Fentency
मेहनत सफल हो गई -2
झंडे ने कस-कस कर दस-पंद्रह जोरदार धक्के लगाये और उसके मुँह में ढेर सारा वीर्य उड़ेल दिया। दुल्हन ने सारा का सारा वीर्य गटक लिया। झंडे का लिंग भी पहले की अपेक्षा कुछ सिकुड़ गया था। दुल्हन ने हाथ से पकड़ कर देखा और बोली,"अरे ये तो सिकुड़ कर कितना छोटा हो गया। ऐसा क्यों ?"
झंडे बोला, आदमी जब झड़ जाता है तो उसका लिंग ऐसे ही सिकुड़ कर छोटा पड़ जाता है। हाँ, अगर औरत चाहे तो उसे फिर से अपने मुँह में डाल कर चूसे तो लिंग फिर बड़े आकार में आ जाता है।" "सच? फिर करें इसको बड़ा.....?"
"हाँ, हाँ, क्यों नहीं.. यह भी आजमाकर देखो मेरी जान, मेरे दिल की रानी...."
दुल्हन ने पुन: झंडे के लिंग को अपने मुँह में लिया और धीरे-धीरे अपनी जीभ से चाटने लगी। सचमुच झंडे ने ठीक कहा था। लिंग फिर से तनतना गया और किसी सांप की तरह फुंकार उठा।
झंडे बोला,"इस बार इस नाग देवता को अपनी गुफा में जाने दो...देखो कैसे-कैसे रंग दिखाएगा यह..। चलो जल्दी अपनी जांघें फैलाओ....."
दुल्हन ने किसी आज्ञाकारी पत्नी की भांति अपनी दोनों जांघें छितराकर फैला दीं। झंडे ने अपना आठ इंच लम्बा लिंग दुल्हन के योनी-द्वार पर टिका दिया.....और जब उसने कस कर एक जोरों का धक्का मारा तो दुल्हन की चीख ही निकल पड़ी। इस बार उसे दर्द तो हुआ लेकिन जो दर्द हुआ वह इस बार के सम्भोग के आनंद के आगे कुछ भी नहीं था। उसने ख़ुशी से किलकारी भरते हुए झंडे के गले में अपनी दोनों बाँहें डाल दी और अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर सम्भोग का पूरा-पूरा मज़ा लेने लगी। उसकी सिसकियाँ फूट पड़ीं...." खूब जोरों से...और तेज ...आह..मेरी मैया..मर गई मैं तो....आज मेरी फट कर रहेगी.....मेरे राजा..। आज इसे फाड़ ही डालो..। जी भर के फाड़...दो..। मुझे .। और जोरों से फाड़ो...देखो रुकना नहीं ....अपना इंजन पटरी से उतरने मत देना...." दुल्हन किसी बेशर्म वेश्या की तरह गन्दी-गन्दी बातें बके जा रही थी।
झंडे ने और भी जोरदार धक्के मारने शुरू कर दिए, बोला,"ले धक्के गिन मेरी जान, पूरे-पूरे सौ धक्के मारूंगा। ....."
झंडे खुद ही धक्कों को गिनता भी जा रहा था। और वास्तव में उसने कर ही दिखाया। पूरे सौ धक्के मार कर भी वह अधिक नहीं थका था। एक सौ दस धक्कों के बाद उसने दुल्हन का गर्भस्थल अपने गर्म-गर्म वीर्य से भर दिया। कुछ देर तक दोनों ही लोग खामोश पड़े रहे। अगले ही पल झंडे के हाथ पुन: दुल्हन के शरीर से खेल रहे थे। दुल्हन बिलकुल बेजान गुड़िया बनी चुपचाप अपने नग्न बदन पर झंडे के हाथों का आनंद ले रही थी। वह तो चाहती ही थी कि झंडे सारी रात उसके निर्वसन शरीर से खेलता रहे। वह भी अब उसके लिंग को सहला-सहला कर मज़े ले रही थी।
झंडे ने कहा,"रानी, एक काम और रह गया। ..आओ उसे भी पूरा कर डालें..."
"कौन सा काम ?" दुल्हन ने पूछा।
तो झंडे ने बताया कि अब उन्हें गुदा-मैथुन का मज़ा लेना चाहिए।
यह क्या होता है? दुल्हन के पूछने पर झंडे ने बताया कि इस खेल में पति अपनी पत्नी की गुदा में लिंग डालता है और फिर उसे भी योनि की भांति ही चोदता है। इस खेल में औरत को बड़ा ही आनंद आता है।
और तब गुदा-मैथुन का खेल खेला गया जिसमें दुल्हन को काफी तकलीफ़ झेलनी पड़ी। लगभग आधे घंटे के इस खेल के दौरान दुल्हन की गुदा भी फट सी गई थी। किन्तु दुल्हन एक बार फिर से अपनी योनि में झंडे का लिंग डलवाने की तमन्ना कर रही थी। अत: वह बार-बार झंडे के लिंग को पकड़ कर सहलाने लगती और तब उसका लिंग फिर से तनतना जाता।
झंडे बोला,"अब यार सोने दो हमें, खुद भी सो जाओ, सुबह जल्दी उठना भी तो है।"
झंडे ने घडी पर एक नज़र डाली। पूरे दो बज रहे थे। दुल्हन को नीद नहीं आ रही थी। वह बोली, " खुद का मन भर गया तो नीद आने लगी जनाब को। हमारा क्या, हमारी तो जैसे कोई इच्छा ही नहीं...."
झंडे बोला,"क्यों, क्या अभी भी कोई कसर बाक़ी है जिसे पूरी करना है...। सारा काम तो कर डाला। देखो, मुँह में तुम्हारे घुसेड़ दिया, पिछले छेद में तुम्हारे घुसेड़ दिया। योनि तुम्हारी फाड़ डाली, अब कौन सी जगह है खाली, मैं जहाँ करूंगा..."
दुल्हन झंडे का हाथ पकड़ कर अपनी योनि पर ले गई और बोली,"तुम यहाँ करोगे, हाँ, हाँ ! तुम यहाँ करोगे...."
"क्या मुसीबत है यार..। अच्छी शादी की । मैं तो एक रात में ही परेशान हो गया...." झंडे बड़बड़ाते हुए उठ बैठा। दिखाओ, किसमें करना है..?
दुल्हन ने अपनी दोनों जाघें फैला दीं और उन्हें चीर कर दिखाती हुई बोली, देखो, तुमने मुझमें इतनी आग लगा दी है कि जो बुझाये नहीं बुझ रही है। बस एक बार डाल दो अपना यह मोटा सा मूसल मेरे अन्दर..."
झंडे ने चुस्की ली," किसी और को बुलाऊं जो अच्छी तरह से तुम्हारी चूत को चित्तोड़गढ़ का किला बना डाले?"
और भी है कोई यहाँ तुम्हारे सिवा? दुल्हन का मत्था ठनका।"
"हाँ, मेरा छोटा भाई है, सबसे पहले तो उसी ने तुम्हारी बजाई है...." दुल्हन यह सुन कर हक्का-भक्का रह गई।
उसने चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया। इस बीच ठंडा राम बाथरूम से बाहर आ गया। उसने पूछा,"क्या हुआ भाभी जी? आप इस तरह क्यों चिल्ला रहीं हैं?"
सचमुच एक नंग-धड़ंग व्यक्ति सामने आ खड़ा हुआ।
"कौन हो तुम...? तुम अन्दर कैसे आये ? " दुल्हन के प्रश्न पर दोनों भाई जोरों से हंस पड़े।
और भी है कोई यहाँ तुम्हारे सिवा? दुल्हन का मत्था ठनका।"
"हाँ, मेरा छोटा भाई है, सबसे पहले तो उसी ने तुम्हारी बजाई है...." दुल्हन यह सुन कर हक्की-बक्की रह गई।
उसने चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया। इस बीच ठंडा राम बाथरूम से बाहर आ गया। उसने पूछा,"क्या हुआ भाभी जी? आप इस तरह क्यों चिल्ला रहीं हैं?"
सचमुच एक नंग-धड़ंग व्यक्ति सामने आ खड़ा हुआ।
"कौन हो तुम...? तुम अन्दर कैसे आये ? " दुल्हन के प्रश्न पर दोनों भाई जोरों से हंस पड़े।
ठन्डे बोला,"भाभी जी, मैं हूँ ठन्डे राम, आपका छोटा देवर, जिसने अभी कुछ देर पहले ही आपका कौमार्य भंग किया है। मैं ही हूँ वह पापी जिसने अपनी सीता जैसी भाभी का छल से सतीत्व भंग कर डाला। अब आप जो भी सजा देंगी मुझे मंजूर होगी। लेकिन इससे पहले आप को मेरी एक बात सुननी होगी..। हुकुम करें तो सुनाऊं ?"
तब ठन्डे ने बड़े ही ठन्डे मन से कहना शुरू किया,"भाभी, हम दोनों भाई दो जिस्म एक जान हैं। आज तक हमें कोई भी अलग नहीं कर पाया। हम अगर कोई चीज खाते भी हैं तो मिल-बाँट कर। हमने आज तक कोई भी काम अकेले नहीं किया। फिर यह सुहागरात वाली रात हमें अलग कैसे कर सकती थी। इसी लिए हम दोनों ने एक योजना बनाई, जिसके तहत मैं तो आपकी ले चुका, खूब जी भर के मज़े जब ले लिये तो मैंने आपको आपके असली हक़दार को सौंप दिया। अगर इसे आप बुरा समझतीं हैं तो मैं सजा पाने को तैयार हूँ। मगर एक बात अच्छी तरह से समझ लेना कि जो भी सजा आप मुझे देंगी उसमें मेरा भाई यानि आपके पतिदेव भी बराबर के हिस्सेदार होंगे।"
ठन्डे के मुँह से सारी बातें सुनकर दुल्हन सिसकने लगी और अपने भाग्य को कोसने लगी। उसने रोते-बिलखते अपने सामने खड़े दोनों व्यक्तियों से पूछा,"अब तुम दोनों ही फैसला करो कि मैं किसकी दुल्हन हूँ? तुम्हारी या फिर तुम्हारी?"
झंडे बोला अगर फैसला मुझ पर छोड़ती हो तो मैं यही कहूँगा कि तुम भले ही मेरी ब्याहता बीवी हो लेकिन यह हम दोनों के बीच की बात रहेगी कि तुम हम दोनों भाइयों की ही बन कर रहोगी। जितना अधिकार तुम पर मेरा है इतना ही अधिकार तुम पर मेरे छोटे भाई ठन्डे का भी रहेगा..."
दुल्हन सुबकते हुए बोली,"और जो बच्चे होंगें, वो किसके कहलायेंगे?"
"वो हम दोनों के बच्चे होंगे। हम दोनों भाई उनको एक सा प्यार देंगें, जमीन जायदाद में बराबर का हिस्सा होगा।"
"और जो तुम्हारे छोटे भाई ठन्डे की बीवी होगी? उसका क्या रहेगा, क्या तुम दोनों भाई उसे भी आधा-आधा बाँट लोगे..?"
झंडे ने एक पल को सोचा और फिर बोला,"हाँ, तो इसमें हर्ज़ ही क्या है?...वह भी सुहागरात वाली रात को इसी तरह से मिल-बाँट कर खाई जायेगी..क्यों भाई ठन्डे, सच कह रहा हूँ न?"
"भैया, आप बिलकुल सही कह रहे हैं। हम दोनों भाइयों के बीच अब तक तो ऐसा ही होता आया है।" ठन्डे ने जबाब दिया।
दुल्हन बोली,"अगर तुम में से कोई एक मर गया तो मैं अपने माथे का सिन्दूर पौंछूंगी या नहीं....?"
दुल्हन के इस प्रश्न पर दोनों भाइयों ने एक पल को सोचा फिर दोनों एक साथ बोले,"तुम्हें सिन्दूर पोंछने की नौबत नहीं आएगी। हम ऐसे ही नहीं मरने वाले। और अगर मरे भी तो एक साथ मरेंगे। एक साथ जियेंगे।"
दुल्हन को अभी भी सब्र नहीं हो पा रहा था, वह बोली,"इस समस्या का फैसला चाचा-चाची से करवाउंगी..." दुल्हन की बात पर दोनों भाई जोरों से हंसने लगे और काफी देर देर तक हँसते रहे, फिर बोले,"ठीक है, हमें तुम्हारी बात मंजूर है। अब रात भर यूँ ही जागती रहोगी या सोओगी भी?"
झंडे ने दुल्हन की ओर देखते हुए कहा। अगर तुम्हें भैया की बात समझ में आती हो तो हम दोनों भाई अभी भी तुम्हारी सेवा में हाजिर हैं। क्यों न तीनों एक दूसरे की बांहों में सिमटकर सो जाएँ..। बोलो मेरी भाभी जान, क्या कहती हो?"
दुल्हन ने एक निगाह दोनों के नंगे शरीर पर डाली। उसे उन दोनों में जरा सा भी तो अंतर नजर नहीं आ रहा था। बिलकुल एक शक्ल-सूरत, एक सा बदन, यहाँ तक लिंग भी दोनों का एक ही आकार का नज़र आ रहा था। दुल्हन बिना कुछ बोले ही उन दोनों के बीच में आकर लेट गई। अर्थात दुल्हन ने दोनों को ही अपना पति मान लिया था।
झंडे बोला " भई ठन्डे! ..."
"हाँ भाई, झंडे, बोलो क्या करना है अब। ये तो तुम्हारी बात मान कर हमारे बीच में आ सोई है।"
"झंडे बोला,"इसका मतबल है कि कुड़ी मान गई है। अरे ठन्डे, कहीं तू वाकई ठंडा तो नहीं पड़ गया?"
"नहीं भैया, मेरा तो अभी भी तना खड़ा है। करना क्या है, बस आप हुकुम करो।"
"अरे बेशर्म, अपनी भाभी की तड़पन कुछ कम कर दे। बेचारी सुलग रही है बुरी तरह से..."
"अभी लो भैया," ठन्डे उठा और दुल्हन पर आ चढ़ा।
दुल्हन भी गर्मा गई और फिर तीनों ने सेक्स का खेल रात भर खेला। कभी ठन्डे का लिंग दुल्हन की योनि को फाड़ता तो कभी झंडे का लिंग, जैसे कि दोनों में एक होड़ सी लग गई। दुल्हन अपनी दोनों जांघें फैलाए रात भर उनके लोहे जैसे लिंगों का मज़ा लेती रही। तीनों लोग बिल्कुल निर्वसन हुए रात भर एक-दूजे से चिपटे पड़े रहे।
सुबह चाची जी ने आकर उन्हें उठाया। दुल्हन जब हड़बड़ाकर उठी तो वह बिल्कुल नंगी दोनों भाइयों के बीच लेटी पड़ी थी। उसने लपक कर पास पड़ी चादर खींच ली और अपने आप को ढकने का प्रयास करने लगी।
चाची मुस्कुराई, बोली,"अभी नई-नई है न, इसी लिए शरमा रही है। बहू, हमसे कोई शर्म करने की जरूरत नहीं है । मैं अच्छी तरह से जानती हूँ, मेरे दोनों बेटे आज तक हर चीज को मिल-बाँट कर खाते रहे हैं। जब मैं इस घर में आई थी, ये दस-दस साल के थे। मेरे ये दोनों जिठोत जुड़वां पैदा हुए थे। कुछ समय बाद ही इनकी माँ मर गई। मेरे जेठ ने इन्हें बड़े ही लाड़-प्यार से पाला था। मेरी शादी से कुछ माह पहले ही मेरे जेठ भी चल बसे। मरते समय उन्होंने इन दोनों भाइयों का हाथ तुम्हारे चाचा जी के हाथ में देकर यह वचन माँगा था कि कितनी ही मुसीबत आ जाए पर इन पर आंच न आने देना। तुम्हारे चाचा जी आज भी अपने भाई को दिए गए वचन की लाज निभा रहे हैं। मेरे जेठ जी ने इन दोनों भाइयों से भी एक वचन माँगा था कि ये दोनों भाई हर चीज को मिल-बाँट कर खाएं। पिता को दिए गए इसी वचन की खातिर ये दोनों भाई आज तक हर चीज को मिल-बाँट कर ही खाते रहे हैं और आज रात को भी दोनों भाइयों ने तुम्हें मिल-बाँट कर ही खाया।"
चाची ने सोते हुए अपने दोनों बेटों की बलैयाँ अपने सिर-मत्थे लेते हुए उन्हें झकझोर कर उठाया। दोनों भाई उठ खड़े हुए और अपने-अपने कपड़े पहनने लगे।
दुल्हन ने आश्चर्य से पूछा,"चाची जी, ये लोग आपसे शरमाते नहीं। इतने बड़े होकर भी आपके सामने यूँ ही नंगे पड़े रहते हैं। जबकि आप की उम्र भी कोई ज्यादा नहीं है। आप ज्यादा से ज्यादा इनसे दस वर्ष बड़ी होंगी..."
"नहीं, मैं इनसे सिर्फ छः साल बड़ी हूँ। क्योंकि जब मैं इस घर में ब्याह कर आई थी तब मेरी उम्र सोलह वर्ष की थी। और मेरे ये दोनों बेटे सिर्फ दस वर्ष के थे। मेरे घर में कदम रखते ही तुम्हारे चाचा ने मुझे अपनी कसम देकर कहा,"देखो जी, एक बात गाँठ में बाँध लो। मेरे ये दोनों भतीजे आज से तुम पर मेरी अमानत के रूप में रहेंगे। ये लोग कितनी भी शरारत करें, कितना भी तुम्हें परेशान करें, पर इनकी शिकायत मुझसे कभी ना करना। तुम जिस तरह से इन्हें सजा देना चाहो देना। मैं तुमसे कुछ नहीं कहूँगा। तब से आज तक मैंने कभी भी तुम्हारे चाचा जी से इनकी शिकायत नहीं की। इनकी हर अच्छी बुरी बात को मैं उनसे छिपाती पर अपने ढंग से इन्हें सजा देती...."
चाची जी कहते-कहते कुछ रुक गईं।
"चाची जी, आगे कहिये न? आप रुक क्यों गईं?" दुल्हन ने पूछा।
चाची बोलीं,"तुम्हारे चाचा की चौथी पत्नी हूँ मैं। जब मेरी उनसे शादी हुई तो तुम्हारे चाचा पचास साल के थे और मैं सिर्फ सोलह साल की। मेरे माँ-बाप बहुत गरीब थे। अत: अच्छा खाता-पीता घर देख कर मेरे माँ-बाप ने एक पचास वर्ष के बूढ़े से मेरी शादी कर दी। तुम्हारे चाचा जी सुहागरात वाली रात को ही शराब पीकर घर लौटे तो दो अन्य आदमी भी उनके साथ थे जो मुझसे बोले, "भाभी जी नमस्ते! कैसी हैं आप.."
"ठीक हूँ.." इस संक्षिप्त से उत्तर से शायद वो लोग खुश नहीं हुए।
खैर, उस समय तो वो दोनों इन्हें घर छोड़ कर चले गए पर आते-जाते मुझ पर बुरी निगाहें डालते रहे। जब भी मौका मिलता कहते, "आह! तेरी चढ़ती जवानी और बूढ़े का साथ...छीई..छी..छी..। भगवान् भी कितना निर्दयी है। कैसा जुल्म किया है बेचारी पर। हाय री किस्मत...बूढा क्या कर पाता होगा बेचारी के साथ...अरे हमारे पास आजा रानी खुश कर देंगे तुझे मेरी जान !"
कहते कहते चाची जी सुबकने लगीं। फिर कुछ साहस बटोर कर बोलीं,"बहु, तुझसे आज मैं कुछ भी नहीं छिपाउंगी, इधर तुम्हारे चाचा जी की हालत और भी ज्यादा बदतर होती जा रही थी। सुहागरात वाली रात को आये और आते ही पलंग पर लुढ़क गए। रात के तीन बजे के करीब इनकी आँख खुली तो मेरे पास आकर लेट गए। थोड़ी देर तक मेरे वक्ष से खेलते रहे। अपने हाथ से मेरे निचले हिस्से को टटोलते रहे, मेरी जांघें सहलाते रहे, मेरी उसमें भी उंगली करते रहे और अंत में मुझे खूब गर्म करके एक ओर को लुढ़क गए। यह सिलसिला अब रोज-रोज चलने लगा। आते और मुझे नंगा करके घंटों कभी मेरी छातियों से खेलते, कभी मेरे योनि में उंगली डाल कर मुझे काफी गर्म कर देते और फिर मुझे तड़पता छोड़ कर सो जाते। क्योंकि मेरी योनि को सहलाते ही वे अपने कपड़ों में ही झड़ जाते थे। अब मेरे पास कृत्रिम रूप से अपनी जवानी की आग को शांत करने के अलावा और कोई दूसरा साधन न था। मैं छुप-छुपकर कृत्रिम साधनों से अपनी कामाग्नि को शांत करने की कोशिश करती। योनि में कभी लम्बे वाले बैंगन डाल कर अपनी कामाग्नि को शांत करती तो कभी आधी-आधी रात को उठकर नहाती तब कहीं जाकर मेरी आग ठंडी पड़ती। कई बार मन में गंदे-गंदे ख्याल आते-जाते रहते। सोचती थी कि जो लोग मुझ पर बुरी नज़र डालते हैं उन्हीं से अपनी जवानी मसलवा लूँ। पर यह करना भी मेरे वश की बात न थी। तुम्हारे चाचा जी की इज्जत का ख्याल मन में आते ही मेरा मन अपने आप को कोसने लगता।"
अब मेरे पास कृत्रिम रूप से अपनी जवानी की आग को शांत करने के अलावा और कोई दूसरा साधन न था। मैं छुप-छुपकर कृत्रिम साधनों से अपनी कामाग्नि को शांत करने की कोशिश करती। योनि में कभी लम्बे वाले बैंगन डाल कर अपनी कामाग्नि को शांत करती तो कभी आधी-आधी रात को उठकर नहाती तब कहीं जाकर मेरी आग ठंडी पड़ती। कई बार मन में गंदे-गंदे ख्याल आते-जाते रहते। सोचती थी कि जो लोग मुझ पर बुरी नज़र डालते हैं उन्हीं से अपनी जवानी मसलवा लूँ। पर यह करना भी मेरे वश की बात न थी। तुम्हारे चाचा जी की इज्जत का ख्याल मन में आते ही मेरा मन अपने आप को कोसने लगता।"
जब कभी तुम्हारे चाचाजी बाहर गए होते तो मेरे ये दोनों बच्चे मेरे ही पास मुझसे चिपटकर सोते थे। वह भी एक भयानक रात थी। चाचा तुम्हारे किसी काम से बाहर गए थे। बाहर आंधी-तूफ़ान का माहौल था। दोनों बच्चे, झंडे और ठन्डे मुझसे चिपटकर सो रहे थे। हालांकि झंडे और ठन्डे अब दोनों ही सोलह-सोलह साल के हो चले थे, फिर भी मेरे लिए तो बच्चे ही थे। अचानक से बादल बड़ी जोरों से गरजे और फिर मूसलाधार बारिश होने लगी। झंडे मेरे सीने से चिपट कर सो रहा था। ठन्डे मेरी पीठ की ओर था।
इसी बीच मुझे लगा कि कोई चीज मेरी जाघों से सट रही है। मैंने हाथ से टटोलकर देखा तो मेरा हाथ झंडे के लिंग से जा टकराया। झंडे का लिंग एकदम किसी जवान आदमी का सा महसूस हुआ मुझे। क्योंकि तुम्हारे चाचा जी का लिंग भी कभी माह, दो माह में खड़ा होता हुआ मैंने देखा था। मेरी नीयत में खोट आ गया। मैंने उठकर लाइट जला दी और गौर से झंडे के लिंग में होती हुई हरकतों को देखने लगी। अब मेरा मन झंडे के लिंग से खेलने को मचलने लगा। कहते है कि घर पर खीर रखी हो तो कोई भूखे पेट क्यों सोये। मैंने झट से लाइट बुझा दी और झंडे को अपने सीने से सटाकर लेट गई।
धीरे-धीरे मैंने अपना हाथ ले जा कर झंडे के लिंग पर रख दिया और उस पर हाथ का दबाव डालने लगी। झंडे का लिंग फूल कर मोटा हो गया। मैंने झट से हाथ हटा लिया। झंडे सो रहा था लेकिन मेरे दिल की ख्वाइश अधूरी थी। मेरा ध्यान उसी के लिंग में पड़ा था। इसी बीच मुझे एक तरकीब सूझी। मैंने अँधेरे में ही झंडे का हाथ खींच कर अपने वक्ष पर रख लिया और अपनी साड़ी कुछ ऊपर को चढ़ा ली। साड़ी इस तरह से ऊपर उठाई थी कि मेरी जांघें और योनि का कुछ भाग भी चमकता रहे।
झंडे को मैंने धीरे से उठाया और कहा,"झंडे, उठ तो बेटा मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है। थोड़ी सी बाम मसल दे मेरे माथे पर.."
झंडे उठ बैठा और बोला,"बाम कहाँ रखी है चाची...?"
"लाइट जला कर देख ले बेटा।"
झंडे उठा और उसने लाइट ऑन कर दी। मैं अनजान सी बनी चुपचाप लेटी रही। बहुत देर तक झंडे बाम खोजता रहा पर उसे बाम ढूँढ़ने में इतनी देर क्यों लग रही थी ये बात मैं भली-भांति समझ सकती थी।
"लाइट बंद करदूं चाची?"
शायद झंडे को बाम मिल गई थी।
"हाँ, बंद कर दे, और बाम रगड़ दे मेरे माथे पर..."
झंडे के कोमल, जवान हाथ मेरे माथे को रगड़ते हुए मेरे मन में गुदगुदी पैदा कर रहे थे। मन में नए-नए ख़याल आ-जा रहे थे। मैं अपना तन-मन सब कुछ झंडे पर न्यौछावर करने को तैयार बैठी थी। बस इन्तजार था तो उसकी पहल का। बड़ा ही ढीठ लड़का है, बुद्दू कहीं का..। एक जवान औरत क्या चाहती है, मूर्ख इतना भी नहीं जानता।
कुछ देर बाद जब वह माथे पर बाम रगड़ चुका तो मैंने कहा,"झंडे, मेरे बच्चे, जरा सी बाम मेरे सीने पर भी मल दे। सांस लेने में भी परेशानी हो रही है..."
झंडे थोड़ा सा नीचे खिसक आया और उसने मेरे सीने पर भी बाम रगड़ना शुरू कर दिया। उसके हाथ मेरे छातियों को छूते हुए मेरे पेट तक पहुँच रहे थे। मुझे जाने कितना सुकून मिल रहा था कह नहीं सकती। झंडे ही तो था मेरी चढ़ती, उफनती जवानी में कदम रखने वाला पहला मर्द जिसने मेरी जिन्दगी के आईने में रंग भर दिए।
"बेटा, मेरे पैर और टांगें भी दबा दे। कमर से नीचे के हिस्से में बहुत ही दर्द हो रहा है, तुझे नीद तो नहीं आ रही?"
"नहीं।" कह कर झंडे ने मेरी टांगों को दबाना शुरू कर दिया। न जाने किस मिट्टी का बना था मरदूद कि जरा भी हाथ नहीं बहका रहा। मुझे मन ही मन उस पर क्रोध आ रहा था। गाड़ी को पटरी पर ला ही नहीं रहा।
"अब मेरी जांघें सहला दे, जरा हल्के-हल्के से। जोरों से मत रगड़ना .."
झंडे हल्के हाथों से मेरी दोनों जांघें सहलाने लगा। मेरी योनि के बाल उसके हाथ से टकरा रहे थे। इस बार मैंने महसूस किया कि लौड़ा बहकने लग गया था। बार-बार उसके हाथ मेरी जाँघों के बीच की घाटी की गहराई नापने लगते।
"हाँ, ऐसे ही बेटा, बड़ा ही आराम मिल रहा है...."
मेरा इशारा शायद उसने समझ लिया था। उसने अब मेरी योनि के बालों से खेलना शुरू कर दिया था।
"जोरों की खुजली हो रही है इन बालों में ! बेटा जरा कड़े हाथ से खुजा दे इनको...। "
"चाची !"
"क्या है?" मैंने पूछा।
तो वह बोला,"कहो तो इन बालों को मैं साफ़ कर दूं ?"
"इतनी रात गए? ठन्डे पास ही सो रहा है..जाग गया तो?"
"तो चलो बाथरूम में चलें...."
"चल बेटा, तू कहता है तो..."
झंडे और मैं दोनों बाथरूम में आ गए। बाथरूम काफी बड़ा था, जिसमें मैं अपनी दोनों जांघें चौड़ी करके लेट गई और झंडे मेरी योनि के बाल बनाने लगा।
मैंने पूछा,"झंडे, तुझे कहीं शर्म तो नहीं आ रही मुझे नंगा देख कर...?"
"क्यों, शर्म कैसी, तुम तो मेरी माँ समान हो..."
"अच्छा तू बता, तेरे बाल अभी आये हैं या नहीं...?"
"हैं चाची, पर अभी तुम्हारे बालों की तरह घने, काले नहीं हैं..."
"दिखा तो मुझे भी ! देखें, तेरे बाल कैसे हैं?"
झंडे ने शरमाते हुए अपने पजामे का नाड़ा खोल दिया। मैंने उसके पजामे को नीचे खिसका दिया। वाह, क्या लिंग था झंडे का, मोटा, तना हुआ, ऐसे लहरा रहा था मानो कोई मोटा सांप सपेरे की टोकरी से भाग कर यहाँ आ छुपा हो। मुझे तो थी ही लिंग की भूख, मैंने आव देखा न ताव, झट से झंडे के उफनते लिंग को अपनी मुट्ठी में भर लिया और उसे प्यार से सहलाने लगी। मेरे बाल झंडे साफ़ कर चुका था।
मैंने उसके कानो में फुसफुसाकर कहा,"अब चल, चलकर सोते हैं।"
फिर झंडे और मैं दोनों लोग वापस आकर अपने बिस्तर पर सो गए। लाइट बुझा दी थी। मैंने झंडे के कान में कहा, "झंडे, बेटा तू अपने चाचा से तो नहीं कहेगा कि मैंने तुझसे अपने बाल साफ़ करवाए थे..। देख बेटा, तेरे चाचा मार डालेंगे मुझे...।"
"नहीं चाची, तुम्हारी कोई गलती नहीं है। मेरा भी तो मन कर रहा था तुम्हारी योनि देखने का !"
मैंने पूछा,"अब तो देख ली ना?"
"हाँ," झंडे बोला।
"कैसी लगी तुझे?" मैंने पूछा।
तो उसने बताया कि आज उसे बड़ा ही अच्छा लगा।
"अच्छा, एक बात बता, तूने कभी किसी लड़की की योनि देखी है?"
"अभी तक तो नहीं देखी..." वह बोला, आज पहली बार मैंने तुम्हारी ही देखी है चाची।"
"मेरी योनि के बाल साफ़ करने का विचार तेरे मन में क्यों आया भला...?"
"ऐसे ही..। जब तुमने मुझसे बाम मसलवाई थी तो मैंने तुम्हारी योनि देख ली थी। बस यूँ ही दिल चाहने लगा...."
"अगर तेरा मन करने लगा कि आज चाची के साथ वो सब कर डालूं जो एक पति अपनी पत्नी के साथ करता है तो तू कर डालेगा..?"
झंडे घबरा गया, बोला,"नहीं चाची, ऐसा क्यों करने लगा मैं..."
"ठीक है, चल अब एक खेल खेलते हैं, तू मेरी योनि में अपनी उंगली डाल कर मेरी योनि को सहलाएगा और मैं तेरा लिंग सहलाती हूँ, कैसा रहेगा यह खेल...?"
झंडे बोला," ठीक रहेगा, इधर नींद भी कहाँ आ रही है।"
और फिर झंडे ने मेरी योनि में अपनी उंगली करना शुरू कर दिया। मैं भी उसके लिंग को अपनी मुट्ठी में भर धीरे-धीरे सहला रही थी। कुछ देर के बाद मैंने उससे कहा,"झंडे, कुछ मज़ा नहीं आ रहा। ऐसा करते हैं कि तू मेरी योनि को चाटे और मैं तेरे लिंग को अपने मुँह में भरकर चूंसुंगी। सच बड़ा ही मज़ा आएगा ऐसा करने में।"
झंडे ने पूछा,"क्या तुम और चाचा ऐसा ही करते हो?"
मैं उसकी बात पर चिहुक उठी,"तेरे चाचा में अगर इतना ही दम होता तो मैं क्यों तड़पती तेरे लिंग के लिए..."
झंडे ने बड़े ही भोलेपन से पूछा,"चाची, आप सचमुच तड़पती हो ऐसा करने के लिए?"
"और नहीं तो क्या, जरा सोच, मैं ब्याह के बाद भी आज तक कुँवारी हूँ। तेरे चाचा में इतनी ताक़त नहीं कि अपना लिंग मेरे अन्दर डाल सकें.."
"सच चाची? तब तो मैं आपकी मदद जरूर करूंगा, पर एक बात बताओ चाची, तुम्हारे संग ऐसा काम करना पाप तो नहीं होगा?"
मैंने कहा,"अरे पगले, पाप तो जब है कि हम किसी को कोई कष्ट पहुंचाएं। मुझे तो तुझसे करवाने में मज़ा मिलेगा। देख, अगर तू मुझे खुश रखेगा तो बात घर की घर में ही रहेगी और जरा सोच यही काम मैं बाहर करवाती फिरूँ तो तेरे चाचा की कितनी बदनामी होगी।"
"ठीक है चाची, मैं तैयार हूँ...." तब मैंने झंडे को अपने सीने से लगाकर जोरों से भींच लिया। फिर मैंने उसके उत्थनित लिंग को पकड़ कर अपने योनि-द्वार पर टिका दिया और उसके कानों में धीमे से फुसफुसाई,"झंडे, अपना लिंग मेरी योनि के अन्दर घुसाने की कोशिश कर...!"
मैं भी अपने चूतड़ों को आगे-पीछे धकेल कर झंडे का लिंग अपनी योनि के अंदर गपकने की चेष्टा कर रही थी। मेरी अनछुई योनि उत्तेजना वश अब पानी छोड़ने लगी थी। मैंने झंडे के चूतड़ों को कस कर अपनी ओर खींचा और अपनी ओर से भी एक जोरदार धक्का मारा।
इस बार की मेहनत सफल हो गई। झंडे का फनफनाता हुआ मोटा लिंग मेरी योनि द्वार को चीरता हुआ घचाक से पूरा का पूरा अन्दर घुस गया। मेरे मुँह से एक जोरों की चीख फूट पड़ी जिस पर मैंने तुरंत ही काबू पा लिया। झंडे ने भी लिंग के अन्दर घुसते ही तेजी पकड़ ली। वह बड़े जोरदार धक्के मार-मार कर मेरी चूत फाड़े डाल रहा था। हालांकि मेरी अछूती योनि का उदघाटन आज पहली बार झंडे ने किया था। इसलिए योनि की झिल्ली के फट जाने की वजह से मेरी योनि से काफी खून भी निकला था परन्तु वह सारा दर्द मैं सहन कर गई थी, क्योकि आज झंडे के संसर्ग से मुझे आसमान की उंचाईयों को छूने का अवसर जो मिल गया था। ख़ुशी के मारे मेरी हिलकियां फूट पड़ीं और मैं लाज, हया, शर्म छोड़ कर जोरों से चीखने-चिल्लाने लगी," बेटा तेज करो इन धक्कों को...आह..आज निचोड़ डाल मुझे नीबू की तरह। फाड़ दे मेरी चूत...मेरी बुर में वर्षों से आग लगी है मेरे लाल, मिटा दे इसकी भूख..। झंडे बेटा, मैं पिछले छः सालों से किसी मर्द के लंड की भूखी हूँ। आज तेरा लंड पाकर तेरी चाची धन्य हो गई....."
इस प्रकार हम दोनों ने छक कर यौन-सुख का लाभ उठाया। उस रात तो झंडे ने मेरी जम कर चुदाई कर डाली और मैं उसका मोटा लंड पाकर निहाल हो गई।
उस समय तो झंडे ने मुझसे कुछ भी नहीं कहा। पर बाद में उसने कहा,"चाची तुम्हें याद है कि मैं और ठन्डे हर चीज को मिल-बाँट कर ही खाते हैं।"
"हाँ, जानती हूँ। तो क्या वह भी मेरी चूत का मज़ा लेगा..?"
झंडे ने खुशामद भरे अंदाज में कहा,"चाची प्लीज, मना मत करना, तुम्हें मेरी कसम..."
"अच्छा जा, वह भी चलेगा। चल जगा दे उसे भी...."
मैं अब दोनों भतीजों को पाकर अपने भाग्य पर इठलाने लगी थी...और अब भी इन दोनों पर मुझे पूरा नाज है, बहू। अब तू जो चाहे मुझे कह ले..रंडी कह या सासू माँ, या चाची कह कर पुकार...मैंने तो जो सचाई थी तेरे सामने रख दी। एक रिश्ते से तो मैं तेरी सास ही हुई और दूसरे रिश्ते से तेरी सौत भी हुई। तू जो रिश्ता मेरे साथ निभाना चाहे तू निभा सकती है...."
चाची के मुँह से सारी सचाई जानकर दुल्हन के मन को बड़ी तसल्ली हुई। उसने आगे बढ़कर अपनी सासू माँ के पैर छू लिए और उनके गले से लग कर रोने लगी।
एक रोज दुल्हन यूँ ही पूछ बैठी,"चाची जी, आपकी चुदाई का खेल क्या चाचा जी को मालूम है? उन्हें पता है कि उनके प्यारे भतीजे उन्हीं की पत्नी को चोदते हैं...."
चाची ने स्वीकृति से सिर हिलाते हुए कहा,"हाँ बहू, तेरे चाचा जी सब जानते हैं। उन्होंने मुझे कई बार झंडे, ठन्डे के साथ ये सब काम करने के लिए खुद ही सलाह दी थी। उनका कहना है कि इससे घर की बात घर में ही दबी रहेगी। कभी-कभी तो वह भी हमारा ये सेक्स गेम काफी-काफी देर तक बैठ कर देखते रहे हैं।
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मेहनत सफल हो गई -2
झंडे ने कस-कस कर दस-पंद्रह जोरदार धक्के लगाये और उसके मुँह में ढेर सारा वीर्य उड़ेल दिया। दुल्हन ने सारा का सारा वीर्य गटक लिया। झंडे का लिंग भी पहले की अपेक्षा कुछ सिकुड़ गया था। दुल्हन ने हाथ से पकड़ कर देखा और बोली,"अरे ये तो सिकुड़ कर कितना छोटा हो गया। ऐसा क्यों ?"
झंडे बोला, आदमी जब झड़ जाता है तो उसका लिंग ऐसे ही सिकुड़ कर छोटा पड़ जाता है। हाँ, अगर औरत चाहे तो उसे फिर से अपने मुँह में डाल कर चूसे तो लिंग फिर बड़े आकार में आ जाता है।" "सच? फिर करें इसको बड़ा.....?"
"हाँ, हाँ, क्यों नहीं.. यह भी आजमाकर देखो मेरी जान, मेरे दिल की रानी...."
दुल्हन ने पुन: झंडे के लिंग को अपने मुँह में लिया और धीरे-धीरे अपनी जीभ से चाटने लगी। सचमुच झंडे ने ठीक कहा था। लिंग फिर से तनतना गया और किसी सांप की तरह फुंकार उठा।
झंडे बोला,"इस बार इस नाग देवता को अपनी गुफा में जाने दो...देखो कैसे-कैसे रंग दिखाएगा यह..। चलो जल्दी अपनी जांघें फैलाओ....."
दुल्हन ने किसी आज्ञाकारी पत्नी की भांति अपनी दोनों जांघें छितराकर फैला दीं। झंडे ने अपना आठ इंच लम्बा लिंग दुल्हन के योनी-द्वार पर टिका दिया.....और जब उसने कस कर एक जोरों का धक्का मारा तो दुल्हन की चीख ही निकल पड़ी। इस बार उसे दर्द तो हुआ लेकिन जो दर्द हुआ वह इस बार के सम्भोग के आनंद के आगे कुछ भी नहीं था। उसने ख़ुशी से किलकारी भरते हुए झंडे के गले में अपनी दोनों बाँहें डाल दी और अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर सम्भोग का पूरा-पूरा मज़ा लेने लगी। उसकी सिसकियाँ फूट पड़ीं...." खूब जोरों से...और तेज ...आह..मेरी मैया..मर गई मैं तो....आज मेरी फट कर रहेगी.....मेरे राजा..। आज इसे फाड़ ही डालो..। जी भर के फाड़...दो..। मुझे .। और जोरों से फाड़ो...देखो रुकना नहीं ....अपना इंजन पटरी से उतरने मत देना...." दुल्हन किसी बेशर्म वेश्या की तरह गन्दी-गन्दी बातें बके जा रही थी।
झंडे ने और भी जोरदार धक्के मारने शुरू कर दिए, बोला,"ले धक्के गिन मेरी जान, पूरे-पूरे सौ धक्के मारूंगा। ....."
झंडे खुद ही धक्कों को गिनता भी जा रहा था। और वास्तव में उसने कर ही दिखाया। पूरे सौ धक्के मार कर भी वह अधिक नहीं थका था। एक सौ दस धक्कों के बाद उसने दुल्हन का गर्भस्थल अपने गर्म-गर्म वीर्य से भर दिया। कुछ देर तक दोनों ही लोग खामोश पड़े रहे। अगले ही पल झंडे के हाथ पुन: दुल्हन के शरीर से खेल रहे थे। दुल्हन बिलकुल बेजान गुड़िया बनी चुपचाप अपने नग्न बदन पर झंडे के हाथों का आनंद ले रही थी। वह तो चाहती ही थी कि झंडे सारी रात उसके निर्वसन शरीर से खेलता रहे। वह भी अब उसके लिंग को सहला-सहला कर मज़े ले रही थी।
झंडे ने कहा,"रानी, एक काम और रह गया। ..आओ उसे भी पूरा कर डालें..."
"कौन सा काम ?" दुल्हन ने पूछा।
तो झंडे ने बताया कि अब उन्हें गुदा-मैथुन का मज़ा लेना चाहिए।
यह क्या होता है? दुल्हन के पूछने पर झंडे ने बताया कि इस खेल में पति अपनी पत्नी की गुदा में लिंग डालता है और फिर उसे भी योनि की भांति ही चोदता है। इस खेल में औरत को बड़ा ही आनंद आता है।
और तब गुदा-मैथुन का खेल खेला गया जिसमें दुल्हन को काफी तकलीफ़ झेलनी पड़ी। लगभग आधे घंटे के इस खेल के दौरान दुल्हन की गुदा भी फट सी गई थी। किन्तु दुल्हन एक बार फिर से अपनी योनि में झंडे का लिंग डलवाने की तमन्ना कर रही थी। अत: वह बार-बार झंडे के लिंग को पकड़ कर सहलाने लगती और तब उसका लिंग फिर से तनतना जाता।
झंडे बोला,"अब यार सोने दो हमें, खुद भी सो जाओ, सुबह जल्दी उठना भी तो है।"
झंडे ने घडी पर एक नज़र डाली। पूरे दो बज रहे थे। दुल्हन को नीद नहीं आ रही थी। वह बोली, " खुद का मन भर गया तो नीद आने लगी जनाब को। हमारा क्या, हमारी तो जैसे कोई इच्छा ही नहीं...."
झंडे बोला,"क्यों, क्या अभी भी कोई कसर बाक़ी है जिसे पूरी करना है...। सारा काम तो कर डाला। देखो, मुँह में तुम्हारे घुसेड़ दिया, पिछले छेद में तुम्हारे घुसेड़ दिया। योनि तुम्हारी फाड़ डाली, अब कौन सी जगह है खाली, मैं जहाँ करूंगा..."
दुल्हन झंडे का हाथ पकड़ कर अपनी योनि पर ले गई और बोली,"तुम यहाँ करोगे, हाँ, हाँ ! तुम यहाँ करोगे...."
"क्या मुसीबत है यार..। अच्छी शादी की । मैं तो एक रात में ही परेशान हो गया...." झंडे बड़बड़ाते हुए उठ बैठा। दिखाओ, किसमें करना है..?
दुल्हन ने अपनी दोनों जाघें फैला दीं और उन्हें चीर कर दिखाती हुई बोली, देखो, तुमने मुझमें इतनी आग लगा दी है कि जो बुझाये नहीं बुझ रही है। बस एक बार डाल दो अपना यह मोटा सा मूसल मेरे अन्दर..."
झंडे ने चुस्की ली," किसी और को बुलाऊं जो अच्छी तरह से तुम्हारी चूत को चित्तोड़गढ़ का किला बना डाले?"
और भी है कोई यहाँ तुम्हारे सिवा? दुल्हन का मत्था ठनका।"
"हाँ, मेरा छोटा भाई है, सबसे पहले तो उसी ने तुम्हारी बजाई है...." दुल्हन यह सुन कर हक्का-भक्का रह गई।
उसने चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया। इस बीच ठंडा राम बाथरूम से बाहर आ गया। उसने पूछा,"क्या हुआ भाभी जी? आप इस तरह क्यों चिल्ला रहीं हैं?"
सचमुच एक नंग-धड़ंग व्यक्ति सामने आ खड़ा हुआ।
"कौन हो तुम...? तुम अन्दर कैसे आये ? " दुल्हन के प्रश्न पर दोनों भाई जोरों से हंस पड़े।
और भी है कोई यहाँ तुम्हारे सिवा? दुल्हन का मत्था ठनका।"
"हाँ, मेरा छोटा भाई है, सबसे पहले तो उसी ने तुम्हारी बजाई है...." दुल्हन यह सुन कर हक्की-बक्की रह गई।
उसने चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया। इस बीच ठंडा राम बाथरूम से बाहर आ गया। उसने पूछा,"क्या हुआ भाभी जी? आप इस तरह क्यों चिल्ला रहीं हैं?"
सचमुच एक नंग-धड़ंग व्यक्ति सामने आ खड़ा हुआ।
"कौन हो तुम...? तुम अन्दर कैसे आये ? " दुल्हन के प्रश्न पर दोनों भाई जोरों से हंस पड़े।
ठन्डे बोला,"भाभी जी, मैं हूँ ठन्डे राम, आपका छोटा देवर, जिसने अभी कुछ देर पहले ही आपका कौमार्य भंग किया है। मैं ही हूँ वह पापी जिसने अपनी सीता जैसी भाभी का छल से सतीत्व भंग कर डाला। अब आप जो भी सजा देंगी मुझे मंजूर होगी। लेकिन इससे पहले आप को मेरी एक बात सुननी होगी..। हुकुम करें तो सुनाऊं ?"
तब ठन्डे ने बड़े ही ठन्डे मन से कहना शुरू किया,"भाभी, हम दोनों भाई दो जिस्म एक जान हैं। आज तक हमें कोई भी अलग नहीं कर पाया। हम अगर कोई चीज खाते भी हैं तो मिल-बाँट कर। हमने आज तक कोई भी काम अकेले नहीं किया। फिर यह सुहागरात वाली रात हमें अलग कैसे कर सकती थी। इसी लिए हम दोनों ने एक योजना बनाई, जिसके तहत मैं तो आपकी ले चुका, खूब जी भर के मज़े जब ले लिये तो मैंने आपको आपके असली हक़दार को सौंप दिया। अगर इसे आप बुरा समझतीं हैं तो मैं सजा पाने को तैयार हूँ। मगर एक बात अच्छी तरह से समझ लेना कि जो भी सजा आप मुझे देंगी उसमें मेरा भाई यानि आपके पतिदेव भी बराबर के हिस्सेदार होंगे।"
ठन्डे के मुँह से सारी बातें सुनकर दुल्हन सिसकने लगी और अपने भाग्य को कोसने लगी। उसने रोते-बिलखते अपने सामने खड़े दोनों व्यक्तियों से पूछा,"अब तुम दोनों ही फैसला करो कि मैं किसकी दुल्हन हूँ? तुम्हारी या फिर तुम्हारी?"
झंडे बोला अगर फैसला मुझ पर छोड़ती हो तो मैं यही कहूँगा कि तुम भले ही मेरी ब्याहता बीवी हो लेकिन यह हम दोनों के बीच की बात रहेगी कि तुम हम दोनों भाइयों की ही बन कर रहोगी। जितना अधिकार तुम पर मेरा है इतना ही अधिकार तुम पर मेरे छोटे भाई ठन्डे का भी रहेगा..."
दुल्हन सुबकते हुए बोली,"और जो बच्चे होंगें, वो किसके कहलायेंगे?"
"वो हम दोनों के बच्चे होंगे। हम दोनों भाई उनको एक सा प्यार देंगें, जमीन जायदाद में बराबर का हिस्सा होगा।"
"और जो तुम्हारे छोटे भाई ठन्डे की बीवी होगी? उसका क्या रहेगा, क्या तुम दोनों भाई उसे भी आधा-आधा बाँट लोगे..?"
झंडे ने एक पल को सोचा और फिर बोला,"हाँ, तो इसमें हर्ज़ ही क्या है?...वह भी सुहागरात वाली रात को इसी तरह से मिल-बाँट कर खाई जायेगी..क्यों भाई ठन्डे, सच कह रहा हूँ न?"
"भैया, आप बिलकुल सही कह रहे हैं। हम दोनों भाइयों के बीच अब तक तो ऐसा ही होता आया है।" ठन्डे ने जबाब दिया।
दुल्हन बोली,"अगर तुम में से कोई एक मर गया तो मैं अपने माथे का सिन्दूर पौंछूंगी या नहीं....?"
दुल्हन के इस प्रश्न पर दोनों भाइयों ने एक पल को सोचा फिर दोनों एक साथ बोले,"तुम्हें सिन्दूर पोंछने की नौबत नहीं आएगी। हम ऐसे ही नहीं मरने वाले। और अगर मरे भी तो एक साथ मरेंगे। एक साथ जियेंगे।"
दुल्हन को अभी भी सब्र नहीं हो पा रहा था, वह बोली,"इस समस्या का फैसला चाचा-चाची से करवाउंगी..." दुल्हन की बात पर दोनों भाई जोरों से हंसने लगे और काफी देर देर तक हँसते रहे, फिर बोले,"ठीक है, हमें तुम्हारी बात मंजूर है। अब रात भर यूँ ही जागती रहोगी या सोओगी भी?"
झंडे ने दुल्हन की ओर देखते हुए कहा। अगर तुम्हें भैया की बात समझ में आती हो तो हम दोनों भाई अभी भी तुम्हारी सेवा में हाजिर हैं। क्यों न तीनों एक दूसरे की बांहों में सिमटकर सो जाएँ..। बोलो मेरी भाभी जान, क्या कहती हो?"
दुल्हन ने एक निगाह दोनों के नंगे शरीर पर डाली। उसे उन दोनों में जरा सा भी तो अंतर नजर नहीं आ रहा था। बिलकुल एक शक्ल-सूरत, एक सा बदन, यहाँ तक लिंग भी दोनों का एक ही आकार का नज़र आ रहा था। दुल्हन बिना कुछ बोले ही उन दोनों के बीच में आकर लेट गई। अर्थात दुल्हन ने दोनों को ही अपना पति मान लिया था।
झंडे बोला " भई ठन्डे! ..."
"हाँ भाई, झंडे, बोलो क्या करना है अब। ये तो तुम्हारी बात मान कर हमारे बीच में आ सोई है।"
"झंडे बोला,"इसका मतबल है कि कुड़ी मान गई है। अरे ठन्डे, कहीं तू वाकई ठंडा तो नहीं पड़ गया?"
"नहीं भैया, मेरा तो अभी भी तना खड़ा है। करना क्या है, बस आप हुकुम करो।"
"अरे बेशर्म, अपनी भाभी की तड़पन कुछ कम कर दे। बेचारी सुलग रही है बुरी तरह से..."
"अभी लो भैया," ठन्डे उठा और दुल्हन पर आ चढ़ा।
दुल्हन भी गर्मा गई और फिर तीनों ने सेक्स का खेल रात भर खेला। कभी ठन्डे का लिंग दुल्हन की योनि को फाड़ता तो कभी झंडे का लिंग, जैसे कि दोनों में एक होड़ सी लग गई। दुल्हन अपनी दोनों जांघें फैलाए रात भर उनके लोहे जैसे लिंगों का मज़ा लेती रही। तीनों लोग बिल्कुल निर्वसन हुए रात भर एक-दूजे से चिपटे पड़े रहे।
सुबह चाची जी ने आकर उन्हें उठाया। दुल्हन जब हड़बड़ाकर उठी तो वह बिल्कुल नंगी दोनों भाइयों के बीच लेटी पड़ी थी। उसने लपक कर पास पड़ी चादर खींच ली और अपने आप को ढकने का प्रयास करने लगी।
चाची मुस्कुराई, बोली,"अभी नई-नई है न, इसी लिए शरमा रही है। बहू, हमसे कोई शर्म करने की जरूरत नहीं है । मैं अच्छी तरह से जानती हूँ, मेरे दोनों बेटे आज तक हर चीज को मिल-बाँट कर खाते रहे हैं। जब मैं इस घर में आई थी, ये दस-दस साल के थे। मेरे ये दोनों जिठोत जुड़वां पैदा हुए थे। कुछ समय बाद ही इनकी माँ मर गई। मेरे जेठ ने इन्हें बड़े ही लाड़-प्यार से पाला था। मेरी शादी से कुछ माह पहले ही मेरे जेठ भी चल बसे। मरते समय उन्होंने इन दोनों भाइयों का हाथ तुम्हारे चाचा जी के हाथ में देकर यह वचन माँगा था कि कितनी ही मुसीबत आ जाए पर इन पर आंच न आने देना। तुम्हारे चाचा जी आज भी अपने भाई को दिए गए वचन की लाज निभा रहे हैं। मेरे जेठ जी ने इन दोनों भाइयों से भी एक वचन माँगा था कि ये दोनों भाई हर चीज को मिल-बाँट कर खाएं। पिता को दिए गए इसी वचन की खातिर ये दोनों भाई आज तक हर चीज को मिल-बाँट कर ही खाते रहे हैं और आज रात को भी दोनों भाइयों ने तुम्हें मिल-बाँट कर ही खाया।"
चाची ने सोते हुए अपने दोनों बेटों की बलैयाँ अपने सिर-मत्थे लेते हुए उन्हें झकझोर कर उठाया। दोनों भाई उठ खड़े हुए और अपने-अपने कपड़े पहनने लगे।
दुल्हन ने आश्चर्य से पूछा,"चाची जी, ये लोग आपसे शरमाते नहीं। इतने बड़े होकर भी आपके सामने यूँ ही नंगे पड़े रहते हैं। जबकि आप की उम्र भी कोई ज्यादा नहीं है। आप ज्यादा से ज्यादा इनसे दस वर्ष बड़ी होंगी..."
"नहीं, मैं इनसे सिर्फ छः साल बड़ी हूँ। क्योंकि जब मैं इस घर में ब्याह कर आई थी तब मेरी उम्र सोलह वर्ष की थी। और मेरे ये दोनों बेटे सिर्फ दस वर्ष के थे। मेरे घर में कदम रखते ही तुम्हारे चाचा ने मुझे अपनी कसम देकर कहा,"देखो जी, एक बात गाँठ में बाँध लो। मेरे ये दोनों भतीजे आज से तुम पर मेरी अमानत के रूप में रहेंगे। ये लोग कितनी भी शरारत करें, कितना भी तुम्हें परेशान करें, पर इनकी शिकायत मुझसे कभी ना करना। तुम जिस तरह से इन्हें सजा देना चाहो देना। मैं तुमसे कुछ नहीं कहूँगा। तब से आज तक मैंने कभी भी तुम्हारे चाचा जी से इनकी शिकायत नहीं की। इनकी हर अच्छी बुरी बात को मैं उनसे छिपाती पर अपने ढंग से इन्हें सजा देती...."
चाची जी कहते-कहते कुछ रुक गईं।
"चाची जी, आगे कहिये न? आप रुक क्यों गईं?" दुल्हन ने पूछा।
चाची बोलीं,"तुम्हारे चाचा की चौथी पत्नी हूँ मैं। जब मेरी उनसे शादी हुई तो तुम्हारे चाचा पचास साल के थे और मैं सिर्फ सोलह साल की। मेरे माँ-बाप बहुत गरीब थे। अत: अच्छा खाता-पीता घर देख कर मेरे माँ-बाप ने एक पचास वर्ष के बूढ़े से मेरी शादी कर दी। तुम्हारे चाचा जी सुहागरात वाली रात को ही शराब पीकर घर लौटे तो दो अन्य आदमी भी उनके साथ थे जो मुझसे बोले, "भाभी जी नमस्ते! कैसी हैं आप.."
"ठीक हूँ.." इस संक्षिप्त से उत्तर से शायद वो लोग खुश नहीं हुए।
खैर, उस समय तो वो दोनों इन्हें घर छोड़ कर चले गए पर आते-जाते मुझ पर बुरी निगाहें डालते रहे। जब भी मौका मिलता कहते, "आह! तेरी चढ़ती जवानी और बूढ़े का साथ...छीई..छी..छी..। भगवान् भी कितना निर्दयी है। कैसा जुल्म किया है बेचारी पर। हाय री किस्मत...बूढा क्या कर पाता होगा बेचारी के साथ...अरे हमारे पास आजा रानी खुश कर देंगे तुझे मेरी जान !"
कहते कहते चाची जी सुबकने लगीं। फिर कुछ साहस बटोर कर बोलीं,"बहु, तुझसे आज मैं कुछ भी नहीं छिपाउंगी, इधर तुम्हारे चाचा जी की हालत और भी ज्यादा बदतर होती जा रही थी। सुहागरात वाली रात को आये और आते ही पलंग पर लुढ़क गए। रात के तीन बजे के करीब इनकी आँख खुली तो मेरे पास आकर लेट गए। थोड़ी देर तक मेरे वक्ष से खेलते रहे। अपने हाथ से मेरे निचले हिस्से को टटोलते रहे, मेरी जांघें सहलाते रहे, मेरी उसमें भी उंगली करते रहे और अंत में मुझे खूब गर्म करके एक ओर को लुढ़क गए। यह सिलसिला अब रोज-रोज चलने लगा। आते और मुझे नंगा करके घंटों कभी मेरी छातियों से खेलते, कभी मेरे योनि में उंगली डाल कर मुझे काफी गर्म कर देते और फिर मुझे तड़पता छोड़ कर सो जाते। क्योंकि मेरी योनि को सहलाते ही वे अपने कपड़ों में ही झड़ जाते थे। अब मेरे पास कृत्रिम रूप से अपनी जवानी की आग को शांत करने के अलावा और कोई दूसरा साधन न था। मैं छुप-छुपकर कृत्रिम साधनों से अपनी कामाग्नि को शांत करने की कोशिश करती। योनि में कभी लम्बे वाले बैंगन डाल कर अपनी कामाग्नि को शांत करती तो कभी आधी-आधी रात को उठकर नहाती तब कहीं जाकर मेरी आग ठंडी पड़ती। कई बार मन में गंदे-गंदे ख्याल आते-जाते रहते। सोचती थी कि जो लोग मुझ पर बुरी नज़र डालते हैं उन्हीं से अपनी जवानी मसलवा लूँ। पर यह करना भी मेरे वश की बात न थी। तुम्हारे चाचा जी की इज्जत का ख्याल मन में आते ही मेरा मन अपने आप को कोसने लगता।"
अब मेरे पास कृत्रिम रूप से अपनी जवानी की आग को शांत करने के अलावा और कोई दूसरा साधन न था। मैं छुप-छुपकर कृत्रिम साधनों से अपनी कामाग्नि को शांत करने की कोशिश करती। योनि में कभी लम्बे वाले बैंगन डाल कर अपनी कामाग्नि को शांत करती तो कभी आधी-आधी रात को उठकर नहाती तब कहीं जाकर मेरी आग ठंडी पड़ती। कई बार मन में गंदे-गंदे ख्याल आते-जाते रहते। सोचती थी कि जो लोग मुझ पर बुरी नज़र डालते हैं उन्हीं से अपनी जवानी मसलवा लूँ। पर यह करना भी मेरे वश की बात न थी। तुम्हारे चाचा जी की इज्जत का ख्याल मन में आते ही मेरा मन अपने आप को कोसने लगता।"
जब कभी तुम्हारे चाचाजी बाहर गए होते तो मेरे ये दोनों बच्चे मेरे ही पास मुझसे चिपटकर सोते थे। वह भी एक भयानक रात थी। चाचा तुम्हारे किसी काम से बाहर गए थे। बाहर आंधी-तूफ़ान का माहौल था। दोनों बच्चे, झंडे और ठन्डे मुझसे चिपटकर सो रहे थे। हालांकि झंडे और ठन्डे अब दोनों ही सोलह-सोलह साल के हो चले थे, फिर भी मेरे लिए तो बच्चे ही थे। अचानक से बादल बड़ी जोरों से गरजे और फिर मूसलाधार बारिश होने लगी। झंडे मेरे सीने से चिपट कर सो रहा था। ठन्डे मेरी पीठ की ओर था।
इसी बीच मुझे लगा कि कोई चीज मेरी जाघों से सट रही है। मैंने हाथ से टटोलकर देखा तो मेरा हाथ झंडे के लिंग से जा टकराया। झंडे का लिंग एकदम किसी जवान आदमी का सा महसूस हुआ मुझे। क्योंकि तुम्हारे चाचा जी का लिंग भी कभी माह, दो माह में खड़ा होता हुआ मैंने देखा था। मेरी नीयत में खोट आ गया। मैंने उठकर लाइट जला दी और गौर से झंडे के लिंग में होती हुई हरकतों को देखने लगी। अब मेरा मन झंडे के लिंग से खेलने को मचलने लगा। कहते है कि घर पर खीर रखी हो तो कोई भूखे पेट क्यों सोये। मैंने झट से लाइट बुझा दी और झंडे को अपने सीने से सटाकर लेट गई।
धीरे-धीरे मैंने अपना हाथ ले जा कर झंडे के लिंग पर रख दिया और उस पर हाथ का दबाव डालने लगी। झंडे का लिंग फूल कर मोटा हो गया। मैंने झट से हाथ हटा लिया। झंडे सो रहा था लेकिन मेरे दिल की ख्वाइश अधूरी थी। मेरा ध्यान उसी के लिंग में पड़ा था। इसी बीच मुझे एक तरकीब सूझी। मैंने अँधेरे में ही झंडे का हाथ खींच कर अपने वक्ष पर रख लिया और अपनी साड़ी कुछ ऊपर को चढ़ा ली। साड़ी इस तरह से ऊपर उठाई थी कि मेरी जांघें और योनि का कुछ भाग भी चमकता रहे।
झंडे को मैंने धीरे से उठाया और कहा,"झंडे, उठ तो बेटा मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है। थोड़ी सी बाम मसल दे मेरे माथे पर.."
झंडे उठ बैठा और बोला,"बाम कहाँ रखी है चाची...?"
"लाइट जला कर देख ले बेटा।"
झंडे उठा और उसने लाइट ऑन कर दी। मैं अनजान सी बनी चुपचाप लेटी रही। बहुत देर तक झंडे बाम खोजता रहा पर उसे बाम ढूँढ़ने में इतनी देर क्यों लग रही थी ये बात मैं भली-भांति समझ सकती थी।
"लाइट बंद करदूं चाची?"
शायद झंडे को बाम मिल गई थी।
"हाँ, बंद कर दे, और बाम रगड़ दे मेरे माथे पर..."
झंडे के कोमल, जवान हाथ मेरे माथे को रगड़ते हुए मेरे मन में गुदगुदी पैदा कर रहे थे। मन में नए-नए ख़याल आ-जा रहे थे। मैं अपना तन-मन सब कुछ झंडे पर न्यौछावर करने को तैयार बैठी थी। बस इन्तजार था तो उसकी पहल का। बड़ा ही ढीठ लड़का है, बुद्दू कहीं का..। एक जवान औरत क्या चाहती है, मूर्ख इतना भी नहीं जानता।
कुछ देर बाद जब वह माथे पर बाम रगड़ चुका तो मैंने कहा,"झंडे, मेरे बच्चे, जरा सी बाम मेरे सीने पर भी मल दे। सांस लेने में भी परेशानी हो रही है..."
झंडे थोड़ा सा नीचे खिसक आया और उसने मेरे सीने पर भी बाम रगड़ना शुरू कर दिया। उसके हाथ मेरे छातियों को छूते हुए मेरे पेट तक पहुँच रहे थे। मुझे जाने कितना सुकून मिल रहा था कह नहीं सकती। झंडे ही तो था मेरी चढ़ती, उफनती जवानी में कदम रखने वाला पहला मर्द जिसने मेरी जिन्दगी के आईने में रंग भर दिए।
"बेटा, मेरे पैर और टांगें भी दबा दे। कमर से नीचे के हिस्से में बहुत ही दर्द हो रहा है, तुझे नीद तो नहीं आ रही?"
"नहीं।" कह कर झंडे ने मेरी टांगों को दबाना शुरू कर दिया। न जाने किस मिट्टी का बना था मरदूद कि जरा भी हाथ नहीं बहका रहा। मुझे मन ही मन उस पर क्रोध आ रहा था। गाड़ी को पटरी पर ला ही नहीं रहा।
"अब मेरी जांघें सहला दे, जरा हल्के-हल्के से। जोरों से मत रगड़ना .."
झंडे हल्के हाथों से मेरी दोनों जांघें सहलाने लगा। मेरी योनि के बाल उसके हाथ से टकरा रहे थे। इस बार मैंने महसूस किया कि लौड़ा बहकने लग गया था। बार-बार उसके हाथ मेरी जाँघों के बीच की घाटी की गहराई नापने लगते।
"हाँ, ऐसे ही बेटा, बड़ा ही आराम मिल रहा है...."
मेरा इशारा शायद उसने समझ लिया था। उसने अब मेरी योनि के बालों से खेलना शुरू कर दिया था।
"जोरों की खुजली हो रही है इन बालों में ! बेटा जरा कड़े हाथ से खुजा दे इनको...। "
"चाची !"
"क्या है?" मैंने पूछा।
तो वह बोला,"कहो तो इन बालों को मैं साफ़ कर दूं ?"
"इतनी रात गए? ठन्डे पास ही सो रहा है..जाग गया तो?"
"तो चलो बाथरूम में चलें...."
"चल बेटा, तू कहता है तो..."
झंडे और मैं दोनों बाथरूम में आ गए। बाथरूम काफी बड़ा था, जिसमें मैं अपनी दोनों जांघें चौड़ी करके लेट गई और झंडे मेरी योनि के बाल बनाने लगा।
मैंने पूछा,"झंडे, तुझे कहीं शर्म तो नहीं आ रही मुझे नंगा देख कर...?"
"क्यों, शर्म कैसी, तुम तो मेरी माँ समान हो..."
"अच्छा तू बता, तेरे बाल अभी आये हैं या नहीं...?"
"हैं चाची, पर अभी तुम्हारे बालों की तरह घने, काले नहीं हैं..."
"दिखा तो मुझे भी ! देखें, तेरे बाल कैसे हैं?"
झंडे ने शरमाते हुए अपने पजामे का नाड़ा खोल दिया। मैंने उसके पजामे को नीचे खिसका दिया। वाह, क्या लिंग था झंडे का, मोटा, तना हुआ, ऐसे लहरा रहा था मानो कोई मोटा सांप सपेरे की टोकरी से भाग कर यहाँ आ छुपा हो। मुझे तो थी ही लिंग की भूख, मैंने आव देखा न ताव, झट से झंडे के उफनते लिंग को अपनी मुट्ठी में भर लिया और उसे प्यार से सहलाने लगी। मेरे बाल झंडे साफ़ कर चुका था।
मैंने उसके कानो में फुसफुसाकर कहा,"अब चल, चलकर सोते हैं।"
फिर झंडे और मैं दोनों लोग वापस आकर अपने बिस्तर पर सो गए। लाइट बुझा दी थी। मैंने झंडे के कान में कहा, "झंडे, बेटा तू अपने चाचा से तो नहीं कहेगा कि मैंने तुझसे अपने बाल साफ़ करवाए थे..। देख बेटा, तेरे चाचा मार डालेंगे मुझे...।"
"नहीं चाची, तुम्हारी कोई गलती नहीं है। मेरा भी तो मन कर रहा था तुम्हारी योनि देखने का !"
मैंने पूछा,"अब तो देख ली ना?"
"हाँ," झंडे बोला।
"कैसी लगी तुझे?" मैंने पूछा।
तो उसने बताया कि आज उसे बड़ा ही अच्छा लगा।
"अच्छा, एक बात बता, तूने कभी किसी लड़की की योनि देखी है?"
"अभी तक तो नहीं देखी..." वह बोला, आज पहली बार मैंने तुम्हारी ही देखी है चाची।"
"मेरी योनि के बाल साफ़ करने का विचार तेरे मन में क्यों आया भला...?"
"ऐसे ही..। जब तुमने मुझसे बाम मसलवाई थी तो मैंने तुम्हारी योनि देख ली थी। बस यूँ ही दिल चाहने लगा...."
"अगर तेरा मन करने लगा कि आज चाची के साथ वो सब कर डालूं जो एक पति अपनी पत्नी के साथ करता है तो तू कर डालेगा..?"
झंडे घबरा गया, बोला,"नहीं चाची, ऐसा क्यों करने लगा मैं..."
"ठीक है, चल अब एक खेल खेलते हैं, तू मेरी योनि में अपनी उंगली डाल कर मेरी योनि को सहलाएगा और मैं तेरा लिंग सहलाती हूँ, कैसा रहेगा यह खेल...?"
झंडे बोला," ठीक रहेगा, इधर नींद भी कहाँ आ रही है।"
और फिर झंडे ने मेरी योनि में अपनी उंगली करना शुरू कर दिया। मैं भी उसके लिंग को अपनी मुट्ठी में भर धीरे-धीरे सहला रही थी। कुछ देर के बाद मैंने उससे कहा,"झंडे, कुछ मज़ा नहीं आ रहा। ऐसा करते हैं कि तू मेरी योनि को चाटे और मैं तेरे लिंग को अपने मुँह में भरकर चूंसुंगी। सच बड़ा ही मज़ा आएगा ऐसा करने में।"
झंडे ने पूछा,"क्या तुम और चाचा ऐसा ही करते हो?"
मैं उसकी बात पर चिहुक उठी,"तेरे चाचा में अगर इतना ही दम होता तो मैं क्यों तड़पती तेरे लिंग के लिए..."
झंडे ने बड़े ही भोलेपन से पूछा,"चाची, आप सचमुच तड़पती हो ऐसा करने के लिए?"
"और नहीं तो क्या, जरा सोच, मैं ब्याह के बाद भी आज तक कुँवारी हूँ। तेरे चाचा में इतनी ताक़त नहीं कि अपना लिंग मेरे अन्दर डाल सकें.."
"सच चाची? तब तो मैं आपकी मदद जरूर करूंगा, पर एक बात बताओ चाची, तुम्हारे संग ऐसा काम करना पाप तो नहीं होगा?"
मैंने कहा,"अरे पगले, पाप तो जब है कि हम किसी को कोई कष्ट पहुंचाएं। मुझे तो तुझसे करवाने में मज़ा मिलेगा। देख, अगर तू मुझे खुश रखेगा तो बात घर की घर में ही रहेगी और जरा सोच यही काम मैं बाहर करवाती फिरूँ तो तेरे चाचा की कितनी बदनामी होगी।"
"ठीक है चाची, मैं तैयार हूँ...." तब मैंने झंडे को अपने सीने से लगाकर जोरों से भींच लिया। फिर मैंने उसके उत्थनित लिंग को पकड़ कर अपने योनि-द्वार पर टिका दिया और उसके कानों में धीमे से फुसफुसाई,"झंडे, अपना लिंग मेरी योनि के अन्दर घुसाने की कोशिश कर...!"
मैं भी अपने चूतड़ों को आगे-पीछे धकेल कर झंडे का लिंग अपनी योनि के अंदर गपकने की चेष्टा कर रही थी। मेरी अनछुई योनि उत्तेजना वश अब पानी छोड़ने लगी थी। मैंने झंडे के चूतड़ों को कस कर अपनी ओर खींचा और अपनी ओर से भी एक जोरदार धक्का मारा।
इस बार की मेहनत सफल हो गई। झंडे का फनफनाता हुआ मोटा लिंग मेरी योनि द्वार को चीरता हुआ घचाक से पूरा का पूरा अन्दर घुस गया। मेरे मुँह से एक जोरों की चीख फूट पड़ी जिस पर मैंने तुरंत ही काबू पा लिया। झंडे ने भी लिंग के अन्दर घुसते ही तेजी पकड़ ली। वह बड़े जोरदार धक्के मार-मार कर मेरी चूत फाड़े डाल रहा था। हालांकि मेरी अछूती योनि का उदघाटन आज पहली बार झंडे ने किया था। इसलिए योनि की झिल्ली के फट जाने की वजह से मेरी योनि से काफी खून भी निकला था परन्तु वह सारा दर्द मैं सहन कर गई थी, क्योकि आज झंडे के संसर्ग से मुझे आसमान की उंचाईयों को छूने का अवसर जो मिल गया था। ख़ुशी के मारे मेरी हिलकियां फूट पड़ीं और मैं लाज, हया, शर्म छोड़ कर जोरों से चीखने-चिल्लाने लगी," बेटा तेज करो इन धक्कों को...आह..आज निचोड़ डाल मुझे नीबू की तरह। फाड़ दे मेरी चूत...मेरी बुर में वर्षों से आग लगी है मेरे लाल, मिटा दे इसकी भूख..। झंडे बेटा, मैं पिछले छः सालों से किसी मर्द के लंड की भूखी हूँ। आज तेरा लंड पाकर तेरी चाची धन्य हो गई....."
इस प्रकार हम दोनों ने छक कर यौन-सुख का लाभ उठाया। उस रात तो झंडे ने मेरी जम कर चुदाई कर डाली और मैं उसका मोटा लंड पाकर निहाल हो गई।
उस समय तो झंडे ने मुझसे कुछ भी नहीं कहा। पर बाद में उसने कहा,"चाची तुम्हें याद है कि मैं और ठन्डे हर चीज को मिल-बाँट कर ही खाते हैं।"
"हाँ, जानती हूँ। तो क्या वह भी मेरी चूत का मज़ा लेगा..?"
झंडे ने खुशामद भरे अंदाज में कहा,"चाची प्लीज, मना मत करना, तुम्हें मेरी कसम..."
"अच्छा जा, वह भी चलेगा। चल जगा दे उसे भी...."
मैं अब दोनों भतीजों को पाकर अपने भाग्य पर इठलाने लगी थी...और अब भी इन दोनों पर मुझे पूरा नाज है, बहू। अब तू जो चाहे मुझे कह ले..रंडी कह या सासू माँ, या चाची कह कर पुकार...मैंने तो जो सचाई थी तेरे सामने रख दी। एक रिश्ते से तो मैं तेरी सास ही हुई और दूसरे रिश्ते से तेरी सौत भी हुई। तू जो रिश्ता मेरे साथ निभाना चाहे तू निभा सकती है...."
चाची के मुँह से सारी सचाई जानकर दुल्हन के मन को बड़ी तसल्ली हुई। उसने आगे बढ़कर अपनी सासू माँ के पैर छू लिए और उनके गले से लग कर रोने लगी।
एक रोज दुल्हन यूँ ही पूछ बैठी,"चाची जी, आपकी चुदाई का खेल क्या चाचा जी को मालूम है? उन्हें पता है कि उनके प्यारे भतीजे उन्हीं की पत्नी को चोदते हैं...."
चाची ने स्वीकृति से सिर हिलाते हुए कहा,"हाँ बहू, तेरे चाचा जी सब जानते हैं। उन्होंने मुझे कई बार झंडे, ठन्डे के साथ ये सब काम करने के लिए खुद ही सलाह दी थी। उनका कहना है कि इससे घर की बात घर में ही दबी रहेगी। कभी-कभी तो वह भी हमारा ये सेक्स गेम काफी-काफी देर तक बैठ कर देखते रहे हैं।
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