Sunday, February 8, 2015

Fentency माँ की अगन --1

Fentency

  माँ की अगन --1

 
सरला बडी तनाव मे अपने बेटे विजय को फोन लगाके बात करने लगती है।

सरला- हॅलो.....हॅलो विजय बेटा....

विजय- हां हां मां क्या हुआ... मां तु रो क्यू रही है।

सरला- अरे बेटा तेरे बापू को...तेरे बापू को दील का दौर पड गया है रे उन्हे पास के अस्पताल मे भरती कीया है।

तू....तू जल्दी गांव आजा बेटा यहां तेरी बहोत जरूरत है बेटा ।

विजय- हा हा मां मै कल ही सुबह की गाडी पकड कर गांव आ जाऊंगा तू रोना बंद कर । भगवान पे भरोसा रख

बापू को कुछ नही होगा मां। और अपने आप को संभाल मै हू ना मै देख लूंगा वहा आ कर सब कुछ।

सरला- अब तेरा ही सहारा है बेटा जल्दी आ बेटा...

कुछ देर बाद विजय फोन रख देता है । ईधर शहर मे विजय को रातभर ईस खबर से निंद नही आई और गांव मे

सरला का रो रो के बुरा हाल था।

दुसरे दीन सुबह जल्द विजय कानपूर जाने वाली रेल्वे पकड कर दुसरे दीन गांव पहूंचता है।

सरला घर के दरवाजे पेही बेटे को गले लग जाती है । और जोर जोर से रोने लगती है। विजय उसके आंसू पोछता

है।

विजय- अरे मां तू रोना बंद कर मै आ गया हूं ना।

सरला- हाय हाय भगवान.. बेटा डाक्टर ने एक आपरेसन करने बोला है कहा है जल्द आपरेसन करना होगा

तुरंत ५०,००० अस्पताल जमा करने है...

विजय अस्पताल जाकर तुरंत पैसे का बंदोबस्त कर आया को बेटे के आने से सरला को थोडा मानसिक आधार

मिलता है । ऑपरेशन कामयाब रहता है पर कुछ दीन के लिए विजय के पिता को अस्पताल मे रखने को डॉक्टर

कहते है।

ऑपरेशन के कामयाबी और पती के हालात मे सुधार को देख सरला को बडी राहत होती है। सारे गांव मे विजय

की तारीफ होती है की बेटे के वजह से बाप की जान बच गई। ईससे सरला खास तौर पे विजय पे खुष हो जाती

है और होगी भी क्यू ना वो गांव की एक सिधीसाधी औरत थी जिसके लिए उसका सुहाग सबसे बढकर था। वो

घर पे विजय को बडे लाड प्यार करती है उसका गाल चुमती है। उसे विजय भगवान की तरह लगने लगता है।

सरला- हाय बेटा विजय पता नही आज तू न होता तो क्या होता मेरा और तेरे बापू का।

विजय- अरे मां उसमे क्या बात है मैने तो मेरा फर्ज निभाया है।

दोनो मां बेटे की बांते रातभर चलती रहती है।

दो दीन बीत जाते है। सुबह विजय नहाने घर के पिछे पथ्थर पर बैठ कर अपने कसरती शरीर को साबून लगा

लगा के नहाने लगता है नहाने के बाद भीगा खडा हो कर सरला से टावल मांगने लगता है । सरला टावल ले कर

आती है अचानक उसकी नजर सुरज के धूप मे चमकते विजय के कसरती शरीर पर पडती है और वो शरम से

नजर झुकाती है और टावल थमा के निकल जाती है।

गांव मे मनोरंजन का कोई साधन नही था गांव पिछडा था इसलिए दोपहर को विजय बंद कमरे मे अपने

मोबाईल पे गाने सुनता है और बादमे ब्लू-फिल्म देखने लग जाता है विजय का दिमाग जोश से भर जाता है।

दुसरे दीन विजय गाव के पास के शहर जाता है घर के लिए सामान खरीद लाता है साथ ही ना चाहते हुए भी वो

एक चमकीले लाल रंग का नायलोन का नाईट गाऊन सरला के लिए ले आता है।

घर आकर सरला को सामान के साथ वो नाईट गाउन देता है।

सरला- ये क्या लाया बेटा मै इसका क्या करूंगी, मेरी कोई उमर है ये पहनने की। कोई साडी ले आता इससे

अच्छी।

विजय- अरे मां सोते समय तेरी साडी खराब हो जाती होगी ईसलिये लाया हूं।

फिर विजय कमरे मे चला गया, और वो कमरे मे बैठे फीर ब्लू-फिल्म देखने लगा चुदाई के सीन देखते विजय

मदहोश हो रहा था तभी सरला गाऊन पहनकर कमरे मे आ गई

सरला- देख बेटा कैसे लग रही है ये, मुझे तो बडी शरम आ रही है।

और विजय हडबडाके फोन बंद कीया पर सामने जो नजारा था वो देख कर दंग रह गया। गांव की औरते उन्हे ब्रा

पहनने की आदत नही होती सरला की दोनो पपीते जैसी बडी चुंचिया नाईट गाउन मे नंगी थी उसकी मनुके

जितनी बडी घुंडीया चमकते गाउन मे अपनी जगह दीखा रही थी। मोटे मोटे चुत्तड तो नाईट गाउन को चिपके

हूए थे पुरे गोल गोल जरा भी हीलने पर थिरक रहे थे।


 वो कीसी मोडेल की तरह विजय के सामने सिर छुकाए खडी थी विजय घुरे ही जा रहा था। उसे कुछ सुज
ही नही रहा था। वो पागलो की तरह उसे भुके भेडीये के नजर से उसके गोरे बदन को लार टपकाये देख

रहा था ।

सरला- अरे बेटा बताना कैसे लग रही है ये ना..नायटी ।

विजय अपने होश संभालता है ।

विजय- हा ह... वाह मां तू तो कमाल की सुंदर लग रही है। बिल्कूल नई दुल्हन की तरह।

सरला- चल हट बेशरम कुछ भी कहता है । मै नही पहनने वाली ये मुझे बडा अजिब लगता है इसमे ।

विजय- अरे मां मै तेरे लिए ईतने प्यार से लाया हूं और तू ऐसी बात कर रही है ।

सरला- ठीक है बेटा बस तेरे लिए ये रात मे पहनूंगी खूष।

नाईट गाऊन का गला काफ़ी नीचे तक था, और वह सरला के साईज से कम थी इसकारण सरला का साडी मे

छुपा हुआ सुंदर बदन खिल उठा था उसके मादक गोल भरे हुए अंग नाईटी मे ऊभर के आ रहे थे। ये सब नजारा

देख विजय को शहर की रंडीया जिन्हे वो चोदता था वो उसके मां की खुबसुरती के सामने फीकी दीखने लगी ।

सरला तो वहा से जा चुकी थी पर उसके बदन को याद करके उसका लंड झटके मारने लगा। विजय के दीमाग मे

सरला के बारे मे गंदे खयाल आने लगे । रात को विजय अपनी सोई हुई मां को निंद मे अपना बदन मसलते हुए

देख लिया वो बुरी तरह से पसिना हो रही थी ।विजय भांप गया यह उसके मां की अगन है पर सरला बडी ही

संस्कारी पतीव्रता औरत थी इसलिए वो इस अगन को दबाकर रखती थी । अब तो विजय को बुरी तरह से सरला

को चोदने की चाहत होने लगी ।

वो बस मौके की तलाश मे था दो दीन विजय को निंद नही आई । सुबह विजय के काम से फोन आया तो विजय

छुट्टी और बढाई ताकी वो सरला को फांस ने की योजना बना सके । पर उसी दीन अस्पताल से उसके बापू के

हालत सुधरने के बारे मे फोन आया। पर उसे ईस खबर से खास खुषी नही हुई । विजय दोपहर खटीया पे पडे हुए

सोच रहा था तो सरला कमरे मे आ गई और विजय के पास बैठ गई वो विजय पे बडी खुष थी विजय विजय का

सर अपने नरम जांघो पर रख दीया ।

सरला- बेटा बडी सोच मे पडा हुआ है क्या हुआ।

विजय- अरे मां शहर से फोन आया था काम पे बुलाया था।

सरला के चेहरे पर उदासी छा गई।

विजय- अरे मां उदास क्यो होती है मैने छुट्टी बढा दी है।

सरला- सच बेटा... पर तुझे भी तो शहर जाना जरूरी होगा ना ।

विजय- अरे मै मेरी प्यारी मां को थोडीना ऐसे परेशानी मे छोडकर जा सकता हूं ।

सरला- चल बडा आया मुझसे प्यार करने वाला झुटा।

विजय- सच मां तु मुझे बहोत प्यारी लगती है , तुझे भी मै प्यारा लगता हूं ना मां।

विजय ने सरला का हांथ हांथ मे ले लिया।

सरला- अरे तु तो मेरे कलेजे का तुकडा है रे , मै तेरे लिए कुछ भी कर सकती हूं ।

विजय- सच ना मां तो मेरी एक बात मानेगी। मना तो नही करेगी।

सरला- अरे मेरे लाल तू मेरे लिए सबकुछ है तेरी कसम, मै नही मना करूंगी ।

विजय ने उठ के दरवाजा बंद कर दीया और आके खटीया पे सरला के बगल मे बैठ गया

विजय- ठीक है पर मुझे नही लगता तू मुझे वो दे पाएगी

सरला- अरे पर बता तो सही।

विजय- मां मुझे तुम्हे प्यार से चुमना है ।

सरला आगे बढी और विजय अपना गाल आगे बढाया

सरला- इतनी सी बात ले चुमले।

विजय ने अपनी उंगली उसके होंटो पर रखी

विजय- यहां नही यहां ।

सरला- क्या बात कर रहा है बेटा मै तेरी मां हूं हम एसे नही चुम सकते ।

विजय ने उसकी एक नही सुनी और उसका मुंह हाथो मे भरकर उसके होंट चुमने लगा ।

सरला ने जैसे तैसे खुदको उससे अलग कीया और चुप चाप सिर निचे कीये बैठी रही ।

 विजय- चल मां अब मुझे तेरे होंट चुमने है।
सरला नाराजी के आवांज मे बोली

सरला- और अभी जो तुने कीया वो

विजय- अरे मां वो नही वो होंट जो तुने यहां छुपाके रखे है।

और विजय अपना मुंह सरला के जांघो के बिच रगडने लगा। सरला ने जैसे तैसे उसका सिर जांघो से हटाया।

सरला- विजय ये क्या पागलपन लगा रखा है।

तभी विजय ने सरला को पकडने को हाथ लपका तो सरला उससे बचके दरवाजे के पास भागने लगी तो विजय

उसे कसके चबोच लिया और उसकी जांघो के बीच हाथ मलने लगा।

विजय- अरे मां तू समझती क्यो नही मै तुझे बेतहा चाहता हूं

विजय सरला को खटीया पे पटका, और अपनी हाफ पेंट निचे सरकाई उसका ८ ईंच लंबा काला दंडा सांप की तरह

फन निकाले सरला को देख रहा था । सरलाने डरकर अपने हाथोंसे मुंह ढक लिया।

विजय- अरे मां ये क्या तू एसा करेगी तो कैसे चलेगा । कब तक तू एसी सती-सावीत्री बनी रहेगी । कभी तो

तुझे मेरे पास आना ही पडेगा मुझे पता है तू बडी प्यासी है । आ मां पास आ शरमा मत, देख तुने मेरी कसम

ली है वर्ना मै मर जाउंगा।

ये कहते ही सरला ने अपना हांथ विजय के मुंह पर रख दीया

सरला- ना ना बेटा ऐसी बात नही करते, तू ही तो मेरा सहारा है बेटा , पर ये दुष्कर्म मत कर ये पाप है, मै तेरी

मां हूं रे कोई अजनबी औरत नही। मां और बेटा ये नही कर सकते बात को समझ मेरे लाल।

विजय पे हवस का भूत सवार था । विजय उसका हांथ पकड कर अपने लंड पर रख दीया । और मसलने लगा,

विजय सरला को मनाने के लिए झुट बोलना शुरू कीया।

विजय- अरे मां तू कौनसे जमाने मे रह रही है । शहर मे ये सब आम बात है, मेरा दोस्त अजय और उसकी मां

तो रोज रात चुदाई करते है। और तु ईतनी सुंदर है क्यू जवानी बरबाद करती है मजे ले इसके।

ये सब सुनकर सरला को झटकासा लगा और वो चुप हो गई।

विजयने पास मे एक सिंदूर की डीबीया रखि थी उसमे से सिंदूर लिया सरला ने बहोत विरोध कीया पर विजय ने

सरला के मांग मे सिंदूर भर दीया सरला रोने लगी ।

विजय- ले अब तो तू मेरी हो गई है, और आज से मै तेरा सुहाग हूं । अब तुझे मेरी प्यास बुझानी ही होगी ।

सरला सुधबुध खोई रो रही थी। बाल बिखरे हुए थे बालों मे सिंदूर फैला हुआ था।

विजय को सरला की हालत देखी नही गई । विजय सरला को पास ले कर उसके आंसू चाटने लगा

विजय- मां माफ कर दे मुझे , मुझे ऐसा नही करना चाहीये था पर क्या करू शहर मे मुझे औरतो का नशा लग

गया है। मुझे हफ्ते मे कमसे कम एक बार औरत ना मिले तो मै पागल हो जाता हूं। पता नही मैने कीतने पैसे

लुटाये उन रंडीयो पर, देख मां तू रोना बंद कर दे नही तो मै हमेशा हमेशा के लिए तुझसे दूर चला जाऊंगा।

ये सुन कर सरला दहल गई । उसके आंसू थम गये । विजय उठ कर पेंट पहन कर दरवाजे के पास जाने लगा,

तो सरला ऊठ खडी हुई वो बोली।

सरला- रूक जा विजय।

सरला ने खडी हो कर साडी का पल्लू गिरा दीया और साडी की गांठ खोल दी और साडी को निकाल करके बाजू मे

फेंक दीया। और सिर छुकाए खडी रही । विजय को तो यकीन ही नही हो रहा था की उसकी पुराने रीवाजो वाली मां

बेटे से चुदाई को मान गई थी चाहे वो मजबूरी मे ही क्यू ना । सरला की मोटी मोटी गोरी चुचिंयो पर पल्लू नही

था जैसे तैसे वो ब्लाऊज मे कैद थी उनके वजन की वजहसे ब्लाऊज निचे सरका था । उपर से थोडी देर पहली

खिंच-तान मे उसका पेटीकोट सरक के उसके मोट गठीले मांसल चुत्तडो तक निचे आ गया था। उससे आगे से

उसके चुत के झांटे थोडे दीख रहे थे । बदन की ये नुमाईश देख कर विजय का माथा ठनका उसके अंदर का

भेडीया जाग गया था। पर संयम बरते हुए विजय सरला को कहा

विजय- मां तुम पर कोई जबरदस्ती नही है।

सरला- बस तू वो शहर वाली गंदी आदत छोड दे।

विजय ने झटसे सरला को बाँहों में ले लिया और सरला को पागलो के तरह चूमने चाटने लगा ।

विजय- मां तेरी कसम तेरे सिवाय कीसी औरत को देखूंगा तक नही।


 विजय ने सरला के पेटीकोट के उपर से ही चुत पे हाथ रखा और सरला के जांघो के बीच हाथ घुसा
दिया, और मेरी चुत को मुठ्ठी मे भरके दबोचने लगा ।

विजय ने सरला के ब्लाउज के हूक फटाफट खोलने लगा और उसका आखरी एक हूक तोडते हूए सरला के

खरबूज जैसे मोटे नरम चुंचीया फडफडाती हूई बाहर आ गई विजय भेडीये की तरह सरला के नरम नरम चुंचीया

को मुंह मे भर के पके हूए आम की तरह चुस रहा था । चुंचीयो पे काली घुंडीया चुसते हूए दातोंसे चबा रहा था ।

सरला ना चाहते हुए भी दर्द के मारे सी सी सी करके सिस्काने लगी। सरला का दर्द विजय उसकी चुंचीया चुमते

हूए देख रहा था । उसे लगा सरला चुदाई को तडप रही है ।

विजय ने एकदम से पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया, पेटीकोट का नाडा खिंचते ही पेटीकोट सरला के मुलायम मोटी

जांघो से सरकती पैरो तक नीचे गीर गई, सरला का चेहरा लाज से मजबूरी से लाल हो गया मै वो अपने बेटे के

सामने नंगी खडी थी। विजय ने अपने दोनो हाथों से सरला की मखमली मोटी मुलायम टाँगें दबोचली और सरला

के चुत्तड बेरहमीसे मसलने लगा अपने नाखून गढाने लगा सरला की लाज उसकी आब्रू उसका सगा बेटा लूट

रहा था वो खूले आंखो से ये सब देखे नही सकती थी और इसलिये उसने आंखे बंद करली आंखे बंद कीये दांतो

से होट दबाये विजय के बालों मे उंगलीया सहलाने लगी विजय मजे लूट रहा था पर सरला की हालत नही समझ

पा रहा था उसे लग रहा था सरला भी मजे ले रही है। जब विजय का हाथ सरला की चुत के दाने पर गया तो

सरला के बदन मे बीजली दौड गई वो उछल पड़ी शायद विजय को पता नही था पर सालों बाद सरला के नंगे

जिस्म पर मर्द का हाथ लगा था,विजय ने सरला के चुत के होट फैलाये और चुत की १ इंच लटकती फांके मुंह मे

भर ली और जोर जोर से चुसने लगा, सरला का चुत का अंगूर दाना मुंह मे खिंचने लगा सरला दर्द के मारे

आहहह..... उईईईई......सससससस करती सिस्कारीया जोर जोर से भरने लगी बंद कमरे के खामोशी में

सिस्कारीयो की आंवाजे गुंज रही थी ।

विजय ने तुरंत सरला को कसकर उसके रसिले होंठ चूसने शुरु किये, बोला- मां लगता है बापू के साथ बहोत

मजे कीये है तुने !

सरला बेचारी चुपचाप अपने अतित को याद करके उदास हो गई,विजय ने खडे होकर अपना तना हुआ मोटा

काला लौड़ा हाथ से मलने लगा सरला के हाथ मे रख दीया, सरला हैरान रह गई बिल्कुल काले गन्ने की तरह था

वो, सरला मजबूरी मे उसे हाथ मे लेकर दो बार उपर निचे करने लगी । विजय ने लौडा सरला के गुलाबी

मुलायम गालों पे रगडना शूरू कीया सरला बेचारी आंखे बद करके विजय की हरकते सह रही थी।

विजय बोला- चल मां, पकड़ ईसे और सहला ! इसको मुँह में लेगी बडा मजा आएगा ?

विजयने लौडे का सुपरा सरला के होंटो पे फेरना शूरू कीया । सरला बेचारी अपना मुंह हटाने की कोशीश कर रही

थी

विजय ने सोचा चलो ठीक है जल्द ही सिख जाएगी ।

विजय बोला- चल चल मां, जल्दी लेट जा नीचे !

विजयने सरला को नीचे लिटा कर सरला के टांगों के बीच में आया और झटके उसने सरला की मखमली गुदाज

टांगे फैला ली, विजय ने सरला की टाँगे अपने कन्धों पर रखवा कर अपने लौड़े के टोपे को चुत के चीरे पर

घिसने लगा । सरला अपने होंट काटने लगी ।

विजय ने लंड का सुपारा सरला की मोटी पावरोटी सी चुत के फांको को फैला कर चुत के छेद मे जोर का झटका

मारा, उसका लंड सरला की चुत को फैलाता हुआ अपनी जगह बनाता हुआ सांप की तरह अन्दर घुस गया।

सरला तो पागल हूई जा रही थी चिल्ला रही थी

आआआआआआहहहहहहहहह मर गई रे मोरी मईय्या ! फट गई मेरी ! हायययययय बचाले भगवान कीतना

बडा है उममममममममम हहहह आ आ आ !

विजय- अरे मां आज तेरी सालों की खुजली मिटा कर रहूंगा, तुझे स्वर्ग की सैर कराऊँगा, तू बसे मजे ले !

सरला-हाय मां, मर गई रे आआआ फट गई मेरी चुततततत, रहम कर विजय धिरे कर आहहहहह !

सरला ने भी अपनी लाज छोडदी आखिर अब बचा ही क्या था वो दर्द से जोर जोर से चिल्ला रही थी, मानो दोनो

प्रेमी हो और चुदाई के मजे ले रहे हो,

विजय ने देखते ही पूरा लंड सरला की चुत में उतार दिया और जोर-जोर से झटके लगाने लगा, लंड सरला की

बच्चे दानी से टकरा रहा था।


 सरला हाय-हाय करती रोती बिलगती झटके सहन कर रही थी, और कुछ देर बाद सरला के चुत्तड
उठने लगे, उससे विजय का हौसला बढ रहा था। सरला ना

चाहती हुए भी दो बार झड चुकी थी और बेहोश पडी थी

विजय भी सरला को चुमता चाटता झडने वाला था विजयने लंड बाहर निकाल कर सरला की मांग मे लंड का

गाढा सफेद पाणी छोड दीया ।

विजय को अब सरला को घर की पालतू रंडी बनाने का रास्ता मिल गया था !

विजय ने शाम तक सरला के खटीया पे नंगी रखकर कई तरीकों से चोद-चोद के निहाल कर दिया वो बेहोश पडी

रही और विजय सरला की ईज्जत लुटता रहा।

---------------------------------भाग १ समाप्त------------------------------------------











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