Monday, December 8, 2014

Fentency तुम्हारी यही अदा तो कातिल है जी-2

Fentency 

 तुम्हारी यही अदा तो कातिल है जी-2
 कह कर उन्होंने मेरे उरोजों के अग्रभाग को बारी बारी से चुमा फीर एक को मुंह में डाल लिया, मैं पापा जी से ऐसी उम्मीद नहीं रखती थी, मेरे पति भी उरोजों को पहले चूसा करते थे, पापा जी के मुंह में पड़े उरोज के अग्रभाग पर गर्मी महसुस हुई तो मेरा रोम रोम उत्तेजना से खडा हो गया, मेरी साँसे रुकने सी लगी, उत्तेजना के कारण मेरे होंठों पर सिसकारियां उभर आई थीं,


बारी बारी से उन्होंने दोनों उरोजों को देर तक चुसा, होंठ दर्द करने लगे तो मुंह उठा कर मेरे चेहरे की ओर देखा,


" क्या हुआ,"मैंने मुस्कान बिखेरते हुए पुछा,


" तुम तो चुप पड़ी हो, कुछ ना कुछ तुम भी करती रहती तो मुझे विश्राम मिलता रहता, थक गया ना,"


मैं हंस दी " आप मेरी बारी आने दें तब ना,"


इतना कहना था की उन्होंने मेरे बगल में हाँथ डाल कर अपने जिश्म से चिपका लिया और चित्त हो गये, मेरा समूचा जिश्म उनके उपर फ़ैल गया,


मेरे होंठ उनके होंठों से जा लगे, मैंने धीरे धीरे होंठों को हरकत दी और फिर सिसिया कर चूसने लगी,बीच बीच में मैं होंठों को दांतों तले दबा लेती तो वे पीड़ा से कसमसा उठते, चुंबन लेते हुवे मैंने अपनी कमर से निचे का भाग तिरछा करके उनके उपर से निचे उतार लिया, उनका गुप्तांग कपडों के बीच से झाँक रहा था, पहले तो मैनें उसे पकडा फिर छोड़ कर उन्हें निःवस्त्र करने लगी, कुल एक ही वस्त्र था उसे उतारते ही वे पुर्णतः निःवस्त्र हो गये, तब उनके होंठों पर से मुंह उठा कर मैनें लिंग का सम्पूर्ण दीदार किया और हाँथ से सहलाते हुवे जायजा लिया, मेरा अनुमान सही था, पापा जी के लिंग की लंबाई मेरे पति से ज्यादा थी, मोटा उतना ही था,


पापा जी ने पुछा " इतने गौर से क्या देख रही हो?"


मैंने उनकी ओर देखे बिना ही जवाब दिया, " आपका बहुत बड़ा है,"


" इससे भी बड़ा होना चाहिये, लिंग जितना ही लंबा और मोटा होता है, स्त्रियों को सम्भोग का उतना ही ज्यादा आनन्द और संतोष प्राप्त होता है, इसे देख कर घबराओ मत,"


कह कर उन्होंने मेरा मुखड़ा अपनी ओर खींच लिया, " तुम चेहरा इधर तो रखो, बहुत सुन्दर हो, मुझे जी भर के देखने दो,"


उन्होंने मेरे चेहरे को हथेलियों में बाँध सा लिया, मुझे भी अपना रुप उन्हें दिखाने में आनन्द आ रहा था, उत्तेजना के कारण मेरी नाशिकाएं फुल और पीचक रही थी, चेहरा तमतमा गया था, जैसे सारे जिश्म का खून चेहरे पर ही जमा हो गया हो,
यह सब सही था तभी तो पापा जी ने थोडा तिरछा करके मेरा चेहरा झुकाया और गाल अपने होंठों पर रख लिया, उन छणों में मैं वास्तविक सम्बंध को एकदम भूल बैठी, मैं इस गुमान में बहुत खुश हो उठी थी की मेरा जिश्म और हुस्न मेरे एक मनपसंद पुरुष के आगोश में है, प्रभावित हो कर मैंने अपना गाल उठाया और उनके गाल पर रख कर चूमने लगी,


मेरी हिचक सहसा ही लुप्त हो गई, मैं उन्हें इस तरह प्यार करने लगी मानो वे मेरी पसंद के मनपसंद युवक हों, मैनें उनकी बाजुओं को चुमा, चौड़े सीने को बार बार चुमा, उसके बाद उनके वक्ष पर सीर टीका कर समर्पण कर दिया,


उनके हाँथ मेरे पेट की और तेजी से बढ़े, नाभी पर सहलाने के बाद पेटीकोट उतार दिया, मैं उनके सीने पर टिकी हुई थी, मेरी पीठ पर बाहों को कसा और अपने साथ साथ मुझे भी उठा कर खडा कर दिया,


हम दोनों एकदम निःवस्त्र अवस्था में एक दुसरे की बाहों में बंधे खड़े थे, उनका कठोर लिंग मेरी नाभी से एक इंच निचे चुभ रहा था और मेरे दोनों उरोज उनके जिस्म से दबे हुवे थे, उन्होंने मेरी ठोढी को छुवा तो मैंने अपना मुखड़ा उपर की और उठा दिया, उन्होंने मेरे होंठों पर गहरा चुंबन अंकित कर के मुझे अपने से अलग कर दिया, वे मेरा निःवस्त्र बदन देखना चाहते थे, इसलिए स्वयं ही दो फुट पीछे सरक कर मेरे बदन का अवलोकन करने लगे, कुछ छण बाद वे बैठ गये फीर थोड़ा उठ कर उपर से निचे तक नजर दौड़ाने लगे, मेरे बदन ने उन्हें कितना प्रभावित किया यह उनके चेहरे पर स्पष्ट झलक रहा था,


मैनें मुस्कुरा कर पूछा " मुझे शर्म लग रही है, बैठ जाऊं?"

उन्होंने बाहें फैला कर मेरा स्वागत किया, मैं झुक कर उनकी बाहों में गिर पड़ी, ठुनक कर बोली " अब ज्यादा मत तडपाइये, मेरा दम घुट रहा है,"


लुढ़कते हुवे वे मुझे निचे करके मेरे उपर आ गये, मेरे गुप्तांग को टटोलते हुवे दो चार चुटकियाँ काटी, फिर कहने लगे "तुम तो पहले से ही तैयार हो "


" आप भी तो तैयार हैं "


मेरे कहते ही उन्होंने फिर मेरे होंठों को चुसना सुरु कर दिया, मुझे होंठों पर जलन महसूस होने लगी थी, पता नहीं मेरे होंठों का रस उन्हें कितना अच्छा लग रहा था, बार बार चूसने लगते थे,


मैनें उनका लिंग पकड़ कर पुरी ताकत से दबाया तो वे उठते हुवे बोले " तुम बताओ तुम्हे कौन सा आसन पसन्द है "


" पहले तो वे ( मेरे पति ) इसी तरह चित लिटा कर जाँघों के बिच बैठते थे, लेकिन अब अक्सर वे चित लेट कर मुझे अपने उपर बैठाते हैं, उस तरह थकान जरूर मुझे परेशान करती है लेकिन आनन्द बहुत आता है, फिलहाल आपको जो आसन पसन्द हो उसी को आजमाइये! मम्मी जी को कौन सा आसन पसन्द था, वही बताइये "


उन्होंने मुझे पेट के बल लिटा कर घुटनों को मोड़ने का निर्देश दिया, घुटनों को मोडा तो मेरा पिछला हिस्सा उपर उठ गया, जबकि मेरा वक्ष और चेहरा तकिये से चिपका हुआ था, उन्होंने बताया " इसे धेनु आसन कहते हैं, इस आसन से गर्भ आसानी से ठहर जाता है, तुम्हे पसन्द ना हो तो चित्त लेट जाओ,"


" नहीं यही आसन ठीक है, पता तो चले की इस आसन से कितना आनन्द आता है,"


वे मेरे पीछे घुटनों के पास ही बैठे थे, मेरी स्वीकृती मिलते ही वे भी अपने घुटनों पर खड़े हो गये, तब उनका लिंग मेरे गुदाद्वार से आ टकराया,


मैं डर गई, तभी उन्होंने हाँथ लगा कर लिंग मुण्ड को योनिद्वार पर पहुंचा दिया, फिर मेरे गुदाद्वार पर अंगुली रख कर पुछा, " इसके मैथुन का आनन्द कभी उठाया है?"


मैंने कहा " बहुत दर्द होता है, एक बार इन्होनें प्रयास किया था, मेरी जान निकलने लगी तो छोड़ दिया,"
" ज्यादा जोश के कारन बेरहमी कर बैठा होगा, वरना गुदा - मैथुन में भी बहुत आनन्द प्राप्त होता है, कभी मैं कर के दिखाऊंगा, पीड़ा हो तो बताना," कह कर वे अपना लिंग योनिद्वार में प्रवेश कराने लगे, लिंग मुण्ड का प्रवेश तो सामान्य ही लगा, लेकिन मुण्ड प्रवेश के बाद दो पल को वे रुके फिर एक ऐसा तेज झटका दिया की संपूर्ण लिंग प्रवेश करके अंतड़ियों में चुभने लगा, मैं कराह कर थोड़ा आगे हो गई, तब उन्होंने मेरी कमर पकड़ कर वापस ही नहीं बल्कि खुद भी आगे सरक आये, जिससे मुझे तकलीफ होने लगी, उनके लिंग की लंबाई ज्यादा जो थी,


कराहते हुवे मैं फिर आगे होने का प्रयास करने लगी, लेकिन उन्होंने सफल नहीं होने दिया, तब मैनें कहा " थोड़ा रहम कीजिये, जितनी चादर है उतना ही पैर पसारिये, तकलीफ हो रही है,"


उन्होंने मेरी कमर थपथपा कर कहा " एकाध बार ही तकलीफ होगी, मेरा संसर्ग पहली बार मिला है ना, धीरज रखो, अभी इतना मजा आने लगेगा जितना तुम सोच भी नहीं सकती,"
इतना कह कर वे थोड़ा पिछड़े और फिर पुरी तेजी से आ सटे,


" आह " मैं कराह उठी,


पापा जी का जोश दोगुना हो गया, वे उसी रफ़्तार से जल्दी जल्दी घर्षण करने लगे, मैं लगातार कराहती रही, मुझे पेट में चुभन थोड़ा तकलीफ दे रही थी, अन्यथा उनके लंबे लिंग का घर्षण बड़ा आनन्ददायक लग रहा था, इसमें संदेह नहीं, घर्षण का आनन्द ही उठाने के लिये मैं पीड़ा सहने के लिये मजबूर थी,


उन्होंने विश्राम के दौरान पुछा " मेरे सहवास में मजा आ रहा है ना बहु "


" मजा तो जरूर आता लेकिन दर्द के कारन मजा किरकिरा हो गया है, आज फंस गई हूँ, आइन्दा आपके पास कभी नहीं आउंगी, आप मजा कम पीड़ा ज्यादा पहुंचा रहे हैं,"


वे रूक गये, लिंग को तुंरत थोड़ा सा पीछे खिंच कर कहने लगे " ऐसा क्यों कहती हो? लो अब खुश हो?"


" हाँ अब ठीक है,"


" ठीक है तो लो अब मजा ही मजा उठाओ," कह कर सावधानी के साथ घर्षण करने लगे, मैनें कराहना बंद कर दिया था, लेकिन जब मैं मंजिल के करीब पहुँचने लगी तो सीसीयाते हुवे बोल पड़ी " पुरी ताकत लगा दीजिये, पहले की तरह, प्लीज,"


इतना कहना था की वे पहले जैसी धुन में आ गये, मैं फिर कराहने लगी, अगले ही छण स्खलित हो गई तो उनकी जांघ को दबोचते हुवे बोली " बस..बस...प्लीज रूक जाइए,"


वे रुकने के मूड में नहीं थे, लेकिन जल्दी ही वे भी स्खलित हो गये, तब रूक जाना उनकी मजबूरी थी, झुक कर उन्होंने अपना मुंह मेरी कमर पर रख दिया और हांफने लगे,


इस तरह मेरा अवैध संबन्ध ससुर जी से स्थापित हो गया तो हम अक्सर काम क्रीडा करने लगे, मेरे पति नाईट ड्यूटी में होते तो नाईट के समय और दिन की ड्यूटी पर होते तो दिन के समय पापा जी के आगोश में पहुँच जाती, मेरा मुन्ना नादान ही था, और कोई देखने वाला था नहीं, हम स्वछन्द हो कर वासना का खेल खेलने लगे थे,


छह महीने तक मैं गर्भवती नहीं हुई तो अवैध संबन्ध पर पछतावा होने लगा, मुझे यकीन हो गया की कुछ खराबी मेरे अन्दर ही आ गई है, इसलिए गर्भ नहीं ठहर रहा है, निराश हो चली थी की एकाएक पता चला, मेरी कामना पुरी हो गई, मैनें ससुर जी को और पतिदेव को भी गर्भवती होने की सुचना दी तो पतिदेव बहुत खुश हुवे, मुझे शुभकामना दी, " लो तुम्हारी कामना पुरी हो गई, और बच्चों के लिये तरश रही थी, इश्वर ने तुम्हारी इच्छा पुरी कर दी, अब जरा सावधानी बरतना,"




मेरे पति और मेरे ससुर दोनों ही बहुत खुश थे, मेरा पुरा ध्यान रखते, मैंने एक खुबसूरत बच्चे को जन्म दिया, मैंने अपने ससुर जी के सहयोग से बाद में एक और बच्चे को जन्म दिया, अभी भी ससुर जी पुरे जोश से मुझे संभोग का आनन्द देते हैं,

अब मैं गर्भ निरोधक गोलियों का प्रयोग करती हूँ और शारीरिक सुख भोग रही हूँ,











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