Fentency
बेचारी गरीब
दोस्तों मैं आपको एक दयावान चुदाई का किस्सा सुनाता हूँ…ये चुदाई की कहानी सुनकर आप का लंड और मुंह तो गीला होना तय है…मैंने कुछ ही दिन पहले अपना रूम चेंज किया था… घर में ऊल-ज़ुलूल नौकरानियों के काफ़ी अरसे बाद एक बहुत ही सुंदर और सेक्सी नौकरानी काम पर लगी. २२-२३ साल की उमर होगी. सांवला सा रंग था. मीडियम हाईट की और सुडौल चूचियां.. शादी शुदा थी. उसका पति कितना किस्मत वाला था, साला खूब चोदता होगा.यही सोच कर मैं झड जाता था,,, चूचियां ऐसी कि बस दबा ही डालो. ब्लाउज़ में समाती ही नहीं थी. कितनी भी साड़ी से वो ढकती, इधर उधर से ब्लाउज़ से उभरती हुई उसकी चूचियां दिख ही जाती थी. झाड़ु लगाते हुए, जब वो झुकती, तब ब्लाउज़ के उपर से चूचियों के बीच की दरार को छुपा न सकती. एक दिन जब मैने उसकी इस दरार को तिरछी नज़र से देखा तो पता लगा कि उसने ब्रा तो पहना ही नहीं था. कहां से पहनती, ब्रा पर बेकार पैसे क्यों खर्च किये जायें. जब वो ठुमकती हुई चलती, तो उसके चूतड़ हिलते और जैसे कह रहे हों कि मुझे पकड़ो और दबाओ. अपनी पतली सी सूती साड़ी जब वो सम्भालती हुई सामने अपने .चूत पर हाथ रखती तो मन करता कि काश उसकी चूत को मैं छू सकता. करारी, गरम, फूली हुई और गीली गीली चूत में कितना मज़ा भरा हुआ था. काश मैं इसे चूम सकता, इसके मम्मे दबा सकता, और चूचियों को चूस सकता. और इसकी चूत को चूसते हुए जन्नत का मज़ा ले सकता. लंड मानता ही नहीं था. .चूत में घुसने के लिये बेकरार था. लेकिन कैसे. ये तो मुझे देखती ही नहीं थी. बस अपने काम से मतलब रखती और ठुमकती हुई चली जाती. मैने भी उसे कभी एहसास नहीं होने दिया कि मेरी नज़र उसे चोदने के लिये बेताब है. अब चोदना तो था ही. मैने अब सोच लिया कि इसे उत्तेजित करना ही होगा. धीरे धीरे उत्तेजित करना पड़ेगा वरना कहीं मचल जाये या नाराज़ हो जाये तो भांडा फूट जायेगा. मैने उससे थोड़ी थोड़ी बातें करनी शुरु की. उसका नाम था पूजा . एक दिन सुबह उसे चाय बनाने को कहा. चाय उसके नरम नरम हाथों से जब लिया तो लंड उछला. चाय पीते हुए कहा, पूजा , चाय तुम बहुत अच्छी बना लेती हो. उसने जवाब दिया, बहुत अच्छा बाबूजी. अब करीब करीब रोज़ मैं चाय बनवाता और बढ़ाई करता. फिर मैने एक दिन कोलेज जाने के पहले अपनी शर्ट प्रेस करवाई. पूजा , तुम प्रेस भी अच्छा ही कर लेती हो.थोड़ी बात करने पर पता चला कि उसका पति शराबी था और रोज़ पी कर आता था और चोदने की बजाय आ कर सो जाता था…क्या दुःख भरी कहानी थी..यहाँ जिसको ये चूत milee थी वो तो चोदता ही नहीं था और जिसे ना मिली वो मुठ मार कर ही काम चला रहा था.धीरे धीरे मेरी usse बातें और गहरी होने लगीं.., एक दी मैंने मौका देख पूछ ही लिया..तुम्हारा आदमी पागल ही होगा. अरे उसे समझना चाहिये, इतनी सुंदर पत्नी के होते हुए, शराब की क्या ज़रूरत है. उसने कुछ कुछ समझ तो लिया था लेकिन अभी एहसास नहीं होने दिया..मैं उसको चोदने के मौके कि ताक में रहने लगा. और आखिर एक दिन ऐसा एक मौका लगा. कहते हैं ऊपर वाले के यहां देर है लेकिन अंधेर नहीं. रविवार का दिन था. पूरी फ़ैमिली एक शादी मैं गयी थी. मै नहीं गया. मेरे दिल में लड्डू फूटने लगे और लौड़ा खड़ा होने लगा. वो आयी, दरवाज़ा बंद किया और काम पर लग गयी. इतने दिन की बातचीत से हम खुल गये थे और उसे मेरे ऊपर विश्वास सा हो गया था इसी लिये उसने दरवाज़ा बंद कर दिया था. मैने हमेशा कि तरह चाय बनवाई और पीते हुए चाय की बढ़ाई की. मन ही मन मैने निश्चय किया कि आज तो पहल करनी ही पड़ेगी वरना गाड़ी छूट जायेगी. कैसे पहल करें? फिर मैंने उससे उसकी चुदाई के बारे में पूछताछ शुरू की..ये पूछने पर भी उसने कुछ नहीं कहा और मुस्कुरा कर मेरे सवालों का जवाब देती रही..मैंने socha—लौंडिया पट चुकी है,,चुदाई में देर नही होनी चाहिए..फिर मैंने जान बूझ कर अपने रूम में जाके सारे कपडे उतारे और लेट गया,,फिर उसे आवाज़ दी.वो मेरे रूम में आई और मेरे खड़े लंड को देख शर्मा गयी.मैं बोला- आओ रानी ..ये तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा है..वो धीरे धीरे मेरी तरफ बढ़ी और मेरा लंड सहलाने लगी..मैं बोला- इससे पहले कि कोई आ जाए,तुम इसका पूरा मज़ा लो…फिर मैंने उसे धीरे धीरे नंगा कर दिया..उसके चूचे तो जैसे हेडलाइट्स जैसे लग रहे थे और चूत गुलाब जैसी..वो मेरे खड़े लंड को अपनी चूत पे टिका कर बैठ गयी..मेरा पूरा का पूरा लंड उसके अन्दर घुस गया..वो उछल उछल के चुदवाने लगी..मैंने मज़े के लिए उसकी चूत चाटने को कहा..वो खुश हो गयी..फिर मैंने उसे जवान घोडी बनाकर चोदा और बोला-तू तो मस्त रंडी है रे,, पता नही तेरा पति तुझे कैसे नही चोदता….वो बोली—एक आप ही मेरा दर्द समझते है.. आप जब भी कहोगे,जहां भी कहोगे, मैं चुदने के लिए हमेशा तैयार रहूंगी…मैं उसे लगातार चोद रहा था..और वो मज़े ले रही थी..काफी देर तक इस तरह मैंने उसे चोदा..फिर जैसे ही मैं झड़ने वाला था,, उसने मेरा लंड मुंह में ले लिया और सारा माल पी गयी.. मैं थक चुका था, लेकिन वो साली रंडी अब भी चुदने के लिए उतारू थी.. मैं बोला—आज कि क्लास यहीं तक,,बाकी की पढ़ाई कल करेंगे.. फिर मैंने अपना लंड साफ़ करके उसे अपनी जेब में से निकाल के ५०० रुपये दिए..और बोला- रख लो , काम आयेंगे..वो खुश हो गयी..वो दिन था और आज का दिन है,हर दुसरे तीसरे दिन मैं उसकी चुदाई करता हूँ और बदले मैं कुछ पैसे उसे दे देता हूँ..बेचारी गरीब का घर चलता रहता है..हुई ना ये दयावान चुदाई…???
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बेचारी गरीब
दोस्तों मैं आपको एक दयावान चुदाई का किस्सा सुनाता हूँ…ये चुदाई की कहानी सुनकर आप का लंड और मुंह तो गीला होना तय है…मैंने कुछ ही दिन पहले अपना रूम चेंज किया था… घर में ऊल-ज़ुलूल नौकरानियों के काफ़ी अरसे बाद एक बहुत ही सुंदर और सेक्सी नौकरानी काम पर लगी. २२-२३ साल की उमर होगी. सांवला सा रंग था. मीडियम हाईट की और सुडौल चूचियां.. शादी शुदा थी. उसका पति कितना किस्मत वाला था, साला खूब चोदता होगा.यही सोच कर मैं झड जाता था,,, चूचियां ऐसी कि बस दबा ही डालो. ब्लाउज़ में समाती ही नहीं थी. कितनी भी साड़ी से वो ढकती, इधर उधर से ब्लाउज़ से उभरती हुई उसकी चूचियां दिख ही जाती थी. झाड़ु लगाते हुए, जब वो झुकती, तब ब्लाउज़ के उपर से चूचियों के बीच की दरार को छुपा न सकती. एक दिन जब मैने उसकी इस दरार को तिरछी नज़र से देखा तो पता लगा कि उसने ब्रा तो पहना ही नहीं था. कहां से पहनती, ब्रा पर बेकार पैसे क्यों खर्च किये जायें. जब वो ठुमकती हुई चलती, तो उसके चूतड़ हिलते और जैसे कह रहे हों कि मुझे पकड़ो और दबाओ. अपनी पतली सी सूती साड़ी जब वो सम्भालती हुई सामने अपने .चूत पर हाथ रखती तो मन करता कि काश उसकी चूत को मैं छू सकता. करारी, गरम, फूली हुई और गीली गीली चूत में कितना मज़ा भरा हुआ था. काश मैं इसे चूम सकता, इसके मम्मे दबा सकता, और चूचियों को चूस सकता. और इसकी चूत को चूसते हुए जन्नत का मज़ा ले सकता. लंड मानता ही नहीं था. .चूत में घुसने के लिये बेकरार था. लेकिन कैसे. ये तो मुझे देखती ही नहीं थी. बस अपने काम से मतलब रखती और ठुमकती हुई चली जाती. मैने भी उसे कभी एहसास नहीं होने दिया कि मेरी नज़र उसे चोदने के लिये बेताब है. अब चोदना तो था ही. मैने अब सोच लिया कि इसे उत्तेजित करना ही होगा. धीरे धीरे उत्तेजित करना पड़ेगा वरना कहीं मचल जाये या नाराज़ हो जाये तो भांडा फूट जायेगा. मैने उससे थोड़ी थोड़ी बातें करनी शुरु की. उसका नाम था पूजा . एक दिन सुबह उसे चाय बनाने को कहा. चाय उसके नरम नरम हाथों से जब लिया तो लंड उछला. चाय पीते हुए कहा, पूजा , चाय तुम बहुत अच्छी बना लेती हो. उसने जवाब दिया, बहुत अच्छा बाबूजी. अब करीब करीब रोज़ मैं चाय बनवाता और बढ़ाई करता. फिर मैने एक दिन कोलेज जाने के पहले अपनी शर्ट प्रेस करवाई. पूजा , तुम प्रेस भी अच्छा ही कर लेती हो.थोड़ी बात करने पर पता चला कि उसका पति शराबी था और रोज़ पी कर आता था और चोदने की बजाय आ कर सो जाता था…क्या दुःख भरी कहानी थी..यहाँ जिसको ये चूत milee थी वो तो चोदता ही नहीं था और जिसे ना मिली वो मुठ मार कर ही काम चला रहा था.धीरे धीरे मेरी usse बातें और गहरी होने लगीं.., एक दी मैंने मौका देख पूछ ही लिया..तुम्हारा आदमी पागल ही होगा. अरे उसे समझना चाहिये, इतनी सुंदर पत्नी के होते हुए, शराब की क्या ज़रूरत है. उसने कुछ कुछ समझ तो लिया था लेकिन अभी एहसास नहीं होने दिया..मैं उसको चोदने के मौके कि ताक में रहने लगा. और आखिर एक दिन ऐसा एक मौका लगा. कहते हैं ऊपर वाले के यहां देर है लेकिन अंधेर नहीं. रविवार का दिन था. पूरी फ़ैमिली एक शादी मैं गयी थी. मै नहीं गया. मेरे दिल में लड्डू फूटने लगे और लौड़ा खड़ा होने लगा. वो आयी, दरवाज़ा बंद किया और काम पर लग गयी. इतने दिन की बातचीत से हम खुल गये थे और उसे मेरे ऊपर विश्वास सा हो गया था इसी लिये उसने दरवाज़ा बंद कर दिया था. मैने हमेशा कि तरह चाय बनवाई और पीते हुए चाय की बढ़ाई की. मन ही मन मैने निश्चय किया कि आज तो पहल करनी ही पड़ेगी वरना गाड़ी छूट जायेगी. कैसे पहल करें? फिर मैंने उससे उसकी चुदाई के बारे में पूछताछ शुरू की..ये पूछने पर भी उसने कुछ नहीं कहा और मुस्कुरा कर मेरे सवालों का जवाब देती रही..मैंने socha—लौंडिया पट चुकी है,,चुदाई में देर नही होनी चाहिए..फिर मैंने जान बूझ कर अपने रूम में जाके सारे कपडे उतारे और लेट गया,,फिर उसे आवाज़ दी.वो मेरे रूम में आई और मेरे खड़े लंड को देख शर्मा गयी.मैं बोला- आओ रानी ..ये तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा है..वो धीरे धीरे मेरी तरफ बढ़ी और मेरा लंड सहलाने लगी..मैं बोला- इससे पहले कि कोई आ जाए,तुम इसका पूरा मज़ा लो…फिर मैंने उसे धीरे धीरे नंगा कर दिया..उसके चूचे तो जैसे हेडलाइट्स जैसे लग रहे थे और चूत गुलाब जैसी..वो मेरे खड़े लंड को अपनी चूत पे टिका कर बैठ गयी..मेरा पूरा का पूरा लंड उसके अन्दर घुस गया..वो उछल उछल के चुदवाने लगी..मैंने मज़े के लिए उसकी चूत चाटने को कहा..वो खुश हो गयी..फिर मैंने उसे जवान घोडी बनाकर चोदा और बोला-तू तो मस्त रंडी है रे,, पता नही तेरा पति तुझे कैसे नही चोदता….वो बोली—एक आप ही मेरा दर्द समझते है.. आप जब भी कहोगे,जहां भी कहोगे, मैं चुदने के लिए हमेशा तैयार रहूंगी…मैं उसे लगातार चोद रहा था..और वो मज़े ले रही थी..काफी देर तक इस तरह मैंने उसे चोदा..फिर जैसे ही मैं झड़ने वाला था,, उसने मेरा लंड मुंह में ले लिया और सारा माल पी गयी.. मैं थक चुका था, लेकिन वो साली रंडी अब भी चुदने के लिए उतारू थी.. मैं बोला—आज कि क्लास यहीं तक,,बाकी की पढ़ाई कल करेंगे.. फिर मैंने अपना लंड साफ़ करके उसे अपनी जेब में से निकाल के ५०० रुपये दिए..और बोला- रख लो , काम आयेंगे..वो खुश हो गयी..वो दिन था और आज का दिन है,हर दुसरे तीसरे दिन मैं उसकी चुदाई करता हूँ और बदले मैं कुछ पैसे उसे दे देता हूँ..बेचारी गरीब का घर चलता रहता है..हुई ना ये दयावान चुदाई…???
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