैंने जल्दी से अपना हाथ पीछे खैंच लिया. उनका मोटा ताज़ा मम्मा फिसलता हुआ मेरे हाथ से निकल गया.
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फूफी और मैं -1
में अपनी एक फूफी को चोदने की ताक में था जो कराची में रहती थीं . उनका नाम नीलोफर था और उनके दो बचे थे. वो मेरी चारों फुफियों में सब से बड़ी थीं और उनकी उमर 43 साल के लग भाग तो ज़रूर हो गी. उमर के इस हिस्से में भी वो बड़ी खूबसूरत, लंबी, गोरी और निहायत सेहतमंद औरत थीं .
ये जिस्मानी ख़सूसियात मेरे ददिहाल की औरतों को विरासत में मिली थीं वरना हमारे हाँ औरतें कोई बहुत ज़ियादा लंबी नही होतीं. मेरे मरहूम दादा और दादी दोनों ही तवील क़ामत थे और इसी लिये उनके तक़रीबन सब ही बच्चे लंबे लंबे थे. फूफी नीलोफर का क़द भी बहुत लंबा था बल्के वो तो खानदान के कई मर्दों से भी लंबी थीं . फूफी शहनाज़ के अलावा मेरी सारी ही फूपियाँ क़द-आवर और लंबी चौड़ी थीं और फूफी नीलोफर भी बहुत सेहतमंद और लंबी औरत थीं . वो अपनी बहनो में फूफी खादीजा और फूफी नादिरा से बहुत ज़ियादा मिलती थीं . लेकिन अपनी बहनो से उनकी शबाहात सिरफ़ चेहरे की साख़्त की हद तक नही थी बल्के उनके बदन भी काफ़ी हद तक एक ही जैसे थे.
फूफी खादीजा मेरी पहली फूफी थीं जिनको में चोदने में कामयाब हुआ था. उन्हे चोदने के बाद अब में ये जान गया था के अपनी सग़ी फूफी को चोदना ना-मुमकिन नही होता. इसी लिये अब में किसी तरह फूफी नीलोफर की चूत भी मारना चाहता था. वो मुझे वैसे भी बहुत पसंद थीं . मेरे ज़हन में उन्हे चोदने के कई मंसूबे थे मगर डरता था के कहीं बात बिगड़ ना जाए क्योंके ऐसी सूरत में मेरी खैर नही थी. फूफी नीलोफर को नाराज़ करने में बहुत बड़ा ख़तरा था और इस की एक ख़ास वजह थी.
फूफी नीलोफर के मम्मे फूफी खादीजा के मम्मों की तरह बहुत मोटे थे और उनके चौड़े सीने पर खूब सजते थे. मैंने फूफी नीलोफर को बगैर ब्रा के एक दो दफ़ा ही देखा था. क़मीज़ के ऊपर से भी ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल नही था के उनके मम्मों के निप्पल गैर मामूली तौर पर लंबे और बड़े थे. सारे बदन की तरह उनके चूतड़ भी बहुत तगड़े और मोटे थे. मज़े की बात ये थी के फूफी खादीजा ही की तरह चलते हुए उनके कसे कसाय गोल और सुडौल चूतड़ एक दूसरे के साथ रगड़ खाते रहते और उनकी गोलाइयाँ आगे पीछे हरकत करती रहतीं. फूफी नीलोफर का बदन बहुत मज़बूत और गदराया हुआ था.
फूफी नीलोफर को चोदने की कोशिश करना मधुमक्खी के छट्टेी में हाथ डालने जैसा था. लेकिन वो हर लिहाज़ से इतनी ज़बरदस्त औरत थीं के उन्हे चोदने की खाहिश को दिल से निकालना भी हिमाक़त ही होती. मै तो वैसे भी फूफी खादीजा को चोद लेने के बाद अपनी सारी फुफियों को अपने लिये एक नैमत समझता था और फूफी नीलोफर की मोटी ताज़ी चूत ना लेने का तो सवाल ही पैदा नही होता था चाहे इस में जितना भी ख़तरा होता. हाँ ये ज़रूर था के मुझे अच्छी तरह सोच समझ कर ही इस सिलसिले में कोई क़दम उठाना था.
में ज़हन लड़ाता रहा के फूफी नीलोफर को चोदने के लिये किया करूँ. किसी भी औरत को अपनी चूत देने पर राज़ी करने के लिये मर्द का उस की शख्सियत के मुख्तलीफ़ पहलो’ओं से वाक़िफ़ होना बहुत ज़रूरी है. मै उनका भतीजा होने की वजह से फूफी नीलोफर को बड़े क़रीब से जानता था. वो मेरे सामने खुली किताब की तरह थीं और मुझे किसी ना किसी हद तक ये आगाही थी के उन्हे अपनी चूत देने पर राज़ी करने के लिये किया करना चाहिये.
फूफी नीलोफर का मिज़ाज अगरचे फूफी खादीजा से मिलता तो था मगर वो कुछ चीज़ों में उन से मुख्तलीफ़ भी थीं . वो एक सख़्त-गीर, तेज़ तबीयत और जल्द गुस्से में आ जाने वाली औरत मशहूर थीं . वो इतनी जल्दी किसी से फ्री नही होती थीं . फिर ये भी था के वो खुद को दुनिया की खूबसूरत तरीन औरत समझती थीं . उन्हे अपने आप से बड़ी मुहब्बत थी और बाक़ी सब औरतों को वो खुद से बहुत कम तर जानती थीं . अपनी तारीफ से उन्हे बहुत खुशी होती थी. ऐसा तो खैर सारी ही औरतों के साथ होता है मगर फूफी नीलोफर तो अपने मुक़ाबले में किसी दूसरी औरत का ज़िकर भी नही सुन सकती थीं . अगर कोई उनके सामने किसी औरत की तारीफ करता तो वो फॉरन उस में हज़ार कीड़े निकालने लगतीं.
इस के अलावा पैसा भी फूफी नीलोफर की बहुत बड़ी कमज़ोरी था और अगरचे वो दौलतमंद थीं मगर पैसे पर फिर भी जान देती थीं . जेवर और कपड़ों की दीवानी थीं और कभी भी अपने आप को ऐसी चीज़ों से दूर नही रख पाती थीं . शॉपिंग करना उनके लिये ज़िंदगी का सब से पसंदीदा काम था. इन्ही कमज़ोरियों का सोच कर और मामी शाहिदा वाले तजरबे की रोशनी में मैंने हिम्मत कर के उनकी फुद्दी मारने का प्लान बना ही लिया. बात बिगड़ भी सकती थी मगर में जानता था के फूफी नीलोफर अगर नाराज़ भी हुईं तो अपनी नाराज़गी मुझ तक ही रक्खेंगी किसी और को कुछ नही बताएं गी क्योंके इस में उनकी भी बड़ी रुसवाई होती. मै खामोशी से अपने प्लान को अमली जामा पहनाने के लिये सही वक़्त का इंतिज़ार करने लगा.
कुछ अरसे बाद मुझे पता चला के फूफी नीलोफर बा-रास्ता लाहोर पिंडी आ रही हैं. मेरे लिये उन पर हाथ डालने का ये बेहतरीन मोक़ा था. मैंने डैड से कहा के मैंने भी लाहोर जाना है में फूफी नीलोफर को वापस आते हुए पिंडी लेता आऊँ गा. उन्होने फूफी नीलोफर से इस सिलसिले में फोन पर बात कर ली. मै चाहता था के मामी शाहिदा की तरह फूफी नीलोफर को भी किसी होटेल में ही चोदने की कोशिश करूँ क्योंके वहाँ पर किसी को पता ना चलता और अगर वो नाराज़ भी होतीं तो उन्हे संभालना और उनके गुस्से को ठंडा करना निसबतन आसान होता.
मैंने उन्हे कराची फोन किया के में लाहोर कार पर आ रहा हूँ और होटेल में ठहरूं गा आप मेरे साथ ही रहें. हम फाइव स्टार होटेल में ठहरे गे और आप को कोई तक़लीफ़ नही हो गी. उन्होने कहा के खादीजा का घर जो है होटेल में रहने की किया ज़रूरत है. मैंने बताया के होटेल में कमरा पहले से बुक है और ऐसी सूरत में वहाँ रहने में किया मुज़ायक़ा है. इस पर वो मान गईं और कहा के ठीक है तुम मुझे एरपोर्ट से ले लाना. मैंने उन से पुछा के किया उन्होने फूफी खादीजा को अपने लाहोर आने के बारे बताया है? उन्होने कहा के नही उससे अभी बताना है. मैंने कहा के जब हम होटेल में ठहर रहे हैं तो आप उन्हे अपने आने का ना बताएं क्योंके वो आप को अपनी तरफ रहने पर मजबूर करें गी. वो कुछ देर खामोश रहीं लेकिन फिर कहा अच्छा ठीक है.
मैंने अवारी होटेल लाहोर में एक रूम बुक करवया और मुकरर दिन लाहोर एरपोर्ट पर उन्हे रिसीव किया. उस दिन फूफी नीलोफर ने पीले कपड़े पहन रखे थे जिन में से उनका गोरा सेहतमंद बदन झाँक रहा था. उन्होने व की शकल में दुपट्टा ले रखा था जिस के नीचे उनके मोटे मोटे सेहतमंद मम्मे छुपाये नही चुप रहे थे. उनके मम्मे इतने बड़े थे के दुपट्टा, क़मीज़ और ब्रा मिल कर भी उन्हे धक नही पा रहे थे और मम्मों के दोनो उभार काफ़ी बाहर निकले हुए थे. फूफी नीलोफर के मम्मे ब्रा में फँसे फाँसये बिल्कुल साकित थे और उन में थोड़ी सी भी हरकत नही हो रही थी. उन्होने यक़ीनन सही साइज़ का और बड़ा टाइट ब्रा पहन रखा था.
उनकी मोटी गांड़ भी हमेशा ही की तरह हिलती और झटके खाती दिखाई दे रही थी. उनके दोनो चूतड़ एक दूसरे के साथ बिल्कुल जुड़े हुए थे और जब वो चलतीं तो उनके चूतड़ों की हरकत एक समा बाँध देती. उनके गोल मज़बूत बाज़ू और कंधों का ऊपरी हिस्से बे-इंतिहा सफ़ेद थे और गर्मी की वजह से गुलाबी हो गए थे.
वो लिबर्टी मार्केट में शॉपिंग करना चाहती थीं और लाहोर आने का उनका बुन्यादि मक़सद यही था. हम ने कोई चार घंटे लिबर्टी मार्केट में शॉपिंग की. मैंने फूफी नीलोफर के लिये बहुत सी चीजें अपनी जेब से भी खरीदीन. उन्होने कई दफ़ा मुझे कहा के में ऐसा ना करूँ मगर में बड़े इसरार और खलाऊस के साथ उनके लिये खरिदारी करता रहा. वो बहुत खुश थीं और ये बात उनके चेहरे से साफ़ ज़ाहिर थी. आम हालात में वो ज़रा सीरीयस ही रहती थीं मगर उस दिन उन्होने काफ़ी बे-तकल्लूफ़ी से मेरे साथ बहुत सारी बातें कीं. फिर हम दोनो अवारी होटेल अपने रूम में आ गए. मैंने बाथरूम जा कर T-शर्ट और शॉर्ट्स पहन लिये.
अगर इंसान खुश हो तो उस का किसी बात पर नाराज़ हो जाने का इंकान ज़रा कम हो जाता है. आज फूफी नीलोफर इतनी सारी चीजें खरीद कर बहुत खुश थीं और मेरे लिये हालात काफ़ी साज़गार नज़र आ रहे थे.
“अमजद तुम ने बिला-वजा इतने पैसे लगा दिये. बहुत सी चीज़ों की तो मुझे ज़रूरत भी नही थी और तुम ने फिर भी खरीद लीं.” उन्होने कहा.
“फूफी नीलोफर कोई बात नही मैंने अगर आप के लिये चंद चीजें खरीद लीं तो किया हो गया.” मैंने जवाब दिया.
“तुम बताओ तो सही तुम्हारे कितने पैसे लगे? में तुम्हे देती हूँ. यहाँ होटेल में भी तुम्हारा बहुत खर्चा होगा.” उन्होने कहा.
“छोड़ें भी फूफी नीलोफर ये आप किया बातें ले बैठीं. मै तो और भी बहुत कुछ खरीदना चाहता था मगर आप ने मुझे रोक दिया.” मैंने जवाबन कहा.
“नही, नही तुम तो छोटे हो में तुम्हारे पैसे नही लगवाना चाहती थी. मुझे तो चाहिये था के तुम्हे कुछ ले कर देती.” वो बोलीं.
“अब बस भी कर दें फूफी नीलोफर ये किन बातों को ले कर बैठ गईं हैं आप.” मैंने थोड़ा बे-तकल्लूफ होते हुए बात बदलने की कोशिश की.
इसी तरह की कुछ और बातों के बाद ह मुझे अंदाज़ा हो गया के फूफी नीलोफर बड़े अच्छे मूड में थीं. मैंने गर्मी के हवाले से उनके ब्रा की तरफ देख कर कहा:
“फूफी नीलोफर एक तो औरतें गर्मी में भी इतने ज़ियादा कपड़े पहनती हैं. ऊपर भी कपड़े और कपड़ों के नीचे उन से भी मोटे कपड़े.”
वो हंस पड़ीं और समझ गईं के मेरा इशारा उनके ब्रा की तरफ है.
“सीने पर भी तो कुछ पहनना पड़ता है इसे हिलता जुलता कैसे छोड़ें.” उन्होने बड़ी बे-तकल्लूफ़ी से कहा.
“घर के अंदर तो सिर्फ़ क़मीज़ काफ़ी है ब्रा की ज़रूरत नही.” मैंने उन्हे टेस्ट करने लिये खुल कर ब्रा का ज़िकर छेड़ा.
“हाँ ब्रा ना हो तो गर्मी में सकूँ रहता है.”
बात ठीक जा रही थी क्योंके फूफी नीलोफर मुझ से ब्रा जैसी प्राइवेट चीज़ के बारे में बात कर रही थीं .
“फूफी नीलोफर ब्रा की क्वालिटी से भी फरक़ पड़ता होगा.” मैंने बात जारी रखी.
“बहुत फ़र्क़ पड़ता है. लोकल ब्रा सीना कचील देते हैं मगर इंपोर्टेड आराम-दे होते हैं और कम गरम भी.” उन्होने गैर-इरादि तौर पर अपना एक हाथ अपने मोटे मोटे मम्मों पर रख दिया.
“शायद मम्मों के साइज़ का भी मसला होता होगा. मोटे मम्मे ज़ियादा तंग करते हूँ गे.”
मैंने अपनी ज़िंदगी में पहली दफ़ा उन से इस तरह और इस ज़बान में बात करने की जुर्रत की थी. मैंने ये जुमला बोल तो दिया मगर मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा.
“हाँ ऐसा ही है.” उन्होने मुख्तसर सा जवाब दिया और उनके होठों पर खेलने वाली मुस्कुराहट अचानक घायब हो गई. अगर उन्हे मेरी बात बुरी लगी भी थी तो उन्होने इस का इज़हार करने से गुरेज़ किया था.
में उनकी दिमागी हालत का अंदाज़ा लगाने की कोशिश करता रहा. इन बातों के दोरान फूफी नीलोफर के चेहरे पर हल्का सा रंग आया मगर वो चुप रहीं. शायद उन्हे अपने मम्मों में मेरी दिलचस्पी से मालूम हो गया था के मेरी नियत किया है. लेकिन में इस बारे में सो फीसद यक़ीन से कुछ नही कह सकता था. उस वक़्त में थोड़ा डरा भी मगर फिर वो फ्रिज़ से पानी लेने उठीं तो मुझे उनके उभरे हुए मम्मे साइड से नज़र आये और कुदरत के उन दो कमलात को देख कर मेरा डर खुद-बा-खुद काफ़ी हद तक कम हो गया. मै सुबह से ही फूफी नीलोफर के मम्मों को देख रहा था मगर अब उनके गैर-मामूली मम्मों का नज़ारा कर के मज़ा आ गया.
“फूफी नीलोफर आप नहा धो लें और प्लीज़ ब्रा उतार दें बहुत गर्मी है.” मैंने फिर बड़ी क़ाबिल-ए-ऐतराज़ बात की.
उन्होने मेरी तरफ देखा.
“ये कमरा सेंट्रली एर कंडीशंड है यहाँ तो बिल्कुल गर्मी नही है.” उन्होने कहा और बाथरूम में चली गईं. वो किसी गहरी सोच में डूबी हुई थीं लेकिन लहजे में गुस्सा बिल्कुल नही था.
मुझे एक ख़याल आया. मैंने बाथरूम के बाहर से उन्हे बताया के में थोड़ी देर के लिये बाहर जा रहा हूँ. फिर कार पर लिबर्टी मार्केट आया, एक बड़े स्टोर से उनके लिये 5 इंपोर्टेड ब्रा खरीदे और वापस भागा. उस वक़्त तक वो कपड़े बदल चुकी थीं मगर ब्रा अब भी पहना हुआ था.
“कहाँ गए थे?” उन्होने सवाल किया.
“आप के लिये इंपोर्टेड ब्रा लाया हूँ. लाहोर की इस गर्मी में आप को इनकी बहुत ज़रूरत है.” मैंने ब्रा उनको देते हुए कहा.
वो ब्रा के बॉक्सस देख कर हैरान तो होन मगर उनका चेहरा जैसे खिल उठा.
“किया ज़रूरत थी में अपने साथ ब्रा ले कर आ’ई हूँ अभी नहा कर बदला है.” उन्होने बॉक्सस को उलट पुलट कर देखते हुए कहा.
“फूफी नीलोफर आप शर्मिंदा ना करें. फुफियों में आप मुझे सब से अच्छी लगती हैं. आज ही तो आप की खिदमत का मोक़ा मिला है.” मैंने थोड़ा सा झूठ बोला क्योंके मुझे सिरफ़ फूफी नीलोफर ही नही बल्के अपनी चारों फूपियाँ बहुत अच्छी लगती थीं .
उनके चेहरे से ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल था के वो किया सोच रही हैं लेकिन बहरहाल ये भी गनीमत थी के उन्होने अभी तक मेरी किसी बात का बुरा नही माना था.
मैरा दिल खुशी से झूम उठा क्योंके इस का मतलब ये था के वो ये जान लेने के बाद भी के में उनकी इतनी आओ भगत सिरफ़ फूफी होने की वजह से नही कर रहा था गुस्से में नही आई थीं . उन जैसी औरत से ये तावॉक़ो नही की जा सकती थी के वो कोई ऐसी बात बर्दाश्त करें जो उन्हे ना-पसंद हो. अगर उन्होने मुझे रोकना होता तो वहीं रोक देतीं. तो किया इस का मतलब ये है के वो मुझे अपनी फुद्दी दे दें गी? काश आज ऐसा हो जाए. मैंने सोचा.
मैंने एक दफ़ा फिर फूफी नीलोफर के चेहरे के ता’असूरात का जाइज़ा लेने की कोशिश की. वो बहुत खुश नज़र आ रही थीं जिस से ज़ाहिर होता था के मेरे नफ्सीयाती हार्बे कामयाब हो रहे थे. मुझे लगा के अपनी मख़सूस जेहनीयत की वजह से फूफी नीलोफर अब मेरे जाल में फँसती जा रही थीं . शायद आज अनहोनी हो ही जाती और में उन्हे चोदने में कामयाब हो जाता.
मैरा खौफ और भी कम हो गया.
“फूफी नीलोफर किया ये ब्रा ठीक साइज़ के हैं.” मैंने पूछा.
“लगता तो है.”
“उमीद है ये ब्रा आप के मम्मों पर फिट हूँ गे.” में आहिस्ता आहिस्ता अपनी हदों से बाहर निकल रहा था और मेरी बातों में नंगा-पन ज़ियादा हो रहा था.
वो मेरी ये बात सुन कर भी कुछ नही बोलीं लेकिन उनके चेहरे पर सोच के गहरे साय ज़रूर नज़र आ रहे थे. ऐसा लगता था जैसे वो अपने ज़हन में कोई गुत्थी सुलझाने की कोशिश कर रही हूँ. यक़ीनन वो ये जान गई थीं के मेरे दिल में उनी फुद्दी मारने की खाहिश है और इस वक़्त वो इसी बारे में सोच रही थीं .
“फूफी नीलोफर आप इन्हे पहन कर देख लें फिट ना हूँ तो में चेंज करवा लाऊं गा.” मैंने कहा.
उन्होने फिर अजीब नज़रों से मेरी तरफ देखा. उनकी आँखों में कुछ था. फिर बगैर कुछ कहे हुए वो बाथरूम में चली गईं. इस बात में शक-ओ-शुबहेय की कोई गूंजा’इश् नही रह गयी थी के फूफी नीलोफर ये जान चुकी थीं के में ना-सिरफ़ उन पर गरम था बल्के उन्हे चोदना भी चाहता था.
थोड़ी देर बाद फूफी नीलोफर बाथरूम से बाहर आईं:
“ये ज़रा छोटे हैं.” वो बोलीं. मेरे लिए हुए ब्रा उनके हाथ में थे.
उन्होने अब ब्रा नही पहना था और उनका दुपट्टा कंधे पर पडा था जो उनके एक मम्मे को ढांपे हुए था. उनका दूसरा और सफ़ेद मम्मा गर्मियों में पहनी जाने वाली पतली सी क़मीज़ के अंदर बिल्कुल वाज़ेह नज़र आ रहा था. उनके मम्मे बहुत मोटे और खड़े खड़े थे. उनके एक मम्मे का बहुत ही मोटा और नोकीला निप्पल भी क़मीज़ से आगे निकला हुआ था.
“आप किस कंपनी का ब्रा पहनती हैं फूफी नीलोफर?” मैंने सवाल किया.
“लिली ऑफ फ्रॅन्स का.” उन्होने कहा.
“आप मुझे अपना बिल्कुल सही साइज़ दें में ये ब्रा चेंज करवा लाता हूँ.” मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा.
“मैरा साइज़ 40 से ऊपर ही है यानी लार्ज.” उन्होने जवाब दिया.
“फूफी नीलोफर इस तरह तो पता नही चलता. इंपोर्टेड ब्रा के साइज़ लार्ज, स्माल या एक्सट्रा- लार्ज नही होते. आप अभी फीते से अपना साइज़ ले कर मुझे बताएं. नाप का फीता होटेल के हाउस कीपिंग से मिल जाए गा.”
उन्होने एक लम्हा सोचने के बाद असबात में सर हिला दिया. वो इतने महँगे ब्रा को हाथ से जाने नही देना चाहती थीं .
मेरे फोन करने पर होटेल का एक मुलाज़िम आम दर्ज़ियों वाला फीता हमारे रूम में ले आया. मैंने फीता फूफी नीलोफर को दिया.
“फूफी नीलोफर ब्रा के लिये नाप दो जगह से लें. एक मम्मों के नीचे कमर का और दूसरे मम्मों के बिल्कुल ऊपर. इन को मिला कर सही साइज़ मिले गा.” मैंने बताया.
“तुम्हे ब्रा का साइज़ लेना किस ने सिखाया है? ये तो बहुत सी औरतों को भी नही पता. खुद मुझे भी पता नही था.” वो मेरी तरफ देख कर बोलीं.
“ये मॉडर्न ज़माना है पता चल ही जाता है.” मैंने कहा.
अब अगला पत्ता फैंकने का वक़्त था.
“फूफी नीलोफर में नाप ले लेता हूँ ये ब्रा बहुत महेंगे हैं फिट ना आए तो किया फायदा.” मैंने धड़कते दिल से कहा.
उनके चेहरे पर फ़िकरमंदी नज़र आने लगी. कुछ देर सोचने के बाद उन्होने कहा:
“तुम नाप ले लो मगर देखो किसी से इस बात का ज़िकर ना करना. ये मुनासिब बात नही है. मै तुम्हारी फूफी हूँ. किसी को पता ना चले के तुम ने मेरे लिये ब्रा खरीदे थे या मेरा नाप लिया था.”
“फूफी नीलोफर में जानता हूँ ऐसी बातों का किसी से ज़िकर नही किया जाता.” मैंने जल्दी से फीता उन से ले लिया.
“आप क़मीज़ उतार दें ताके में नाप ले सकूँ.”
ये सुन कर वो कुछ और घबरा गईं. वो इस बात की तवक़ो नही कर रही थीं ऑरा ब शायद उनकी समझ में आ गया था के नाप लेने के बहाने उन्हे नंगा करना चाहता था.
“अमजद क़मीज़ ऊपर कर के ले लो उतारने की किया ज़रूरत है.”
उन्होने ये कहा ज़रूर मगर उनकी आवाज़ में कोई ऐसी बात थी जिस से में जान गया के अगर मैंने थोड़ा ज़ोर और दिया तो वो अपनी क़मीज़ उतार दें गी.
“इस तरह ब्रा का दरुस्त नंबर नही मिले गा और शायद फिर उन्हे वापस करना मुमकिन ना हो.” मैंने कहा.
उन्होने ये सुन कर आहिस्ता आहिस्ता अपनी क़मीज़ उतारनी शुरू कर दी. जब क़मीज़ उतरी तो चूँके नीचे उन्होने ब्रा नही पहना हुआ था इस लिये उनके तने हुए मोटे मम्मे बिल्कुल नंगे मेरे सामने ज़ाहिर हो गए. अगरचे फूफी नीलोफर ऊपर से नंगी थीं मगर फिर भी घबराईं नही. बस मुझ से आँखें मिलाने से इज्तिनाब किया. लेकिन में ये नही कह सकता था के उन्हे मेरे सामने इस तरह नंगा होने से कोई शरम महसूस हो रही थी. कुछ और ही था जो उन्हे मुझ से आँखें चार करने से रोक रहा था.
मैंने फूफी नीलोफर के नंगे मम्मों को देखा. मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा दिल सीना चीर कर बाहर आ जाए गा. उनके मम्मे बहुत मोटे होने के साथ साथ इंतिहा दूधिया, चमकीले, रेशमी और बे-दाग भी थे. दोनो मम्मों के ऊपर बड़े बड़े निपल्स काफ़ी ज़ियादा बाहर निकले हुए थे. मेरा ये अंदाज़ा भी बिल्कुल दरुस्त साबित हुआ था के उनके मम्मों के निपल्स बहुत लंबे और मोटे थे. आज मैंने अपनी आँखों से उनके निपल्स को देख लिया था. वाक़ई बहुत शानदार मम्मे और बहुत शानदार निपल्स थे फूफी नीलोफर के. उनके निपल्स की नोकें इतनी मोटी थीं के उन्हे चुटकी में आसानी से पकड़ा जा सकता था. ऐसा लगता था जैसे उनके निपल्स किसी ने क़लम से तराश कर सलीक़े से उनके मोटे सफ़ेद मम्मों के ऊपर लगा दिये हूँ. उस वक़्त भी उनके खूबसूरत निपल्स पूरी तरह अकड़े हुए खड़े थे.
मैंने काँपते हाथों से उनकी कमर से फीता घुमाया और उनके मोटे ताज़े मम्मों के सांनी ले आया. फिर मैंने फूफी नीलोफर के मम्मों के नीचे पेट से ऊपर नाप लिया. इस दोरान उनके भारी मम्मों को बिल्कुल नंगा अपने इतने क़रीब देख कर देख कर मेरे दिल में उनके निपल्स को हाथ लगाने और चूसने की शदीद खाहिश पैदा हुई. मै फूफी नीलोफर के मम्मों से अपनी आँखें हटा नही पा रहा था. फूफी नीलोफर ने यक़ीनन ये देख लिया और बे-साख्ता एक क़दम पीछे हट गईं. वो पीछे हटीं तो उनके पेट उनके इर्द गिर्द लिपटे हुए फीते से थोड़ा ऊपर उनके दोनो मम्मे ज़ोर से हिले और मेरे दोनो हाथों की पुष्ट से लगे. मै गड़बड़ा गया और नाप वाला फीता मेरे हाथ से छूट कर नीचे ज़मीन पर गिरा. इस सारे वाक़िये की वजह से फूफी नीलोफर भी अब काफ़ी नर्वस नज़र आ रही थीं . जैसे ही फीता नीचे गिरा वो गैर-इरादि तौर पर उससे उठाने के लिये नीचे झुकीं. नाप लेने के लिये में उनके बहुत क़रीब खड़ा था इस लिये जब वो झुकीं तो उनका एक मम्मा मेरे हाथ के पिछले हिस्से पर लगा. मैंने अपना हाथ सीधा किया तो उनका मम्मा पूरा का पूरा मेरे हाथ में आ गया. उनके मम्मे ला लांस अपने हाथ पर महसूस करते ही मैंने जल्दी से अपना हाथ पीछे खैंच लिया. उनका मोटा ताज़ा मम्मा फिसलता हुआ मेरे हाथ से निकल गया.
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