Monday, December 8, 2014

Fentency अहसान के बोझ तले

Fentency


अहसान के बोझ तले

प्रेषक : सिम्मी 
मेरा नाम रूद्र प्रताप है मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से हूँ, पिताजी सरकारी बाबू हैं। 
अचानक ही उनका तबादला जबलपुर हो गया तो बड़े शहर में खर्च को लेकर चिन्ता होने लगी, मकान भी नहीं मिल रहा था। तभी पापा के मित्र वर्मा अंकल जो कि वकील थे, उन्होंने हमारी मदद की। वर्मा जी शहर के जाने माने वकील थे, उनका आलीशान तीन मंजिला बंगला शहर की पॉश कालोनी में था, हमें ऊपर वाली खाली पड़ी मन्जिल मिल गई सस्ते किराए में। 
असल में यह कहानी मेरी कहानी ना होकर हमारी कहानी है इस कहानी को मैंने शीतल से चेक कराया है उसकी सहमति के बाद ही मैंने इस कहानी को हिंदी सेक्सी कहानियाँ में आप लोगो के लिए दिया है 
कहानी शुरू होती है ऐसे कि हमारे परिवार में तीन लोग ही थे, दीदी ससुराल जा चुकी हैं। वर्मा जी के परिवार में सात लोग उनके माता-पिता और बच्चे राम, शीतल व कुशल ! 
राम इसी साल रूस जाने वाला था मेडिकल की पढ़ाई करने, जुलाई में चला भी गया। शीतल बारहवीं में, कुशल आठवीं में और शीतल से दो साल सीनियर हूँ। 
मैं पढ़ाई में ठीक हूँ इस कारण से मेरी एक खास छवि बन गई थी। हम तीनों साथ-साथ खेलते। कभी कभी मैं कुशल को पढ़ा भी दिया करता था। 
एक दिन की बात है, मैं छ्त पर पढ़ाई कर रहा था, कुशल भी मेरे साथ था। तभी शीतल आई उसे कुछ पूछ्ना था, गणित में उसे समस्या थी, वह आई और मुझसे सवाल पूछने लगी। वो सफ़ेद कमीज और लाल स्कर्ट में वाकई खूबसूरत लग रही थी। उसके पतले-पतले होंठ रस भरे और सुर्ख थे। मन तो किया कि अभी उन्हें चूम लूँ पर अंकल का उपकार मुझे रोक लेता, शीतल के पापा का बहुत अहसान था हम पर। 
मैंने उसे ट्रिगनोमेट्री के सवाल करवाए। वो काफ़ी खुश थी कि उसकी परेशानी दूर हो गई। तब तक कुशल जा चुका था। 
तब उसने कहा कि ज्योमेट्री में भी कुछ पूछना है। मैं बताने लगा, वो झुक कर समझने लगी। 
अचानक ही मुझे जन्नत के दर्शन हुए उसके शर्ट के दो बटन खुले था और उसके मक्खन जैसे उजले दूध नजर आ रहे थे। तभी हमारी नजर मिली और मैं झेंप सा गया। 
उसने पूछा- क्या हुआ? 
सकपकाते हुए मैं आगे पढ़ाने लगा, शायद वो जानबूझ कर दिखाना चाहती थी और फिर से जन्नत मेरे सामने थी। इस बार मुझसे रहा नहीं गया और मैंने कहा- तुम्हारी शर्ट के बटन खुल गये हैं। 
इस पर उसने कहा- गर्मी ज्यादा ही लग रही है, इसलिए खोले हैं ! पर तुम इधर क्यों देख रहे हो? 
मैंने अपना पासा फ़ेंका- तुम्हारी उम्र के हिसाब से तुम्हारे वो काफ़ी बड़े हैं ! 
शायद वो मेरे से एक कदम आगे थी, वैसे भी बड़े शहर के बच्चे जल्दी बड़े होते हैं, तब तक मेरा लौड़ा भी जोश में आ चुका था, शायद शीतल को भी पता चल गया था, उसने कहा- क्या बड़े हैं? तुम्हारा भी तो है ! 
फिर हम हंस पड़े, मैंने कहा- कुछ नहीं ! 
कुछ समय बाद उसने कहा- जल्दी से सवाल बताओ, मुझे नहाने जाना है ! तुम्हें नहीं नहाना क्या? 
मैंने छेड़ते हुए कहा- साथ नहाते हैं ! 
तभी ना जाने शीतल को क्या सूझा, उसने मुझे गाल पर चूम लिया। मैं अचानक हुए इस हमले से घबरा गया पर तब तक वो जा चुकी थी। 
हम तीनों स्कूल-कॉलेज़ साथ ही जाते थे अंकल की कार से, कुशल अक्सर अगली सीट पर बैठता था। 
उस दिन मुझे डर लग रहा था, रास्ते में पिछली सीट पर शीतल ने मुझे छेड़ना शुरू कर दिया, उसने अपना हाथ मेरी जांघों पर रख दिया और सहलाने लगी। 
तभी मेरा खड़ा हो गया। यह उसे भी पता चल गया और वो मेरी ओर देख कर मुस्कुराने लगी। मेरी हालत खराब हो रही थी। 
इस पर भी शीतल को चैन नहीं था, उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी स्कर्ट के नीचे से अपनी नग्न जांघों पर रख दिया, मेरा भी हाथ चलने लगा। 
तभी कार रूक गई मेरा कॉलेज़ आ गया था, वहाँ मेरा मन नहीं लग रहा था, रह रह कर उसकी चिकनी जांघें याद आ जाती, मैं कल्पना के सागर में गोते लगाने लगा मन ही मन शीतल को चोदने लगा। 
रात को शीतल पढ़ने के बहाने से ऊपर मेरे कमरे में आ गई। मेरी माँ किसी काम से नीचे गई हुई थी, उसे यह बात पता थी और उसने आते ही मुझसे पूछा- सुबह तुम्हें क्या हो गया था? 
और मेरे शार्ट्स को खींचने लगी कि अन्दर क्या है मुझे देखना है। 
मैंने उसे डांट दिया। 
फिर धीरे से उसने कहा- आई लव यू ! और मेरे होंठों पर अपने होंठ जमा दिये। 
आखिर मैं भी इन्सान हूँ, मैंने भी साथ देते हुए उसे अपनी बाहों में ले लिया और उसके होंठों को चूमने लगा। तब तक उसकी जीभ मेरे मुँह में जा चुकी थी और हम जिन्दगी का लुत्फ उठाने लगे। इस तरह करीब दस मिनट तक हम ऐसे ही रहे। 
तब मैंने कहा- बस करो, कोई देख लेगा ! 
हम दोनों हाँफ रहे थे और एक दूसरे से नजर मिला नहीं पा रहे थे। उसके बाद यह चूमा-चाटी लगी ही रहती थी। कभी कभी मैं शीतल के बोबे भी दबा दिया करता था। इससे ज्यादा के लिए हमें मौका ही नहीं मिलता। 
हमारे प्यार के परवान चढ़ने का वक्त आ गया था शायद ! 
शीतल के परिवार को शादी में जाना था पर शीतल के पेपर चल रहे थे। शीतल को हमारे परिवार के देख रेख में छोड़ के रात तक लौट आने को कह कर वकील अंकल सपरिवार कार से शादी में सम्मिलित होने चले गये। रात के आठ बजे अंकल का फोन आया कि वो लोग शायद सुबह तक आयेंगे, उनकी कार थोड़ी खराब हो गई है। सुबह मैकेनिक से सुधरवा कर ही आयेंगे। 
मैं और शीतल डिनर के बाद शीतल के घर पर हॉल में बैठ कर पढ़ाई करने लगे थे। कुछ देर बाद मेरी माँ ने कहा- पढ़ाई के बाद, शीतल तुम अपने कमरे में सो जाना और रुद्र, तुम हॉल में सो जाना ! हम सो रहे हैं। 
शीतल तो खुश हो गई यह सुन कर कि हम दोनों को नीचे ही सोना है। 
कुछ देर पढ़ने के बाद शीतल ने कहा- चलो टी वी में कुछ देखते हैं ! 
यह कह कर उसने अपने बैग से एक सी डी निकाल कर चला दी। अब हम हैरी पाटर मूवी देख रहे थे। 
मैंने कहा- यही देखना है तुम्हें? 
शीतल ने मूवी आगे बढ़ा दी। तब एक ब्लू फ़िल्म चलने लगी। उसने बताया कि उसकी फ़्रेन्ड ने दी है। 
अब हम दोनों भी जोश में आने लगे और मैंने अपने तपते होंठ शीतल के होंठों पर लगा दिए और सोफ़े पर ही बाँहो में बाँहे डाल कर रसपान करने लगे, सामने ब्लू फ़िल्म भी चल रही थी। 
मैंने कहा- कुछ और भी करना है क्या? 
उसने हाँ में सर हिलाया और मैं छ्त वाले दरवाजे को बंद कर आया। हमने हाल में बिस्तर लगा दिया ताकि किसी को शक ना हो और शीतल के कमरे में आ गए। शीतल ने अपनी अलमारी से चादर निकाल कर बिस्तर के बीचो बीच बिछा दिया, उसने बताया कि अब पुराना चादर साफ़ रहेगी। 
सच में शीतल के दिमाग की दाद देनी होगी, एक भी सबूत नहीं छोड़ना चाहती थी। 
अब हम दोनों बिस्तर पर आ गए और फ़िर से चुदासा माहौल बनाने लगे। मैंने जल्द ही उसके टाप व स्कर्ट को बदन से जुदा किया, शीतल भी कहाँ रुकने वाली थी, मैं भी अब सिर्फ़ चड्डी में रह गया था। शीतल को थोड़ी शर्म आ रही थी और उसने बत्ती बुझा दी और मैं अब शीतल के स्तनो से ब्रा के ऊपर से ही खेल रहा था। 
तभी मैंने हाथ पीछे ले जा कर उसके स्तनों को ब्रा से आजाद करा दिया। अब हम लेट गए और मैंने शीतल से पूछा- कंडोम की जरुरत पड़ेगी ! 
उसने कहा- यह मेरा पहली बार है, बाद में गोली ले लूंगी, कुछ नहीं होगा ! 
मैं करवट बदल कर उसे अपने ऊपर ले आया और उसकी पैंटी नीचे सरका दी। शीतल पूरी नंगी मेरे ऊपर थी, उसका गोरा तराशा हुआ बदन हल्की रोशनी में चमक रहा था। शीतल ने मेरा अंडरवियर निकाल दिया। मैंने अब उसे नीचे आने को कहा. 
अगले ही पल मैं शीतल के ऊपर था और उसकी चूत मेरे लण्ड से टकरा रही थी, मैंने कहा- मुझे तुम्हें देखना है ! 
और उठ कर मैंने बल्ब जला दिया। उसकी चटख लाल बुर एकदम चिकनी थी मेरा भी 6 इंच का लण्ड इसे चोदने को बेताब हुआ जा रहा था पर मैंने अपने आपको रोकते हुए उसके आमन्त्रण का इन्तज़ार करने लगा और उसके सारे बदन को चूमने लगा और साथ ही साथ उसके स्तनो से दूध निकालने की कोशिश भी जारी थी। 
मेरा हाथ उसकी अनचुदी बुर तक पहुँच गया, उसकी बुर पनिया गई थी। मैं बुर के आस-पास सहलाने लगा। 
अब शीतल की हालत खराब हो रही थी, कहने लगी- क्या कर रहे? अब जल्दी से कुछ करो ना ! 
मैंने कहा- क्या? 
उसने धीरे से कहा- चोदो अब ! और मत तड़पाओ ! 
और मेरे चूतड़ों को अपने हाथों से चूत में दबाने लगी। 
मैंने कहा- दर्द होगा ! 
उसने कहा- बर्दाश्त कर लूंगी। 
अब मैंने बती बन्द कर दी और शीतल की बुर में अपना लौड़ा डालने की कोशिश करने लगा पर मैं असफ़ल रहा। शीतल ने मेरे लौड़े को अपने हाथों में लेकर रास्ता दिखाया, मैंने धक्का लगाया और शीतल के मुँह से चीख निकल गई। मेरा लण्ड रास्ता बना चुका था पर अभी मुश्किल से दो इंच ही गया होगा। 
अबकी बार मैंने शीतल के होंठों में अपने होंठ लगाकर जोर का धक्का मारा। इस बार शीतल की चीख मुँह में ही दब कर रह गई, उसकी आँखों में आँसू आ गए थे। मेरा लण्ड पूरा अंदर था इस बात का सुकून हम दोनों को था। मैंने धीरे धीरे झटके देने शुरू कर दिये। थोड़ी देर में शीतल भी चुदासी होकर नीचे से साथ देने लगी। कुछ देर की चुदाई के बाद शीतल का बदन अकड़ने लगा और वो झड़ गई। उसने कहा- अब तुम पूरा बाहर निकाल कर डालो ! 
मैंने ऐसा 5-6 बार किया। अब फ़िर से शीतल का साथ मिलने लगा और मैं उसके पैरों को ऊपर की ओर मोड़ कर चोदने लगा। मैंने देखा शीतल के आँसू सूख चुके थे और वो चुदाई का भरपूर मजा ले रही थी। हम दोनों अब की बार एक साथ झड़े मैंने अपना पूरा गरमागरम वीर्य उसकी चूत में ही डाल दिया। 
तभी मेरी नजर चादर पर पड़ी, चादर खून और वीर्य से सनी हुई थी। मैंने शीतल को दिखाया, तब उसने बताया कि ऐसा पहली बार होता ही है। 
अभी रात के 12 बजने में कुछ ही मिनट रहे थे, शीतल कहने लगी- दूसरा दौर शुरू करें ! 
और मेरे पेट पर चढ़कर बैठ गई। 
मैंने पूछा- कैसा लगा? 
शीतल के गालों पर अभी भी सूखे आँसू के निशान थे पर उसने मुस्कुराते हुए बताया कि उसकी तमन्ना पूरी करके मैंने उसे अपना अहसानमंद बना दिया है। दर्द के बारे में उसने बताया कि उनकी बायो वाली मैडम जो कि बैचलर ही है ने उसे सब कुछ बताया था इसलिए वो दर्द सहने को तैयार थी। शीतल बताते हुए मुझ पर झुकने लगी पर मैंने खुद उठ कर उसे अपनी बाँहों में भर लिया। हम दोनों हाथों और पैरों से भी एक दूसरे की बाहों में थे। 
शीतल मुझे चूमने लगी, होंठों पर, गालों पर ! शायद ही उसने मेरे कमर से ऊपर कहीं भी खाली छोड़ा हो। 
मेरा लण्ड खड़ा होने लगा, यह बात शीतल भी समझ गई। उसने मुझे धक्का देकर लिटा दिया और खुद नीचे होकर अपना मुँह मेरे लण्ड तक ले गई और अगले ही पल बिल्कुल लॉलीपॉप की तरह मेरा लण्ड चूसने लगी और हम फ़िर से चुदाई का आनंद लेने लगे।






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