Fentency
मेरी
नौकरी शहर में लगने के कारण मेरे भैया ने मुझे शहर में बुला लिया था। मैं
एक प्राईवेट संस्था में था जबकि भैया एक फ़ेक्ट्री में ऊंचे पद पर थे। मैं
गांव से शहर आ गया था। भाभी ने मुझे अपने घर में बहुत ही प्यार से रखा था।
मेरी शादी की बात चल रही थी। लड़की गुजरात से थी, उसका
नाम प्रेरणा था। उसकी फोटो तो
बहुत ही
आकर्षक थी। अक्सर भाभी मुझे लड़की के बारे में कुछ कह कर छेड़ती रहती थी।
यूं तो देवर भाभी की मजाक तो चलती ही रहती थी पर उस लड़की का जिक्र आते ही
जाने क्यूँ मेरे मन में कोमल भावनायें जाग जाती थी। कितनी बार तो यह सोच
सोच कर ही लण्ड खड़ा हो जाता था कि जब मैं उसे अपने नीचे दबा कर चोदूंगा तो
कैसा लगेगा, उसकी
चूंचियाँ दबाऊंगा तो.... मेरे दिल में इस तरह
के विचार आते रहते थे। कभी कभी तो ऐसा लगने लगता था कि काश एक बार भाभी
मान जायें तो मैं भी चोदने का मजा भरपूर ले लूँ। बहुत पहले मेरी पास ही
रहने वाली पड़ोसन ने मुझे पटा कर चुदवाया था तब मुझे बहुत मजा आया था। पर वो
कुछ ही दिन बाद दूसरे शहर चले गये थे। पर वो पड़ोसन मुझे चोदने का एक चस्का
लगा गई थी।मुझे अब भाभी से सेक्स की बाते करने में बहुत मजा आता था। भाभी
भी रस ले लेकर सेक्स की
बातें करती थी। अक्सर मुझसे भाभी प्रेरणा के बारे में पूछती रहती थी। मुझे
मुझे ऐसा मह्सूस भी होता था कि भाभी शायद मुझे पटाना चाहती हैं क्योंकि वो
आजकल अपने नीचे गले के ब्लाऊज पहनने लग गई थी। जिसमें से उनकी चूंचियां
छलकी पड़ती थी। उनके गोल गोल मस्त उभार मुझे बेचैन कर देते थे। पर वो हमेशा
अपने को इससे अन्जान दर्शाया करती थी। मेरा लण्ड कई बार कड़क उठता था। अब तो
भाभी का अंग अंग
मुझे चुदने को बेताब लगता था। पर ये सब शायद मेरे मन का भ्रम था। वो सब
इससे अनजान ही थी। बस मुझे छेड़ने के लिये मुझसे ऐसी बाते करती थी, जाने यह सच था या नहीं ? मैंने अब कई बार भाभी से पूछा भी था कि भाभी सुहाग रात कैसी होती है, उसमें
क्या करते हैं। भाभी कहती थी कि
समय आयेगा तब तुम खुद ही सीख जाओगे। मैं भाभी को खोलने में प्रयास रत था।
यह भी पूछ लेता था कि मुझे कुछ तो बताओ ना.... रात को क्या क्या करते हैं।
भाभी मुझे यूँ ही टाल देती थी कि सब बाद में बताउंगी, थोड़ा
सबर रखो। उन दिनों भैया कुछ दिनों के लिये लखनऊ गये हुये थे। आज तो भाभी
की उत्तेजक सेक्स की बातें मुझे रात को सोच सोच कर नींद नहीं आ रही थी। मन
बहुत बेचैन हो रहा था। मेरा लण्ड रह रह कर कड़क उठता था और मेरा पजामा
तम्बू बन जाता था। मुझे लगता कि यदि भाभी चुदने के राजी हो जायें तो मेरा
पूरा रस ही उनकी चूत में उतार दूँ। मेरा मन डोल उठा, जाने
मेरे मन में क्या आया कि मैं चुपके से भाभी के कमरे की ओर बढ़ गया। दरवाजा
हमेशा की तरह खुला हुआ था। धीमी लाईट जल रही थी। भाभी एक पेटीकोट में सो
रही थी
जो अभी काफ़ी ऊपर उठा हुआ था। ब्लाऊज की जगह एक ढीला सा टॉप पहना हुआ था।
मेरा लण्ड बहुत ही अधीर हो उठा था, पर मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। मैंने अपना साहस बटोरा और कमरे में कदम रखा। तभी भाभी ने करवट ली, मेरी सांसे जैसे अटक गई। लण्ड ठण्डा सा होने लगा। पर कुछ ही पलों में मेरा लण्ड फिर से खड़ा होने लगा। मैं
भाभी के पलंग के पास आ गया, भाभी की चिकनी मांसल और गोरी जांघें कुछ हद तक दिख रही थी, उनके
स्तन भी दोनों बाहों के बीच में भिंच कर बाहर आने को बेताब थे। मेरे हाथ
बरबस ही उनकी जांघों पर आ गये और उन्हें सहलाने लगे। भाभी थोड़ी सी कसमासाई
और दूसरी तरफ़ करवट ले कर सो गई। पेटीकोट फिर थोड़ा सा और उठ गया, मैंने नीचे झुक कर पेटीकोट के अन्दर झांका तो पीछे से उनकी चूत के दर्शन हो गये। मैं तो आंखे फ़ाड़े चूत को देखता ही रह गया। "राजू, अरे वहां तू क्या कर रहा है....?" भाभी नींद से जाग गई थी,
मैं घबरा गया। "नहीं .... कुछ नहीं भाभी .... वो चू....
चू.... मेरा मतलब कोई कीड़ा था, हटा
दिया मैंने !" मेरी मुख सूखने लगा था। पसीना छलक आया था। "आ जा बैठ जा....
कुछ काम था क्या...." "नहीं वैसे ही आ गया था।" " मुझे तो नींद आ रही
है.... तू भी मेरे पास ही लेट जा.... और जो तुझे कहना कह डाल !" भाभी ने
फिर से दूसरी ओर करवट ली और पांव पसार कर लेट गई। भैया की जगह मैं लेट गया।
"चल लाईट बन्द कर दे .... और बता .... नींद नहीं आ रही है
क्या?" मैंने
लाईट बन्द कर दी और भाभी की बगल में लेट गया। मैं भाभी को हल्के अंधेरे
में देख रहा था। मेरा लण्ड फिर से तन उठा। कुछ देर तक तो मैं बेचैन सा रहा, फिर
ना जाने मुझे क्या हुआ.... मैंने अपना सयंम खो दिया और पीछे से भाभी से
लिपट पड़ा। भाभी इस अचानक हमले से घबरा गई। पर जल्दी ही सब समझ गई। "राजू, क्या कर रहा है.... देख मैं तेरी भाभी हूँ ....!" भाभी ने कसमसाते हुये कहा। "प्लीज भाभी, मुझसे रहा नहीं जाता है.... आप बहुत प्यारी लगती हैं.... !" मैं हांफ़ता हुआ बोला। मेरे दिल की धड़कन तेज हो उठी थी, भाभी की चूंचियाँ दोनों हाथों से दबा डाली। भाभी कराह उठी। "अरे छोड़ मुझे .... चल हट
जा....!" भाभी मुझे हटाती हुई कहने लगी। पर मुझे कहाँ होश था। भाभी जैसे ही मेरी तरफ़ पलटी, मैंने
उनका पेटीकोट ऊंचा कर दिया और अपना लण्ड निकाल कर उनकी चूत पर दबा दिया।
भाभी के चूतड़ बुरी तरह से दबा कर अपने लण्ड की ओर खींच लिया। मैं भाभी से
लिपट पड़ा और अपना लोहे जैसा लण्ड चूत के आस पास मारने लगा। एक बार तो लण्ड
चूत में घुस भी गया था पर भाभी ने एक
झटके से उसे निकाल दिया। तभी मुझे एक तमाचा मार दिया। भाभी तमतमा उठी।
"साला जंगली ....! शरम भी नहीं आती .... इतनी चोट लगा दी !" तमाचा पड़ते ही
मुझे जैसे होश आ गया और मैं भाभी के ऊपर से हट गया। मैंने शरम के मारे अपना
मुख छुपा लिया। मेरी आंखों में आंसू निकल आये। भाभी ने हाथ बढ़ा कर लाईट
जला दी.... मुझे रोता देख कर उन्हें दया भी आई। "तू यह क्या करने लगा
था.... भला ऐसे भी कोई करता है?"
भाभी ने प्यार से मुझे झिड़का। मैं उठ कर जाने लगा ।"भाभी, माफ़ कर देना, मन
में पाप आ गया था...." मैंने रोते हुये कहा। फिर मैं अपने आप ही ग्लानि
में डूब गया और भाभी के कमरे से भाग कर अपने कमरे में आ गया। मेरे दिल में
धुकधुकी लगी हुई थी कि अब जाने भाभी क्या करेंगी और मुझे मार पड़ेगी।
मुझे अपनी नई नौकरी छोड़ कर वापस जाना पड़ेगा। मैं सबकी नजरों में गिर
जाऊंगा .... मैं अनायास ही फ़फ़क कर रो पड़ा- हाय मैंने ये क्या कर दिया। तभी
भाभी कमरे में आ गई। मुझे रोता देख कर भाभी ने हाथ पकड़ कर मुझे पलंग पर ही
बैठा लिया। "तू तो पागल है.... रो मत .... मर्द कभी रोते हैं .... ?" भाभी ने मेरे सर को अपनी छातियों में भींच लिया, जानकर के अपनी चूंचियों में मेरा चेहरा दबा दिया और बालो में हाथ फ़ेरते हुये बोली,"राजू, मैं तुझे इतनी अच्छी
लगती हूँ....?" भाभी ने जैसे मुझे प्यार से बहलाया। " हां भाभी, आप
मुझे बहुत प्यार करती हैं ना....
बस दिल में
पाप आ गया....!" उनकी छाती ने मेरा मन फिर से विचलित कर दिया। अपना चेहरा
मैं धीरे धीरे उनके स्तनो से रगड़ने लगा। यह मन भी बहुत अजीब है .... अभी
ग्लानि से भरा हुआ था अब फिर से वासना छाने लगी थी। "आह.... तुम फिर से
देखो कुछ कर रहे हो ना .... राजू तुम सुधरोगे नहीं !" भाभी ने एक तड़प भरी
आह सी भरी। मैंने अपना चेहरा ऊपर उठाया तो भाभी ने आंखें बन्द कर रखी थी।
उनका वासना से भरा चेहरा देख कर मेरा डोल
उठा। अनायास ही मेरे होंठ भाभी के होंठों से चिपक गये। इस बार भाभी ने
मेरे मुँह को अपने होंठों से भींच लिया और प्यार करने लगी। वो सिसक उठी,"अरे
पागल.... भाभी तो तेरी ही हूँ ना.... सभी कुछ प्यार से नहीं कर सकता है
क्या.... देख तूने मुझे चोट लगा दी.... फिर वहां से भाग के भी आ गया !"
भाभी ने शिकायत की। "भाभीऽऽऽऽ, आप
तो गुस्सा हो रही थी ना....?" मेरा
मन अब खुशी से भर उठा था। "हां जंगलीपने से नाराज हो रही थी.... ऐसे ही
प्यार से कर ना....तुझे भी मस्ती आयेगी और मुझे भी सुख मिलेगा !" मेरा मन
हल्का हो गया। मन में खुशी भरने लगी। मेरा बदन अब वासना से भरने लगा था।
लण्ड ने एक बार फिर से अंगड़ाई ली और सीधा खड़ा हो गया। जैसे कि ग्रीन सिग्नल
का इन्तज़ार कर रहा हो। "भाभी सच में
आप बहुत ही अच्छी हैं.... आप जैसा कहेंगी वैसा ही करूंगा !" मैंने प्यार
से भाभी की चूंचियां सहलाते हुये कहा। जीभ से बार बार भाभी के होंठो को चाट
लेता था। भाभी की मस्त चूचियाँ कड़ी हो रही थी, चुचूक भी कठोर हो चुके थे। "देवर जी, शरम आती है .... कहूँ क्या.... आप मेरी नीचे वाली को प्यार करेंगे?" भाभी
वासना भरी आवाज में सकुचाते हुये बोली। मुझे अब बदन में सनसनी सी होने लगी
थी। मुझे भाभी की चूत देखने की तीव्र इच्छा होने लगी थी। भाभी के इस इशारे
ने मेरा मन मोह लिया और मैंने भाभी का पेटीकोट ऊपर कर दिया और नीचे साफ़ और
चिकनी चूत के पास अपने अधरों को धीरे से लाकर चूमने लगा। चूत में से एक
महक आ रही थी, जैसे कि मुझे
पास बुला रही हो, बुलावा स्वीकार कर के मैंने चूत को भी प्यार किया, दाना
भी मुँह में लेकर चूसा। फिर जीभ चूत में घुसा कर नमकीन रस का आनन्द लेने
लगा। भाभी ने अपना पेटीकोट ऊपर से खींच कर उतार दिया। मैंने भी अपना पजामा
उतार दिया। वो अपनी चूत को धीरे धीरे आगे पीछे करके पूरा आनन्द ले रही थी।
मेरी जीभ भी
लपलपा कर सारी चूत को चाट रही थी। फिर भाभी ने मुझे कहा,"देवर
जी आपके केले में कितना रस भरा है.... जरा मुझे चखाओ ना....!" भाभी ने
मेरे मोटे कड़क लण्ड की ओर इशारा किया। ये सब मैं पहली बार कर रहा था इसलिये
एक नया मजा आ रहा था। मैंने अपना लण्ड देखा और पूछा,"भाभी....
साफ़ कहो ना .... क्या करना है...." मेरा लण्ड रह रह कर कड़क
रहा था। भाभी ने अंगुली हिला कर मुँह में डाल दी। मैं शरमा गया। मैं धीरे
से उठा और अपना लण्ड भाभी के मुख के पास ले गया। भाभी ने मेरे चूतड़ पकड़ कर
अपनी ओर खींच कर लण्ड अपने मुँह में ले लिया। होंठो का नरम सा अहसास, जीभ की गुदगुदी मेरे सुपाड़े को आनन्द देने लगी। मेरा लण्ड और फ़ूल उठा। भाभी ने मेरे लण्ड का डण्डा थाम कर पूरा सुपाड़ा मुँह में ले
लिया और जोर से चूसने लगी। मेरे लण्ड में जैसे आग लग गई। मेरे चूतड़ आगे पीछे हो कर उनका मुँह चोदने लगे। मुझे बहुत ही मजा आने लगा,"भाभी.... आप सच में बहुत प्यारी हैं .... अब मुझे चोदने दो ना....!" मेरी सीत्कार बढ़ गई थी। भाभी को भी चुदने की लगी थी, सो
उन्होंने मुझे ऊपर से हटाया और अपनी दोनों टांगें ऊंची करके
आंखें बंद करके चुदने का इन्तज़ार करने लगी। जैसे ही मेरा लण्ड और भाभी की
चूत मिली लगा आग से आग मिल कर और भड़क उठी.... लन्ड चूत को चीरता हुआ अन्दर
जाने लगा और आग से जैसे पानी बरसने लगा.... दोनों मिलते ही जैसे एक दूसरे
को निगलने लगे। मेरा लण्ड वासना भरी मिठास से भर उठा, और
चूत मेरे लण्ड को जैसे लपेटने लगी। मुझे जैसे होश ही नहीं रहा। चूतड़ ऊपर
उठ कर
आगे पीछे चूत पर रगड़ खाने लगे। लण्ड जोर से अन्दर जाता और फिर बाहर आकर
फिर से अन्दर जा कर अपना सर पटकता। भाभी सीत्कारें भरने लगी। मेरी भी
सिसकारियाँ निकल पड़ी जैसे कि कमरे में कोई घमासान छिड़ा हुआ हो। भाभी ने
मुझे कस कर लपेटा और मुझे नीचे धकेल कर खुद ऊपर आ गई और मेरे ऊपर चढ़ बैठी।
ऊपर से भाभी ने बैठे बैठे ही एक जोरदार शॉट मारा और खुद ही चीख पड़ी। लण्ड
को पूरा मजा आ गया था। भाभी की
चूत में लण्ड गहरा बैठ गया था, शायद
अन्दर तक चूत फ़ाड़ कर लण्ड का साईज़ ले लिया था। भाभी का ऐसा ही दूसरा धक्का
आया और फिर से चीख उठी.... अरे ये तो आनन्द भरी चीख थी। मेरा लण्ड अन्दर
तक ठूंस ठूंसकर ले रही थी, उसमें ही उनको मजा आ रहा था। उनके लगातार जोर से मचल मचक कर लण्ड लेने से मैं भी अति उत्तेजित हो गया था।
"देवर जी, अरे
इतने दिन कहाँ रहे थे.... मेरी तो लगता है आज ही इच्छा पूरी हुई है !"
"भाभी.... और मारो ना झटके .... हाय मुझे तो देखो क्या हो रहा है.... और
मारो चूत को!""साले, अब
तो तुझे रोज ही चोदा मारुंगी.... हाय रे क्या लण्ड है.... खींच मेरी चूंची
को खींच दे रे !" भाभी मस्ती में झूम रही थी। चुदने का पूरा मजा ले रही
थी।
मुझे भी ऐसा जोरदार मजा कभी नहीं आया था। अचानक भाभी मुझसे लिपट गई और चूत
का पूरा जोर लण्ड पर लगाने लगी। जोर लगाते लगाते उनके मुँह से आह निकलने
लगी और उनके होंठ मेरे होंठो से जोर से चिपक गये। इसका असर चूत पर हुआ और
और उसमें लहरें चलने का अहसास होने लगा। वो बार बार चूत का जोर लण्ड पर
लगाती और आह रे .... पानी छोड़ने लगी। भाभी झड़ रही थी।मैं भी अपना लण्ड को
चूत में पूरा घुसेड़ कर दबाने
लगा और फिर अन्दर ही लण्ड ने अपना रस छोड़ दिया। अब हम दोनों आपस में जोर
लगा कर अपना अपना वीर्य निकालने में लगे थे। भाभी मुझसे लिपटी हुई पड़ी थी
और मैंने उन्हें अपनी बाहों में लपेट रखा था। दोनों ही अभी भी झड़ रहे थे, दोनों के चूतड़ एक दूसरे के चूत और लण्ड दबा रहे थे और अपना पूरा माल निकालने में लगे थे। भाभी और मैं, दोनों
ही नंग धड़ंग एक दूसरे से चिपके हुये बिस्तर पर पड़े हुये थे। कुछ ही देर
में भाभी के खर्राटो से पता चल गया कि वो सो गई हैं। मुझे पूर्ण सन्तुष्टि
हो चुकी थी, भाभी
भी निहाल हो कर सो चुकी थी। मैंने भाभी के नंगे शरीर को देखा और मुस्करा
उठा.... अब ये बदन मेरा था.... । मैं बिस्तर से उतरा और एक पतली साफ़ चादर
भाभी के शरीर पर डाल
दी और स्वयं
कपड़े पहन कर सोफ़े पर जाकर सो गया।
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देवर की मस्त भाभी
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